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भारतीय ज्ञानपीठ मूर्ति देवी जैन ग्रन्थमाला संस्कृत ग्रन्थांक-२६
श्रीराजवल्लभकृत
भोजचरित्र
[अँगरेजी प्रस्तावना, नोट्स तथा परिशिष्ट सहित]
सम्पादक
डॉ० पी० सी-एच. छाबड़ा एम. ए., एम. ओ. एल., पी-एच. डी. ( लेडेन, हॉलैण्ड ), एफ. ए. एस. ज्वाएण्ट डायरेक्टर जनरल ऑव अर्किऑलॉजी इन इण्डिया
तथा एस. शंकरनारायणन्
एम. ए., शिरोमणि, असिस्टेण्ट' सुपरिण्टेण्डेण्ट फॉर एपिनाकी
من
وزمان
TERRORIES
भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
:
वोर निर्माण सं० २४९० वि० सं० २०२०, सन् १९६४ ।
| प्रथम संस्करण । आठ रुपये
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ग्रन्थमाला सम्पादकीय
यह बात सच है कि भारतीय प्राचीन साहित्यमें पूर्णतः ऐतिहासिक कृतियोंका प्राय. अभाव है। किन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं कि इस साहित्य में ऐतिहासिक तथ्यों और व्यक्तियोंका कोई उल्लेस हो न हो । यहाँ ऐतिहासिक घटनाओं और उनसे सम्बन्धित व्यक्सियोंका उतना ही परिचय मिलता है जितना मानवीय जीवन में आदर्श व उत्कर्ष लाने तथा नीति और सदाचार स्थापित करने के लिए आवश्यक समझा गया । जैन साहित्यम शायः सर्वा क्ष व क पसे इस प्रकार उल्लेख आत-प्रोत है। जैन अर्धमागधी आगमसे लेकर समस्त प्राकृत, संस्कृत व अपभ्रंश रचनाओम तथा आधुनिक भाषात्मक हतियोंमें सैकड़ों आसान ६ उल्लेख ऐसे पाये जाते है जिनसे भारतीय प्राचीन इतिहासको अस्पाट कड़ियोंको जोड़नेमें बड़ी सहायता मिलती है। मध्यकालीन साहित्यमें तो अनेक ऐसे कपानक, प्रबन्ध, चरित्र और रास मिलते हैं जिनके नायक सर्वथा ऐतिहासिक पुरुष है। हाँ इतना अवश्य है कि उनमें ऐतिहासिक तत्वोंके अतिरिक्त अतिशयोक्ति व अलौकिक बातोंका भी इतना समावेश हो गया है कि उक्त दोनों भागोंको पूर्णतः पृथक् कर यशार्थताका निर्णय करना जरा टेढ़ी खीर है।
इस सन्दर्भमे प्रस्तुत ग्रन्य अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसमें ग्यारहवीं पातीके भारतीय सम्राट भोजका चरिव वर्णित है। राजा भोजके कथानक भारतीय आस्मान-परम्परामें बहुत प्रसिद्ध
और लोकप्रिय है। वे ऐसे दानशील और विद्याप्रेमी थे कि बल्लाल कविने अपने भोजप्रबन्ध भारतके कालिदास व भारमि-जैसे प्राचीन महाकवियोंको उनकी राजसभामं ला बंठाया है और एक-एक मुन्दर पद्यकी रचनापर उन्हें एक-एक लक्ष सुवर्णमुद्राएँ दान करते हुए दिखलाया है। प्रस्तुत ग्रन्थ भोजसम्बन्धी कथा-शृंखलाको एक महत्त्वपूर्ण कई है। इसके रचयिता राजवल्लभ जैनधर्म अनुवायो य पाठक थे, तवा उन्होंने अन्नदानकी महिमा बतलानके लिए यह रचना की। वे राजा भोजसे प्रायः चार सौ वर्ष पश्चात् पन्द्रहवीं पातोके मध्यभागमे हुए थे। ग्रन्थ देखनेसे स्पष्ट है कि उन्होंने अपने समयमै उपलम्म भोजराजसम्बन्धी सभी वार्ताओंका संग्रह कर उन्हें अपने ढंगसे रीतियन शंलीम रखनेका प्रयत्न किया है।
इस संस्कृत पद्यात्मक रचनाका प्रथम बार सम्पादन श्रीमान् डा. बहादुरचन्द्र छाबड़ा तथा श्री एस. वांकरनारायणन् ने आठ प्राचीन प्रतियोंके आधारसे किया है। जिनमें सबसे प्राचीन प्रति संवत् १४९८ (सन् १४४१ ) की है, और यही उन्होंने कर्ताके कालको अन्तिम अवधि मानी है। प्रत्यका सम्पावन बहुत कुशलतासे किया गया है, तथा प्रस्तावनामें अन्य व उसके पति सम्बन्धकी समस्त सातव्य बातोंका विद्वत्तापूर्ण रीतिसे विवेचन किया गया है। इस बहुमूल्य देनके लिए हम प्रथितयश विद्वान सम्पादकोके बहुत कृतश है । ऐसी महत्वपूर्ण प्राचीन रचनाओंको आधुनिक ढंगसे सुसम्पादित कराकर प्रकाशित करनेवे लिए भारतीय ज्ञानपीट व उसका अधिकारी वर्ग धन्यवादके पात्र हैं।
जबलपुर स्टेशन २७-१२-१९६३
होरालाल जैन आ० ने उपाध्ये ग्रन्यमाला सम्पादक
।
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अथ भोजचरित्रप्रारम्भः
[अथ प्रथमः प्रस्ताक] 'आश्वसेन जिनं नत्वा गौतमादिगणाधिपान् । "चरित्रमन्नदानस्य फुर्वे कौतूहलप्रियम् ।।१।। पूर्वे भवे यथा दानं दत्तं भोजनृपेण तु । प्रवन्धं तस्य वच्यामि भन्यानो बोधहेतवे ||२|| तथाहिभारतक्षेत्रमध्यस्थो देशो मालवसंज्ञकः । अनेकनगरग्रामपत्तनैः 'विराजितः ।।३।। तत्रास्ति नगरी रम्या धारानाम्नी महापुरी । अनेकमन्दिराकीर्णा जैनप्रासादशोभिता ||४|| धनाढ्या वहवस्वत्र श्रेष्ठिसार्थाधिपादयः । लक्षेश्वरा न दृश्यन्ते कोटिकोटीश्वराग्रतः ॥५॥ यत्र धर्मपरा लोकाः सदाचाराः क्रियान्विताः । भूषिता भूषणद्रव्यमन्ये मुरपुरीनिमा" ||६|| भूपस्तत्रास्ति विख्यातो दानमानगुणान्वितः। शूरी वीरवरः प्राज्ञः सिन्धुनामाऽस्ति भूपतिः ।।७।। अनेकोपानरचनारचकः साहसान्वितः' । चतुरश्चारुमूर्तिस्तु" पमारान्वयभूपणम्" ।।८।। अनेकान्तःपुरीवर्गपरिवारपरीवृत्तः ।
विशेषाद्रमणीवर्गमध्येऽप्येका मनोहरा ।।६।। 1. A begins with श्रीवीतरागाय नमः । 2. P3 °नि; B1 °न'। 3. px चां। 4. 'तनेन वि; 81 and HA "दृगेन वि! 5. Pi and A 'म | 6, A, B and " जिन । 7. P५ श्रेष्ठसर्वा । 8. P, Aanl Lरकिं'। . Py भूषित। 10. B1 "निभाः। 11. P2, Blud B माहगाय णीः। 12.p च | 13. PRIL 11 परमा'; 8 पर्मा ।
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भोजबरिये पट्टराज्ञीपदे न्यस्ता नाम्ना रत्नावलीत्यहो । भुनक्ति तत्सम भोगान्' राज्यलीलोचितान सुखम् ॥१०॥ परं कर्मनियोगेन भूपः सन्तानप्रजिंतः ।। दम्पती कुर्वतस्तस्मात्तौ द्वौ दुःखं सदा हदि ॥११॥ धिजन्म धिगिदं राज्यं धिग्मे बलपराक्रमौ । दभ्यो धिग्मे गुणाधिक्यं यदपुत्रो नृपोऽस्म्यहम् ॥१२॥ शिवादित्यामिधो मन्त्री चतुर्धाबुद्धयधिष्ठितः । तत्प्रियागुणमञ्जयो रुद्रादित्याभिधः सुतः ॥१३॥ भूपचित्तविनोदाय सामन्तमन्त्रिभिः पुनः। मिलित्वाऽऽगत्य विज्ञप्तो गम्यते मृगयाविधौ ॥१४॥ इचमार पन्द्रः परिहार मालितः । जगाम" बहिरुघाने त्रासयन्त्राणिनः परान् ॥१५| एकाकी तत्र भूपालो बभ्राम" सरितस्तदे" । शिशुं ददर्श सत्कान्ति स्थितं मुजतृणोपरि ॥१६॥ मुरूपं बालकं दृष्ट्वा राजा हर्षपरायणः । प्रच्छनोच्छङ्ग"मादाय गतो रोरो"निधानवत् ॥१७॥ रत्नावली समाहयकान्ते बालमदर्शयत् । पालं सूर्योपमोद्योत" दृष्ट्वा राज्ञी विसिष्मये" ॥१८॥ भूपेनाप्यस्य "वृत्तान्तं प्रियाया उक्तमग्रतः । पुण्ययोगादसौ लब्धः पाल्पो भद्रेशजन्मवत् ॥१६|| राज्या "मोदवशात्सद्यः स्तनौ स्तन्येन पूरितौ। "गूढगर्भवशाक्षातः" पुत्री भूपगृहेऽद्भुतः ॥२०॥
1.A,Bland Bासमं मुश्मयत्येव । 2.P", A and Ba"चित: चितः। 3.P3A,BIand ga धिमे गुणगणाधिमयं यदि पत्रविजितम् (१। तः) । 4. BT and बुद्धिनायकः। 5. Pt.P, And L
16. It and Bi मृगयां प्रभो। 7. PI, PR, A, Ri and B3 हयेना। 8. A Rnd Bs आगत्य: B गला ने। A.P3 जीवानां नाशयन्नपि Bianel B जीवानां प्रासयन्नपि । 10. Lजगाम: B1 भ्राम्यते; 8 भ्रमते । 11. Bad 13 मरिताटे । 2. P" मम । 13. B रोरी; रोर114.P- बालसूर्योपमं फान्त्या; A बालसूर्यसमा कान्तिं । 1: P and A सविस्मिता । 16. P and A न मूलव । 17. P.P3 and Liनं प्रियाया उक्त मगन:: A, BAnd BA प्रियाने च निरूपितम्। 18.p, A, Bl and BATण्ययोगादिम पुर्व पाल्य भई। 11. PlP, A and L मोह। 20. P3, A, B and
र्भाचसा । 21, P", A, B and 133 1 22. P and A 1 23, P,BI and B राज A राजो।24.A, HIand तमा
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प्रथमः प्रस्तावः
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एवं श्रुत्वा प्रजाः सर्वाः संजाता हर्षपूरिताः । यद्धपिनाय सर्वास्ता गता भूपस्य मन्दिरे ॥ २१ ॥ महाभूतः कृतो राज्ञा पुत्रजन्म महोत्सवः । दानमानवशाञ्जाताः सन्तुष्टा याचकादयः ||२२||
sagar नखशुद्धिर्दशाहिके। एकादशे दिने भुक्ताः प्रकृष्टाः स्वजनादयः ||२३|| विदपे' मुजमध्यस्थः ' संग्रासो" बालकः पुरा । एवं विचिन्त्य भूपेन मुञ्जनामास्य निर्मितम् ||२४|| द्वितीयेन्दुकलावत्स ववृधेऽथ दिने दिने । लाल्यमानोऽथ धात्रीभिः संजातः पञ्चवार्षिकः ||२५|| सुभाम्याधिकत्वेन रानी रत्नावली तदा । गर्भाधानपरा जाता हर्षेण पूरिता हृदि ||२६|| वर्धमाने च तद्धर्भे राजा राज्ञीप्रमोदभाक् । दोहदेः पूर्यमाणैस्तदर्भः पूर्णो दिनैस्तनः ||२७|| राज्यास्तनूरुहो" जातः शुभे लग्ने च वासरे" | वर्धापनं पुरे "चक्रुर्भुपादेशेन तत्प्रजाः ||२८|| सिन्धुल: सिन्धुपुत्रोऽयं चिरं जीयाज्जनोऽवदत् " | वर्द्धन्तौ लाल्यमानौ स्तः " पुत्रौ द्वौ मुज्जसिन्धुली ॥२६॥ ज्ञात्वाsध्यापनयोग्य तौ कलाचार्यस्य चार्पितौ ॥ Į दिनैः स्तोकत जातो" शस्त्रशास्त्र कलान्वितौ ||३०|| यौवनेन च संप्राप्त ज्ञात्वा सिन्धुनुषेण तु । सुशीले कुलजे कन्ये सौ द्वावपि विवाहितो ||३१|| मुञ्जनामा " सुतो जीवल्लभः पितरोस्तयोः ।
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पुण्याधिकस्य जीवस्य प्रशंसां न करोति कः ||३२||
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1. 19, A, Land B प्रजा सरिता है A च्छवः । 3 pe 4. P2, A, 134 and B विकटे । 5. Pa and A थे । 6, 122 and and A 8. P2, 4, 131 and B3 3P 13 and 13 10. Ps राशोतनौ सुतो; 4 राजी सुतासुतो 11 P" सुलग्ने शुभवासरे 12 P 13. Blaund 33 नातिभिः। 14 Pad A तो| 15 A स्वाध्ययन' | 16 B समन्वित | 17. Band 53 तरर्मध्ये | 18. Pa and A 19 सोडसीव 21 P2 andA' 'षिके जनेनापि ।
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and 1 हूँ ।
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नाम प्रतिष्टितम् +
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and A कारं ।
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भोजचरित्रे
नान्तरं वेति कोऽपीति' "तनुजन्माऽथ पालकः 1 एकदा सिन्धुभूनाथो रात्रौ मुजालये गतः ||३३|| तेन लखावता क्षिप्ता पर्यङ्काधः प्रिया निजा । सत्कृत्यासनकं दत्त्वाऽग्रे पितुः समुपाविशत् ||३४|| विलोक्य दक्षिणं वाम भूपेनालापितः सुतः । तृतीयो न हि कोsप्पत्र सनिधौ वर्तते जनः ||३५|| अत्र स्थाने सुतोऽप्याह न कश्चिद्वर्ततेऽपरः" । एवं श्रुत्वावद्भूपः शृणु वत्स' ! चचो मम ||३६|| पालकत्वं सुतोऽस्माकमङ्गजन्मास्ति सिन्धुलः । न कश्चिदन्तरं वेत्ति तवाप्युक्तं मयाऽधुना ||३७| किरिया गुणैस्तुष्यन्ति साधवः । परोऽपि गुणवान् पूज्यस्त्यज्यते निर्गुणो ऽङ्गजः ||३८|| यदुक्तम्" परोऽपि दितवान् बन्धुन्धुरयहितः परः । अहितो देहजो " व्याधितिमारण्यमौषधम् ||३६|| स्पर्शयन् पाणिना स्पृष्टं" सिन्धुभूपोऽवदत्तदा " | राज्यश्रियं ते ददामि परमेकं वचः शृणु ॥ ४० ॥ सिन्धुलोऽयं तव भ्राता पालनीयोऽत्र सर्वदा । विनाशं क्वाप्यसौ कुर्वन् रचणीयो मदुक्तितः ॥४१॥ यच्या" मया भुंक्ता राज्यसंपदिहाधिका" । वृद्धत्वे" स्वधुना प्राप्ते साधयामि परं भवम् ॥४२॥ एवं निरूप्य मुजा भूपतिस्तत उत्थितः । सोपानाद्यावदुत्तीर्य गच्छति स्म शनैः शनैः ॥४३॥ पटुकर्णो भिद्यते मन्त्रस्तावद्ध्यात्वेति मुञ्जराट् । पर्यङ्काः स्वभार्यायाः खड्गेन छिन्नवान् शिरः ॥४४॥
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and A लज्जासुरे ।
सनिधौ ।
6. P2,
. P
1. BIन वेत्तोत्यन्तरं कोपि 1 2 9 and A अ(ना)ङ्ग 4. Pe, And B! वामदक्षिणमालोक्य | 5 P2 A aisi [B] जनो वर्तति
8. P, A and
B and A यथा । 12 P2 and से वदते सिन्धुभूपतिः ।
A, and [3] वर्तते न हि फोरः । 7 And Ra 9, P2 and A किं । 10. P2 and A 11 P 13. P2 °तो 1 14, P-2 मोहात्पुष्टि करें कृत्वा 1 15. Pe 17. Pa and A हि । 18. P and A रक्षणीयो हि महचात् 19. Paid A इह घात्री and A य: च्छाराज्यसंपदा 81 P1 Pa and I वाधके। 23. P A and 131 पर 83. P2, A and B' उत्थितो भूपतिस्ततः । 24. P गच्छमान: 1
23. A रम् ।
न हि कोऽप्यन्तरं ।
बुझं हितवान् । 16. A क
20. P3 सावयाम्यहम् ।
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प्रथमः प्रस्तावः
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खड्गखाट्कारमाकर्ण्य' द्रतं व्याघुटितः स्त्रयम् । दृष्ट्वा च तत्प्रतीकारं सिन्धुश्चित्ते व्यचिन्तयत् ||४५ || राज्यश्रियं दयाहीनः पालयिष्यत्यसौ ननु । विमृश्येत्यलके चक्रे शोणितेनास्य पुण्ड्रकम् ॥ ४६ ॥ प्रातस्तु भूप आस्थाने ह्युपविष्टः सभान्वितः । आकारितः शिवादित्यो रुद्रादित्यसुतान्वितः ॥ ४७|| नृपेणाप्रच्छि सोऽमात्य" एकान्तस्थानसंस्थितः " | मुज्जाय दीयते राज्यं मन्त्रमुद्रा सुते तब ||४८ ॥ सुमन्त्रं मन्त्रयित्वेमं दृष्ट्रा ज्योतिषिकं नरम्" । मन्त्रिणां पश्यतां राज्ञा स्थापितो मुखभूपतिः ॥४६॥ रुद्रादित्याय मुजेन मन्त्रिमुद्रा समर्पिता । सिन्धुराजेति कृत्वाऽभूत्परलोकार्थसाधकः ||५०|| अथ मुखनरेन्द्रस्य राज्ये प्रमुदिताः प्रजाः " | धर्मकर्मपरा जाता भूपे पुण्याधिके सति ||२१|| विद्यया " विनयेनापि पाण्डित्येन विवेकतः " 1 मुखभूपसमः कोऽपि विद्यते न हि भूपतिः ॥ ५२ ॥ पालयामास तद्राज्यं यौवराज्यं च सिन्धुलः । सीमापालैर्नृपैः कैश्विदाशा नैवास्य लङ्घयते || ५३ ।। नागाधिपो पर्योऽस्ति विवेकविनयैर्गुरुः " । रिपुतारागणे सूर्यो मुखपादाजसेवकः ||१४|| ईम्गुणसमाश्लिष्टः " सिन्धुलः सिन्धुना समः । सेवते मुखभूपाल" सदाऽप्येकाग्रमानसः || ४५|| [ युग्मम् ]
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J, P", A and i31 तस्य पाटुकारकं श्रुत्वा । and B' हृदि भूपो । 4. Pa यति नान्यथा । 5. Ps शोणितम् ( [B] शोणितैः ) 8, P2, A and B शातिमापृच्चप भूपतिः । 11.
2. PS, A and 13 सी मृतः। 3. PA A and 11 विमृदयेदं कृतं भाले तिलकं तेन मुत्रकम् 16. Pl and A शिवादित्यः समाकर्ण्य 1 7 A समन्वितः । "गामात्मकः पृष्टो ! Pa 3 A Bl, und B
L
A and B1 मन्त्र मे कान्तसंस्थितः । 10. B1 तो मुञ्जभूनाथ मन्त्रिगामन्तपश्यतः । 12, P3,
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A and B ताजा; L "ता नराः । 13. A विद्यायां I विद्याया । 14. P2, Arund B1 त्रिवे विदुरेऽपि च। 15 P3 A and B 3 युवराजीव्य 131 युवराज्येऽथ । 162 B1 and B3 बले नागाविको यस्तु | 17 B and Ba विवेके विनये गुरुः । 10 P 2 4 32 and 133 ईदृग्गुणेन संयुक्त: । 19. PHA. R1 and 13 सिन्धुतादृशः 20 PE A B1 and 39 भूपस्य 1
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भोजयरित्रे यदा यदा सदस्येति' सिन्धुलः शुद्धमानसः । लोहमय्यावुमे कुश्यौं' पाण्योलत्विाऽक्षिपत्तिती' ॥५६।। निष्कास्येते न केनापि सामन्तैः सुमटैरपि । उन्शीयमानः सहसो' निष्कासयति ते स्वयम् ।।५७।। 'हदि तन्मुञ्जभूपस्य षाट्करोति' दिवानिशम् । माता बदति मा मेदं कदाचित्तनुजन्मना ॥५॥ विनाशयत्यसौ मा मां राज्यं मा लाति मामकम् । दध्यौ यथा तथा तस्मान्मारणीयो मयाऽनुजः ॥ll क्रीडाय मुजभूनाथो वने याति स्म चैकदा । स्कन्धे लोहकुशीं बिभ्रत्तैलकः सम्मुखोऽमिलत् ॥६०॥ यौवनोन्मत्तलीलेन'' कौतुकाक्षिप्तचेतसा । अचेपि सिन्धुलेनास्यैव कण्ठेऽलकृतिः कुशी ॥६१॥ 16तदृष्ट्वा मुजभूनाथो हृदयेऽतिचमत्कृतः। मारणीयो मया नूनमुपायेन यथा तथा ॥६२॥ गृहागतं समाहूप पट्टहस्त्यधिरोहकम् । एकान्ते गूढमन्त्रेण शिक्षा दत्ते स्म भूपतिः ॥६३॥ स्नानस्याबसरे वे' ढौकयित्वा समुद्धतम् । मारणीयो ममाज्ञातो राज्यद्रोही" हि सिन्धुलः ॥६४|| अन्येद्युः सिन्धुलस्तत्रातिष्ठदास्थानमण्डपें"।
भूपाज्ञया गजो मुक्तः कण्ठेनोच्चैरवादि च ॥६५।। - ...--
1. Hi and 1 सभां याति । ". P" Ritl A क्रुमलोहमगी ते दें। 3.pa and A फराभ्या भूमिमाक्षिपत्; I. पाण्या लात्वाइक्षिपत क्षितौ । + praulps टेश्च से । 5. A सभामुत्यीयमानः सन् । 6. Pr, A, B and B हृदय मुज। 7. L पट् करोति । 8. Py and A यद् । ५. panel A गलाति । 10. BIand 133 विनाशयति बास्माकं राज्य गळाति निश्चितम । 11, ps. A, B And एवं ज्ञात्वा सबभ्राता मारणीयो मयाउघना। 1". Ps. A, Bt and B लागतः। 13. PR, BT and 133 लीलयां 1 14. P, A, Bund 133 मानसः । 15.P, A, B1 and B3 सिन्धुक्षे ( B1 and 3 ) पतितस्यैव कण्टाभरणवत् कुशिम । 16. L तं । 17. P, A, BE and [१३ हृदयंन । 18. Band 13 गृहागते समानः पट्टहस्त्यधिरोहकः । 19. P, A, B1 and 133 दापयतं नपः । 20. A, 131 and B स्नानावसमे । '1. 1. धनं । 22. Pard A समुद्धतः । 23. P3, A and B५ 'ग्राही । 24. 12, A, It and B तोपविष्टः स्थान। 25. Pl and P3 यण्ट 1 26. P2, A, B and B3 कण्ठोच्चस्बर शवदत् ।
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प्रथमः प्रस्तावः उन्मत्तः 'सिन्धुरो याति न हि वश्यो ममापि च । एवं वदति चायातः सिन्धुलस्यैव" सन्निधौ ॥६६॥ आयुधो नास्ति' किं फर्मों दृष्ट्वा स्वानी पुरः स्थिताम् । गृहीत्वा पश्चिमी पादौ इतः कुम्भस्थले गजः ॥६७॥ सुनीदशनसंदष्टो गजोऽगच्छत्पराङ्मुखः । पुच्छं कृष्ट्वा कटी भग्ना सिन्धुलेन गजस्य हि ॥६॥ भूपतिश्चिन्तयामासाधुना वैरं पट्टकृतम् । पुच्छच्छेदो भुजङ्गस्येवात्र ज्ञेयोतिदुष्करः ॥६६॥ मुञ्जमूपत्यभिप्रायं नैव जानाति" सिन्धुलः । शुद्धचित्तं यथाऽऽत्मानं तथा विश्वं स पश्यति ॥७०|| ज्येष्ठको'" द्वौ समायातौ मईले गालो कलो । सन्धिप्रोत्तारणे दक्षी मल्लविद्याविशारदौ ॥७१।। सामन्त श्रेष्ठिसार्थेश राजव्यापारकोक्तितः । "कलाकौशल्यविख्याती श्रुतौ भूपेन तावपि ।।७२।। एकान्ते तौसमाहूय ज्ञात्वा "मर्दनलाघवम् । दानमानेन सम्मान्य राज्ञा वाचाऽभियाचितौ ।।७३॥ भ्रातुः सिन्धुलनाम्नो मे मर्दनावसरे सति । कलं पृष्टौ समारोग्य विह्वलीकृत्य पूर्वतः" ॥७४|| निष्कास्य तस्य नेत्रे व दर्शनीये ममाग्रतः । सेवकाः स्वामिभक्ताः स्युर्दोषो न हि कथश्चन ||७५।। मुजराज्ञा यदादिष्टं ताभ्यां तन्मदने कृतम् । अन्धः" सिन्धुलको जाता" को जाने कर्मणो गतिम् ||७६॥ सूरत्वं विक्रमत्वं च पौरुषं च पराक्रमम् । संग्रामे ""वैरिघातत्वं गतं सर्व विचक्षुपः ।७७॥
____ 1. A तसि", 2. A, 3I anl k: वदन ममायासः । And A 'स्प छ । .P:, A, Bi and 133 न हि। 5. 31 एवम् । 6. B सिन्धुरे मिन्धरस्य च । 7. P2 बैर प्रकटितं सुना । . Ps and A दृष्टान्तोत्र तथाफूलम् । 9. P3 नो जानातीह; B] and 13: नो जानाति । हि । 10, P, A, B and B येष्टिनी । 11. P2 शाद। 12. Piund A कौषलए; 191 कुपाल 13. A and Its न । 14. 22 कर्म न ! 15. F" भ्रात: !। 16. P", A, Hi and I नामानं । 17. P, A, 17 And B" कृतपूर्वकम् । 1.8. Band | पश्चान्नि कास्य । 19. P अप । १०.ps and Aयातः ।.1.182 विक्रम चिन्त18landविक्रम वित्तं । 2. 3 Haर। 2:I, PE, A,Runti 113 गता सर्वे विपशुपः ।
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भोजचरित्रे निःशल्यत्वाभपस्तस्मै ग्रासग्रामादिकं रहु । दत्त्वा निर्वाहयामास' पितुर्वाचं विचिन्तयन् १७८|| भार्याऽस्ति सिन्धुलस्यापि नाम्ना रत्नावलीति' या। साथ गर्भवती जाता श्रुत्वा मुञ्जोऽपि हर्षितः ॥७६।। नवमासैरतिक्रान्तः "सार्धाष्टदिवसः पुनः। प्रसूतिसमये भूपाज्ञया ज्योतिपिकः स्थितः ॥८॥ नरोऽन्येऽपि बहिरे ज्योनिःशास्त्रविचक्षणाः । ज्योतिर्मण्डलमीक्षन्ते केविच्चूडामणीधराः ॥८॥ धृत्वा वररुचि रीवेपं तस्थौ गृहान्तरे। प्रच्छन्नत्वेन लोकेन न ज्ञातः केनचित्पुनः ॥२॥ *अतीचशुभवेलायर्या शुभग्रहनिरीक्षिता । प्रसूतिलिकस्यासीझल्लर्या नाद उत्थितः ।।८३॥ बाह्यद्वारस्थितो” ज्योतिषिकः पृष्टो नृपेण च । जातो दुष्टमस्यालो बने हुतायः शिवम् | सूतिकागृहमध्यस्थो लिखित्वाऽक्षरचीरिकाम् । विमुच्य च" गृहद्वारे ययौ वररुचिहिः ||८५॥ मोचनाप वने तेन" राजादेशेन" ते नराः । मावत्सङ्गस्थितं पालं लात्वा गच्छन्ति यावता ॥८६॥ तावद्वारस्थिता पत्री दत्ता मुञ्जस्य तैनरैः । वाच्यते स्म तु%2 2"सामन्तैस्तन्मध्यस्थमिदं यथा ॥८७|| पञ्चाशत्पञ्चवर्षाणि सप्त मासा" दिनत्रयम् । भोजराजेन भोक्तव्यः सगौडो दक्षिणापथः ॥८॥
1. P, A, 13 and Ra° वे न । 2. P4, A, B anti B2 "दिकान बहन । 3. pe and A निर्वाहयत्तस्म। 4. ! वाचं; A and IBI घाना। 5. P बालास्ति। 6.A, Ban 133 पत्नी सिन्धुलक० । 7. L शोमायतीति। 8. 2, A, BT and B परा। 9. PLA,
Bl and 13: ति10.112 मासे व्य; 31 मासऽप्य 1 11.p2 से; BE "न्तः (ते)। 13. P५ से। 13. Pe, Bund 13: कपि चूडामणि धत्ता पक्ष्यन्ति ज्योतिमण्डलम् | 14, F! und B३ वररुचिर्वनितावेषषरो भव! गृहान्तरं । 16. S, A, Brand B प्रष्टाः सर्वलोकस्य न ज्ञान: केन कस्यचित् । 16. P, A, Bi And B3 अतएव । 17. P2, A and B. द्वारे। 18. Bl and BL ज्योतिः स्वयं भूपेन पश्छितः। 13.133 मीचयित्वा। 20. P3, A, RI and I तस्मिन् । 21. FR, Ps, IL, BI and B" राज्ञादे। 22.4. A, BI and I वाच्यमाना। 21 सा पत्री। 21, PP, A,BI and B मन्यादि(डीः) श्रूयते। 25. P", A, and Bउक्त घ-चा'; 31 यथा-पंचा। 26, L. भास। 27. Pl, P3, A, IL, B and la dai.."ई""यम् ।
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प्रथमः प्रस्तावः एवं ज्ञात्वा नृपायास्ते' सर्वे हर्षवशंवदा । तं पालं स्थापयामासुः कृत्वा वर्धापनं पुरे ।।८।। जन्मकुण्डलिका दृष्टा मुजेन मुदितात्मना । परमोच्चपदप्राप्तास्त्रयस्तत्र ग्रहाः स्थिताः ॥१०॥ उच्चः केन्द्रस्थितो लग्नाधियो'रिष्ट निवारकः । नवग्रहबलोपेता दृष्टा सा जन्मकुण्डली ||१|| एवं हर्षवशाभूपो गृहे वर्धापनं पनम् । करोति स्म शुभोत्साह दानमानपुरासरम् ।।२।। नामस्थापनमेतस्य भोजराज इतीरितम् । कलाभिर्वा द्वितीयेन्दुर्ववृधेथ दिने दिने ॥१३॥ संजातः पञ्चवर्षीयो' लाल्यमानः स सर्वदा । वल्लभो मुञ्जभूपस्य प्राणतोपि हि सर्वथा ||४|| "क्षिप्तो हर्पण शालायां" पाठकाने पठन बहु । जिह्वायाः "प्रकटोच्चारोक्षरलेखेपि पण्डितः ।।५।। "क्रमाज्जशेष्टवयः कुमारोयं" गुणाधिकः । पट्टिकाचरसंयुक्ता दर्शिता मुञ्जभूपतेः ।।६।। प्रशस्तावयवै रम्यां समीचीनाक्षरावलीम् । "दृष्ट्वास्य सुगुणावासां मुञ्जो' विस्मयमाप्तवान् ॥६७|| विषवल्लीसमोस्त्येप पोपितोनर्थकारकः । स्मरिष्यति बराकोयं चर" राज्यस्य "चात्मनः ||८|| तन्मया बाल्यसंस्थोय मारणीयो हि नान्यथा ॥ अन्यथा पौवने प्राप्ते बालोयं मां हनिष्यति ।
I.P A, Hind 138 नपादीनां । 2.12 und Lगनाः। 3. P. 131 and B५ स्थापयित्वाध ( !"तु) नं बालं कृत। 4. P.A and B लग्नाधिपोय. (BI and III मय) केन्द्रस्थः सर्वाः | i. P", A, B a! 133 महदुत्मा [ च्छा ) है। .P1 दास्प । 7. 14. A, BundU3 पञ्चवार्षिकको जातः। 8.PI A, B1 and 132 'नो हि। ५.PA, Bi and BOप्रागादपि हि सर्वदा। 10, Audds, befire this verse, प्रास्तावयच रम्या मनोशा याक्षरावली। दृष्ट्वा पगुणाबासं पुनर्विस्मयतां गतः ।। 11. 9A, B1 401133 दालायां सिपहर्षेण । 12. Ps and B1 °यां सदशी। 13. P, A, B und B3 कमेण चा। 14. pund A वाकः। 15. P". A, PI and B "रोभूद् । 16. P",A, IRI antd 13 पृष्ट्वा रूप। 11.p, A, B and Ba पुनर् । 18. PA,B1 anel B पतां गतः । 19. B1 प्येष। 20. A चिरं । "1. PE, A, B1 and BI राज्यं तथा 12. P2, A, Bluntl 133 147 मे बालकम्पोय ।
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भोजचरित्रे एवं निश्चित्य भूपेन वधकाय निवेदितम् । संध्यायां भोजराजोयमागमिष्यति ते गृहे ॥१००|| छित्त्वास्थ शीर्षमस्माक' दर्शनीयं नया ध्रुवम् । अनर्थो सन्यथा युष्मत्कुटुम्बे हि भविष्यति ॥१०१॥ दवा शिक्षामिमां तेषां वधकाः प्रेपिता गृहे । संध्यायाः समये प्राप्ते भोजस्यावाचि भूजा ||१०२॥ गच्छ "चाण्डालमाहूय समानय ममान्तिके । नान्यः संप्रेष्यते कोपि कार्येस्मिनाम्यते स्वयम् ॥१०॥ भूपाज्ञया गतो बालस्तचाण्डालकवेश्मनि । वकर्मध्यमाहूतो वधनस्य' मनोरथैः ॥१०॥ भोजभूपं समालोक्य प्रदीपाने विशेषतः । हस्तौ न वहतस्तेपामायुः प्रचलतावशात् ॥१०॥ यथासरसांधीयै म बीहि बीहि म पांडैकाढीयें । लिहीयो पहिलै दीहि घटा विणपी नहीं ॥१०६॥ पालोप्पथे कथं यूयमन्यथाकृतचेतसः । कृपापरा बदन्ति स्म शृणु चाल ! नृपोदितम् ।।१०७।। तस्योक्तः सर्ववृत्तान्तः श्रुत्वा गालोपि सोचदत्" । मा मारयन्तु भो भद्रा ! विलम्बो न विधीयताम" ॥१०॥ अन्यथा "मुजराड् युष्मत्कुटुम्बस्यापि घातकः । जानीत मद्वधं प्रापो युष्माकं शुभकारकम् ॥१०६।। एतद्वचनमाकर्ण्य चाण्डालास्ते कृपापराः । मारणीयो न बालोयं यद्भाव्यं तद्भविष्यति ॥११०॥ तथाप्युपायः कर्तव्यः कृते कार्ये सुखं भवेत् । बालशीसहकशीष कारितं चित्रकारकात् ॥११॥ ताबद्भोजकुमारेण जङ्घायाः शोणिताक्षरः ।।
क्षीरोदकपटे श्लोको लिखित्वैप समर्पितः ॥११२॥ 1. Ps. A, R1 at 13 शीर्प मंशाम । .P, A, I. and B3°यां। 3. A°। 4, Pr, A, and Bध्य(1394 )काय । .A, B and Bस्तस्य घाय:16. P, A, BE and B "हेतुना । 7. न च instead of यथा । *. P, A, B and | सस्मोदिनं च वृत्तानं । 9. A and I37 भापत । 10, 12, A, Bal 133 "यते । 11. Pr, A, B1 and 13 मुजभूमासी कु । 12, P", A, Rasd 03 मश्वं सब जानीहि सर्वथा । 13. P9, A, 131 am B मृवाय यन् । 14. 131 and I क्षोरोदकस्य पट्टेन लिखिम्वा श्लोकमर्पितम् ।
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प्रथमः प्रस्तावः अलक्तकेन' संलिप्य चलिता वधकास्वतः । मार्ग पश्यति यावद्राट् तावत्तैर्दर्शित शिरः ॥११३।। दृष्ट्वा तद् भूपतेस्तस्मिन् प्रेममुल्लसितं महत् । वाण्या सगद्दं राजा वधकान् पृच्छति स्म तान् ॥११४॥ कण्ठच्छेदनलायां किंचित्तेनोक्तमस्ति वः" । पट्टान्तराधराण्यस्माकं दत्तानि गृहाण भोः ! ॥११५।। सगद्गदगिरा भूपो वाचयत्यक्षरावलीम् । मुमोच नेत्रवारीणि दीपनिःश्वसितानि च ॥११६।। यथा - मान्धाता स" महीपतिः कृतयुगेलकार भूतो गतः सेतुर्येन महोदधौ विरचितः कासौ दशास्यान्तकः'' । अन्ये चापि युधिष्ठिरप्रमृनयो थावद्भवान् भूपते ! नैकेनापि समं गता वसुमती मन्ये त्वया यास्यति ॥११७॥ श्लोकार्थ हृदये न्यस्य प्रनः पृच्छति तान् नरान् । सत्यं वदत'' मे चालो भवद्भिः किं हतो न वा ।।११८||
भाषिरे भयाक्रान्ता भृपाशा केन लुप्यते । नृप ऊथ किं कुर्मः स्वजिताया विनाशितम् ॥११९॥ यथाआपण ही पंषे रीयो उरसा मुहां अंगार | दाझण लागो रे हिया तव ते जांणी सार ।।१२०॥ दुःसह मोजदुःख मे विस्मरेम" मृति" विना । एवं ज्ञात्या स्वशीर्षस्य च्छेदनायोद्यतोऽभवत्" ॥१२१।। बारितो वधक पस्तिष्ठ विष्ठेति भाषणात् ।' कुमारो विद्यमानोस्ति त्वत्परीक्षार्थमागताः ॥१२२॥
2. I आलकूपन । ५. 1", A, ur! 131 भूपस्तम् ।... PA, I31 ant! Bs तावदर्शापितः( तं)। 4. In and 13 दृधा (ट:) | IP, A, II And Baपुच्यते वधकान् प्रति। 6. PA,BI and I किचितं वचस्तव । 1, IPA, BI and B नेत्रवारिप्रवाहेन दोनिःश्वसितेन च। 8. Psorts यथा। 9. A, B and a सु। 10. Pa, A, und Rai ft 11. P A 1 and bu 2. Lalds, after this verse the following:
- धरणी घरणोधरसुंगई अभिलभूपति भूसुरसुंगई। गया गाण्डव कौरव ते धनी वसुमती किमहिया बापणिम् 1 13. Pral P3 पद से। 11. 1 °जिह्वया। 15. Lहै। 18. Py, A, BI and Raन विम्मायं। 17. A मतं । 18. P.A, ariel B स्त्रयं शीर्षे। 19. P.A, Blairl नाय मुभवृतः । 20. PA, RI indi भापितम् ।
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भोजचरित्र निजागभूषण राज्ञा वधका अपि सत्कृताः। प्रमोदात्प्रेमपूरेणा नीतो बालो' निजान्तिके ॥१२३॥ उत्सङ्गे स्थापितो बालः समाश्लिष्टः पुनः पुनः । रुद्रादित्यादयोप्यन्ये समाहृताः स्वमन्त्रिणः ॥१२४।। आत्मानं प्रकटीकृत्य रुद्रादित्याय भाषितम् । राज्यं दास्यामि' भोजस्य न्यायमागों यदीदृशः ॥१२५॥ गणकर्दत्तवेलायां भोजो राज्ये निवेशितः। गजवाजिरथाद्यतदाधीकृतमात्मनः ॥१२६॥ गोलाभिधनदीतीरं भोजराज्ञः समर्पितम् । परतीरसाधनार्थ स्वयं सैन्येन सोवजत्" ॥१२७| रुद्रादित्यायदत्तावत् स्वामिन् ! मे वचनं शृणु । मालवेन्द्र ! न गन्तव्यं गोलापारे।" जयो न हि ॥१२॥ मुजोवग्भोजसीमायां स्थातव्यं च मया न हि | गोलानदी समुत्तीर्य साधनीयो हि तैलपः ।।१२६॥ प्रधाने दोषशङ्कायो' रुद्रादित्योवदन्नृपम्" । काष्ठं दया हि पूर्व मां पश्चात्कुरु यथोचितम् ॥१३०॥ मन्त्र्युक्तमपमान्याथ राज्ञो'तीर्णा तु मा नदी। नृपा" मूर्खाः स्त्रियो वाला न मुञ्चन्ति कदाग्रहम् ॥१३१॥ षट्सप्ततियुजेभानां चतुर्दशशतेन सः। तुरङ्गमै रथैर्युक्तः पदातिपरिवारितः ॥१३२॥ चतुरङ्गचमूयुक्तः संचचार यदा क्षिती" । कम्पते स्म तदा पृथ्वी कूर्मपृष्ठधृतापि सा ||१३३|| यथादिक्चक्रं चलितं तथा बलनिधिर्जातो महान्याकुलः पाताले चकितो भुजङ्गमपतिः छोणीधराः कम्पिताः।
1. Pancd A°वणा रा । ', ' धक्के मुसमर्पिना, Bund 189 निजागभूषणा भूपे वस्तु समपिताः । B.p, PM,A, Hind_133 ; H.रूपेण । 1. P, A, BI_nnel B. समानीतो । 5. A, B ins! 183 उच्छंग स्थापितं बाल समालिङ्गप । 6. P: ता । 7. P2 ददामि । B. F2 यादीनाम'। !!. A, BIand स्वमैन्येन समं तावत् परतोराय गच्छति । 10. T", Bi and Ra वाघमारा )रभ्य | 11.2 तीरे, and 13 गोलोत्तीर्णे । 12. P3, A and BE( सो कर्य । 13. PA and H नुपे। 14. RI And BA भूपेनापि तथा कृत्वा संन्यो। 15. A, !!ul || राजा 1 16. 12 महीम: B and 133 मही। 17. Bunt BA बाई ।
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प्रथमः प्रस्तावः
भ्रान्तं तत्पृथिवीतलं 'विषधराः चवेडं वमन्त्युत्कटं सर्वे मृजरनेकधा दहतेरेतं नये ॥१३४॥ एवं प्रुञ्जनृपो यावत्सैन्येन परिवारितः । अतस्तैल पदेनापि देशसंधौ स ' आगतः ।। १३५ ।। कोषाध्मातमना दापयति स्मैपोपि डिण्डिमम् । उपद्रोति हि कः सीमां मम जीवति मय्यहो ॥१३६॥ संमुखं स समायातः पतिसेवक संवृतः " । दूतेन मालवेन्द्रस्य मेदं विज्ञातवान् स तु * ॥१३७॥ उपायश्चिन्तितस्तावद्भू पर्तलपदेन च । दूतं संप्रेषयामास मालवेन्द्रस्य संनिधौ ॥ १३८ ॥ मम देशग्रहायास्ति यदि वाञ्छा तवाधिका । युद्धाय तर्हि चागच्छ" क्षेत्रेणैव मया सह ||१३६ ॥ रे रे दूत ! निजस्वामी कथनीयो हि मद्वचः । भुज्यते कण्ठपादस्थस्तस्य सामन्त्रणं कथम् || १४० ॥ दक्षिणाधिपति " चं " श्रुत्वा "दूतमुखात्ततः ! विस्तारिता रणक्षेत्र गोक्षरूपा अयोमयाः ॥ १४१ ॥ द्वयोः संनद्वयोः प्रातः सैन्ययोर्मुक्तदैन्ययोः । परस्परं हि " संजातः संग्रामः शूर सैनिकैः ॥ १४२ ॥ बाणपूरेण सञ्चनं सकलं गगनाङ्गणम् । खङ्गषा' "ट्कारझात्का'" रैर्विद्युद्योत इवाभवत् ॥ १४३॥ शोणितानां नदी" जाता कबन्धानां च नाटकम् " । रणे शीर्षाणि हुङ्कारान् मुञ्चन्ति स्म घडं बिना || १४४ ॥ भ्राम्यन्ते शून्यकेकाणाः सुभद्राश्चायुधान् विना । युध्यन्ति स्वामिनोर्थेन लम्बमानान्त्रजालकैः || १४५ ॥ यथा
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१३
1. 131 and 3 भ्रान्तामुः पृ० 2 PA, H1 and 13# महाविष । Pe Aand 138 ° तं तेल । 4. F A 131 and BF सन्धिसमा Pend कि भूपे जीवितं सन्ति । F. 19, I31 and 14 गदालिः ( Bf and 133 पादाव्य ) सेवतः A Banda ज्ञाततई (दो? ) | 8 [PH A BI and 35 मान्द्रो गजाधिपः ! P2 A Bt and 11 तदा युद्धाय भागच्छ । 140 1 pa and I unit this whole stan 11, pi and pa 13. P2 and A वां । 10. P2111.1 and RI गोरूकाप्ययोमया । 1 and 13 च 1 16 घाटका | 17 A अंक 15 B1 शोणितस्रोतस 19 Aand 31 कबन्धनृत्यमद्भुतम् ॥ ० 1 and 13 वाग्विलाः ।
ै।
"
15. P2, A,
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भोजरिये कृपाणः कम्पितप्राणः' कुन्तदन्तैरिवान्तकः । पाणैर्भिन्नतनुत्राणैस्तस्याभूदारुणो रणः ।।१४६|| सारसदीय पुटप्पडी समली चंपें सीस । का मा रोलै पिउ सुवै धन हमारा दीस ॥१४७|| पुनःजिते च लभ्यते लक्ष्मीमते चापि 'सुरागानाः । क्षणविध्वंसिनी काया का चिन्ता मरणे रणे ॥१४८|| एवंविषेपि संग्रामे दाक्षिणो न निवर्तते । तावन्मुञ्जनृपेणापि प्रेरिताः सकला गजाः ॥१४६॥ गजा यस्य बलं तस्य दुर्ग यस्य स नियः । प्रजा यस्य धनं नस्य यस्याश्यास्तस्य मेदिनी ॥१५०॥ दुर्वारा दुःसहा दुष्टाः सिन्धुवेला इव द्विपाः । समकालं समायाता रणभूमि" मदोद्धताः ॥१५१॥ गोक्षुरैभिंद्यमानास्ते चित्रन्यस्ता इव स्थिताः । भूपतैलपदेनापि प्रारब्धं दारुणं मृघम् ॥१५॥ हता मुञ्जगजाः सर्वे गृहीता ऋद्धयोखिलाः । सामन्ता मन्त्रिणो भग्ना न ज्ञायन्ते कचिद्गताः ॥१५३|| यथाजे जीमता अगलि घाट कूर पसाइ बीडेल हता कपूर । सुणी दमामारणढोलतूर माजी गया भांगड ते ज भूर ||१५४|| पुन:जे गर्व बोले बलि मुंछ मोडी घुटी समीजे पहिरै पछेडी। जे बांधता पारहथा जिफाडा ते नासता कोडि करे पवाडा ॥१५|| एकाकी मुञ्जभूनाथः पादचारी विधेर्वशात् ।। स्थितः कापि प्रदेशे हि जीविताशा हि दुस्त्यजा ॥१५६|| यथागय गय रह गय तुरिय गय गय पायक गय भिच्च । सागढिय कारि मंतणउं महंता रुहाइच !॥१५७|| अतिवाह्य दिनं तत्र सुधार्ता नृपतिस्ततः ।
गोकुलेथ' समास" गोकुलिन्या गृहे गतः ॥१५८|| 1. Pi, Pi and L कुण्या तीक्ष्णया वापि । '. "पा। 3. Bonits पुनः । . L 3. P, A. Rand BELना । 6. I. विविध। 7. P, A, B4 3 and B* गाः सर्वे प्रपंरिताः। 8. 121 Bind Bसिन्धुर्वलय सिन्धुराः। !!.p aud A °मि| 10, A, B1, 13 and I33 युद्धदारुणम् । [1. A, 37, IBS and 13 हतयक्तिगजाः । 12. B1, B- all Bi नासी। 13. Mal 18 प्रदेन । 11. A, BIBHd [13 निर्गतः। 1.A, BIB: and B लोस्ति। 1ti R","al 1: तदासनी ।
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प्रथमः मस्तापः गोपाली मनिकारूढा दध्यालोडयते वधूः। साचितारत मापन मिररोगाति र साम्यहो ॥१५॥ मध्वः सप्त सुताः सप्त महिष्योजाश्च धेनवः । गोपाल्यस्ति' सगळ सा नृपं द्वारस्थमैवत' ॥१६०।। याचा नैव कृता पूर्व तेन नायाति याचितुम् । गोपाली वीक्ष्य सदगो भपश्येत्थं प्रजल्पति ॥१६॥ यथा - गोआलिणि म गब्यु कारि पिक्सवि पइरुमाई । छउदहसौ छहसरा मुजगयंद" मयाई ॥ १६२ ।। एतद्वचनमाकये गोपाली स्वसुतानवक् । रे रे गृहन्तु गृहन्तु मालवेन्द्रो हि मुझराट् ॥ १६३ ॥ दत्त्वा मलीश्च गोपाल्या पद्धो मालवभूपतिः । दत्तस्तैलपदेवस्य पश्यमपि दिशो दिशम् ॥ १६४ ॥ बन्धनान्मोचयित्वा च तैलपेनापि भाषितम् । गरिष्ठोसि' नृपास्मासु वाचा देहि ममाधुना ॥ १६५ ॥ यावदाम्यहं नैव तावद्गम्यं न हि त्वया । प्रतिपद्य वचस्तस्य स्थितस्तत्रैव मुञ्जराट् ॥ १६६ ।। भोजनाच्छादने वस्त्रं ताम्बूलं स्वर्णभूषणम् । नित्यं चादापयन्पो दक्षिणाधिपतिः स्वयम् ॥ १६७ ॥ दासी मृणालिका "नाम मुञ्जशुश्रूषणाकृते । स्थापितास्ति दिवारात्रौ पर्युपास्ते च सा भृशम् ॥१६८|| तदा सक्तो हि भूनाथो विस्मृतं राज्य सुखम् । सन्तोषयति चात्मानं वेलां ज्ञात्वा यदीरशीम् ॥१६॥ एकदावसरे स्नातोत्थितां दासी मृणालिकाम् ।
जलबिन्दुस्लवां केशेष्वोच्य प्रश्नोतरं जगौ ॥१७०॥ यथा- - ___ 1. B1, B and 3 तापयनै घृतं केपि विक्रीमन्ते च फेवन । 2. A, B and B3 गोकुलान्या। 8. B1, B2 and B3 °स्थीन । 4. Aaud Be मगर्या गोकुली दृष्ट्वा । 5. BI udds : लज्जावार इमहं असंपवा भणइमग्रि रे मनि । दिह , मा णकि वाउं देहित्तेन निग्नया वाणी । पनः । ७. Pani P काले मुन्न । 7. A, 31, Band B3 वदते सुतान् । ४.A, BI and B दुग्धमल्लएच गोपाल । २. A ठोस्मि। 10. A, BI, Band B. भूपतिः। 11. A नाम्ना। 12. A. BI, Bal B°या । 1:I. A "भाम् । 14. A को दृष्ट्वा । 15. A and 113 oinit thuisword
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भोजयरित्रे मुख कि भणै मृणालीय केसा काई चुवंति । मृणाल्योक्तम्लाधो साउ पयोहरा बंधण भय रोइंति ॥१७१।। तया प्रोक्तो' मुञ्जः पुनः पपाठसञ्ज कि भणे मिणालिय जुब्बण गयो म झरि । जइ सकर समयखण्ड किय तो इति मिट्ठी चूरि ॥१७२॥ तयोः प्रीतिवशादेवं गते काले कियत्यपि । रुद्रादित्यवचः स्मृत्वा मुखो वचनमब्रवीत् ॥१७३॥ यथाजे रहिया गोलातडिहिं हुँ बलिहारि ताह । मुख्न न दिट्टो विहलियो रुद्धि न दिट्ठ खलाह ॥१७४ अतो भोजस्तु धारायां मुनदुःखेन दुःखितः । सुरजां दापयामास पावद् द्वादशयोजनीम् ॥१७॥ योजने योजने मुसा अशिवेगाराङ्गमाः । प्रचक्रमे च बुद्ध्यैवं मुञानयनहेतवे ॥ १७६ ।। भोजनायोपविष्टोस्ति मुलभूपतिरेकदा । तावद्भोज नरेन्द्रस्य पत्री केनचिदपिता ॥ १७७ ॥ वाचयित्वा च वृत्तान्तं स्थापयित्वा च तं हृदि । लग्नो मोक्तुं महीनाथो यत्किश्चित्परिवेषितम् ।। १७८ ॥ विदग्धचित्तपा दास्या" चिन्तितं कारणं किम् । नोदितं मधुरं वारं नोक्ता" रसवतीगुणाः ॥ १७ ॥ सकारणास्त्यसौ पत्री' चक्तुं योग्याथया न हि । मृढं नृपं प्रति स्नेहादेवं दास्यवदत्क्षणात्" ।। १८० ॥ मन्दस्वरेण स प्रोचे मुजभूपोति मन्दधीः । कथनीया न कस्यापि राजवार्ता त्वया प्रिये ॥ १८१ ॥ सुरक्षा भोजभूपेन'' दापिता गुप्तवृत्तितः ।
पर्याधः स्थिता सास्ति' वामपादेन तिष्ठति ॥ १८२ ।। 1. P1 and P लदासक्तो 1 2. A, RI, It and P एवं 1. A, RI, Ba and 13 ° तेषां । 4. 1. योजनम् । 5. B1, Ba auct!: मुजमा( स्या नयनाथं च बुद्धिमेवं प्रचक्रमे । G. A, B1, BPanel Hiपी भोज। 7.A, HI, nd 133 केनापि हि राम । . A, B, 12 anl B स्थापित हृदयेन तत् ([19 ) : .A, BI, Buml 13: दासी विदग्धचित्ता सा । 10, 13 is and 133 क्षारमाला। 11. A, I31, Is" and B सकारणाममा पनौं। 1. A, B1, B2 and sil स्नेह ( 131, B2 and Bs हान ) मुमति पो वनोप्येवं प्रचलमे। 14. A हि । !, A तव । 15. L भूपभोजेन 1 16. B सिद्धा दावापिनापिहि। 17, A, BI, B, and 13 नन ।
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प्रथमः प्रस्तावः
तव स्नेहवशाद्भद्रे ! न गन्तुं शक्यते मया । यदि सार्थे ! समायासि धावाभ्यां गम्यते तदा ॥१८३॥ मृणाल्यूचे ततः स्वामिन् ! भव्यं किं स्यादतः परम् | यावत्पेटामानयामि तावत्स्वामिन् ! विलम्ब्यताम् ॥ १८४॥ कृत्रिम स्नेहया दास्या बहिरागत्य चिन्तितम् | तावत्प्रेमास्ति मय्यस्य यावदत्रैव तिष्ठति ॥ १८५ ॥
गृहे तो सौ कन्याः परिष्यति भूरिशः " | गुरुस्वरेण फुचक्रे पापिष्ठवं विचिन्त्य सा || १८६ ॥ याति याति नृपो मुञ्जः सुरङ्गाध्वनि सांप्रतम् । तावदाकृष्य पर्यङ्के लत्तां दत्वा" नृपः क्षणात् ॥ १८७॥ कण्ठं यावद्गतो भूम्यां वेण्यां तावद्घृतो नरैः । समाकृष्य बहिनतो दाक्षिणात्यनृपाग्रतः ॥ १८८ ॥ गतवाचोसि रे धृष्ट ! मुखं मा दर्शयात्मनः । पापं तवाधुना दुष्ट ! पतिष्यति शिरस्परे ! ||१८६ ॥ दुष्टसंज्ञाभिभूतस्य मृज्ञ्जस्याभृत्पराभवः ।
न विच्छायं मुखं तस्य न दीनं " वचनं क्वचित् ॥ १६० ॥ भूपाज्ञया मृजभूषो भिक्षायै श्राम्यते पुनः ।
In
मर्कटेन यथा योगी भ्राम्यतेथ" गृहे गृहे || १६१|| मुञ्ज ऊचे -
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कोली तुवि किं न मुअ हुओ न छारह पुंज |
घरि घरि भिक्ख माडीये जिम मकड तिम मुंज ॥ १६२ ॥ कस्यचिच्छ्रेष्ठ गेहे " मण्डकं खण्डितं वधूः ।
घृतबिन्दु दत्ते" मुजोपि श्लोकमत्रवीत् ॥ १६३ ॥ रे रे मण्डक ! मा रोदीर्यदहं खण्डितनया | रामरावण भीमाद्याः स्त्रीभिः के के न खण्डिताः ॥ १६४ ||
17
15
१७
1
1. B मुञ्जप्रेम मयि तावद । 9 A, BT and 2 BA गर्ने गृहे नवनवीं A, B and B कन्यकाम् । 4. A, B1 and B" त्रं मंघित्मविष्टा कृतं च गुरुस्वरैः । 5. A, B, Band B मार्ग पुनः। 6 A लावा दत्तां 74 जम् किंचित् | A B1, Band B “न ै । 10. A, B1, B2 and B र 11. A, B1, BB and 3 स 12, A, B1, B2 and Ba कस्मिन् पिटगृहं नोतो | 13 B1 Band B3 स्यन् । 14. A, B1, B2 and Ba यदहं | Ii A° द्या योषिद्धिः के 17, A मा रोदीर्भामिनी भ्रामितो यदि फटाक्षेपमाण
०
15. A, 8A, B2 and [3" यथा-मण्डक [ मा कुरुद्वेगं and Ba add, after this verse रे रे मन्त्र
!
करलग्नस्थ का कथा ||
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भोजचरित्रे भ्रामयित्वा गृहान् सर्वानानातीय चतुष्पथे । द्रव्यान्मश्रेष्ठिनं कश्चिद् दृष्ट्वाने स्थापितो नरैः ॥१६५।। वणिजो मुञ्जमापश्यन् हास्यं च कुरुते मुखात् । गृहीत्वा राज्यमस्माकमागतः पश्यतां श्रियम् ।।१६६।। एतद्वचनमाकर्ण्य प्रोचे सुञ्जनरेश्वरः । रे द्रव्यान्ध ! न जानासि गति कर्मण ईदृशीम् ।।१६७॥ यथाआपद्गतं हससि किं द्रविणान्ध ! मूढ़ !
लक्ष्मी स्थिरा न भवतीति किमत्र चित्रम् । एतम पश्यसि घटीजलयन्त्रचक्र"
रिक्ता भवन्ति' मरिता भरिताच रिक्ताः ॥१६॥ तो पुरी भ्रामयित्वा स शूलायामधिरोपितः।। कर्मणो गतिमालोच्य श्लोकं मुञः पठत्यमुम् ॥१६६।। यथाअघटितपरितानि "घटयति सुपटितघटितानि जर्जरीकुरुते । विधिरेव तानि “जनयति यानि पुमात्रैव चिन्तयति ॥२०॥ दासीसंसर्गतो मृत्यु विज्ञायासनमागतम् । तदा पुनः पपाठैकं श्लोकं जनमनोहरम् ॥२०१॥ यथा''
बेसा छंडी पहायिति जे दासी रचंति ।। ते किर मुंजनरिंद जिम परिमव घणा" सहति" ॥२०२॥ धारायां भोजभूपेन श्रुता वार्ता जनोक्तिभिः । शूल्यां तैलपदेनापि मुजभूपोधिरोपितः ॥२०३॥ क्वा तरुरेष महापनमध्यगः क्व च वयं नगतीपतिसूनवः । अघटमानविधानपटीयसो दुरवबोधमहो! चरितं विधेः ॥२०॥ करोटिर्मुञ्जभूपस्य दक्षिणाधिपसंसदि ।। मुच्यते दधिपूर्णा सा मच्यते वायसैस्ततः ॥२०॥
.-- ___ 1. Bi aud 112 श्रेष्ठिकस्यपि दृष्टयौ । १. भापस्य । 8. B1 गृहीतुं 1 4. P2 °नी; Bl, B and B ताम् । 5. Band 2 एता न । 6. P and Ri ad Bचके। 7. Pe and A भरस्ति । B. P तत्पु । ५. I. पिरों। 10. Instead of this stanga, A has : रेश्वर्यतिमिरं पक्षः पश्यतोऽपि न पश्यति । दरिबांजनयोगेन पुनविमलतां भजेत् ।। 11. pi, Pland 1जन। 18. P and Bl By And Bघट। 1. A नेव। 14. P and A onit this word 1 15. जौं। 16. गणा। 17. I.हमति। 18.81 यतः-पच त cte,
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प्रथमः प्रस्तावः
तच्छ्रुत्वा सिन्धुलोप्येवं भ्रादुःखेन दुःखितः ।
आक्रन्दयति भूपीठे लुठत्येवं प्रजल्पति || २०६ ॥ यथा'अद्धा अड्डा नयणला जर मूं मुंज नलित" । अरिकामिणी थोरसुयहिं महि निब्बोल करत ' ॥२०७॥ अद्धा अद्धा नयणला जइ मूं झुंज नलित" । सत्तय सायरसभरभरि महि सिन्धुल झति ॥२०८॥ गढकोपधरो भूपो न ज्ञापयति कस्यचित् । विज्ञातं तु प्रमाणं तत् कृतं यद्दुष्टगोपनम् ॥ २०६॥ यत्तः -- लक्खr a ferraणा जे लक्खणा न जंति ।
ताम रसायण ताम विस हियह इसंत धरंत ॥२१० ॥ पुनः-विरल इव ते पूर नमीज वेला नीगमैं ।
तेथायें धर धीर वेडस जिम बिलसे वली ॥ २११ ॥ श्रुते मुखस्य मृत्यौ राट् समालोकमभाषत । गुणाः सर्वे निराधारा मुञ्जभूपं विना षि || २१२ ॥ यथालक्ष्मीर्वसति " गोविन्दे वीरश्रीवीरवेश्मनि । गते मुजे यशःपुञ्जे निरालम्बा सरस्वती ||२१३॥ एकदा भोजभूतोपविष्टस्त" समान्तरे" । सरस्वतीकुटुम्बाख्यो द्विज एकः समागतः || २१४ ॥ वाशिषं नरेन्द्रस्योपविष्टो दत्त आसने ।
13
पृष्टश्च मन्त्रिवर्गेण नामाप्यद्भुतकश्रियम् || २१५|| द्विज ऊचे - बापो विद्वान् बापपुत्रोपि विद्वान्
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आई विदुषी आइधूआपि विदुषी । काणी चेटी सापि विदुषी बराकी
राजन् ! मन्ये प्रारूपं कुटुम्बम् ॥ २१६ ॥ रख राज्ञया" नीतो रजकस्य गृहे द्विजः । वस्त्राणि चालयन् "दृष्टस्तस्याग्रे पण्डितोवदत् || २१७ ॥
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1, 13 and L eruit this word 2 L " 13, B1, B2 and B3 घर घर सिन्धुल तुह भुजंति । 4. P2 and A वा दुष्टं । pe and A यथा 3 mits this word 5 B1 न जयंति । 7. B1, B2 and R3fa8. Pl omits this word 1 3. P3, A, B1, B2 and Ba अप्रतीकारे विद्वज्जनम | 10 P2 A B1, B2 and B3 लक्ष्मीर्यास्यति । 114 गोविन्दो 12. Land R" सरस्वति ! 113 Pa A L, B2, 13th and B3 भूनाथ । 11 Ps and A " स्थानमण्ड | 15 FP उवाच । 1G. PS भूपराजा रक्षितो; Ba and Ba राजाशारक्षकर" | 17.
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भोजचरित्रे रे रे साटकमलनिर्धाटक पाटकपटकपटीरक । अस्मिन् नगरे वद का का वार्ता ॥२१८।। रजक ऊचेअश्या वहन्ति नगराणि सनोरणानि
गावश्चरन्ति कमलानि सकेसराणि । भीलं पयो पत्रिषु नालि लिलेषु नै
प्रासादशैलशिखरेषु मृगाश्चरन्ति ॥२१६॥ न स्थिति तद्गृहे ज्ञात्वानीतोन्यत्र स 'पण्डितः । बालिकालापिता तेन कासि त्वं किंकुलोद्भवा" ॥२२०॥ पालिकोचेमृतका यत्र जीवन्ति निश्वसन्ति मतायुषः । स्वगोत्रे कलहो यत्र तस्याहं कुलबालिका ॥२२१॥ कुम्भकारगृहेन्यत्र नीतः पण्डितपौरुषैः । मिलिता तत्सुना द्वारे पृष्टा कस्य गृहं अदः ॥२२२॥ मालिकोचेपर्वताग्रे रथो यानि भूमौ तिष्ठति सारथिः । चलते वायुवेगेन पदमेकं न गच्छति ॥२२३|| एवं भ्रान्त्वा पुरी सबों पुलिन्दकुटिकां गतः । वसतिं यावदीक्षत पुलिन्दी तावदुत्थिता ॥२२४|| पलं करें समादाय गता भोजसभान्तरे । पूर्व दवानरेन्द्राग्रे प्रश्नोत्तरवचो जगौ ॥२२५॥ यथादेव ! त्वं जय, कासि ? लुब्धकवधूः, पाणी'" किमेतत् १ पलं, क्षामं किं ? सहजं ब्रवीमि नृपते ! यद्यस्ति ते कौतुकम् । गायन्ति त्वदरिप्रियाश्रुतटिनीतीरेषु सिद्धाङ्गनाः । गीतान्धा न चरन्ति भोज ! हरिणास्तेनामिपं दुर्बलम् ।।२२६॥
1. A, B1B2 and Its add यथा belore this verse 12. !, has च instead of f which is omitted by B7 and 18, 33, pl and pil gat; pusite; the whole is ommitted by L14. Pall Pa ति:; L, IB, Riel Ba " । .. P! तोप्यन्यत्र । 6. P का कुलोद्भवः । 7. A.पा। 8. A ति । १, P3 anel !. भ्रान्ता पुरी सर्वा। 10. लां। 11. P3, A, B and B नत्वा । 12. P1, P3, I. anti B: धुर्हस्ते । 1J. L. दिव्याङ्गनाः ।
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प्रथमः प्रस्ताव पुरं विद्वन्मयं ज्ञात्वा क्वचित्पटकटी स्थितः । श्रुतमेतस्य पाण्डित्यं राज्ञा चाकारितस्ततः ॥२२७॥ सरस्वतीकुटुम्बस्थ शिशु पसभा गतः । वर्षवर्णनं सद्यः कुरु तत्पण्डिता जगुः ।।२२८|| यथावर्षाकाले प्रणाले पलहलमुदके याति पाले विशाले चिक्खल्लोलिप्सयित्वा पडहहपडिउं लंबगुड्डो मणूसो । चुल्लीगेहस्स मज्झे कुरु कुरु खनते कुकुरो बड्डपड सुन्नागारस्स मज्झे टहरितकरणो रासभो रारटोति ।।२२६|| श्लोकं श्रुत्वा जहसुस्ते" भूपपाव॑ जुषः शिशोः । रासभो रारटीत्यादि ज्ञात्वा विद्वांसलक्षणम् ॥२३०॥ भूपेनोक्तं रारटीति क्रिया येन प्रयुज्यते । न हि सामान्य विद्वान् स सुधा हास्यं न सृज्यते ॥२३२।। सरस्वतीकुटुम्मोपि सकुटुम्बः समागतः। दवाशिष समासीनो" मालवेन्द्रसमान्तरे ।।२३२।। "सत्कृत्य पूर्व किल मानदानः
समारः संसहसास्य हेतोः । पृष्टा समस्या नृपमोजराज्ये
प्रवालशय्याशरणं शरीरम् ॥२३॥ सरस्वतीकुटुम्ब उवाच
एतद्भप ! वचः सत्यं" पूरितं स्वसमस्यया।
"त्वत्प्रतापेन भुपीठे यत्कृतं तसथा' शृणु ॥२३४॥ यथा-तव प्रतापज्वलनालगाल हिमालयो नाम नगाधिराजः ।
चकार मेना विरहातुराङ्गी प्रवालशय्याशरणं शरीरम् ।।२३।। कवित्वं भोजभूपेन श्रुतमद्भुतवाचिकम् ।
तत्सुतस्प नृपोवादीदसारात्सारमुद्धरेत् ॥२३६।। यथा"- दानं वित्ताहतं वाचः कीर्तिधर्मी तथायुषः । ___1.P, A, PI BP and एवं विद्रज्जनं । 2. L पर। 3. Pl, PRBT and B.टीं। 4. Pi, A, I and 13 विद्यार्थी प्रपितो नप। 5. It is calitted hy p1, P", A and LI 6. A, Lund 1 वत्वा जल्हारा तत् श्लोक। 7. A गतः; Lई युबा । 8. P तं । 9. PP, A, IRLS 17] { कार्यते । 10. IPL ansl p३ शिक्षा समानोती। 11. P and 13 adil भोजः-11. Pएनमत्यवचो भूप! | 1:3, P- त। 11...तः । 15. p: 'चकार । 16. A तत्समस्या( झ्या)। 17. P", Pr, L, BI, It' anis अद्यया। 18. P* कति धर्म ।
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भोजचरित्रे
परोपकरणं' कायादसरात्सारमुद्धरेत् ॥ २३७॥ तत्सुतस्य वचः श्रुत्वा सभासदसमन्वितः । समस्यां तत्प्रियाग भूपः प्राकृतभाषया ||२३८ || यथा - किहि गृह पाऊं पौर
एतत्सत्यं त्वया प्रोक्तं समस्यायां प्ररूपितम् । श्रूयतामेकचित्तेन पूरयामि तवाग्रतः ॥ २३६|| *जिहिं दिणि रावण जाईयो दहमुह इकसरीर | माय वियंभी चित किहि मुह पाऊं पीर ॥ २४० ॥ प्राकृतेपि विदग्धां तो ज्ञारखा कोविदकाग्रणीः । विनोदेनापि चेदय समस्यां प्राकृतेवदत्' ॥२४१॥
यथा -कंठचिलल्लह काउ ।
का
विकरालीयो उड्डीय गयो चलाउ । दिनु अचम्भूय उ हूयउ कंठविलुल्लह काउ || २४२ ॥ भेटा अपि व विद्वत्वं ज्ञात्वा नृपशिरोमणिः । तत्सुतायाः परीक्षार्थं समाहूता समान्तरे ॥ २४३ ॥ व्यामोहितस्तु स भूपतिर्भूमिवासवः । सच्छत्र तं समालोक्याररम्भ स्तवनं कनी ॥२४४॥ यथाराजन् ! मुञ्जकुलप्रदीप ! सकलचमापालचूडामणे !
युक्तं "संचरणं तवात्र भुवने छत्रेण रात्रावपि । मा भूत् त्वद्वदनावलोकनवशाद् व्रीडाविलासः" शशी मा भूच्चेयमरुन्धती भगवती दुःशीलता भाजनम् ||२४५|| विवेकं विनयं विद्यां विद्वखं च विदग्धताम्" ।
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सर्वानपि गुणान् कन्या " दृष्ट्वा भूपो व्यचिन्तयत् ॥ २४६॥ राजा' लक्षं द्विजायादाद्" गुणैः किं किं न लभ्यते " । तत्सुतायाः स्फुरद्रूपव्यामोहेन विशेषतः ॥२४७॥
TR
1, P2 and L "कार" । 2 A यमस्या । 3. P14 P2" स्थायाः प्रपूरणम् ।
5. B1 and 133 add नद्या
1
3
A L, B1, Brand 33 स्नान 7 Pl and
P3
A, B
and 3 वित्त्वं वेटिकrarea | 10.
pa कृतामवक् ॥ 8, Louits यथा । 9 12. P2 A and मंत्र। 11. Pa and A बिलक्ष्य (क्ष) B विलक्षः । 13. P2 and A°ता। 14. P and A गुणाः सर्वेपि कन्याया । 15. A 17. Ps, A, B and 13° न वाप्यते | 18. P1 and pa विशेषतः ।
B विद्याविद्वत्वं । 16 A द्विजे ।
T
|
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प्रथमः प्रस्तावः भूपानुरागिणी कन्या साप्पभृद्गुणमञ्जरी | परिणीता शुभे लग्ने भूसुजा' तस्पितानया ॥२४॥ एचं पालयतो राज्यं मालवेन्द्रस्य सर्वदा । ये के मीमालभूषालाः सर्वेप्याज्ञायशंवदाः ॥२४६।। नाटकं मुञ्जभूपस्यान्यदारब्धं च नर्तकैः । समायां मोजभूपस्य सर्व तैलपदोद्भवम् ॥२०॥ बनौकोवद्यथा भिक्षां भ्रामितः स गृहे गृहे । नाटकं दर्शितं सर्व करोटिं यावदाश्रितम् ॥२५१॥ तं दृष्ट्वा भोजभूपालो यावत्कोपारुणेक्षणः । भटो वैदेशिकः कोपि तावत्प्रोवाच संसदि ॥२५२।। मोजराज ! मम स्वामिन ! सत्यं नाटकलक्षणम् । पूर्यन्ते सर्वचिठ्ठानि हस्ते मुजशिरो विना ||२५३॥ एवं क्रोधान्नृपोप्याह नामेदं मे निरर्थकम् । मूनां तैलपदेवस्य कन्दुवच्चेद्रमामि' नो ॥२५४॥ ज्ञात्वाथावसरं भूपश्चतुरजचमूवृतः । गत्वा तैलपदे(द) भूपं जित्वा संग्रामभूमिषु ||२५५॥ पुण्याधिकेन भोजेन बध्वानीतो निजान्तिके | विडम्बितो यथा मुञ्जस्तथा सोपि दुराशयः ॥२५६॥ "निःशल्यं च तदा" जात हृदयं भोजभूपतेः । निष्कण्टका च राज्यश्रीः पाल्यते स्माथ तेन सा ॥२५॥ देवशर्मा शिवादित्यो विप्रः सर्वधरस्तथा । महाशर्माप्यमी तस्य पौरोहितपदानुगाः ॥२५८|| देवशर्मसुतो धारा वसते भोजसन्निधौ । द्विजो वररुचिर्नामाप्यधराज्यधुरन्धरः ॥२५६|| श्रीमालपुरवास्तव्यः" शिवादित्यस्य' नन्दनः । माषपण्डितनामास्ति माधकाव्यस्य कारकः ॥२६॥
1. Pi anel A भूपतेन् । '. B1 ruB एवं पालयनेन्द्रो हि। B, A पूर्यते । 4. P: and A °नि । 5. P2 ज्ञात्वावसरं भूनाय | H I भूपेन । 7. A मुनो भूपेन तत्तथा कृतम्: Re मुचो भूपेन स तथाकृतः । 8. A वि। 9.P, A, BIB- and B हि । 1.0. L तथा । 11. A हृदये। 12. B2 पालयमानां निग्न्तरम् । 13.p, A, BI, R: and Bi °घरः स्मृतः । 14, P, A, BI, Band B: मसुना एत। 15. Prand P "हित्य | 10.थीमालवपुरेजातेः (न:): A श्रीमालबपुरं वासः । 17. P", A, BI, 13 and B. शिवदत्तस्म ।
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मोजचरित्रे अवन्तीपुरवास्तव्यो नाम्ना सर्वधरो द्विजः । 'धनपालशोभनौं द्वौ नृपामात्यौ तदङ्गजों ॥२६१॥ सिद्धसेनक्रमायाताः' सुस्थिताचार्यनामकाः । भव्यानां वोधहेत्वर्थमुअयिन्यां समागताः" ॥२६२॥ श्रुतं सर्वधरेणापि गुरोरागमनं तदा । गमनागमनेनापि प्रीतिर्जाता गुरोः समम् ॥२६३॥ एकदा गृहमानीताः 'प्रकृष्टविनयेन ते । पृच्छति क्वापि किमपि" द्रव्यं मुक्तं न वाप्यते ॥२६॥ हसित्वा गुरुराचक्षौ प्राप्यतेर्थस्तदा किम् । दनि स्वामिन् । विभज्या प्रोक्तमेवं पुरोधसा ॥२६॥ तस्योक्त्या" भूमिका' सम्यम् दीर्घ विस्तारमाप्यत । भूगोलं दशयित्वा च तद् द्रव्यं मक्षु "दर्शितम् ॥२६६।। निष्कास्य निधि" पुञ्जो द्वौ कृत्वा सर्वधरद्विजः । गरुं विज्ञापयामास गृहाणाधे धनं प्रभो ! ॥२६॥ कार्य न निधिनोवाच गुरुः स्मर निजं वचः । द्विजोवम्यन्मयाख्यातं तद् धनं दददस्म्यहम् ॥२६८।। किं धनं क्रियतेस्माकं गुरुः प्राहर्पयो वयम् । द्वयोरेक सुतं दत्त्वा स्ववाचातोनृणीभव" ॥२६॥ गुरोर्वचनमाकर्ण्य स्थितस्तूष्णीं द्विजोत्तमः । वचनर्णमिदं” शल्यं संजातं मरणाधिकम् ॥२७०॥ कियत्यपि दिने सोथ" संजातो रोगपीडितः । अवसानक्रिया सर्वा कृता पुत्रैथाविधि ॥२७१।। दुःस्थावस्थां समालोक्य पुत्र ऊचे पितुस्ततः" । पुण्यवाञ्छा" तवास्ते या तां मदने निवेदप ॥२७२।।
1. pp and A919:12, P2 nd A7 3.1%, 4, B1, 132 and 83 77011 नपालये। 4. Lः । 5. Lकः । i. P: गमन; L गमत् । 1. P1 and Lकुटा । Pi, A, B, Be atd 13 च । , P", A, B1, 2 all 133 पृच्छेते कि पि कुमाधि। 10. 12, A, BIR and R" बर्ष मातृवत्स्वामिन् !। 11. Pund A पता; Lता।!", PatrA की। 11. Aवि । 11. And B च द्वन्य' तत्कालद। 15. PP, A, BI, Banda "धि| 10p, A, 31, 133 and B3 नतो याचान। 17. P, A, B, ty: BS वाचा रिणमि। 18, A, 131. Band Bणावधि । 12. L नि । 20. P, Pa, Ps and A ऊष इदं पितुः। 21. Planet p:: ' | 22.PP, A, BI, Brand B तवाद्यापि वर्नते ला ।
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प्रथमः प्रस्तावः 'वाच ऋणमयं शल्यं प्राणानामर्गलामिव । द्वयोरेकस्तु चारित्र' लाव्वा मामनृणी कुरु ॥२७३॥ धनपालो वचः श्रुत्वा चक्रे 'भूम्यवलोकनम् । शोभनोवग्रहीष्यामि दीचां वातारणीभव || २७४॥ एतद्वचनमाकर्ण्य देवलोके द्विजो गतः । ऊर्ध्वदेह क्रियां कृत्वा दीचां शोभन अभितः ॥ २७५॥ जैनद्वेषपरो जातो धनपाल पुरोहितः । प्रेषि संघेनोअयिन्या' लेखो गुर्वन्तिके तम् ॥२७६॥ शोभनेन विना गच्छः कथं शून्यः प्रवर्तते । धर्महानिर्घना जाता दुष्टत्वे हि पुरोधसः ||२७|| गुरुभिः सुस्थिताचार्यैः शोभनाय शुमे दिने वाचनाचार्यता दत्ता" ज्ञात्वा गीतार्थकोविदम् ॥२७८|| गुर्वाक्षया शोभनोषि 2 सुनिद्वितयसंयुतः । बहिष्ठात् "संस्थितोवन्त्याः “प्रतोलीदानकारणात् ॥२७६॥ प्रतिक्रम्य समालोच्य रात्रौ संस्तारकं व्यधात्" | यत्याचारादिकं कृत्वा तत्रैवाधिक धर्मवान् ||२८० ॥ पुनः प्रातः प्रतिक्रम्प' द्वारे घोघाटिते सति । संमुखं धनपालोपि मिलितः शोभनस्य सः || २८१ ॥ उपहासं प्रकुर्वाणी" धनपालोपि दुष्टधीः । जैनशासनविद्वेषी" त्विदं वचनमब्रवीत् ||२८२|| यथा--गर्दभदन्त ! भदन्त ! नमस्ते
10
एवं भुत्वा शोभन ऊ
कपिषणास्य ! वयस्य ! सुखं ते ।
२५.
1. Pa, A, B1, B2 and B3 वाचा रिण । 2 P लानि च A "लानिव । 3. Ph and A योर्मध्ये क । 4, P2 and A भौम्याय । 5. P2 A, B1, Bs and B दीक्षा लोभनमाश्रिता ।
6. Pa, and A 'ल' । 7. Ps and A seem to read सङ्केन बावन्त्याः । 8. P2
तम् । 9 P के कृत्वा । 11. ps and A B1, B3 and Bs अवन्त्यायां
A, B1, B2 and B° पुरोहिते । 10. P9 A B1, Be and B9 विदः | 12. PB, A, BI, B9 and BB मूनियंगल | 13. Pa, A, स्थिती बाये। 14 P2, B1 and 32 प्रत्तोलोदत्त | 15 A विधिम् 1 16. A, B1, Be and Ba रात्रौ वर्त्रय संस्थितः । 17. Pe omits this verse | 18. P: परिक्रम्य समालोच्य । 19. Ps and A. 20, P1, P9 and P3 हास्यं । 21. P9 and A कृतं तेन B# जैनद्वेषपरो भूत्वा ।
22 P2, A, H1 B and
1
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मोजचरित्र धनपाल कषे-कस्पातिथयो अब भवन्तः शोभन ऊषे-प्रातुर्गेहेन्यत्र न युक्तम् ॥२८॥
उपलक्ष्य बचो भ्रातुः पुरोधा लज्जयान्वितः । पहिर्गतोगचिन्तार्थ शोभनांगात् पुरान्तरं ॥२८॥ चैत्यचैत्यानि चानम्य' संघस्तावत्समागतः । गुरोः पादाब्जमानम्योपविष्टस्तु तदप्रतः ॥२८॥ शोमनेन शुभा" वाणी देशितादेशतो' गुरोः । समस्तसंघसंयुक्तों गतो पान्धवमन्दिरम् ॥२८६॥ भ्राता संमुखमायातो विनयेन घनेन सः । उपाश्रयश्चित्रशाला तेन दत्ता पुरोषसा ॥२८७॥ मारपुत्रकलवाया नताः संसारनात्रके। मोजनाय च सामग्री कुर्वन्तस्तेन चारिताः ॥२८॥ आधाकर्मिकदोषास्ते गुरुभिः प्रतिपादिताः । गोचराय मुनेः साथै संचचार पुरोहितः ।।२८६॥ दुःस्थिता श्राविका "कापि गृहे वीच्याग मुनिम् । दधिभाण्डं तदने सामुमोच श्रद्धया युता ।।२६०|| पृष्टा सा मुनिना श्राद्धी शुध्यमानमिदं दधि । दिनत्रयस्य संप्रोक्तं ममानुचितमागमे ॥२६॥ धनपालेन पृष्टोय किमयोग्यमिदं दधि । प्रच्छनीयो निजभ्राता कौतुकेस्मिन् मुनिर्जगी ॥२६२।।" दधिमाण्ड समादाय शोभनोवग् ममाग्रतः । समागच्छ मम स्थाने दयते कौतुकं पथा" ॥२६॥
___1. F3 and A omit these two words ! 2. P५ तुर्लज्जातुरपुरोहितः, A, B1, Bi and Bलज्जापरपुरोहितः। 3. F", A, BI, BE and Ba कायचिन्तागतो बारी शोभनः पुरमध्यगः । 4. P and A पत्ये चत्यो(त्ये) नमस्कृत्य । 3. A तदा । 6. PR,A, B1, B and B.शोभने शोभना। 7. PB देशनादेशिसा। 8, Pund A संघयुक्तोऽपि । 9. PR, A, L and Be "11 10. Pr, A, B, BP and B भ्रातरः सम्मुखायाताः। 11. P and A माताकलयपुत्रादि नमससारनायकः; B संसारमात्रके। 12. P", A, BI, Burd BK 13. Pa, A, BI, B And Bा । 14. P मुनिवरं गता! 15. P and A हि तस्याये। 16. PA , B and B ते पृष्टाः । 17. Bi omits this whole verse | 18. P, A, B, Be and B गतः शोभनसभिषो। 19. P3, A, B1, B2 and B३ असोय कथं लोक( B1, Band B केर(चामृतं वधि नान्तरम्।
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२७
प्रथमः प्रस्ताषः दधिमध्यस्थितान् जीवान् दर्शयिष्यसि मा यदि । तदाहं श्राद्ध एवास्म्यन्यथा त्वं विप्रतारकः ॥२६॥ धनपालवचः श्रुत्या शोमनो वचनं जगी । दर्शयामि यदा जीवान् तदा वाचा प्रपास्यते ।।२६शा अङ्गीकृत्य वचोप्येवं तदालतकमानय । दषिमाण्डमुखे मुद्रा दता' छिद्रं व्यधायि च ॥२६६|| पणमातपके मुक्तं तापतः शुभ्रजन्तवः। दधिभाण्डस्य छिद्रेण निर्गत्यालक्तके स्थिताः ॥२६॥ 'चलमानांस्ततो जीवान् दृष्ट्वा विस्मितमानसः । धन्यो जिनेन्द्रधर्मोयं पनपालोबदस्पुनः ॥२६॥ 'साध्यिमानः स द्वादशवतधारकः | बचनेन गुरोः श्राद्धो धनपालोभवत्सुधीः ।।२६६॥ अङ्गीकृत(त्य) च सम्यक् तं भवपायोषितारकम् । जैनधर्मपरो जातो नान्य धर्म समीहते ॥३००|| अर्हन् देवो गुरुः साधुधर्मो जैनप्रभाषितः । सर्वदा हृदये" ध्यानं मन्त्रस्य परमेष्ठिनः ॥३०१॥ इत्थं संबोधितो भ्राता गुर्वन्ते प्राप" शोभनः । द्विजेनकेन दुष्टेन भोजराजाय भाषितम् ॥३०२।। धनपालो जिनं मुक्त्वा नान्यं देवं हि वाञ्छति । भूपोपचे करिष्यामि कदाचित्तत्परीक्षणम् ॥३०३।। एकदा भोजभूनाथो महाकालालये गतः । नमस्कृतो नृपेणाथ धनपालेन नो पुनः॥३०४॥ अदेवे न हि देवत्वं धनपालोनवीदिदम् । रागद्वेषपरा देवाः संसारात्तारकाः कथम् ॥३०॥
1. P and A मुद्रा दच्या । 2. P", A, Bt and B तापेन 18.A पह' 14. A विस्मय' । 5. pa, A पायं जै(A जिनेन्द्रजं धर्म । 6. Bionits this verse Z.. BI, Band B3 साल। 8. L रेय । 9. A । 10. PF and P3 'घुध। 11. Ps, A, B1, B and B3 निरन्तर हदि । 12. Pl and P३ नाम् । 13. 19. BE, Bs and B | 16. Ps, BI, Band E भोजभूपाय । 15. PI, A, B and BAयदे। 16. Between verses 304 and 305, B1, B and Ba add : तं दृष्ट्वा भोज आपटे न देवं स्थावतः परम् । धूपनवेच. पुष्पादिग्धते पूज्यते स्तुते ॥ ( Cr. verse 307 below)
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RE
भोजचरित्र ये देवा जितरामाः स्युः 'संसारतारकास्तु ते।
एवं च मइयो राजन् सत्यमेव न संशयः ॥३०६॥ पथा-अकण्ठस्य कण्ठे कथं पुष्पमाला
विना नासिकायाः कर्म भूषगन्धः । अकर्णस्य कर्णे कथं गीतनृत्यं
अपादस्य पादे कथं मे प्रणामः ।।३०७|| भोजभूपेन तद्वाक्यं श्रुत्वा इदि विचिन्तितम् । मोचो येषां कथं नास्ति परेपो मोषदाः कथम् ॥३०॥ एवं ज्ञात्वाथ संजातो जैनधर्मानुरागभाक् । नरेन्द्रो मद्रभावज्ञा' अल्ते तत्प्रशंसनम् ॥३०६।। तुरङ्गानसिवापाथ मतो 'भूपः स्वमन्दिरे । तडागोपि नरेन्द्रेण नूतनः कारितोन्यदा ॥३१०॥ वर्षाकाले मृत झात्वा दर्शनाय गतो नृपः। पश्चषड्भिव विद्वद्विर्धनपालादिकैर्युतः ॥३१॥ नूतनैतनैः कान्यः सरस्या" वर्णनं कृतम् । पण्डिवैः सफलैरेव" स्वस्वबुद्ध्यनुमानतः ॥३१२॥ कथितं मोजभूपेन सरसो वर्णनं कुरु ।
धनपाल स्थितस्तूष्णीं भूपोप्यूचे द्विजोन्यसाम् ||३१३|| विषया-एषा तडागमिषतस्तव "दानशाला
मत्स्यादयो रसवती प्रगुणा सदैव । 1"पात्राणि टिक्नकसारसचक्रवाका
पुण्यं कियद्भवति तत्र वयं न विभः ॥३१४॥ कि साबण नै भद्दवै जत्थवि तत्पषि नीर । जेठ कलोला जे कर ते सर सहजि गंभीर ||३१||
1. P and P संसारे। 2. PP, A, B1, B and B% सत्य सत्पं । ३. P1, Pi end L नासमा स्पात । 4. L and B गन्धधूप: । 5. Pland A अफण(णे) अने। 5. BH, Bs and B" स्वयं । 7. B मावेन। 8. A,BA,B- and B अतिवाध तुरगाणां। 9. Pand A मूपस्य । 10.P, A, B1 and B सरोवर रो)। 11. L सो) 12. P.A, B1, B2 and B३ पण्डितामा प सर्वेषां । 13. Pातिमा'; A and B'पादिमा: E, Bi And B स्वानुमा। 14. Pland P. भूपमोजेन । 13. Pa, A and B: स्या116. P तपा; B पपा । 17. B1 *मिषतो बरवान । 18. Ps and A मच्छमा । 19. LT 30. P1 की।
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GH RATE
धनपालगिरं श्रुत्वा चुकोप हृदये नृपः ।
मम कीर्तनकं दृष्ट्वा इष्टयापि न सुखायते ||३१६|| गुरुरूपे' मम द्वेषी बचनैरुपलक्षितः । वर्णनीयः परैर्विप्रैः स्वकीयै निन्द्यते कथम् ||३१७ || अहमेव करिष्यामि प्रतीकारं हि ताशम् । धनपालस्तदा दृष्यौ' द्वेषनिर्नाशनोत्सुकः || ३१८ || एवं विचिन्त्य मनसा यावचष्णीं स्थितो नृपः | धाराचतुष्पथे तावद् वृद्धका संमुखागता ||३१६॥ भो भो विना ! एवं श्रूयतां मद्वचोधुना । भूपः प्रश्नाक्षरं प्रोचे प्रत्युतरकृते बुधान् ॥३२०|| यथा— कर कम्पावे सिर धुणैः बुड्डी कोइ कहे । एवं भुत्वा पण्डित उचे
इह जमराणं संभरी नंनंकार करे ॥३२१|| विद्याधरो धनपालो ज्ञात्वावसरमब्रवीत् । यत्किचिद् वदते वृद्धा तद्वदामि पुणु प्रभो || ३२२ ॥
'यथा
10
किं नन्दी किं मुरारिः किमु रतिरमणः किं विधुः किं विधाता " किंवा विद्यावशेयं किमुत" सुरपतिः किं नलः किं कुबेरः
11
॥३२३॥
नायं नायं न चायं न खलु न हि न वा नैव चा (ना १) सौ न चासौ " क्रीडां कर्तुं प्रवृतः स्वयमिह हि हले ! भूपतिर्भोजदेव : ' स्तुतिं श्रुत्वा ततो भूपो दृष्टचित्तोत्रवीदिदम् । तुष्टो धनपालास्मि" याचस्व तव रोचते |7 || ३२४|| एवं श्रुत्वा द्विजः प्रोचे याचितं " यदि लम्पते । नेत्रद्वयमस्माकं प्रसादीकुरु भूपते ! 2 || ३२५ ||
17
13
333 विधुः किं विधाता । 14. P8 A, B 1, Li Bt and Ba "भोजदेव ।। 16. P2 and A
।
२५
1. P1, Pa and BI चे | 2. B2 and 33 योवि 3 P9 A, B1, B2 and B निन्दितः । 4 P9 A, B1, B2 and B को द्रुतं चक्ष 5 B1, B2 and B3 दूरीकुर्वामहे वयम् । ! 6. Pt and A सं° 17. Pt and Pa बुधा:; P* न बा; L भवान् । 8 P2 A, BJ Band • B* बनो। 9. Lomits this word | 10 P2, 4 B1, Ba and B3 नलः किं । 11. Pa B1, B2 and B3 "रोसी 12 Pa A, B1, B2 and B 3 किम 13, P7 A B1, B3 and
and 153 नापि नाऽसौ न वेषः। 15. P2. ॲटदेव सहत्त्वं । 17, Pa and A रोचितम् | 18. A ती
19. Pa and A प्रसादं B1, Ba and B3 तदा नेत्रद्वये ( ये ) ऽस्माकं प्रसादं | 20. P2 and A "पतेः ।
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भोजरिने एतदारपर्य भूपस्य कथं शातं मनःस्थितम् । शातत्वं सफलं तस्य ज्ञायते यदुवाहतम् ॥३२६॥ धनपालो नृपेणाथ दानमानैः प्रपूजितः । विख्यातं जैनधर्म तं पालयामास पण्डितः ॥२७॥
अपभपञ्चाशिकापि धनपालकता स्वयम् । "जैनधर्मरहस्यं तत्सम्यक्त्वं च प्रकाशितम् ॥३२८॥ विधिः श्रावकधर्मस्य निवासस्थानपूर्वकम् ।
कृतं प्रकरणं जैन धनपालेन सद्धिया ॥३२६॥ पथा-- माला पुरे विशालणं सायविध साहुसावया जत्य ।
सत्य समावसियध्वं पउरजलं इंधणं जत्थ ॥३३०॥ यथा पश्चमकालेन' केवलज्ञानवर्जिते । मिथ्यात्वी धनपालोय' प्रबुद्धो न तथा परः ||३३१।। जैनं प धर्म प्रतिपाल्य सम्यक्
संस्तारदीवासहितोन्तकाले। सर्वाङ्गिनां" चामणकादिपूर्व
द्विजोचमः प्राप स देवलोकम् ॥३३२॥ विविषगुणगुणाली पुण्यपीयूषनाली
बदति वचरसाली कीर्तिवधी विशाली। अरिजनकृत एवं भ्रमजै पादसेवः
विदितसकलधामा भूपतिर्मोजनामा ॥"३३३॥ इति धर्मघोषगच्छे यादीन्द्रश्रीधर्मसूरिसंताने श्रीमहीतिलकसरिशिष्य पाउकोराजवसमाते
भोजपरिने मुजोत्पत्ति-मनपालस्वर्गगमनो17 नाम प्रथमः प्रस्तावः ||१||
1.P A, Bl and B यदि हृद्गतम् । 4. A जिन । 3. B1, Band B पेन । 4. Pl and P3 "ast 15. L यजितम् । 6. Lवं। 7. Pi and P२ । 8. Lबोत्र । 9. Pr°°1 10. P दीक्षान्धित चा(पचा )सकाले। 11. P, A, B1, Band B अनासिकं । 18. P and A पाम्ना। 13. Pa and A माम्ना। 14. Pr, P and L omit this verse | 15. P2, P3, Land Blomit this compound word 16. Pi, pa and L omit this compound word too | 17. BI, Band B3 मुम्नभोजोपनिषनपालप्रतिबोषस्वर्गगमनो।
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[अथ वितीयः प्रस्ता]
एकदा भोजभूनाथ उपविष्टः समान्तरे । प्रतीहारण विज्ञप्तः स्वामिन् । विज्ञप्तिको शृणु ॥१॥ कलिङ्गाधिपतेः पुत्रो जयसेनः समागतः। न्यग्रोधाधो नृपादेशात् स्थापितः सत्कृतोपि च ॥२॥ प्रातरागत्य विज्ञप्तः कुमारेण नृपस्ततः । मत्पित्रा ते प्रेषितानि त्रीणि शीर्षाणि हर्षतः ॥३॥ कि मूल्यं कस्य शीर्षस्य कथनीयमिदं मम । एवमुक्त्वा कुमारोपि न्यग्रोषस्थानके गवः ॥४॥ आकारितो वररुचिः शीपाख्यानं निवेदितम् । विचार्या हदये वार्ता कथं मूल्य विधीयते ॥५॥ त्वविहीनान्यजीवानि सन्मस्पं केन कथ्यते । भूपोवकौतुकं पश्य प्रातरास्थानके मम ॥६॥ भूपचातुर्यवीमा जयसेनेन सत्वरम् । प्रातरागत्य विनस शीर्षाणां मूल्यकारणम् ॥खा शीर्षाण्यानीय मुक्त्वाने भूपतेर्दिव्यसन्धनात् । छोटितानि शुभैगन्धैर्याप्त आस्थानमण्डपः ।।८।। श्रीणि शीर्षाणि निष्कास्य मुक्तान्यने महीशिवः । विस्मिता च समा सर्वा पश्यते भूपचातुरीम् ॥६॥ एकस्य दोरकः कर्णे चिसो वस्त्रे न निर्गतः" । सर्वोत्तममिदं शीर्ष "लक्षमूल्य निरूपितम् ॥१०॥ मध्यमे दोरकः पितः कर्णात्कर्णेन निर्गवः । सहस्रदशकं तस्य भोजभूपेन भाषितम् ॥११॥
I. BI, BE and B पतिः । 2, BI फस्य शीर्षस्य कि मौल्यम् । 3. Bt and B मौल्यं । 4. BA, BP and B स्वचा हीनं तु निर्जीवं । 5. Bi and B जयसेनकुमारोऽय; BS जयसेनाकुमारेण । 6. B1, B2 and B भूपचातुर्यवीक्षणे। 7. B1, Band B प्रणागत्य विज्ञप्तः। 8. BH, B. and B मौल्प । 9. B1, B" and B पश्यामो भूपचातुरीम् । 10. B1, Band B3 दोरक करें क्षिप्तं । 11. BI, Band B निर्गतम् । 12. Pा लक्ष्य । 13, B3 मौल्यं ।
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भोजरिये तृतीये दोरफ चिप्तः कर्णे वक्त्रेण निर्गतः' । जघन्यशीर्ष तज्ज्ञेय मूल्यं भग्नवराटिका ॥१२॥ जयसेनकुमारोपि दृष्ट्वा भूपस्य पातुरीम् । प्रशंसन् भोजपादाब्जौ नमस्कृत्य गृहे गतः ॥१३॥ विवेके विनये शत्वे विद्यायां' विक्रमेपि च | विद्वान इति प्राह भोजतुल्यो न भूपतिः ॥१४॥ एवं राज्यश्रियं सम्यक् पालयन् सर्वदापि हि । पुरन्दर इवोर्वीस्थः श्रूयते विबुधैर्जनः ।।१५।। अन्यस्मिन् दिवसे राजा समायो मण्डपे स्थितः । वर्धापको नरः कोपि भूपं विज्ञपयत्यमुम्' ॥१६॥ दक्षिणायां दिशि स्वामी 'पुहविस्थानभूपतिः । वैरिसिंहनृपस्तस्य पुत्री सौभाग्यसुन्दरी ॥१७॥ तब कीर्तनके हृष्टा' नान्यं भूपं समीहते" । रतिप्रतिमरूपास्ति' समायाता स्वयंवरे ॥१८॥ तस्यावलोकनार्थ च राज्ञा अपि पुरोहितः । गीर्वाणवाणीनैपुण्याबहुधालापितस्वया ॥१६॥ रजितस्तस्कचातुर्याद्विनयाच पुरोहितः । छन्दोलकारविदुरा मन्ये साक्षात्सरस्वती ॥२०॥ 1 दृष्टचिचोवभाषिष्ट भूपस्याने पुरोहितः । न वर्ण्यन्ते गुणास्तस्याः कथमप्येकजिलया ॥२१॥ द्विजोचमवचा श्रुत्वा राजा हर्षपरायणः । महोत्सवेन भूपस्ता विवाइयति कन्यकाम् ॥२२॥ तद्गुणै रञ्जितो राजा स्थितोन्तापुरमध्यतः। न करोति स्म राज्यस्य चिन्तां च गजबाजिनामा ॥२३॥
1, Bl and B दोरक क्षिप्तं कर्यासनिर्गत मुखे । 2. B1, Bs and B. शीर्षक ज्ञेयं । 3. Bl interchanges verses 13 and 14 1 4. B1, Band B विद्याविवस्वे । 5. BIB. and B विद्वज्जनादिरभ्यूचे । 6. B1, Band B पाल्यमानी निरन्तरम् । 1. BH, Band B3 विज्ञापयति भूपतिम् । B. P पुरषि (१)। 9. B1, Band B नृपः पुत्री नाम्ना। 10. BH, BI and B हृष्ट्वा । 11. Band Bहति । 12, B1 and B रतिरूपानुकारास्ति । 13. B1, Band Ba नार्थेन । 14. BI, B" and B कन्या गोर्वाणवाणोभिएषा सत्कृतो एकः । 15. Ba दु(?) । 16. B1, B% and B* न करोति स किं चिन्ता राज्यादिगणवाजिभिः ।
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द्वितीयः प्रस्तावः एवं ग्रीष्मर्तुसंप्राप्तौ जलक्रीडापरो नृपः । समस्तान्तःपुरीयुक्तो रमते रमणीगणे ||२४|| सार्य सौभाग्यसुन्दर्या स्नेहयुक्तो नरेश्वरः । जलसेकक्रियायोगाजातो व्याकुलमानसः ॥२५॥ देव्यवक संस्कृतं स्वामिन् ! मोदकर्मा व सिञ्चय । अज्ञानाद्भूपतिस्तस्यै मोदकानेव दत्तवान् ।।२६॥ मोदकरिता स्थाली दृष्ट्वा विस्मितमानसा । विद्वस्वं भवतो ज्ञातं राज्ञी मृते विहस्य सा ||२७|| राजा विलवचित्तः संश्चिन्तयामास मानसे | शास्त्राभ्यास विना झस्मान् हसन्ते स्म स्त्रियोपि हि ॥२८|| विङ्मे चतुरचाणक्यं धिङमे रूपं च यौवनम् | तद्धरे ! विवरं देहि प्रवेशं प्रकरोम्यहम् ।।२६।। एवं विमृश्य भूपालः करोत्यध्ययनश्रमम् | दिनः स्तोकतरैजाँतो विद्वजनशिरोमणिः ॥३०|| पार्श्वस्थितं पञ्चशतं विदुधामस्य तिष्ठति । नृपस्य' विरुदं दत्तं कुर्चालेयं सरस्वती ॥३१॥ गीते कवित्वे साहित्ये चातुर्ये विनये नये ।
नृपो भोजसमो भूम्यां न भूतो न भविष्यति ||३२|| यथा-कविषु वादिषु भोगिषु योगिषु'
द्रविणदेषु सतामुपकारिषु । घनिषु पन्विषु धर्मपरीक्षिषु
क्षितितले न हि भोजसमो नृपः ॥३३॥ एकस्मिन् दिवसे राजा विद्वद्वररुचिश्रितः । सभायामुपविष्टोस्ति मन्त्रिसामन्तसंयुतः ॥३४॥
----- 131, B2 and B3 अतिस्नेहन भूपाल: माघे सौभाग्य-सुन्दरी । जलसिंचनतो पाई जाता ( B तो प्याकुलमानसा ( Bi anti Bs ) ।। B1, Ba and B. "चित्तोपि पिम्स। 3 BI, B and B विनास्माकं । 4 B1, Band B3 भूपाय । 5 B1, Be and B. कूप सह भारती। 6 B1, B2 and B कवित्रगोतसाहित्य। 7 R andl B" मीगिषु भागिषु । 8 BA, B" and B धर्मपरेण च ।
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३४
भोजचरित्रे
साश्चर्यात्यद्भुता वार्ता चालिता पण्डितैर्जनैः । इसित्वा भोजभूपेन प्रोक्तं वररुचेः पुरः ||३५|| स्वभावोयं गुरुलोंकेथवोपाधिगु (गुं)रुर्मतः ' । एपा वार्ता ममाये हि कथनीया 'सुनिश्चितम् ॥३६॥ ऊचे वररुचिर्दक्षो भुपाल ! मृणु मद्वचः । नोपाधिः स्तूयते लोके सहजो मण्डनं जने ||३७|| नो गुरुर्भवे । उपाधिस्तु गरिष्ठोय लोकेप्याश्चर्यकारकः ॥ ३८ ॥ यदि ते प्रत्ययो नास्ति तदागच्छ ममालये । देवतार्चनवेलायां कौतुकं दर्शयामि ते ॥ ३६ ॥ तस्मिवसरे तेन सभा सर्वां विसर्जिता । स्नानं कृत्वा शुचिर्भूत्वा गतो देवालये नृपः ||४०|| प्रतीहारगिरायातः पार्श्वे वररुचिर्विभोः । संमान्यमासनं" दत्तमुपविष्टस्तु पण्डितः ||४१ || पुष्पैः (पैः) "प्रचर नैवेद्येपदीपादिचन्दनैः । "पश्चप्रकार पूजां तां कृत्वा भूपो यथाविधि ॥४२॥ तदारात्रिकवेलायां मार्जारी समुपागता । स्नाता गङ्गोदके पूर्व पुष्पचन्दनचर्चिता ॥ ४३ ॥ पवर्तितो दीप: : पूजितो विधिपूर्वकम् । उचारपति मार्जारी वादित्रैः पश्वशब्दजैः || ४४ || विलोकितं मुखं राज्ञा विद्वद्विजवरस्य हि " | स्वभावस्याथवोपाधेर्गरिमा कस्य दीयते ||१५|| निरीचयाश्रर्यद्वार्ता वदति द्विजपुङ्गवः । पारम्पर्यं न हि ज्ञातं पुनः पश्यामि कौतुकम् ||४६ ॥
13
14
1 B1, B2 and B सहजो गुरुलोंके ( )पाधिरथवा किमु । 9HI B and Bo
E
and Bs नीया हि । 5 B1 and B श्रूयतं । लोके साश्चर्यकारिणी | 5 131 विवजिता 9P4 and B3 पंचोपचार | 12 B1, B2 and B* दीपस्तु 14 11, B2 and 33 दास्यसि ।
एतद्वा | 331, Band Bs ग्रेग 4 131, B
6 B1 and B यदुपाधिरिष्टेय । 7 131 and B मानसं । 10 B' प्रकर पञ्चवर्तीकः । 13 B1, 9
11B1, B and
I
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द्वितीयः प्रस्तावः भूपः प्राह सदैवैपारात्रिक' प्रकरोत्यहो । विलोक्या भवता नित्यं नान्या मार्जारिका समा ॥४७॥ पण्डितः कौतुकं दृष्ट्वा समायातो निजे गृहे । देवार्चावसरे प्रातरेकं मूषकमग्रहीत् ।।४॥ गतो भपसमीपेयं पण्डितोप्याशिषं ददौ । उपविष्टो मुदा तत्र कौतुकं तद्विलोकने" ||४|| आरात्रिकं व्यधात्स : पूजनानन्तरं नृपः । मार्जार्यपि समायाता स्नपिता पूर्ववत्तदा ॥५०॥ यावद् भ्रामयते दीपं वादिर्वाधमानकैः । विदुषा मूषको मुक्तो दर्शयित्वा तदअतः ॥५१॥ मार्जारी मूषके दृष्टे दीपमास्फालये(य)द् भुवि । सर्वे हास्यपरा जाता भूपतिप्रमुखा जनाः ॥१२॥ मार्जारीचेष्टितं वीच्य इसित्या भूषतिजंगौ । सहजः सवंदा पूज्य उपाधिस्तु कियदिनान् ॥५३| एवं राज्यश्रियं भुक्त्वा भोजराजो नृपापणीः । एकदास्ति" सभासीनो विज्ञप्तः केनचिद्विशा ॥५४|| स्वामिन् ! नगरमध्येद्य दृष्टं रक्षोद्वयं मया। तद् गच्छति च लक्षातो" यात्रां गोदावरी प्रति ॥५५॥ पृष्टो नरो नरेन्द्रेण दृष्टौ तौ राक्षसौ कथम् । कुम्मकारगृहे स्तस्तावाकार्यापृच्छयतां विभो ॥५६|| तथाकृते नरेन्द्रेण प्रजापतिरवगतो" । बलमानौ तदास्माकं कथनीयौ सुनिश्चितम् ॥५७।। शिक्षां दत्त्वा निजे स्थाने प्रेषितः स प्रजापतिः । भूपतिः कारयामास पतङ्गीनां शतान्यथा ॥५॥ कियत्स्वहस्सु यातेषु बलमानौ तु राक्षसी। तस्यैव कुम्भकारस्य संध्यायां समनि स्थितौ ।।५।।
1 B रात्रिषु। 2 Pri। : BT and B कति; BA °फिलम। .P गई। . 5 BI, B and Its " ।। 134 and B* भृभ्यां म्फालति (8 लिति ) दोपफम् | 7 Pl
नात; 81 नः। 8 B1, Bs all tभुइकले। 21, B2 and B एकवाक। 10 BI, R" snd B. सिंहस्ते गण्ठते लक्षात् । 1113', B- and 13° स्वामिन्नाकार्य पृश्नेना। 12 B1, B and B: वृत्वा । 1: ', Bune | प्राजापत मितिर्जगी। 14 Band B बजानामि ।
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भोजरिये कथितो' कुम्भकारेण भोजराजनृपाग्रतः । रात्रौ स्फुरत्यन्धकारें मांचितास्ताः पतलिकाः ॥१०॥ अनेकचमात्कारैर्दीपोद्योतितदिग्मुखैः । आहतुनिस्मयातौ तौ कुम्भकारं प्रतिक्षणात् ॥६१।। आकाशे किमिदं भद्र ! दृश्यते कौतुकं किल । प्रजापतिरभाषिष्ट शृणु मेतकुतूहलम् ।।६२|| भोजराजो नृपोस्माकं यज्ञस्तेन प्रतन्यते । अदग्ध स्वर्णकार्येण भूपः प्रस्थानके स्थितः ॥६३|| प्रासर्गत्वा ससैन्योसौ भक्ता लकापुरी ततः । सुवर्ण तत आदाय यज्ञं तं कारयिष्यति ॥६॥ तच्छुत्ला राक्षसी भीतौ जल्पतुस्तौ परस्परम् । पुरा रामेण सा लङ्का भग्ना कष्टे मइत्यपि ॥६॥ बद्धोम्भोधिर्टषद्भिस्तु पादचारेण गच्छता । संग्रामे रावणं हत्वा भग्ना लकापुरी तदा ॥६६॥ अस्याकाशस्थितं सैन्यं गच्छत्केन निवार्यते । नूनं विभीषणं हत्वास्मत्पुरी तां गृ(प्र)हीष्पति ॥६७|| समालोच्य हदि द्वाभ्यां कुम्भकाराय भाषितम् । गच्छ त्वं भूपतेरप्रेथवावां नय तत्र भोः ! ॥६॥ प्रधानपुरूपैः सार्ध राक्षसा(सौ) राजमन्दिरे । गत्वा भूपं नमस्कृत्य राक्षसावाहतुर्वचः ॥६६॥ स्थापय त्वं निजं सन्यं यावल्लकाधिपान्तिके। गत्वा विज्ञप्य तत्पावर्वादानयावस्तदर्जुनम्" ||७|| रामेण पातितं दुर्ग पत्रिकूटोपरिस्थितम् । स्वर्णेष्टकामयं राजन् ! पतितास्ता इतस्तनः ॥७१॥ स्वामिन् ! निवेदपास्माकं प्रेक्ष्य(व्य)न्ते कियदिएकाः । ठावन्मात्राः समानीय मुच्यन्ते त्वत्पदाप्रतः ।।७२।।"
1 Bi and B.; B 1 3 11, Be and B: रजन्यामन्यकारण। B1, Ba and B तें। 4 B'खे। 5 R and B: कोतकालयम् । B1, B and B'स्मासु । 7 Bl and B अदापः । 8 Pl and P हित्वा । BI, B and B3 स्थापयस्व । 10 B1, B- And B. पारिस्वर्ण तमानयास्म(ब)हे । 11 ।।, It and Rs त्रिकुटोपरि संस्थितम् । 19 Ba omits this versei
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द्वितीय: प्रस्तावः
भूप ऊबे सहस्रे द्वे मानीयन्तां ममेष्टकाः ।
स्वामिना सह लंकां तां चूर्णयामीति नान्यथा ॥७३॥ राक्षसावूचतुः स्वामिन् । दशवासर मध्यतः । यदि नायाति तत्स्वर्ण चद्दण्डमाच ॥७४॥ एवं निरूप्य भूषाग्रे प्रस्थितौ राचसौ प्रगे । समुत्सत्य गतौ लंका विज्ञप्तस्तु विभू ( भी ) षणः ॥७५॥ देव ! धारापतिर्भोजनामा मालवकेश्वरः । विद्याश्व महाशूरो दानी माने श्वशे नृपः ॥ ७६ ॥ यज्ञमारब्धपस्त्येतेनादग्धस्वर्णहेतुना । आगच्छत्सैन्यमाकाशे भीत्यास्माभिर्निवारितम् ॥७७॥ विबोधितः प्रधानैस्तु विभीषण नरेश्वरः" ।
प्रेख (य) ते होष्टका देव ! स्तोकेर्थे न विरुद्वयते ॥७८॥ न स्वल्पस्य कृते भूरि नाशयेन्मतिमान्नरः । एतदेवात्र पाण्डित्यं यत्स्वल्पा भूरिरक्षणम् ॥७६॥ जनपञ्चशतीशीर्षे हीष्टकानां चतुष्टयम् । दवा प्रत्येक मीत्या तैः प्रेषिताः शीघ्रराक्षसाः ||८०|| संप्राप्य नगरीं धारी राक्षसैः सकलैरपि । इष्टका' ढौकिता भोजनृपाग्रे नतमस्तकैः ॥ ८१ ॥ लङ्कायां कुशलं वत्स" कुशलं तु विभीषणे । गजवाजिमुतखीणां क्षेमं पप्रच्छ भूपतिः ||२|| प्रसादात्तव राजेन्द्र " ! कुशलं सर्ववस्तुषु । गृन्तामिष्टका देव ! विभीषणविमुक्तकाः ||८३|| पश्यन् भोजनरेन्द्रस्य कलाकु "शलतां जनः । उपाङ्गचक्रवर्तीति वच ऊचे विशेषतः ||८४ ॥ विभीषणस्य तं दण्डं भाण्डागारे ररक्ष सः । राक्षसानां तु सु(शु)श्रूषां कारयामास भूपतिः ||८५||
Ta
Tit
३७
1 B1, B and 153 चान्यथा । B1 He and B3 दिनानि देश 3BI B and B 3 1 4 B1, Bs and B दानमाने । 5131, B2 and 33 विभीषणस्तु संबोध्य प्रधानपुरुषैरपि । B1, B2 and B उपवनकलास्तेपि घारायणं प्राप्तराक्षसाः । B3 भोजा 18 B1, B2 and I3s इंदा विश्या मस्तकाः । 3 B and BA
7 B1 B2 and
| 10 BI, 12 Band
Band B सुतान् दारान् कुदाले पृच्छते नृपः । 11 B1, B B 18 BA and B कारापयति ।
and B भूपेन्द्र 1
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भोजचरित्र अष्टादशापि' भोज्यानि कृत्वा माल्यादिवस्तुभिः । आत्मस्तुतिकृते भूपाः सत्कुर्वन्ति विदेशिनाम् ॥८६॥ एवं मृष्टान्नलुब्धास्ते यावत्पण्मासकं स्थिताः । विस्मृता राखसी विद्या सर्वाप्युत्सव नादिका ।।८७॥ भोजस्य सेवका बाताः स्थितास्तत्रैव मण्डले । मेदिनीचारिणो जाता गतविधास्ततः परम् ॥८॥ अनेकोपारशन(ण) विद्याया व्यसनेन च । भोजः पालपते राज्यं भूमिस्थो देवराजयत् ।।८६॥
इति धर्मघोषण
पाठकराजवल्लभकृते श्रीभामचरिते उपाणचकवतिकर्मालसरस्पतीविरुदप्रापणो नाम दितीयः प्रस्ताव ॥२॥
1 B1, Band B देशानि। " B1, B and B गन्धमाल्यसुवस्तुभिः। 3 BI and Baqa'1 A B1, B' and B3 add one more verse which is as follows
सकलगुणनिधानं भूभुजदनमान जनितया विधानं किन्नरंर्गीयमानम् ।
विजितगणविपक्ष दत्तदानं च लक्षां गुणिनअनभिमुझविष्ट भोजभूपस्य दक्षम् मक्षम 5 3 श्रीमहोतिलकसूरिशिष्यपाठक, etc.; B* वादीन्द्रभोवर्मसूरिसंताने मूलपट्टे श्रीमहोतिलकसरिक्षिष्यपाठक, etc; B३ वर्मसूरिसंताने पाठक, etc.
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[अथ हतीयः प्रस्तावः] भोजभूपोन्यदा रात्राचुत्थितः कायचिन्तया। चन्द्रोद्योतेन सौधस्थः पश्यति स्वविभूतयः ॥१॥ लावण्यललिमोपेताः' पश्येल्लीलावतीस्त्रियः। एकदैकत्र सुप्तः सन् राजप्राहरिकान् नृपान् ||२|| कुत्रापि दन्तिनो श्रद्धानालाने मदविहुलान ! नानाविधान हयानत्र बाई हेपतो गृहे ।।२।। दृष्ट्वा राज्यश्रियं सर्वा दृष्टोन्तः स व्यचिन्तयत् । केन पुण्यप्रभावेन(ण) मयामा वाञ्छिता रमा ॥४॥ समाया अन्तरे झागन्तास्ते वररुचिः प्रगे। स प्रष्टव्य इमां वातों प्रष्टव्यो नापरो मया ॥५॥ एवं विमृश्य भूनाथः प्रसुप्तः स्थानके निजे ।
योदये च संजाते ह्युदयाचलमस्तके ॥६॥ शयनादुत्थितो भूपः प्रातर्नृत्यानि पश्यति । समापि मिलिता तावदमात्या मन्त्रिपक्वाः ॥७॥ राजानो राजपुत्राश्च सीमाला भूपनन्दनाः । श्रेष्ठिनः सार्थवाहाश्च या ज्योतिषिका नटाः ॥८॥ अनेके गीतनृत्यज्ञा महा वादिनवादकाः । बहवो मिलिता लोकाः समासंस्थानमण्डपे ॥ll भूषितो भूपणैः परिच्छदसमन्वितः । सिंहासनमलचके सभायां भोजभूपतिः ॥१०॥ महानां हि जयारावैर्विद्वज्जनमनोहरी। वर्तते यावदास्थाने स्ता(ता)वद्वररुचिस्त्वितः ॥११॥ सभा समुत्थिता सर्वां तावद्वररुचिः पुनः । दत्त्वाशीर्वचनं पूर्वमुपविष्टो नृपान्तिके ॥१२॥
1.P and p: पेतः। 2B And B: एकतोपि हि सुस्तास्त प्तांस्तान)। 30 Pland B. "श्रियः म हष्टविसो। 4 B1, BP and B'कादयः । 5 B विस्ताबवागतः । . 6 Bt and B. सम्याः | 7 Band B2 साः सर्वे ।
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भोजचरित्रे यावत्पृच्छत्ति भूपालपश्चिन्ता वित्तस्थितां निजाम् । ऊचे वररुचिस्तावत् ज्ञातं राजेन्द्र ! कारणम् ॥१३॥ पृच्छसि त्वं मया राज्यं संप्राप्तं पुण्यतः कुतः । तत्र प्रत्युत्तरस्यार्थे वार्ता मत्पाश्वतः शणु ॥१४॥ श्रेष्ठी धनदनामास्ति धनदेवो महाधनी। . भूनाथो वसतेौच सपुत्रः पौत्रकान्धितः ॥१५॥ लक्ष्मीनिवासस्तत्पुत्रो लक्ष्मीदेव्यस्ति तत्प्रिया । कथयिष्यति तेग्रे सा वधूः श्रेष्ठिसुतस्य हि ॥१६॥ एष संदेह ऊचे राड् ज्ञातो मे गतः कथम् । अथवा शाखवेसणां न हि किश्चिदगोचरम् ॥१७॥ विसर्जिता समा सर्वा कौतुकेन महीभुजा । गतः श्रेष्ठिगृह' यत्र तत्र स्वल्पपरिच्छदः ॥१८॥ आयाता मजनं कृत्वा मिलिता संमुखं स्नुषा । इसन्ती पृच्छति क्षमाप निलं जा पान्धवे यथा ॥१६॥ कथं भोजनरेन्द्रस्त्वं विप्रेण प्रेषितोधुना । केन पुण्यप्रभावेण राज्यं प्रासं हि पृच्छसि ॥२०॥ विस्मयेन नरेन्द्रोवक् सत्यमेतद्वदाग्रतः । संदेहो पस्ति मचित्ते" स्फे (स्फोटनाय समागतः ॥२१॥ साप्याह गोपुरद्वारे निर्गमाइक्षिणे मुजे । कुम्भकारी"गृहे यस्ति सोमानाम्न्यस्ति विश्रुता ॥२२॥ स्फोयिष्यति संदेहं गच्छ त्वं तत्र गान्धव ! । बिनोदाय गतो राजा कुम्भकारीगृहे द्रुतम् ॥२३॥ सापि तत्र गृहे नास्ति भूप" ऊर्ध्वः स्थितः चणम् । तावत्समागता सोमा भूपं दृष्ट्वा गृहेवदत्" |२४||
1 B1, and B. भूपेन्द्र । ' BI, R and [B केन पुम्पत्तः। BI, and Bd बसलेष मनाप। 13 एतच्छुत्वा भूप ऊचे। 5 BI, Bangl I33 "केनापि भूपतिः । 6 Bi and. B३ गहे । 7 BI मा । ४BL B-21d Ba हसिस्वा पन्छत मपं । B3 नरेन्द्र ! वं। 10 BL BE and BA में चित्ते। 11 21 । 13 B भूप । 13 Pi, pa and Bt, B । 14 P1 °य | 15 B1, B- and B3 गहाङ्गणे ।।
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तृतीयः प्रस्तावः रे पुत्रा ! धृष्टपापिष्ठाः ! पृथ्वीशः सत्कृतो न किम् । भोजभूपः समायाति पुष्यैः कस्यापि मन्दिरे ॥२॥ मानसन्मानपूर्व चोपविष्टो नृपतिः क्षणम् । पूर्वजन्मानुरागेण सोमयालापितस्तदा ।।२६।। श्रेष्ठिवध्वात्र हे स्वामिन् । प्रेपितस्त्वं ममालये । अनुक्ता शापितोदन्तं कथयामि तवाग्रतः ॥२७॥ शूलिका नाम मातङ्गी बहिस्तिष्ठति भोः ! पुरात् । राजेन्द्र ! तव संदेहवार्ता सा कथयिष्यति ॥२८॥ तद्वाक्यश्रवणाद्भुपो गतो मावङ्गिनीगृहे । दूरतोप्युपलनायर या गृहान्दिन गरिः ॥ एकस्याथ Tमस्याधः स्थिता सा शूलिका ततः । पूर्वभवानुबन्धेन बहुधालापितो नृपः ॥३०॥ सोमानामन्या च कुम्भार्या प्रेषितस्त्वं ममान्तिके। वार्तामह हद्वतां ते जानामि श्रयतां नृप ॥३१॥ अत्रैव दक्षिणाशायामेकं दूरेस्ति काननम् । तन्मध्ये पद्मिनीपण्डमण्डितं वर्तते सरः ॥३॥ तस्य पाल्युपरिष्टात्तु प्रासादोस्ति मनोहर । राक्षसस्तत्र वसति' जाविस्मरणसंयुतः ॥३३।। भनक्ति तव संदेहं गतमात्रस्य नान्यथा । यदीच्छेः कार्यसिद्धि त्वं तदा तव गम्यते ॥३४॥ मातङ्गीवचनाद्राजा गतो गहरकानने । दृष्टं सरः "सुविस्तीर्ण जिनायतनमण्डितम् ।।३५|| राक्षसेन महीपालो दूरादप्युपलक्षितः । संमुखं मिलनायागाद्भवपूर्वानुरागतः ॥३६।। य(ख)ङ्गमादाय राजेन्द्रो यावदध्वनि तिष्ठति ।
तावत्प्रदक्षिणीकृत्य तेन राजा नमस्कृतः ॥३७|| 1. BI, B and 83 भवपूर्वानु। 2. 31, IT and B: उपलक्ष्य सुदूरस्थो [ B3 स्था] गहास्सा निर्गला। 3. BI and B: यां मिविदुरेस्लि। 4. B', B and B मण्डितोस्ति महासरः। 5. 32. B2 Ind R* "दं सुमनोहरम् । 6. BI, IR" and वसते राक्षस [ BP and B सास्तत्र । 7, BI, R and B तया निमय ! गम्यते । 8. RI And B सबि 9.31, B2 and Ba भवपूर्वानुरागैण सन्म(म्म ?)ो मिलनागनः। 10. BI, १९ and B मागस्यो यानि । 11. Band BA तावन्नमस्कृतस्तेन विपक्षिणपूर्वकम् ।
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भोजचरित्र विनयेन घनेनाथ स्तुतस्तेन नरेश्वरः' । नीतः स्थाने निजे यत्र विद्यते नाभिनन्दनः ॥३८|| पश्य भूपाल' ! देवोयं भुक्तिमुक्तिफलप्रदः । तं नमस्कृत्य पूर्व तु पश्चात्कार्य ममादिश |॥३६॥ वसा तस्प भूनाथो गत्या गर्भगृहान्तरे । नमस्कृत्यास्तवीभक्त्या वासनापूर्णमानसः ॥४०॥ जिनालयाबहिः" प्राप्तः कथयामास राक्षसः । मया ज्ञातोस्त्यभिप्रायो' मातङ्गया प्रेषितस्त्वकम् ॥४१॥ पृच्छसि त्वं मया राज्यं प्राप्तं पुण्येन केन हि । तव हृद्गतसंदेहं कथयाम्युपविश्यताम् ॥४२॥ एकाग्रं मानसं कृत्वा श्रयतां मद्वचस्त्वया । तिष्ठाम्यत्र बने राजन ! सुजन् पूचंभवार्जितम् ॥४३॥ एकस्मिन्दिवसेौव वन्दनाय जिनेशितः । पश्चज्ञानघर कोपि समागान्मुनिपुङ्गवः" ॥४४॥ प्रविश्य गर्भगेहस्थः स्तवीति जिनपुङ्गवम् । विनयात्परया भकत्या भूभागन्यस्तमस्तकः ॥४॥" नमस्ते परमज्योतिर्नमस्ते मोक्षदायिने । नमस्ते लोकनाथाय "कृतानन्द ! नमोस्तु ते ॥४६॥ एवं सोनेकधा स्तुत्वा प्राप्तो देवगृहाबहिः । तावन्मया नमन्मौलि वन्दितो मुनिपुङ्गवः ॥४७॥ करौ च कुड्मलीकृत्य पृष्टं विनयतो धनात् । मया पूर्वभवे किं किं दुष्कर्मोपार्जनं कृतम् ॥४८॥ येन दुःक(दुष्क)योगेन जातोहं "रक्षसां कुले । जुत्तपापीडितो नित्यमसंतुष्टो भ्रमाम्यहम् ॥४|| मुनिः प्राह तदा भद्र! शृणु पूर्वभवां कथाम् । एकचित्तः स्थिरो भून्या कथयामि तवाग्रतः ॥५०||
1. BI, BELB स्तुतस्ते (एच) नरपतयः । '. 131, Band B3 भूपेन्द्र !। 8. 131, R: and 13 देवगृहाबाहः । 4.BIBurl 134 गया ज्ञानमभिप्राय । 5.1313 and B प्रेषितांत्र भोः। 6. BI, B and B संप्राप्त केन पुण्यतः । 7. 131, 13 and B । 8. B1, B and B सेप्यत्र । 9. Bt 132 unu B जिनेम्वरम् । 11. I31 10 13- ममायानो मुनीश्वरः। 11. B3 omits this verse | 12. 131 चिदानन्द । 1: Pund p: दुःक। 14. BI, IRe and us राक्षसे । 15. B वाम्यहम् ।
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तृतीयः प्रस्तायः 'मरुस्थलाभिधे देशे पुरं सत्यपुराभिधम् । वसते राजमरेको धरणों जैनधार्मिकः ।।५।। धनश्रीस्तत्प्रिया पुत्राः पुत्र्यश्चास्यास्त्रिसंख्यकाः। देवराजः शिवराजः सारङ्गश्च' ततोपरः ॥५२॥ दाम नाम तथा पेमी पुत्रीणां च त्रयं' क्रमात् । पितरौ च दिनैः कैश्चिन पूर्णायुको दिवं गतौ ॥५३॥ कियद्भिर्दिवसैस्तत्र जानं दुर्भिक्षमद्भुतम् । भ्रातरोपि भगिन्योपि पीडिताश्च दुधाभ्रमन् ॥५४॥ वासरान्गमयामासुः कन्दमूलफलपनः । यावद् द्वादशवर्षाणि' कान्तारे योडिनो जनः ॥५|| कियद्वः पुलिन्द्राणां देशे दुःखेतिवाहिताः । परिच्छदसहायास्ते प्राप्ताः सर्वेपि मालवान् ॥५६|| देवराजस्य संसर्गाच्छिवराजोपि धार्मिकः । देवार्चनं प्रकुर्वाणी कृत्वाभोज्यं स्थितौ च नौ ।।५७|| प्रजापुण्योदयाज्जाता" मेघवृष्टिधना क्षिती । सामकाघस्य निम्पत्तिः संजाता बहुला द्रुतम् ।।५८|| देवराजो गतोरण्ये "सामार्थे सपरिच्छदः । अग्रपक्वशिरोपाहात् सर्वे ते मुदिताः कृताः (१५६|| तान्यानीय" निजे स्थाने मुक्त्वा तापेतिपाचनात् । परिवेषणकं पाकं दामूनाम्नी स्वसाकरोत् ।।६०॥ अन्नपाकस्य" वेलायां देवराजः सबान्धवः । स्नात्वा देवाचन'' कृत्वा भाजने स न्यवोविशत् ॥६१॥ कान्तारे च सुधातुल्यं कदनमपि जायते । पड्भागेनाधिकेनान्नं भग्न्यापि परिवेषितम् ।।६२।।
1. B तयाहि-मरुस्य' etc.। . B परणो। 3. I मागरमच। 1.BI uld y अयः । 5. 131, Bald R माता पिता। it! I कान्तारोरवम् । 7. B1 and B. वर्षान दादशकान् यावत् । 8. 131, 32 amla देवान्नेि शुचिानन। ५. !I, B and Ba दये जाना 1 10. BI सामय; 8: गामायधे; [१ मा मर्थ । 11. 134 and Is: आनीसस्तम् 133 मानीयते । 12. B: गतिखण्डितः। 13. 137, 13 MILET पाचन । 11. Puld i।
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भोजचरित्रे
10
यावद् भवति शीतान्नं चिन्तयेत्तावदग्रजः । द्वादशाब्देन संप्राप्तं मया प्रथमभोजनम् ॥ ६३ ॥ पात्रं यदि " समायाति तदान्नं तस्य दीयते । दिनमन्नविद्दीनं मे जायतामद्य चापि तत् ॥ ६४ ॥ पुण्योदयात्समायातो मुनिमसोपवासभाक् । देवराजः स्थितो यत्र धर्मलाभाशिषं ददौ ||६५|| " दुर्वारा वारणेन्द्रा जितपवनजवा वाजिनः स्यन्दनौघा लीलावत्यो युवत्यः प्रचलित चमरैर्भूषिता राज्यलचमीः । तुझं "श्वेतातपत्र' चतुरुदधितटीसंकटा मेदिनीय' प्राप्यन्ते यत्प्रसादात् त्रिभुवन विजयी' सोस्तु वो धर्मलाभः ||६६ || अभ्रं विना यथा वृष्टिः कल्पवृचो यथा मरौ । मम पुण्योदयाकृष्टो यन्मुनिः समुपागतः ॥६७॥ आसनादुत्थितः शीघ्रं विनयाच्छुद्धमानसः । पारणाय मुनीन्द्रस्य निजानं भावतो " ददौ ||६८ ॥ प्रासुकानं समादाय गतोसौ मुनिपुङ्गवः । देवराजय संतोषी यावतिष्ठति सत्रुधः ||६६ || बन्धु वात्सल्यतोर्घानं शिवराजो ददौ मुदा" । निजानाद्द्मासमेकं तु भ्रातुर्दत्ते लघुस्सा ||७० || न सोधा न दत्तान्नं दामूनाम्ती च निन्दति । नमूनाम्नी च सारको रोषद् द्वावपि जल्पतः ॥ ७१ ॥ धार्मिकोभनको जातो देवराजां हि बान्धवः । स्वयं क्षुधातुरः स्थित्वा भोजयत्यन्नमद्भुतम् ॥७२॥ ददा (दे ) तामात्मभागं तो किमस्माभिः " प्रयोजनम् | "एतत्क्रुद्धाचरैस्वार्भ्यां दुःक( दुष्कर्म समुपार्जितम् ॥ ७३ ॥
4
1. BY and 13 तावच्चिन्तयते । 2. I mud B2 प्रथमं मेम्मभोजनम् । 8. B1 पात्रं कोपि 3 पत्रः कोपि 132 यतिः कोणि । 1. 1, 19 and B3° 5, B3 adds: यथा काव्यम् ना ने बूसी न तुलसी नैव गंगा न काशी तो ब्रह्मा नेव विष्णुनं च दिवसपतिव शम्भु दुर्गा विप्रेभ्यो ददानं न तीर्थगमनं नैव होमानासि (या) रे रे पाखण्डशुम्भ ! कथयसि न च ते कीदृशी धर्मलाभः ॥ काव्यम्-श etc 16, 131 उच्चैः श्वं BJ तुङ्गवें। 7 B2 नी । ६. ३३ सहित und Es अनभ्रेण । 10. 137 anil 83 पुण्यादिनाकुष्टी 32 पुण्यदिनाकृष्टी । 11 R मंमुखागतः 112 131 s and B3 वासना 13, B2, B and 33 अनि सिन्धुराजेन ( जीपि ) प्रदो बम्बत्सलातु का 114 19 जोसि | 15. H ददतुः स्वात्मभागान्नमस्माभिः कि 16.31
I
and Ist एक्रोधा ।
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तृतीयः प्रस्तावः पात्रदानप्रभावारवं संजातो मालवेयरः । अर्धामदानातबन्धुर्जातो वररुचिः पुनः ॥७४॥ लघुमन्या स्वभावेन ग्रासो दत्तो निजात्रतः। तेन पुण्यप्रभावेन(ण) संजाता श्रेष्ठिनः स्नुपा ॥७॥ दामूनाम्नी च मध्यस्था सा जाता कुम्भकारिका । चतुःपुत्रातिसुखिनी तोजानाजी मुविधुतः ७६।। नामू भन्न्यप्यहं सधस्तस्माद्दुःकर्मयोगतः । अन्तु राक्षसो जातो मातङ्गी शूलिकास्ति सा ||७७॥ वार्ता पूर्वभवस्येयं मुनिना कथिता मम । जाता जातस्मृतिः श्रुत्वास्माकं पूर्वभवस्थितिम् ||७८|| ज्ञातं शूलोदित, वृत्तं नमस्कृतों मुनीश्वरः । हुकाराद् गत आकाशे तत्क्षणाचारणो मुनिः ।।७६।। मया पूर्वभवस्नेहः प्रोक्तो वररुनिशि । तिसणामपि भग्नीनां पूर्वजन्मकथोदिता ||८|| भूपः प्राह कथं भद्र ! ममानेन निवेदितम् । वनमा प्रातभग्नी ते वयमेव न वल्लभाः ॥१॥ हसित्वा राक्षसो ब्रूते राजेस्तनास्ति कारणम् । प्रायेण हीनजातीनां दुर्लभं भूपदर्शनम् ।।८२|| ज्ञातश्च तव वृत्तान्तो भूपोवग्नात्र कारणम् । त्वया जातस्मृतिलब्धा कथं न प्राप्यते मया ॥३॥ राक्षसः पुनरप्यूचे कारणं सत्यमेव हिं। राज्यसौख्यनिमग्नानां पूर्वजन्मस्मृतिः कथम् ? ||४|| भोजभूपो निजं पुण्यं श्रुत्वा पूर्वभवार्जितम् । धर्मानुरागतो ते सत्यमेतजिनोदिनम् ।।५।। तुष्टचित्तनृपः प्रोचे वचनं राक्षसाग्रतः । त्वचिन्ता भक्तपानाद्या ममाधोनास्त्वतः परम् ॥८६॥ प्रणम्य परमं देवं श्रीयुगादिजिनेश्वरम् । संस्थाप्य राक्षसं तत्र समायातो नृपो गृहे ।।८७।।
1. B1. B and B ज्ञात्वा मूलीथिन । . Pt "स्कृत्योः 111, Be and B3 त्य | 3. B', 13s and 3 रम् | 4. B3 स्नेहात् । 5. 8 नो । 6. BI, 13 and | भवपूर्वस्मृतिः । 7. B1, B and 3 कुतः ।
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मोजचरित्रे
पाल्यमानो निजं राज्यं लाल्यमानो निजाः प्रजाः । युगादिजिनसु (शु) श्रूषां चक्रे पूर्वार्पितश्रियम् ॥ ८८ ॥ arat द्वारपरो नित्यं सत्राकार विधानतः । धर्मार्थकामवर्गाणां साधकोथून्नराधिपः ||६|| बञ्चकद्यतधूर्तानां लम्पटद्युतभृन्नृणाम् | प्रवेशो नास्ति धारायां राजादेशोस्त्यशः ॥६०॥ कोपि नागरिकः पुनैकेन पूर्तितः । दृष्टो भदैव धूतय" समानीतो नृपान्तिके ॥ ६१ ॥ विटं ( उ ) व्य बहुधा धूर्तः खरारोपाच्चतुः प ( तुष्प ) थे | आमयित्वा ततो मुक्तस्तलारनृपाज्ञया ॥६२॥ मुक्तो धूलोके यदेनं भोजभूपतिम् । नोन्मूलयामि चेद्राज्यातन्मे नाम निरर्थकम् ||३३|| हसित्वा वदते दमाषो यदि मुक्तोसि याहि रे ! । न कुर्याः कुत्र धूर्तत्वं प्रोक्त्वेति स विसर्जितः ||६४ || कियत्स्वप्पधिपोहस्सु क्रीडाये वन आगमत् । विद्वज्जनैः समीपस्थैराढ्यलोकैः परिवृतः ||६५|| कियत्यपि दृश्देशे तावत्संमुख मागतम् । जलद्दारिखियां वृन्दं तासामेकेन भाषितम् ||३६|| विद्याचतुर्दशस्थानं रूपेण जितमन्मथम् । आयाति सखि ! पुंरत्नं पश्य दृष्टिं कृतार्थय ॥ ६७ ॥ सित्वाथ वदत्येक गुणा अस्य निरर्थकाः । परकायाप्रवेशस्य यावद्विद्यां न सि( शि क्षति ॥६८॥ नीरहर्ती वचः श्रुत्वा विलक्षोभूपी हृदि ।
एतत्सत्यवचः प्रोक्तं नागरिकया नया स्त्रिया ||६|| परकायाप्रवेशस्य विद्यां शिष्ये ( ) यथा तथा ।
तदा मे सफलाः सर्वे गुणा नैफ ( नैष्फ ल्यमन्यथा ॥ १०० ॥
इति चिन्तापरो भूपः पृच्छति स्म घनान् जनान् ' । योगिनस्तापसादींश्च वैदेशिकनरानपि ॥ १०१ ॥
1. B1, B2 and 33 नखिलां प्रजाम् । 2. Bitha and 3 मंत्रागा {BI का ] रान
[Ba :] à¶w: 1 4, B1, B2 and 1o ñ = 14. B1, B2 and Ba gå ! aftager | 5, B1, B and B a 68, B and Ba grû° | 7, B1, He and 13" बहुधा ( 131 and 2 धान् } जनान् ।
qua:
B
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नृतीयः प्रस्तावः धूर्ती विडम्बितो बाह' भोजभूपेन यः पुरा। तेन विद्यार्थिनं भ्रूपं श्रुत्वा मनसि चिन्तितम् ॥१०२|| प्रतिझापूरणे प्रातः प्रस्तावो मेपि वाञ्छितः । परकायाप्रवेशम्य बियां शिनामि कुचित १०३।। विमृश्येदं गतो धूतः क्वापि कास्मी(श्मी)रमण्डले | एकस्मिन् पर्वते दृष्टा कन्दरा सुमनोहरा ॥१०४|| जलस्थानमनोज्ञा च वृक्षपा(खा)यफलान्विता । धृत्तश्चिन्तयति स्वान्ते कश्चिद्वसनि पूरुषः ।।१०५|| स्थितो यामद्वयं यावत् स धूतः साहसाग्रणीः । योगीन्द्रो निर्गतस्तावन्मध्याह्नदिवसे ननु ॥१०६॥ योजयत्यजलिं धृत्तॊ विनयानतमस्तका" । योगिनं तं स्तवीति स्म* परमब्रह्मवद्यथा ॥१०७|| अनालाप्य च योगीन्द्रो जले स्नान्वा गतो गुफाम् । स धृतः केटके लग्नः प्रविष्टस्तस्य" कन्दराम् ||१०८॥ बहुधा वारितस्तेन योगिना न निवर्तते । कियती च गतो भूमि स्थितो योगी निजासने ॥१०॥ विश्रामणां च सु(शुश्रूषां कुरुते धूर्तपूरुषः । भक्त्या देवास्तु तुष्यन्ति मानवानां च का कथा ॥११॥ कियत्स्वपि दिनेष्येप योगी घ वचनं जगी। कोसि त्वं केन कार्येण समायातोत्र सुन्दर ! ॥११॥ बैदेशिकोहं स प्राह समायातस्तवान्तिके । अपूर्चा देहि विद्यां मे स्वामिन् ! मयि कृपां कुरु ॥११२॥ विद्याग्रहणवाञ्छा ते प्रोचे योगी यदास्ति ते । तदा मुद्रां गृहाण त्वं मच्छिम्यो भव नान्यथा ॥११३|| धृतः शिष्योथ संजातः कार्यार्थी न करोति किम् । गुरुर्वदति का विद्यां ददामि कथयात्र में ॥११४॥ धृत्तॊवग्देहि मे विद्यां परकायाप्रवेशिनीम् ।
दत्तो मन्त्रो यथोक्तस्तु होमजापविधिश्रितः" ।।११५॥ 1. 13* बहुनिम्चिती धर्मों। 9. RI, IB And IF पोम्पः । 3. and ? यानत। 4. B1, Is and [33 स्तवीत योगिनोत्यन्तं । 5. BHIBand B3 अनाला पितों। 6. BI, Randi B3 एस्तन । 7.31, Brand गोरुयः । 8. B1, B2 Aud B कथयस्व माम् । 9. B1, B and B दन्तं मन्यं गधोक्तं तं। 10, 21, BHILA घुतम् ।
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भोजरिये मन्त्रोसाधि गुरोरने तदा तत्प्रत्ययाय तु | कृता सत्पुरुषे सेवा निःफ( निष्फ)ला न कथश्चन ॥११६॥ ऊचे योगीश्वरोप्यस्मै किमिदं याचितं त्वया । न हि रूपपरावर्ता' स्वर्णसिद्धयादिकं न हि ॥११७॥ अमर्यादेत विधेयं मया संसाधिता विभो !। गुरुः प्रोवाच कस्यार्थे कथनीयं ममाननः ॥११८॥ स ऊचे मालवेष्वस्ति धारायां भोजभूपतिः । तस्य राज्यं गृ(अ)हीष्यामि किं घनैः कटु जल्पितैः ॥११॥ योग्यूचेस्मिन्कृते.कार्ये न हि ते भद्र ! सुन्दरम् । क्रीडद्धी रक्ष्यते राजा यस्मात्प्रत्यक्षदेवता ॥१२०॥" कृते प्रतिकृतं सोवा यो न कुर्यात्म चाधमः | तिरश्चात्र शुकेनापि वेश्यायाः किं कृतं यथा ॥१२११ 'कृते प्रतिकृतं कुर्याद्धिसिते प्रतिहिंसितम् । त्वया लुञ्चापितौ पक्षौ मया मुण्डापितं शिरः ॥१२२।। एतत्कथा समाख्याय मुक्त्वालाप्य गुरुं पुनः। समापातः स धारायां बहुशिष्यपरीवृतः ॥१२३|| नातिरे न चासन्ने शून्थे देवगृहे स्थितः। साडम्बरः समागत्प लोकस्याश्चर्यदायका" ||१२४॥ जनोक्तिभिः श्रुतं राज्ञा सोपायनकरः स तु । गत्वा नत्वा च योगीन्द्रमुपविष्टो नृपोग्रतः॥१२५।। भूपं पप्रच्छ सोप्ये" कुशलं वर्तते गृहे । गजवाजिरथादीनां कुशलं पुत्रपौत्रकैः'' ॥१२६॥ विनयादवनीपीठे न्यस्तशीर्षः स भूपतिः ।
कुशलं सर्वतोस्माकं सिद्धिनाथ प्रसादतः ॥१२७|| 1. B५ परावस्या । 2. B, He and स्वामिना साधिता मया । 3. 31, B. and BI गुरुरुधं ग [ B3 °चेत्र ] : 4. BE and B3 बूट 15.31, Ba Ba कस्मात् । 6. Bi and Bald the following verse aiter this : उपकारोपकारो वा यस्य ब्रजति विस्मृतम् । पाषाणहृदयं नस्य जीवितगं मघा जने ॥ 7. B1, 2 and Bs यया-कृत etc. 8. Blund I" सते । 9. B मिनि। 10. 18 न्य; धूर्ती । 11, B1, BP and B. समस्याहलोके साश्पर्य । 12. P | 13. BI, and 13 भूतस्य पृपछले मोय । 14. Bl and B2 पौत्रिमिः। 15. B1, Be and 133 न्यस्तमस्तक 10. 1, I and BA सिनाम।
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BE
तृतीयः प्रस्तावः विसर्जितः क्षणं स्थित्वा भूपतिस्तेन योगिना । भुक्ति भूपगृहायातां भुङ्क्त योगी प्रमोदतः ।।१२८॥ एवं प्रतिदिनं भूपो गच्छते योगिनोन्तिके । कियत्स्वहस्सु भूपालो धर्तनाथेन पृच्छितः॥१२६॥ राजन् ! भु(म )क्तिस्तवैषा कि स्वार्थे वा पुण्यहेतवे । श्रुत्वा भूप उवाचैवं स्वार्थे भक्तिस्तु मेधुना ॥१३०॥ खगमोधानुवादादि स्तम्भनं मोहनादिकम् । अन्या वा भूप ! या विद्या' यद्रोचते गृहाण तत् ॥१३१॥ हर्षपूरितचित्तस्तु वदति क्षमापपुङ्गवः । परकायाप्रवेशस्य कला यद्यस्ति देहि मे ॥१३२॥ सद्यस्तद्वचनं श्रुत्वा भूपाने योग्यदोवदत् । भुवने नास्ति सा काचिद्यां न जानाम्यहं कलाम् ।।१३३।। प्रणम्य वदति' च्माप एतत्सत्यतरं वचः।। परकायाप्रवेशस्य विद्यां मेपय सांप्रतम् ॥१३४|| एषा स्तोकता वार्ता विटा तुभ्यं ददायम् । परं चतुर्दशीभौमवारं यावच्च तिष्ठ मोः ! ॥१३|| एतद्वचनमाकर्ण्य भूष आगानिजे गृहे । विश्वासस्तस्य नायाति विश्वासः श्रियो गृहम् ।।१३६॥ सर्वेषां राजवर्गीयपुरोहितनियोगिनाम् । कथयामास राजेन्द्रो वातों निजहदि स्थिताम् ॥१३७|| एषा विद्या मया ग्राझा प्राणत्यागेपि सर्वथा । योगिनोपि हि विश्वासः पूर्वाचार्यैस्तु वर्जितः ॥१३८|| यथाअहिक्रीडा वणिग मित्र विनोदाविषभक्षणम् । विश्वसेन च योगिम्यो यदीच्छेञ्जीवनं धनम् ॥१३९|| दंसेमि तं पि ससिणं मुहावइण्णं
मेमि तस्स य रविस्स रहं गहद्ध। आणेमि जक्खसुरसिद्धवरंगणाओं
__तं नत्थि भूमिवलये मह जं न सिद्धं ॥१०॥
___1. B1, B2 And B अन्या वा कापि राजेन्द्र !। 2. B1, Be and Ba "चित्तेन परते नप। 3. B1, B and B ते । 4. 134, B and 13 त्यमिदं । 5. 31, B3 and B मनं प्राणत्पागैपि गृह्यते। 6. BI, B el B बिनोदे विष । 7.31, and B% omit this verse |
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भोजपरित्रे विद्याग्रहणवाञ्छा में विश्वासो योगिनां न हि | परं साहसिनः कार्यसिद्धिरेय भविष्यति ॥१४१|| यथासाहसियां ववसाइयां घीरोइक मनांह । देव पडयो चित अरधु फलेस्य तहि ॥१४२॥ पुनःसाहसीयां लच्छी ह. न हु कायरपुरिसाह । काह कुंडल आभरण कअल पुण नयणांह ।।१४३।। पुनःदेवह तणकपाल साहसियां नउं इलु वहै ।। षेडि मटा टालि पूंटा विणषीं पै नहीं ॥१४४॥ राज्यचिन्ता प्रकर्तव्या भवद्भिर्बुद्धिशालिभिः' । गृ(अ)हीष्यामि यहं विद्या नात्र कार्या विचारणा ॥१४॥ अन्तःपुरीणां सर्वासा राजवर्गीयभूस्पृशाम् । संकेतं पूरयेद्यस्तु स विज्ञेयः स्वभूपतिः ।।१४६॥ शिक्षा दत्त्वा चतुर्दश्यां कृष्णायां भौमवासरे । योग्यन्तिके गतो राजा गृहीत्वोपस्करं शुकम् ॥१४७॥ मुक्त्वा परिच्छदं रात्रौ राजा योगी शुकोपि च ।। गतास्ते गह्वरोधाने चतुर्थोन्यो जनो न हि ॥१४८।। मन्त्रिवर्गेण प्रच्छमा रक्षिता रक्षका जनाः । स्वयं संनद्धबद्धास्ते स्थिवाश्च धनबाद्यतः ॥१४६॥ योगिना भोजभूपस्य दलो मन्त्रो' यथाविधि | होमजापादिफ" सर्व गुरुणोक्तं तथा कृतम् ॥१५०।। योगिना च स्वहस्तेन हत्वा निर्जीविते कृते । शुकदेहे नृपस्योथे" संचारयस्य जीवितम् ॥१५॥ साधका बहवो विद्याः प्रत्पयेन विना न हि' । योगिना कथितं काय भूपेनापि तथा कृतम् ।।१५२।।
1. B1, B and 13 गवता बुद्धिशामिना । . Pland !32 गर्वेषाम् ; BO पुरीयरा वेषाम् । 3. BI, B and 33 वर्गीयकादपि । 4. 130 mits this vurse 5. BI, IBB रटाना। . P स्वित्या च । 7. 11, 132 and Ba देनं मन्त्र। 8. PI विधिः । 9. B and B जाया। 10. B1, 3s itndB पस्य शुकहस्मिन् । 11, 131, Band B किम् ।
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तृतीयः प्रस्तावः तस्यादेशानिजो जीवः' शुकदेहे नियोजितः । भूपदेहे द्रुतं जीवो योगिनापि नियोजितः ॥१५३|| शुकोपि भयभीतात्मा गतोड्डीय वने कचित् । हत हतेति राज्ञोक्तां श्रुत्वा वाचं' भटा ययो(युः) ॥१५४|| खड्गव्यग्रकराः सर्वेप्यागता नृपसभिधौ । किमतनो विभा ! क के हन्मस्तत्व समादेश ॥१५५।। उच्चस्वरं नृपः प्रोचे योगी सोयं मया हतः । द्रोहकर्तुने विश्वासो गर्तायां क्षिप्यतामयम् ॥१५६|| द्रोही शुकोपि पापिष्ठो गतो न ज्ञायते क्वचित् । प्रातस्तस्य प्रतीकारं करिष्यामीति निश्चितम् ।।१५७|| 'पुरोहितादिसामन्ता मन्त्रिवर्गास्तु सेवकाः । बने गत्वानमन् भूपं सर्वे ते राजवर्गिणः ॥१५८|| न ज्ञायते गुरुः कः स्यात् को वा' मन्व्यङ्गरक्षकः । अपरोपि जनस्तेन" राज्ञा" न ज्ञायते क्वचित् ॥१५६।। सबैर्विमृश्य भूनाथः समानीतो गृहाङ्गणे । गतः सोन्तःपुरद्वारे मन्त्रिपौरोहितार्थतः ॥१६०॥ अन्तःपुरीणां नो वेत्ति नामस्थानादिकं पुनः । कांचित्सांकेतिकी वाती शयनीयं च वेत्ति न ॥१६१॥ सर्वोप्यन्तःपुरीवर्गः स्थितो वररुचेगृहे । दासीजनः सशृङ्गारः स्थापितस्तत्र मन्दिरे ।।१६२॥ स्वदास्यन्तःपुरीमेदं न जानाति स भूपतिः । उपविष्टः सभास्थाने गमयामास वासरान् ॥१६३॥ यो नो वेत्ति परं स्वकीयमथवा नौ सद्गुणं निर्गुणं
नो वा पात्रकपात्रभेदरचनां नो दानमानादिकम् । - -- -. :
1. B1, B2 and B जीवं । 1. BI, F und | तम् । 3. BI, Be uld Bd सथा कृतम् | ABlacl ID वाचां । 5. Blud स्वर वर 16.1, Bald Ba द्रोहिण(गो)स्य न । 7. B पो। 8. Ba | ! 131. I3 and 133 को वायत्रा 1 10. 31, Ra and B+ ज्ञायते कयं को वा। 11. PI, BI, Band 3 राजा। 1'. BI, Band BO विस्मितमानसः। 14. B1, B- and B3 पुरी न जनाति । 14.1.1 न पेसि सः । 15, Banl 13 माने प्रभुः ।
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भोअचरित्रे पश्चान्तःपुरमध्यगो न हि वहेद्राशीकुदास्यन्तरं
सोयं कृत्रिमभोजभूपतिरहो मृष्णाति राज्यश्रियम् ॥१६४॥ इति श्रीधर्मघोषगमछे वादीन्द्रश्रीधर्मसूरिसंताने। श्रीमहोतिलकसूरिशिष्यपाठी राजवल्लभकृते श्रीभोजचरित्रे पूर्वभववर्णनपरकाया
प्रदेश विद्यासिद्रिनामा' नृतीया प्रस्तावः ||३||
1. B1 omits this compouru wordI 2. B1, BAnd Badd अन्नदान heren 3. Pl ormits विद्या।
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[ maagd: oara: ]
'नृपादेशेन्यदा भिल्लाः शुकानानीय ते ददुः । द्रामं ग्रामं च तन्मूल्य दवा व्यापादयन्नृपः ||१|| शुकोस्ति भोजजीवो यः प्राणरक्षणहेतवे । चन्द्रावती' पुरोधाने सफले दूरगः स्थितः || २ || द्रव्यलोभवशाजिल्ला वने तत्र समागताः । अन्तर्बहुशुकानां च बद्धः सोपि शुकाग्रणीः ||३|| दिवा पञ्जरके सर्वावलिताः स्वपुरं प्रति । तावच्छुकेन ते पृष्टा भिला मधुरया गिरा || एते शुकाः कथं बद्धाः कारणं कथ्यतां मम । न भचयति कोप्येतान् अभक्षाः सर्वदाप्यमी ||५|| धारायां भोजभूपोस्ति व्याधोवक् श्रूयतां शुक । कीरानानाय्य चानाय्य व्यापादयति सर्वदा ||६|| ज्ञातः सोर्थो मया व्याधा ! भवतां किं प्रदीयते । द्रामं द्रामं प्रतिशुकं व्याधैरुक्तं प्रदीयते" ||७|| शिक्षां कुरुत तन्मे भोः ! सुन्दरं स्याद्यथोभयोः " 1 जीवन्त्येतेपि हि शुका" लाभोपि भवतां घनः ||८|| तद्वाचाहुरिदं व्याधास्तथा रु (कु)रु यथोचितम् | पुनः प्राहुर्गमिष्यामः कस्य पार्श्वे किमद्भुतम् ||६|| शुक ऊचे समासना पुरी चन्द्रावती धरा । चन्द्रसेनोस्ति भूपाला गुणा (णि) नामग्रणी ः किल ॥१०॥ आवाभ्यां गम्यते तत्र पश्य मे" वाक्यचातुरीम् । एवं श्रुत्वा सभां नीतः पुलिन्द्रेण शुको वरः ||११||
13
צן
म
1. Bl begins with श्रीमद्गुरुभ्यो नमः 12. B7 39 and 13 तान् । 3. B1 and B 14, 11, 133 and B3 बत्यां । 5. B1, Band B सर्वच । 6. B1, B and B कथयस्व माम् । 7. B1 and B प्रत्यहम् । SBI Band B ज्ञातस्तदर्थों मी । 9. B3 ददाति व्याध उच्यते । 10 84, 3 and B तच्छिक्षां कुरु मे व्याय उभयोरपि सुन्दरम् | 11. B2, B and B एते शुकाव जंवन्ति । 13. BI 5 and 13 13 B1 and 39 जीवस B नोक्सा | 14 B1- पां
व
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VU
मोजीने दृष्टश्चन्द्रावतीभूपः' प्रत्यक्ष इव वासवः । पुलिन्द्रस्य फरासीनः शुक आशीर्वचो ददौ ॥१२॥ यथा-- स शिवः पातु वो नित्यं गौरी यस्याङ्गसङ्गता । आरूढा हेमवल्लोष राजते राजते तरौ ॥१३॥ शुकस्याशीबचः श्रुत्वा चन्द्रसेनो नरेश्वरः । सविस्मयोथ' संजातः सभा सर्वा चमत्कृता ।।१४।। तिर्यङ्ङरण्यवासी च पुलिन्द्रः सह संगमात् । वाणी गीर्वाणां ब्रूते विस्मयाद्वदति स्म राट् ॥१५॥ शुकराज ! पुनर्वाचं श्रावय स्त्रां सुधामयीम् । अहं तु श्रोतुमिच्छामि सभा सर्वापि वाञ्छति ॥१६।। यथा'समामाङ्गणमागतेन भक्ता चापे समारोपिने
देवाकर्णय येन येन सहसा यद्यत्समासादितम् । कोदण्डेन शराः शरैररिशिरस्तेनापि भृमण्डलं
तेन त्वं भवता च कीर्तिरतुला कीयां च लोकत्रयम् ।।१७।। इति कीरस्तुति श्रुत्वा हर्षपूरितमानसः । भूपोप्युवाच भिल्लस्य कीरमूल्यं समादिश ॥१८॥ भिल्लोषग्देव ! निर्मूल्यमूल्ये किं कथ्यते शुके । पुनर्वदति भूपालः शुकवाक्यप्रमाणताम् ॥१६|| "भिल्लोबोचदसौ देव ! भवनां ढोकिनः शुकः । दीनारदशकं दत्त" पुलिन्द्राणामिदं धनम् ॥२०॥ राज्ञा तस्य शुकस्यार्थे कारिनं स्वर्णपञ्जरम् । रक्ष्यते च स्वपार्श्वस्थो न दृरीक्रियते कचित् ॥२१॥ विद्वजनाधिको गोष्ठयां मन्त्र मन्त्रीश्वराधिकः । कुरुते भुभुजा सार्थ शुकराजो यथोचितम् ॥२२॥
1. BI, B2 and 83 बलीयोन्द्रः। 2. BI, B and B• जले। 3. 131, B2 and B टाकामाशों। 4. BI, Bul B पि। 5. UI, Baal Ba चाचा गाणिकां । 6. Bt, RP and B. वक्ते नपः। 7. यथा-पाव्यम्-। 8. BI, Brind B मुल्य चेत्कल्ल्यते । ... B प्रमाणतः । 10. BI, Band Bाया। 11. B1, 12 and युक्त । 12.31 Bound Bश्विानिशम ।
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अतुर्थः प्रस्तावः व्यासावतारकीरेण मोहितो मानसे नृपः । देशग्रामपुरोधानराज्य चिन्ता समुज्झिता ॥ २३ ॥ कियद्भिस्तु दिने' राजा विज्ञप्तो मन्त्रिपुङ्गवैः । वनक्रीडाकृते स्वामिन् ! गम्यते बहुभिर्दिनैः ||२४|| अन्तःपुरी पञ्चशतीमध्येप्यस्ति शशिप्रभा । अन्यासां न हि विश्वासः पट्टराइयाः शुकोर्पितः ||२५|| वनभूमिं गतो राजा पश्चात्सर्वः पुरीजनः * । मिलित्वा पट्टराश्य विज्ञप्तिं कृतवानिमाम् ||२६|| अस्मद्धाम्या' त्समायातः शुको बदतवान्तिके । कलां सामुद्रिक वेति शुको देवि ! स वीच्यते ||२७|| पट्टराज्यपदेशेन गतो लोकः शुकान्तिके । शुकेनालापितः सर्वः सुधामधुरया गिरा ||२८|| येन येन च यत्पृष्टं तस्य तस्योत्तरं ददौ ।
या स्थित लोको मक्षिका मधुवृन्दवत् ॥२६॥ "विहितोदारम्भृङ्गारा सखीजनसमन्विता । स्वर्णरूपमयैष्टङ्कः स्थालीं हस्ते प्रपूर्य च ॥ ३० ॥ गत्या मन्त्र (न्थ) रगामिन्या सखीस्कन्धावलम्बिता । शुकान्तिके समायाता पट्टराशी शशिप्रभा ||३१॥ निजगुणगणसौभाग्यं परगुणपरिवर्णनेन कथयन्ति । सन्तो विचित्रचरिता नम्रतया चोन्नतिं यान्ति ||३२|| " शुकोवीचद्यथा नाम ज्ञातव्यं तादृशं फलम् । यथा तारागणे चन्द्रस्तथा राज्ञी शशिप्रभा ||३३||
15
५५
1. ET, Haud Ba शुको वशमावतारस्तु 2 B1 9 and B चिन्तादिरुज्झिता । 3. B1, B3 Bnd 84 मित्यपि दिने। 4. BIBE and 135 पश्चादन्त: पुरों । 5. B) 13 and 13 विज्ञातं कीरदर्शनम् । 1 32 and a स 7. 31 B and a गतास्ते शुकसंनिधौ ।
G
8. B1, B3 and 13 arft 9, B1, B2 and 138 fag 10. B1 and B2 Haver" ( 11. B1, 132 and EB3 रूप्य । 12 B 32 and B+ स्थालिका पुरा करे | 18. B गति । 14. instead of this verse II B and I 33 Juve the following verse:- शुकामे स्थालिका का शुकेनान्यपिता चाग्रे स्थिता सा योजिताञ्जलिः ॥ 15. After this 3 add मेटा मुक्ता समाये या तद्गरिम तबैव हि। विचित्रा गतिः सन्तानां नरत्वे
मुक्ता भूमी verse 131, B2 and मान्ति चोन्नतिम् ॥
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भोजचरित्रे रायचे मकरं कीर ! पश्यतामेकचिचतः । लक्षणालक्षणान्यत्र कथनीयानि मेग्रतः ॥३४॥ शुकराजः करं दृष्ट्रा राज्ञी प्रत्येवमुक्तवान्' । किंमस्त्वत्करे स्त्रीणां लक्षणान्युत्तमान्यथों ॥३५॥ यथाप्रासादश्चक्रपद्मौ वा पूर्णकुम्भश्च नोरणम् । यस्याः करतले रेखा पट्टराज्ञी समादिशेत् ॥३६।। यस्थाः करतले रेखा मयूरछत्रचामरे । राजपत्नीत्वमाप्नोति पुत्रैश्च सह वर्धते ॥३७॥ उत्तमैर्लक्षणैरेवं तत्प्रभावेण मान्यता ।। अत्यर्थ श्लाघनीया स्याद्राज्ञी भूपस्य मन्दिरे ॥३८॥ प्रशंसिता गता राजी वेषमन्यं विधाय च । समायाता शुकोपान्ते पृच्छति स्म पुनः शुकम् ॥३६॥ यस्किचिल्लक्षणं मेझें तच्छ्रावय शुकेश्वर ! ।
लक्षणं कररेखास्थं यत्किचित्तच्छ्रतं मया ॥४०॥ शुक आह--यस्या आकृञ्चिताः केशा मुखं च परिवर्तुलम् ।
नाभिश्च दक्षिणावर्ता सा नारी सुखमेधते ॥४१॥ अल्पस्वेदोल्परोमाणि निद्राल्पाल्पं च भोजनम् । नेत्रगात्रसुशोभाया(घ) खीणां लक्षणमुत्तमम् ॥४२॥ स्तुति श्रुत्वा गतावासे परावर्तितवेपभृत् । पप्रच्छ पुनरागत्य शुकराजस्य सन्निधौ १४३|| पण्डितस्त्वत्समो" नास्ति किं मुधा बहुजल्पितैः । देशे देशे त्वया पक्षिन् ! दृष्टा राश्योप्यनेकशः॥४४|| मत्समाना गुणः क्वापि रूपलावण्यराजिनी ।
यत्र कुत्रापि दृष्टास्ति' शुकराज ! तदुच्यताम् ॥४५॥ - - - - - - ---
1B1, Band B+ राजोनां वन जगौ। 381 and R सम्ति स्वीणां ये लक्षणोत्तमाः। 3B1, B2 and 33 प्रासादं पपचके बा1 + , 132 and B'म(गा)पूरे छत्रचामरम् । 5 B1 and 132 नेपथ्यान्य(न्यपरावृता । । 131, B and B: शुकान्ते सा पुनः पञ्चति सं [ Bi and 2 पछ्यति ] शुकम् । '7131 unil R शोभाया । 8 Fl and Ps कुत्का । 9 BI, B- and B बेषप्रावर्तनं कृतम् । 10 BI, B2 and Bबिद्वांसत्वन् । 11 P1 'स्ते ।
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खतुर्थः प्रस्तावः सगर्ववचनं श्रुत्वा शुकोभन्मन्स 'राकुलः । विमृश्य हृदये किंचित् तम्या अग्रे शुकोब्रवीत् ।।४६।। त्वत्समाना गुणदृष्टा नाउँका वर्तते कचित् । क्षणं स्थित्वाह हुं ज्ञातं कथयामि नवाग्रतः ॥४७|| अस्त्यत्र दक्षिणे देशे पुरं काञ्चननामकम् । उग्रसेनो नृपस्तस्य" राझी त्रैलोक्यमुन्दरी ॥४॥ पुष्का(पावनी सुना तम्या गुणलावण्यमन्दिरम् | भण्डसेनास्ति तदासी तत्समाना त्वमेव हि ।।४६।। एतवचनमाकये म्मिताः सर्वाः सपत्निकाः ।। ललिता पराझो सा मन्ये वनेग ताडिता ।।५।। गता शोकगद रानी पनिता मान्यधामुखी । सर्व जातं विषयायं हास्यगीतासनादिकम् ॥५१|| चन्दसेनो नृपस्तावत् समायातः स्वमन्दिरे । आभोपार्थे तदा दासी समागानुभूपसंमुखम् ॥५२॥ स्वामिनी तव किं कुत्र गतेन्याह महीपतिः । चणं स्थित्त्वावदासी स्वामिन्य(नी)शाकमन्दिरे ॥५३| किमर्थ कस्यचिद्वार्थे केन रायस्ति कोपिता' । शीघ्रं कथय रे दामि ! विरुद्ध भावि तेन्यथा ॥५४॥ मयेन कम्पमाना सा यावन्मानन मंस्थिता । हता भूपेन बाढं सा शुकोक्तं सावदचदा" |५५॥ कीरोक्तिश्रवणाभृपः शान्तकोपो बभूव च । शयनीये स्थितो गत्वा समाहृयाथ तन्सखी ||५६| गृहीत्वा स्त्रसमीपे तां राजी प्रशमहेतवे । आह त्वं वद किं रुष्टा नियंञ्चो ज्ञानव जिताः ॥५७|| तव स्नेहवशाद्भूपो दुःखी संतिष्ठने' बहिः । सख्यः सर्वा निराहाराः शुकोभूच्छोकसंकुलः ॥५८||
1. RI IRS and 133 छ। II, IB incl 13 चास्ति। 3. B Rand BO स्तत्र । 4. B1, Band लम्य । DRI, and R" मुखा । 5. B, B and Ba गसा पृच्छति भूपतिः। 7. BP BP and : किमर्थ कन कम्याथें । 8. !, BEAnd B. राजी विरोधिप्ता । 9. B1, 132 nd B" तदयूत मा गग प्रभोः ( Eial B भी)। 10. B2, Be and B पत्याप्याता तत्सन्जो गृहात् । II. 11, IF It'विता( तम् तिष्ठले ।
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KE
भोजसरित्रे
उतिष्ठ चालय स्वास्यं भ्रूपं कास्य भोजनम् । विसर्जय सखीवर्गमस्माकं कुरु भोजनम् ||२६|| नृपोक्तथैवंप्रकारेण सखीमिः प्रतिबोधिता । राशी कदाग्रहं स्वीयं न मुञ्चति कथंचन ॥ ६० ॥ भूपेनालोचितं चित्ते शुकेनेयं वदिष्यति । शुकेमां बोधय त्वं भोस्त्वयैवेयं प्रकोपिता ॥ ६१ ॥ नृपादेशाद्वतः कीरो यत्र राशी शशिप्रभा । बिनयी शीतलालापान्मधुरान् वदति स्म सः ।। ६२ । मयाज्ञानवशात्तुभ्यं यदुक्तं दुर्वचः किल । धर्तुं तदूहृदये स्वीये" न हि युक्तं विवेकिनि ॥ ६३ ॥ सुशीलाया विनीतायाः सज्ञानापका शुभश्रियः । तिर्यग्रूपे मध्यसारे तब शेषो न युज्यते ॥ ६४ ॥ बहुधा बोधिता राशी चित्ते कोपं न मुश्यति । शुको वदति हे देवि ! त्यजस्वेदं कदाग्रहम् ||६५|| कुग्रहात्प्राणसंदेहः कुग्रहात्स्नेहनाशनम् । कग्रहान जने श्लाघा कुग्रहान्नरकातिथिः ||६६ |
↓
1. B1, B and a मुखं प्रशालय शीघ्र भू 2 B1, B2 and Hs भाषितम् । 3. B1, Band B एवं बहु 4 Ba adds the following alter this verse:- यतः काव्यम् -
1
गतप्राया रात्रिः कृशननु शशी शीर्यत हय
प्रदीपोयं निद्रावयामुपगली दुर्मलिरिख । प्रणामातो मानस्त्यजसि न तथापि क्रूपमहो
कुवप्रत्यासन्नं हृदयमपि कठिनम् || सन्नीवा गहे गृहे युवतयस्ताः पूगवाना
प्रेयांस प्रणमन्ति तव पुनर्दाम्रो धथा वर्तते ।
आत्मद्रोहि दुर्जनप्रपितं कर्णे विषं मा कृथाः
चिन्नस्नेहरसा भवन्ति पुरुषा दुःखानुवृत्त्या पुनः ॥
निश्वासा वदनं दहन्ति हृदयं निर्मूलमुन्मूल
निद्रा नैति न दृश्यतं प्रियमुख नांदिवं रुद्यते । शोधमुपैति पादपतितः प्रेयांस्तदक्षत
सरुक गुणमाकलय्य दयते मानं च य कारिता ||
These three stanzas from Amaru and Bana are dealt with in the explanatory notes at the end,
5, B1, B2 and B विर्य प्रकाशितम् 16 B1, B and B बचते हृदये तुं । B Band B परं कोपो ।
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चतुर्थः प्रस्तावः
'यथा कुग्रहतो राशी दुःखं प्राप्ता मनोरमा ।
कथयामि तचाव्रतः ॥६७॥ योद्ध्याभिधानतः ।
र्ता कथां शृणु हे देवि श्रयतां पूर्वदेशेस्ति पु जन्मेजयोस्ति भूनाथ आसमुद्रान्तभूविः ॥ ६८ ॥ मान्यास्त्यन्तःपुरी तस्य पट्टराशी मनोरमा । तया समं सुखं ते गते काले कियत्यपि ॥ ६६ ॥ राज्यं निष्कण्टकं भुङ्क्ते न हि कोप्यस्त्युपद्रवः" | आस्थानस्थो नृपोन्येद्युरिन्द्रद्तः समागतः ॥७०॥ प्रणम्य तं महीनाथं दूतो वचनमब्रवीत् । इन्द्रेण प्रेषितो देव ! श्रूयतां मद्वचस्त्वया ॥ ७१ ॥ अस्ति दक्षिणपाथोध' "त्रिकूटाचलसंनिधौ । द्वीपोस्ति भीषणो नाम लङ्कातो विषमचितौ ॥ ७२ ॥ कवचा राक्षसास्तत्र दानपुण्यस्य विदाः । तुष्यन्ति देवताभ्यस्ते प्रतीकारं विना न हि ॥ ७३ ॥ उपद्रवस्तु देवानां तेभ्यः संजायते सदा । देवेभ्यो न मृतिस्तेषां राक्षसानां कथंचन ||७४ || मनुष्या भक्षमस्माकं देवेभ्यस्तु मृतिर्न हि । राचसास्तेन गर्वेण न मन्यन्ते भयं क्वचित् ||७५ || मनुष्यैर्मारणीयास्ते तेनाहं प्रेषितो धुना । त्वत्समो भूपतिर्नास्ति पराक्रम्युपकारकृत् ।। ७६ ।। अस्मदीयस्वामिवाचं प्रमाणीकुरुषे यदि । तदा त्वं निजसैन्येन प्रयाणं कुरु मत्समम् ||७७ || इन्द्रोप्येष्यति तत्रैव वैमानिकसमन्वितः । गोदावर्यस्ति संकेत भयोः सैन्ययोरपि ॥ ७८ ॥ जन्मेजयस्य भूपस्य ससैन्यस्य सुरप्रभोः | परस्परं च संजातः " संकेतस्थानसंगमः ॥७६॥
#J
५६
1. Be and Ba arkd कदा ( 2 ) महोपरिकथा beiore this verse
[B] भूपतिः । 3 B and 135 द्रवी । 4 B1, Band Ba समुद्रः ' 5.
281 Band B1, Bs and Ba मभूमि | 64 135 and B विना तेन प्रतीकारे तुष्यन्ति देवता न हि 7 B1 वराई वाम्मूलि 3 अस्माकं स्वामिनो वाचां 1 10. B4
नं हि । 8. B1, Brand B व (ह्यू) पकारी पराक्रमी
and a 11. BI I and B+ मम् ।
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भोजचरिने एरावणे समारूढ इन्द्र इन्द्रपुरीपतिः' । जन्मेजयः समुत्तीर्णो मेले मति निजद्विपात् ।।८०1। समालिङ्गितवानिन्द्रो दृष्ट्या जन्मेजयं नृपम् । संजाता परमा प्रीतिरुभयोरपि ही तयोः १८१॥ इन्द्रदत्तविमानाधिरूढः स नपपुङ्गवः । सेनान्यस्तस्य चारूढाश्चलिता राक्षसान् प्रति ॥८२॥ कौतुकाच्चलितश्चेन्द्रो मानिकसमन्वितः । इतेन शापितं वृत्तं रक्षसां भूभुजा(जे)क्षणात् ॥८३|| संजाता राक्षसाः सर्वे संनद्धाः सपरिच्छदाः । असमानं नृपं ज्ञात्वा संग्रामाय स्थिताः पुरः ॥८४|| समागत्यास्य सैन्येन विमानैवेष्टितं पुरम् । नृपादेशाभट्टयुद्धं प्रारब्धं राक्षसः समम् ||८|| दुर्गस्था दुर्गपाः सर्वे बहिःस्था' नृपसैनिकाः । जातं परस्परं युद्धं दारुणं भीषणं महत ॥८६॥ सायकैश्कि(रछन्नमाकाशं खड्गखाटकारकैदिशः। जीनशालान्तु भिद्यन्ते 'घाभल्लुकभीषणः ।।८७।। श्रयन्ते नैव वाद्यानि गुणकारकाग्रतः । ईदृशे तत्र संग्रामे देवानामपि कौतुकम् ॥८॥ यथोन्मत्तकरीन्द्रणोन्मूल्यन्त भूमिपादपाः । तथैवोन्मूलयामास भूपालो रक्षसां पुरीम् ||६|| भग्नं दुर्ग समालोक्य कवचा नाम गक्षसाः। मुक्तशस्त्रकराः सर्च पतिता भूपपादयोः ॥६०|| सर्चे ते चौरवदैत्या आनीता इन्द्रसंनिधौ । एतेपराधिनो ही वः कुरु दण्डं यथोचितम् ||१|| इन्द्रोपदेशतस्तेपि कृताः पानालवासिनः। पूर्यभ्येत्य' समग्रा सा लुण्ठिता ध्वंसिता पुनः ॥२||
1. Bi arid B हा । 2. BI, ARE and Is जान्या जन्मेजर्म भूपों (पम् ? ) इन्द्रेणालितिं इतम्। 3. BI, IB And Ba भयोपवयोः । 4. 181 जागितस्तेषां राक्षमानां च भूपतिः । 5. B1, Bant B बाहाम्या ।। 131, 11 and so वाणावः छि( घेशान। 7. Bया। 8. BI, Band | न भूयन्तेपि बादित्रा।। 11. Bad Bकौतुझी देवताधिपः । 10. B1, BABत्यपाः ।।1. BI, Ban 13 परी देश ।
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चतुर्थः प्रस्तायः इन्द्रेण भूप आनीतः' सहर्षेणामरावतीम् । महोत्सवेन चागत्योपविष्ट स्थानमण्डपे ||६|| निजासने स्वयं भूपः स्थापिनो मध्यतो गृहम् । गीतनृत्यकथावार्तालापैः पाणितवान् भृशम् ||१४|| इन्द्रोवोचनृपस्याग्रं भूप ! मामनृणीकूरु । मत्पावतो वृणु वरं यत्किचिद्रोचते तव ||६|| त्वत्प्रसादान्नृपः प्राह सर्वमप्यस्ति मद्गृहे। आसमुद्रान्तभूपोस्मि कल्पाणं वर्तते गृहे ॥६६|| एवं श्रुत्वा हरिः प्राह न मोघं देवदर्शनम् । 'जास्वैवं भृपतिः प्राह यथास्तु तव भाषितम् ॥१७॥ इन्द्रेणोक्तं तदा हि यदस्ति नब मानसे । राजोचे देहि देवा( वां शं वलयुग्मं च कुण्डलम् ।।८।। महिष्यग्रे गतश्चेन्द्रो बभाप स्वप्रियां प्रति । देहि कुण्डलवस्त्रे में देयं जन्मेजयाय मे ||६६ ।। सयोत्तार्य स्वदेहात्त प्रदत्तं स्वपतेः करे । कथयामास चन्द्राणी देवगजाग्रतस्ततः ॥१००|| यथाहं तव नारी हि वियुक्ता कुण्डलांशुकैः । वियोगो भयत्तात्तस्मै प्रियापरिजनः समम् ।।१०१।। इन्द्रो बदति हा धिग-धिग मुधा' शापो न दीयते । दत्तो मयान्यथा न म्याद्भपाच्छेदोङ्गनारिपुः" ॥१०२।। हरिरेवं जगौ राज्ञ दवा सत्कुण्डलांशके 1 मत्पार्च त्वत्समाभीष्टा नित्यं तिष्ठन्ति तद्वरम् ॥१०३।। एतच्छ्रुत्वावदद्भप'' इन्द्रावग्दशनं पुनः ।। समायातो गृहे गजा प्रविष्टः पुम्मुत्सवैः'' ॥१०४।। जितकाशी नृपोभ्येत्योपविष्टस्तु क्षणं सभाम् | विसज्यं मन्त्रिसामन्तान गतान्तःपुर इशिता । १०५||
1. BI, Bald 3 रन्द्रेणानीय गा !.BE and B छ । 3. Bi and B. वार्ताप्रोत्या; Bातप्रीताः । 4. BI, I am गाण। 5. I31, IS and B सोऽस्ति मम मन्दिरै । . R. Band Rs नग्निते। 7 ,R- प्रांचे 1 6. BIHe and B: तेन कामिन्या वियुक्ला कुण्डुलांशु कात् । !!..', 13- ur) 133 वदनं पासबो हा घिङ् मया । 10. BT, HEAnd I?' दत्तापि नान्यथा स्वामिन ! पाहार: स्त्रियो रिपुः। 11.11 नमभूषम् । 12. 181 । 13 131 Bant विसवितामा।
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ફર
नोजचरित्र
पूर्व मन्त्रिभिरालापं कृत्वालापितवान् खियः । स्नेहेन प्रेरितो भूपः पट्टरागृहं गतः ॥ १०६ ॥ उत्थाय च नमस्कारं कुरुते स्म मनोरमा । शुद्धशीलाः स्त्रियो यास्तु तासां स्याद्देवता पतिः || १०७ ॥ पशुपविष्ट राट्रायप्यस्य संस्थिता ।
वादी मत्कृते किं किं समानीतं सुरालयात् ॥ १०८ ॥ निष्कास्य कुण्डले राजा' देवदुष्यं च तद्ददौ । हर्षेण प्रावृता ताभ्यां जाता देवाङ्गनोपमा || १०६ ॥ सत्कृतस्तु तथा भूपः समायां प्रातरागतः । मन्त्रि सामन्तसीमालैः सर्वैरपि नतो नृपः ||११० ॥ रायूचे स्नेहतः पत्न्याः " किं किं नानयति प्रियः ! | एवमालोच्य गर्वेण सपत्न्यन्तिकमागता ॥ १११ ॥ नमस्कृता च सर्वाभिः ( भी ) रूपाद्विस्मयकारिणी | सूर्यमण्डल सतेजा दुरालोका " बभूव सा ।। ११२ ॥ नेपथ्यदर्शनायात्मरूपस्यालोकनाय च ।
आमन्त्रिताः स्त्रियः सर्वा याः स्युः प्राघूर्णिका अपि ॥ ११३ ॥ चतुर्थाशनपानादि भोजयत्यात्मनोप्रतः ।
कुण्डलांशुकत्तेजस्तो दुरालोका गभस्तिवत् ॥ ११४ ॥ स्त्रियो यथा यथा तस्याः समालोकन विह्वलाः । तथा तथा च सा राज्ञी जाता हास्यपरायणा: ।।११५।। प्रावृते कुण्डले देवि ! न ते तापयतस्तु नः ।
( )रालोका सह्यते नेति कौतुकम् ।।११६ ।। वखताम्बूलदानेन प्रेषितास्ताः स्त्रियां गृहे ।
राजा राज्यश्रियं भुङ्क्ते सुखग्राही तया सह " ।। ११७॥ एकस्मिन् दिवसे राज्ञा राज्ञी दृष्टा सुदुर्बला | पप्रच्छ तव को व्याधिराधिर्वा बाधतेपि कः ॥११८॥
1. B1, Band B गृहं । ४. B 4. B, B and B3 facend 15. B1, दिवौकसात् 1 7 1 32 133 कुण्डई 9. B1, Be and 135 से 10 11 and and B3 भानू । 11. B1, and B परावदत् । 16 3
B2 and 34 "क्या । मोकथेन महमा |
and " उत्य
3. B1, B2 and B
B2 and B3
राज्ञा ।
6, B1, B2 and 13 8. B1, B2 and 33 समर्पितम् । and B प्रियाम् । 12131, B 14 B1, Ba and a 151, B
11
1
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६३
चतुर्थः प्रस्तावः प्रच्छनीया न हि स्वामिनसो वार्ता' कथंचन | का सा वार्तास्ति हे देवि ! गोपनीया ममापि हि ॥११६|| महाग्रहेण साप्यूचे दोइदो वर्नते मम | मनुष्यरुधिरापूर्णबाप्यां स्नान विधीयते ॥१२०॥ भूपोवग्नात्मसदृशं स्वयारादि वचः प्रिये । मारिवाक श्रयने नैव मया कुत्रापि मत्पुरे ॥१२१।। लालिता या मया नित्यं प्रजा सा मेस्ति पुत्रवत् । निर्दोषा सा कथं भद्रे घातनीया मया किल ।।१२२॥ दोहदस्तादृशः कार्यों यादृक्चक्रे सुनन्दया। गजमारुम जीवानामभयं दत्तवत्यथो ।।१२३।। प्रोचे मनोरमा राशी दोहदः पूर्यते यदा । तदानं भुज्यते स्वामिनान्यथा दर्शननवः ॥१२४॥ भूषः कदाग्रहं ज्ञात्वा राजकार्ये प्रवर्तितः । लखन पट्टराज्ञी सा चकार स्वल्पबुद्धितः ।।१२।। अमात्यमन्त्रिवर्गेण श्रुता वाता क्रियादिनः । मिलित्वा ते समायाता' विज्ञप्तो नृपपुङ्गवः ॥१२६।। शृणु स्वामिन् ! स्त्रियो राजा मूखों पालः कदाग्रही। एते घुद्धिप्रपञ्चेन ग्रहीतव्या हि नान्यथा ॥१२७।। पट्टराज्ञीकृते सर्वां लातेन्तःपुरीजनः । दासा दास्योसुखं प्राप्ताः संतापो भवतोप्यभूत् ।।१२८॥ ततो बुद्धिप्रपञ्चेन पूरणीयस्तु दोहदः । केनोपायेन भूपोपि पूरणीयोप्यचिन्तयत् ।।१२६।। मन्यूचे कार्यतां वापी ह्यलक्तकपयोभृता"। तदा श्रेष्ठ उपायोयं चिन्तितो भूपतिजंगौ ॥१३०॥
___ 1. BI, Band B3 पृच्छनीया न ले स्वामिनिमां वाता। . 1, 2 and Us बचन माषितम्। 3. BI, BELB कोइद्धिर्मारिवाचार्य मान्यत्र धूयते क्वचित् । 4. BI, Beand B. नित्यमेषा में पुषवाप्रजा। 5. 31, Be and E यादशस्ने। 6, 31 दर्शनन वै। 7.81, and B वास्ते समागाय। 1. B1, Bandi तदा। . B1, B2 and B पूर्वते दोहदो न किम् । 10. B1, B- and B3 हालक्लादकपूयंने (पुरिता )।
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भोजचरित्रे कृता यापी नृपादेशादलक्तकजलभृता' । विज्ञप्ता पट्टराज्ञी सा मन्त्रिणा विनयेन च ॥१३१।। मातरुत्थीयतां शीघ्र पूर्यतां दोहदो निजः । सा च यावद्गना वायां दृष्टा सा रुधिरावृता ॥१३२॥ सखीमिः सहशृङ्गार गीतबादित्रसंचयः । दीनदुःस्थितदानानि ददती तुष्ट मानमा ।।१३३॥ नरैरवीक्षिता बाप्या प्रविष्टा स्नानमण्डपे । दोहदं पूरयित्वा च वाप्या यावच्च निगंता ॥१३॥ भारुण्डेन तदोत्क्षिप्ता मांसपिण्डम्पृहालुना । नीयते नीयते राज्ञी स्त्रीभिः कोलाहलः कृतः ॥१३५।। सेवका पावदायान्ति तावद्राज्ञी हता' खगैः । शोधिता बहुभिरं व नीना ज्ञायते न हि ॥१३६॥ शुकोवगेष दृष्टान्तः" पदराबी तवोदितः । मन्यता माचो देवि ! तद्वन्धमपि चान्यथा ॥१३७॥ कथयित्वा विमा वाता शुकोगाशपसंनिधौ । अस्माकीनं वचो देव ! पट्टराझी न मन्यते ॥१३॥ राहचे शुक ! राज्ञेपा त्वचा कुपिता कथम् । भण्डसेनौपम्यवाता कीरेणोक्ता नृपान्तिके ।।१३६॥ इसित्वा भूपतिः प्राह युक्तमेव त्वयोदितम् । बाद पंचयति स्वं यः शंथिल्यं तस्य युज्यते ॥१४०॥ परं कीर ! त्वया वाच्यं "पुष्पवल्याः कथानकम् । परिणीता च कौमारी घृत्तान्तं ननिवेदय ॥१४१|| शुकोवगस्ति कौमारी रूपेणात्यन्तमद्धता ।
देवाचार्यों न शक्नोति कर्तुं तद्गुणवर्णनम् ।।१४२॥ 1. BL - Ind g भपादन तदापी आ(चा)लक्नजलपरिता । १. 131, B and B. वाप्यां मा गता यावदृष्टा गणितारिता । 3. IS, I3 1 3 मशृङ्गारा मत्त्वीसा । 4. B1, BS and B कादिभिः। 5. B} दु। .:., 1 and B नवित्रजिता वागे। 7. BI, BE and 3 स्नानहेतवे । . B* ना !".", I TLE म्वगे। 10. B1, B2 and B3 'तदाख्यान | 11. IB R 133 "दितम् । 12. 131 and B पंचयत्या (B1 थिस्वा) मनो गाउँ B चयितात्मनो गाई। 13. B110d .या।
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चतुर्थः प्रस्तावः जन्म स्यात् सफलं तस्य यगृहे गृहिणी हि सा । शुकस्य वचनं श्रुत्वा जातः कन्यानुरागभाक् ॥१४३॥ शुकराज 1 त्वया शिक्षा दातव्या मत्कृते तथा । क्षणाधेन' प्रकारेण कन्यामुद्वाहयाम्यहम् ॥१४॥ कार्य सिद्धथति दुःसाध्यं शुकः प्राहोद्यमादिह । परिणीता च कौमारी शेनिका विक्रमेण ॥१४॥ भूपोवकीर ! का कन्या पर(रिणीता कथं पुनः । विक्रमेणेति वृत्तान्तं कथनीयं ममाग्रतः ।।१४६|| शुकोवगेतदाख्यानं श्रूयतामेकचित्ततः । पश्चिमायां तु दिश्यत्र वारुणं नाम पत्तनम् ।।१४७|| रूपचन्द्राभियो राजा राशी रुक्मप्रमाभिधा | बहुपुत्रोपरिष्टात्तु कन्या जातास्ति शेनिका ॥१४८।। लाल्यमाना कियद्वर्षेः पाठिता सा ततः परम् । सर्वशास्त्र कृताभ्यासा परं सा द्वेषिणी नरें ॥१४६।। क्रमेण यौवनं प्राप्ता रूपेण रतितुल्यका । मात( ता )पित्रोश्च संजाता संतापं तन्वती तदा ॥१५०।। अन्यदा विक्रमो राजा मालवानामधीश्वरः। उपविष्टः सभायां हि मन्यमात्यपरीवृतः ॥१५॥ सभायां तत्र चायातो विदेशीयो द्विजः कचित् । लात्वा देश' समासीनो यथास्थाने नृपाज्ञया ॥१५२|| पृष्टों विक्रमभूपेन सुधामधुरया गिरा। कथं कुतः समायातः १ प्रकाशय ममाद्भुतम् ॥१५३।। अवादी ब्राह्मणो देव ! ोकचिसतया शृणु" । अदक्षतं यादृशं पृष्टं कथयामि च तादृशम् ॥१५॥ वारुणं नाम नगरं बस्ति पश्चिम दिश्यहो । रूपचन्द्राभिधो राजा सेचानीनामिका'' सुता ।।१५५॥
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1 HI and Buथा यैन । 2.18and 33 विका यथा। 3. B1. 132 and Bs एतदामल । 4. B1, Be And B f . Band B3 नरैः। 6. 31, Band Hs सादृशा ( Bam ) 7. B1, BA and B दस्वाशियां। 8. B1, Bund B द्विजोत्तमः । १. 138 पटें। 10. 131, B and B तदा शृणु तमतम् । 11. B नामतः; 32 and Ba नाम तत् ।
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भोजपरिचे विधया विजिता वाली रम्भा रूपेण चात्मनः' । बुद्धया च वाक्पतिजिग्ये चातुर्येण च विष्टपम् ॥१५६॥ अस्तोदृश्यमुना कन्या विश्वलोकविभूषणम्' । पुरुपद्वेषिणी सा तु रत्नद्वेपी यतो विधिः ॥१५७|| रम्याद्रभ्यतरां वातां श्रुत्वा विक्रमभूपतिः। ददाति स्मेप्सितं दानं ब्रामणस्तु विसर्जितः ।।१५८|| अथ विक्रमभूनाथश्चातुर्ये कधुरन्धरः । वार्तामोहितचित्तः सन् प्रेषयामास सेवकान् ॥१५६५ वाहति नर बाग कुन गया। कन्याया मूलवृत्तान्त नी( ज्ञा? )वा में कथ्यतां पुरः ।।१६।। शिषां दवाथ भृपेन प्रेषिता निजपुरुषाः । कमेण तेपि' संप्राप्ता वारुणाभिधपत्तने ।।१६१|| तस्थुरेकप्रदेशेन वृद्धमालिनिकागृहे । मिष्टान्नाहारदानेन वृद्धाप्यावजिता भृशम् ॥१६२।। मालिन्या ते तया पृष्टाः किमर्थ समुपागताः ? मम पुत्राधिका यूयं यद्वाच्यं तद्वदन्तु भोः ॥१६३।। राजपुत्रा मातुराहुः काप्यास्ते शेनिका कनी । सुता सा दूषिणी पुंस्सु (सु) तवृत्तान्त" निगद्यताम् ॥१६४||
1. , BARRE! 13 को रम्भायते पंग प्रायो विद्यागणेजिना । 2. BI,# anRI पतिर्जप्तः 13. 131,B- ud B"विभषणा | 4. tyraillds the following verses alter tliis :
शशिनि खलु कलई कण्टका पदमनाले नधिजळमपेयं पगित निधनवम | दश................."गोदुर्गत्वम्वरूप प्रतिषण (च) कृपगान्वं रत्नदोषः कानान्त:।। चन्द्र लानता हिमं हिममिगे क्षार जल मागरें सुधा चन्दन पादता (प) विपवर (गः) एचं रिचनाः कपटकाः । स्त्रीरले (हि.) जरा कुचेष पतितं वदम्य दारिदाता
....."नातं देवाधिमा निमितम ।। । 5. Bi and 3 तापि। ६. 131, H ul 139 कयं केन प्रकारेण गरटेषेण वर्तने । 7. R, Us and 13: अनफमण । ४. 11, B" ITRI | मथनीनास्ति तद्वद । ५. ३० मेपानी पास्ति कन्यका। 10. B1, Banel B नरदेवी अनास्माभिव नान्न नन् ।
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चतुर्थः प्रस्तावः मालिन्युनेथ वृत्तान्तं मत्पुत्राः शृणुताद्भुतम् । सेचानिकासमीपेहं यास्यामि च गताप्यहम् ॥१६॥ अन्यदा रूपचन्द्रोयं चिन्तयामास मानो। नरवेषभवां वातां गत्वा पृच्छामि तां सुताम् ॥१६६।। यावद्याति सुतावासे 'भूपतिनिष्परिच्छदः । तावत्सुता' समादिष्टा दत्ता जवनिकान्तरे ॥१६७।। तदन्तरेचदभषो वत्स मर्चनं शृणु । पक्षोभयविशुद्धा त्वं भुरूपा सद्गुणोचिता ॥१६॥ सुशीला 'सुन्दराचारा सदाक्षिण्या सुशास्त्रवित् । परं वत्से कथं जातं पुरुषद्वेषलक्षणम् ? ॥१६॥ कन्योचे श्रूयतां तात ! त्वं तां शृणु कथामथ । गङ्गातीरेस्ति चासन्न पदरीनामक वनम् ॥१७०॥ सीचानकयुगं तत्र बनान्तनिवसत्यहो"। अन्यदा जलपानाय गतं गजातटे तु नत्' ॥१७१।। सार्थेशः कोषि तीरस्थः प्रासुकान्नेन सद्यतेः । पारणं कारयामास दृष्ट्वा "सिश्चानकोत्रवीत् ॥१७२।। पश्य भने ! मुनीन्द्रस्य धन्यो दत्ते च" पारणम् । प्राप्यते यदि मानुष्यं तदायां दीयते प्रिये ! ॥१७॥ दानानुमोदनात्पुण्यमावाभ्यां समुपार्जितम् । कियद्भिस्तु दिनस्तत्र वृक्ष मुक्तमथाण्डकम् ॥१७४॥ प्राप्त ग्रीष्म ऋतौ तत्र दावानल उपस्थितः । संप्राप्तो दारुणोटव्यां वृक्षासन्नः समागतः ॥१७॥ सिचान्योक्तं द्रुतं स्वामिन् ! बज पानीयहेतवे | यथोपशाम्यते वहिवृक्षपर्यन्तसेचनात् ।।१७६।। एवं श्रुत्वा ततः शीघ्रं गतः "सिचानको जले |
तावत्सि मानका पश्चाज्ज्वालापूरेण" वेष्टिता ॥१७७|| 183 पोपि नि। .. IRI, 1 und १५ मनाभिरा । : BI वन्छ। 1. 818: and B मस्क( B कृता । 5. B', I al I3 न युगल । i. B F anel 13 निवन्ति (ति) बनानरें। 7. Brainlis* गतो गलान खगो1 8. BT and I कानं मुनीश्वरं। 2. BI all B2 सेचा । 10. IR, Ul 18 ददति । 11. 11, 13 und ! लामालम ।
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६८
भोजचरित्रे
सिवानी चिन्तयत्यन्तर्गत भर्ता स कातरः । आत्मजेनापि न स्नेहः प्रियया तस्य किं भवेत् ॥ १७८|| धिग् धिग् निःस्नेहमर्त्यानां मुखे दृष्टेपि पालकम् । सिवानी चिन्तयत्येवं दग्धा दावानलेन सा ||१७६ ॥
निदानानुमोदन पूरा यत्पुण्यमर्जितम् ।
तत्पुण्यान्मानुषं जन्म' संजाता त्वद्गृहे सुता ॥ १८० ॥ तस्मात्कारणतस्तात" ! पुरुषद्वेषिणी ह्यहम् । न रोचते हि मे मर्त्यमुखस्थालोकनं कचित् ||१८१ ॥ एवं पुत्रीकथां श्रुत्वा राजकार्ये गतो नृपः । अहं च तन्मुखाच्छ्रुत्वा समायाता ' निजे गृहे ॥ १८२ ॥ चरैर्विकमभूपस्य मालिन्या सुखतः श्रुतम् । सिचान्याः पूर्ववृत्तान्तं ज्ञात्वागत्योक्तमीशितुः ॥ १८३॥ विज्ञाय कन्यकावृसं विक्रमो वीर उत्तमः । उपायांश्चिन्तयामास पाणिग्रहणवाञ्छ्या ॥ १८४॥ गौडिका वंशसंजाता वागलक्रीडनादिकाः" । गोडदेशात्समानीताः सुक्रीडावाडिका वनाः ॥ १८५ ॥ मन्त्रिणां राज्यभारं हि दत्वा साहसिकाग्रणीः । किंचित्सैन्यं समादाय वह्निवेतालकान्वितः ॥ १८६॥ सह पेटकवर्गेण भूपतिर्गरिमान्वितः । सेचनकाभिधानं च स्वनामस्थापनं कृतम् ॥ १८७॥ मार्गे नगरमध्ये ये समायान्ति हि भूभुजः । गत्वा तत्र कलावत्यो दर्शयन्ति निजाः कलाः ॥ १८८ ॥ क्रीडन्त्यन्याः कलावत्यः ख्यातः सेचनकः स च । विदितः सकले देशे मार्गमुल्लङ्घयत्यपि ॥ १८६॥ एवं च ग्रामानुग्रामं क्रीडय नद्भुताः कलाः । जगाम तत्पुरोधाने यत्र सेचनिका कनी ॥ १६० ॥
1. Bi and l39 ""यामानुष्यं । 2 BL Band B" तेन का 3. B1, B2 and 4. B1, B2 anul 87()15B4 132 und Ba सेवा। 6. BIB and 133 डकादयः ( Band He दिये 171 He and बहवः क्रीडवाहिका ।
B मयाद्य |
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__ चतुर्थः प्रस्तावः बारुणाख्यपुरासन' वनं पुष्फा(पा)वतंसकम् | तत्र सेचनको नाम पेटकेन समं स्थितः ॥१६॥ अतः प्रभातवेलायां रूपचन्द्रो नरेश्वरः। अनेकमन्त्रिसामन्तपूरितास्थानसंस्थितः ||१६२॥ वामदक्षिणतस्तस्थुः सुस्वराः सरसा बुधाः । अग्रे गीताङ्गनादज्ञा मन्येसौ वासवोपमः ॥१६॥ अतः सेचनका प्यश्वारूढः खाभिः समन्वितः | संना शस्त्रपाणिस्थः समां गत्वा' नमन्नृपम् ।।१६४॥ देव ! ते सत्यशीलाधा विदिता विश्वमण्डले | तच्छ्रुत्वा त्वत्समीपेहं श्यागतः शणु कारणम् ॥१६५|| विग्रह देवदैत्यानां जायमाने रणागणे" । मया भूभामिनीनाथ ! गम्यते हि त्वदाज्ञया ।।१६६।। यदि मे देहि वाचं त्वं तदा मे गमनं भवेत् । यस्य तस्यान्तिके पुंसो वाचं कोपि न याचते ।।१६७। ततो नृपो रूपचन्द्र उवाचेदं नरं प्रति । बाचा दत्ता मया तुभ्यं कथयस्व यथोचितम् ॥१६॥ नरोवोचदियं भाया रक्षणीया प्रयत्नतः । यस्य कस्यान्तिके न स्त्रीरत्नं केनापि धार्यते ॥१६॥ पुनर्विज्ञापयाम्येवं संग्रामे गम्यते मया । कुर्वतः समरं दैत्यर्यदा पतति मे वपुः ॥२००॥ प्रियाया दर्शनीयं तत् करोत्वेपा यथोचितम् । शिक्षां दत्त्वा नमन् भूपं हयेनोत्पत्य खं ययौ ॥२०१॥ पश्यमाना सभा सवा गतो दृष्टेरगोचरम् । सभ्याः सर्वे प्रशंसन्ति तं नरं कौतुकार्द्धनम् ।।२०२।। कियत्यपि गता वेला कर खेटकसंयुतम् ।
आकाशात्पतितं दृष्टं सभा सर्वां चमत्कृता ॥२०३॥ 1. I बारुणोनगरामनं । .", I HI !! संचानकादेशद। 3. BE, B2 and Ba स्त्रियान्वितः । 4. H नत्या। .And बन्। 6. B1, B and B तत्र धोरं रणारुणम्। 7. B.E d B रूपेन्दुभूपश्च (झ)वा। 8. [31, 13 and B" दैत्यानां युद्धमानोई यदा।
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می
भोजचरित्रे
हाहाकार पराः सर्वे यावत्पश्यन्ति विस्मयात् । तावत्करोद्वितीयपि सखङ्गः सहसापतत् || २०४|| हाहापरस्ततो राजा दृष्ट्रा खड्गयुतं करम् । पतितं तावदाकाशान्मस्तकं तन्नरस्य च || २०५ || ततश्च दुःखिताः सर्वे धुन्वाना मस्तकं मुहुः । सतुरङ्गः कबन्धश्चापतदास्थानमण्डपे || २०६ | सर्वे हाहापरा जाताः सर्वे जाताः सुदुःखिताः । दर्शितं तत्प्रियायास्तद् दृष्ट्वा भर्तुः स्वरूपकम् || २०७|| तदग्रेञ्जलिमायोज्य पादपद्मं नमस्कृतम् । अवादीत् त्वत्प्रसादेन वक्ता भोगा हृदीप्सिताः || २०८|| तथा भूपपि विज्ञप्तः स्वामिन् । काष्ठानि मेर्पय । मृते भर्तरि नारीणां नान्यो मार्गः कुलस्त्रियाम् || २०६ ॥ * राजांचे स्थीयतां भद्रं ! मृतेपि न हि किंचन । तब निर्वाहां चिन्तां यावज्जीवं करोम्यहम् || २१०॥ नारी प्राह तब स्वामिन्! शीलारख्या वर्तते वि । रूपं दृष्ट्वा परस्त्रीणां न लोभस्तव' युज्यते ॥ २११ || एतच्छ्रुत्वा नृपः प्रोचे न लोभस्त्वं सुतासमा । काष्ठावरोहणे नास्तिष्ठ तिष्ठाव्यते यचः ॥२१२|| इत्युक्त्वा चन्दनैः काष्ठैर्नृपोकारापयश्चिताम् । अतिस्नेहानुभावास्त्री' प्रविष्टा सा घितानले " ॥ २१३ ॥
1. ff, Baod 138 भर्तुर्यथाविधि 1 21 भूपः सूचि BF and [ भूवस्तु वि। 3. B adds the following, after this verse :
उक्तं च-गलियुगल कोमलपुष्पाकरस्य
त्रिनयनलनुपूजा चाथ त्रा भूमिपाल: । विमलकुलभवानामङ्गनानां शरीरं,
पतिकरकरर्जव मंत्रणं यत्तजिह्नः ॥ स्त्रोपस गुणमृगस्थितम् ।
पुत्रपरिहारम्भं वित्त पनि मह ॥
4. 13 and 15. 134, 13 and 133 and 1 6, 131, 133 and 133 %farai कारापयन्नृपः । 7. Band 13 वा स्व
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चतुर्थः प्रस्तावः युग्मस्नानेन' घौताङ्गाः सभासम्याः समागताः । स तापञ्जितकाशी ना नत्या भृपं पुरम स्थितः ॥२१४॥ हे देव! त्यत्प्रसादेन जिस्वा देस्यमहाबलम् । समायातीधुनाम्यत्र देहि मे वनिता विभो । ॥२१॥ राजा सविस्मयश्चित्से यावदले न चोत्तरम् । तावता स नरः प्राह पूर्वोक्त देव ! नान्यथा ।।२१६|| तपातम्बुि तुधातोन्नं स्त्रीः कामं दुर्गतो धनम् । न मुञ्चति तथा सत्यं वचः सत्पुरुषा निजम् ॥२१७|| नरम्य वचनं श्रन्या भपः म्याना निरुतरः" । नावन्मन्त्रीश्वरी बृत महावः श्रूयतां प्रभो ! ॥२१॥ प्रत्यक्षीय मनो दृष्टो जीवन्नेवाथ दृश्यते । तदा सा दैवयोगेन गनीपार विलोक्यताम् ॥२१६।। इनि मन्त्रिवचः श्रुन्या भूपेनापि नथा कृतम् । राशीपाश्यात्समानाय्य तस्य पुंसोर्पिनाङ्गाना ॥२२०॥ नरेण तत्र कैवारं प्रारब्धं नरपाग्रतः । भूषो ज्ञात्वा कलावन्तं हटो दसे धनं धनम् ॥२२१।। सहर्षी भूयतेकिः स्त्रियो जाताः ससम्मदाः । विसर्जितो नरः सोपि गतीम्तं च दिवाकरः ॥२२२।। प्रातःकाले च भूनेतोपविष्ट स्थानमण्डपे । ज्योतिषिको नरः कोपि भूपपार्वे समागतः ।।२२३॥ द्वादशतिलकैर्युक्तः कक्षायां न्यस्तपुस्तक । भूपस्याशीबचो दवोपविष्टस्तु तदग्रतः" ||२२४|| पृष्ठो भूपेन भी ज्योतिषिक! ज्ञाना किमागमम् । किं शाखं दर्शयोहामं कलायाः प्रत्ययं निजम् ||२२||
1. Pl, and PB मम ।". 131, I am I यान महावरान् । 1. 131, IBHABI न। +. 131, I an 13 नरो बत। .BI !!and 13: e intend :
स्वियं कामी को श्रीर्ण भुविता(मोन नपजलम् ।
प्राप्यने नानि चम्लूनि कंत्र :न्यं न मुन्नति ।। 6. BL and B: भूपे नायाति चातरम् । 7. Bluxmits this weree cupletely | 8.3 धोय। 9. BI, Be anl B. "तिप्काको। 10. BI दत्वाविष्टस्त । 11. BI, BP and B. भी ज्योतिः !किशिजानामि नागमम् ।
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७२
भोजचरित्रे स्वामिन् । सत्यमिदं वाक्यं भवता यत्प्ररूपितम् । पुस्तकस्य बहे भारं यद्यहं प्रत्ययोष्मितः' ॥२२६।। धनस्य प्रत्ययो दानं प्रत्ययः पात्रमंहतेः । पात्रे प्रत्यय आचारो' ज्ञानेपि प्रत्ययस्तथा ॥२२७॥ यथायं 'प्रत्ययो राजन्नधुना पश्य कौतुकम् । निष्कास्य प(ख)टिका कोशालग्नं स्थापितवांस्ततः ॥२२८|| बलावलं ग्रहाणां तु ज्ञात्वा भूपं व्यजिनपत् । मेघ आयाति चेद्रौद्रोधुना में प्रत्ययस्तदा ।।२२६॥ ज्योतिर्वचनमाकर्ण्य समा सर्वापि विस्मिता | व्योम्नि मेपलवों नास्ति किमिहालीकभाषया ॥२३०॥ याचदेवं विमृशति' तावदम्रो विनिर्गतः । क्षणान्मुशलधाराभिलग्नो मेघस्तु बर्षितुम् ॥२३१॥ तत्क्षणाज्जलपूरेण प्रवृत्तः प्लावितुं महीम् । सभां स्वीयां जलैः पूर्णा दृष्ट्वा भूपः समुत्थितः ॥२३२।। । ज्योतिष्कस्य करे लग्न ऊर्ध्वभूम्यां गतो नृपः । जलेन प्लाविता सापि द्वितीयां भूमिकां गतः ॥२३३॥ दृष्ट्वा तामप्यम्बुपूर्णा भूपो व्याकुलमानसः । तृतीयां भूमिमारूढो ज्योतिष्केन समं ततः ॥२३४॥ सापि पूर्णाम्बभिस्तुयों पशमी' च क्रमाद्गतः । एकविंशतिभूम्योपि' यावत्पूर्णा महाजलैः" ॥२३५॥ भूपोवक श्रयता ज्योतिः । प्रलयो भाषितस्त्वया । अधुनाप्यागतः सोयं वद किं क्रियतेधुना" ॥२३६॥
1. BI, Band Bयदि न प्रत्ययं विभो ! . [Bl and B: दानप्रत्ययपात्रता; Ba दाने दाने प्रत्ययपात्रयोः। 3. 133 यमाचार। 1. Bind 133 लथा यत्न । 5. B चलापल 1 6. BI, 32 and B3 मेघालधारको। 7. BI, 1111d 13 श्यन्ति । 8. B1, 133 and B3 याज । ". B1 and B2 गती। 10. 181, Bund 18 सापि पूर्णा जले दृष्टा । 11. BA, B. and B3 पूर्णा चतुर्थायाँ पञ्चम्पां। 12, B1, B" and 1१५ भूमोषु। 18. B1, Bani Ba मही जले। 14. BI, BA and B"म भाषितं त्वया । 15. BIB anl Ba त्वं :16. BI, B and B: किम् ।
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यतः
चतुर्थः प्रस्तावः ज्योतिरूचे महाराजन् ! महतामिति चेष्टितम् । संपदि' सति(स्यां) नो गर्यो विषादो न विपद्यपि ॥२३७।। संपदि यस्य न इर्षो विपदि विषा ॥२३८॥ तावत्पूर्णा जलैः सापि भूमिका भूप उत्थितः । नृपोपि यावन्नाशा(सा) जले मग्नः क्षणेन सः ॥२३॥ भूपःप्रोचे पद सा(सा)धु क्रियतेप्यधुना किमु । ज्योतिरूचे महाराज ! नेत्रमीलनमाचर" ॥२४०॥ नेत्रे निमील'यित्वा च यावद्भपोनु मीलति । न तावजलदो नाम्ब नातास्ति भुषोपि च ।।२४१।। उपविष्टो निजस्थाने न हि कोप्यस्त्युपद्रवः । तावन्नरेण फेवारं प्रारब्धं भूपतेः पुरः ।।२४२।। राज्ञा ज्ञात कलाविझो न सामान्यास्त्यसो कला । इसिताः सर्वसामन्ता भूपायाश्च चमत्कृता:" ||२४३॥ राज्ञांचेत्यद्भुता विद्या शिक्षिता फस्य पावतः । एका पूर्वदिने दृष्टा द्वितीयाय किमुच्यते ॥२४४|| स आह स्मास्ति सार्थेश गुरुः सेचनको" मम । शिक्षितस्तत्प्रसादन भूपाग्रेधास्मि कौतुकी ॥२४॥ भूपः प्रोषे कदा नृत्यं सेचनाख्यो गुरुस्तव | करिष्यति 'किलास्माकं दर्शयिष्यति कौतुकम् ।।२४६|| तदा कलाविदप्पाहाम्मदीयो भूपते ! गुरुः । स्त्रीणां [च वर्तते द्वेषी नासां नालोकयेन्मुखम् ।।२४७॥ एवं श्रुत्वा महीनाथो जातो विस्मितमानसः । कथंचिद्गुरुरात्मीयो मेलनीयों मयापि हि ॥२४॥
1. 31, १५ and R संपदे । ५. Bl. P and 8 विराद विपदे न हि। 3. Brand Bomit the wlaole expressian; IP steps after गर्यो। 4. 111, Band B कि पुनन पनासानं गवन्मग्नो जलेन सः [HT जके सम: ] । 5. P1 And Pa जन् । .al, Be and ३ नेत्राणां मोलय क्षणम् । 7. Bt, Band B नेत्राणां मेल । ६. न। .. BA, B. and Bधा हुनम । 10. R113-al 133 मेचा, 11. Bl and R कदा; B तदा । 12, B1, B2 and 13 दयापियति । 18. B छ । 14. B1, B" and B विस्मयमा । 15. Bi uml B: ममापि ।
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गोपरि इत्युक्त्वा तस्य वेगेन स्वर्णरत्नादि भूषणम्' । शोभनाश्वादि पृक्का(व्या १)दि दत्तं दानं दीप्सितम् ।।२४६॥ प्रेषितः स निजे स्थाने सभा सर्वा विस जिंता । राज्यलीलोचितैः सौख्य रात्री राज्ञातिवाहिता ॥२५॥ पुनः प्रातः सभासीनो रूपचन्द्रनरेश्वरः । सेचानकं समानेतुं नरान् प्रेषितवाभिजान् ॥२५१॥ सेचानकः सकारो नानाभरणभूषितः । सुखासने समारूढः ससैन्यपरिवारकः ॥२५२।। नेत्रयोः पट्टको पद्धो डारिवाग्रतः श्रितः। पथि यत्र समायाति नारी नश्यति तत्पवान्' ।।२५३|| परिच्छदेन संयुक्तो गतो यत्रास्ति भूपतिः । अभ्युत्थानं न सन्मानं नर्ति कस्यापि नो सृजेत् ॥२५४॥ उपविष्टः समामध्ये नेत्रयोः पट्टकावृतः। निषिद्धाश्च स्त्रियः सर्वा रूपचन्द्रेण मण्डपात् ॥२५५|| तथापि कौतुकाकांक्षी नरो रूपेण पश्यति । सेचानिका च" साश्चयां जालकान्तः प्रपश्यति" ||२५६।। पृष्टः स रूपचन्द्रेण सत्यं वद नरोत्तम । स्त्रीषु वेषी कथं जातः कथय त्वं ममाग्रतः ॥२७॥ ततः सेचानको ते स्त्री नेवास्त्यत्र कुत्रचित् । नेत्रयोः पट्टकं त्यक्त्वा वदति स्म विदां वरः ॥२५८॥ दिशायाः पूर्वभागस्ति गङ्गानाम्नी महानदी । तस्यास्तीरेस्ति मो ! रम्यं विख्यातं पदरीवनम् ॥२५६।। पहवः पक्षिणस्तत्र निवसन्ति यदृच्छया । सेचानकस्य युगलं मुदितं तत्र तिष्ठति ॥२६०।।
1.B1, Bell IBa "गान् । ३. 131 Bund B दो। 3. 8 भूपेति'; Be and B: भूपेन। 4, BI, BE and B प्रेषिता भूातनराः। 5 BE, I und B स्व.। 6. B1, Band B3 वारिसः। 7. P3, IBLind B तत्ययात् । H. B1, B and B3 प्रणाम मन कस्यचित् । 9. PS | 10. B1 °पि। II. BI, B2 unu B पश्यन्ती बालिकान्तरे। 12.B1, Ba and Bोभिषं। 13, BI, B and B3 जातं कथयस्व 1 14 BI, B% and B वदते वदतां वरः ।
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उक्तं च
चतुर्थः प्रस्तावः कियत्स्वहस्तु संजातः सेचानी गर्भसंभवः ।
एकस्यां वृचशाखार्या मुक्तमण्डकयुग्मकम् || २६१॥ arस्तु दिनैरेता संजातौ युग्मबालकौ । एकस्मिंस्तु दिने जातो दावाग्नेः समुपद्रवः ॥ २६२॥ सेचानेन तदैवोक्तं समानय जलं प्रिये ! | जलसेकाद्यथा वह्नेर्नाशयामि ग्रुपद्रवम् ||२६३ ॥ गता सा जलमानेतुं नायाता निर्देया पुनः । बालकोपरि दग्धोहं दावाग्नेलिया तदा ॥ २६४॥ arita निराश्वर्य कुटं कि जल्पसे सुधा । दवाई बालकैः सार्धं नष्टस्त्वं स्नेहवर्जितः " ॥ २६५॥ इति वादं विवदतोः श्रुत्वा सेचानिका पितुः (ता) | मिलितः पूर्वसंकेतो ज्ञातः पूर्वभवप्रियः || २६६ ||
पुनश्चिन्ता समुत्वा रूपचन्द्रस्य भूभुजः । परमेतत्सुतारत्नं दास्ये नाटकिनो न हि ॥ २६७ ॥ कुलं * च शीलं च रूपक्षता च
विद्या वयो रूपधनाढ्यता छ । एते गुणाः सप्त वरेतिरिक्त
स्ततः परं पुष्यफलाय कन्याः || २६८ || पुम्मिः सार्धं निर्विरोधं ज्ञात्वा भूपः समुत्थितः । सेचानोप्यश्वमारुह्य यावद्याति निजाश्रमे || २६६ ।। Tracनापि भट्टेन केनाप्युपलचितः । स एष मालवाधीशो विक्रमादित्यभूपतिः || २७० ॥ दातृणां दानधौरेयां वीराणामेकवीरराट् । साहसैकनिधिः" सम्यग् विक्रमी विक्रमो नृपः ॥ २७९ ॥ एतद्वचनमाकर्ण्य रूपचन्द्रो धराधिपः ।
पादचारी समायातो यत्र विक्रमभूपतिः || २७२ ||
७५
1. BIBE and 33 लात्यमाना (नो ) दिनेकस्मिन् दावानलभ मुल्यलयः । 2. BJ Band
33 ज्वाला दावानलस्य च । B
4.
1 and Be omit the whole verse; Pand and 150 साहसीनां निधिः ।
ya have only कुले च गोलं न 5
1
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भोजचरित्र
७६
करौ च कुड्मलीकृत्य स्तुतिमेवं विनिर्मि(म)मे । गृहं पवित्रयास्माक पदपचरजा ॥२३॥ धन्योहं मन्पुरं धन्यं यत्प्राप्तो विक्रमाधिपः । प्रकृष्टविनयेनाथ" समानीतो निजे गृहे ||२७४।। पुनः पप्रच्छ भूनाथः प्रारब्धं किमिहाऋतम् । मालवेश्वर ! वासेयमारब्धा बद कारणम् ।।२७५।। हसित्वा विक्रमः प्रोचे प्राघूर्णोस्म्यधुना तव । तव कीर्तिः परा धूर्ती धूनितोहं तपागतः ॥२७६।। इति प्रीतिवचः श्रुत्वा रूपचन्द्रो नराधिपः । परमानन्दरूपेण भोजितो भक्तिपूर्वकम् ॥२७७॥ मन्त्रयित्वा मन्त्रिभिः स विज्ञमो विक्रमाधिपः । प्रसादं कुरु भृमीन्द्र ! वचनं मामकं पृणु ॥२७८॥" न हि दानं विना प्रीतिन शोमा प्राप्यते क्वचित् । यथा पंचामृतं भोज्यं घतहीनं न शोभते ॥२७६।। गजवाजिसुवर्णाद्याः पादा_स्तव मन्दिरे । तव योग्यमिदं पुत्री ग्लमेतद्विवाहय ।।२८०॥ एतद्वचनमाकण्यं दृष्टो मालवभूपतिः। . वाञ्छितार्थप्रदानेन को न तुष्यनि मानवः'" ||२८११॥ प्रशस्ते दिवसे भूपः कारयामास' मण्डपम् । परिणीता विक्रमेण सुता सेचनिकाहया' ॥२८२।। अनेकगजवाज्यादि'" स्वर्णग्नादि भूपणम् ।
प्रददौ रूपचन्द्रोयं या(जा)मावकरमोचने ॥२८॥ 18I, Rame! 10 प्रम में । " !st B2 15 पाद। 3. 131, 1 at 133 नापि । 4. Bincl Bाधिप: | 5. 11, Is" and 130 रंगा । 5. Bindas the illowing after this Verse :
दानि निकाति गृह्म मा बाष्पा)भिजल्गति ।
भक्तं भाजतिश्न(ते व षड्विध प्रोतिलक्षणम् ॥ 7. IBI, Band B ऋषम् । 8. B', 132 133 बहवस्त ।'! BI, B- and B. व योग्यास्ति में पुनी। 10. 31, IB R E गान। 11. I, IFs and 18 काराग यति । 12, B1, B" and Bs सुना संचानिकानाम्नी मानम्ति विक्रम । 1. Basid E अफान मजवाजोना 1 14. B', Be and | भूषणान् ।
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७
चतुर्थः प्रस्तावः उत्सवेन च वीवाहं कृत्वा विक्रमभूपतिः । समायातो निजे स्थाने स्वसैन्यपरिवारितः ॥२८४|| सिद्ध्यत्ययमनः कार्यमगम्या ये मनोरया । यथा सेचानिका कन्या विक्रमेण विवाहिता ॥२८॥ यथा विक्रमभूपस्य शुकेनायं निवेदितः । उथमोपरि दृष्टान्नश्चन्द्रसेननृपाप्रतः ।।२८६॥ एतत्कथानकं श्रुत्वा हृष्टः कीरम्य वाचया । मया पुष्फा(पा)वतीनाम्न्याः कथं कार्यः परिग्रहः ॥२७॥ शिक्षा पृच्छति भूनाथे कन्यावरणहेतवे । कीरोपि कथयामास भएस्य हितवाञ्छया ||२८|| कृतास्ति यदि सामग्री पियशाममने आया । तदा शकुनजाधेया' गृ(ग्रोहीतव्या कथा हदि ॥२६॥ यथा शकुनिकीरोवक श्रेष्ठिपुत्रफलप्रदः । तथा हि सर्वलोकानां चिन्तितार्थफलप्रदः ॥२६० ।। चन्द्रसेनो नृपः प्राह शुकराज ! ममाग्रतः । कथनीया समग्रापि कथा श्रेष्ठिमुतस्य च ||२६|| कीरोवम्मालवे देशे पुरं दशपुराभिधम् । देवदत्तामिधः अष्ठी वसते तत्र वित्तवान" ॥२६॥ देवश्रीरस्ति तद्भार्या सुतो दशरथाभिधः । वारसल्यास्पिटमातृभ्यां बालत्वे स विवाहितः ॥२६३।। पाठितश्च" ततः सम्यकलाविधादिकोविदः। जातः सर्वगुणावासो मन्ये विद्यानिकेतनम् ॥२६॥ संप्राप्त"रूपलावण्यो" यौवनेनाप्यलंकृतः । जतिश्च विषये लुब्धो द्विनीयवयसः फलम् ॥२६॥ एकदा श्रेष्टिपुत्रेण नापिताय निवेदितम् । मन्मित्राणां मत्समानां सन्ति जाता गृहे मुताः ॥२६६॥
1. Bad B" उन्लवन च वैवाः। 2. BIand B रथैः । 3.18 and B हृष्ट । 4. B कन्या। 3. 18 परिणोया मया कम । 6 13, 5 und विदेशमुद्द्यो । 7. 13, लंघे। 8. BI, Be And B सम्पप्रदा । . 13 adds the following, after this verse :-अप पाकमजंघ उपरि कथा । 10. Btal 3 घनचानमः। 11. 1. Band Bाठतोपि । 12. Band H" नं। 13, 31 andl IB पर ।
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भोज चरित्रे इष्टगोपविष्टस्य स्निग्धा मम हसन्ति हि । पित्रा विवाहापि काप्यस्य न हि कथ्यते ॥ २६७ ॥ कथनीयं च वाताग्रे मदुक्तं वेन्यसो यथा । प्रत्युत्तरं तथास्माकं कथनीयं त्वया सखे || २६८ || श्रेष्ठिपुत्रगिरं श्रुत्वा संप्रदायेन संयुतः ।
वामशायी स्थितः श्रेष्ठी नापितस्तत्र चागतः ॥ २६६॥ दर्पणं दर्शयामास पादसंवाहनापरः । श्रेष्ठिनं जल्पयामास विवाहादिकवार्तया ||३०० ॥ "कमप्यवसरं प्राप्य कथयामास नापितः । भवतां पुत्ररत्नं तु विवाहे योग्यतां गतम् ॥ ३०२ ॥ हसित्वा श्रेष्ठिनाप्पूचे त्वयाद्यापि हि न श्रुतम् । मया वात्सल्यतः पुत्री चालत्वेयं विवाहितः ||३०२|| नापितः पुनरप्यूचे कुतः कस्य गृहे प्रभो ! एतदाश्चर्यमस्माकं न श्रुतं कस्य चान्तिकात् ||३०३ ।। श्रेष्ठयचे मालवे देशे निकटं ह्यस्ति चात्मनः । वैराटनगरं नाम श्लाघ्यं सुरपुराधिकम् ||३०४|| नत्रास्ति धनदः श्रेष्ठी राजमान्यो महाधनी । नन्दानाभ्यस्ति तत्पुत्री परिणीताङ्गजेन मे# ||३०५ ॥ स्वरूपं श्रेष्ठपुत्रस्य नापितेन निवेदितम् । गृहीत्वाज्ञां पितुस्तस्याः समानयनहेतवे ॥ ३०६ ॥ रथारूढः प्रस्थितोल्पपरिच्छदः ।
10.
पुराहू बहिः समागत्या कथयनिजसेवकान् ॥ ३०७ ॥ वामपार्श्वे यदा देव्या भाषते " वचनत्रयम् ।
12
ग्रामान्तरे तदायामि व्याघुरिष्येन्यथा त्वहम् ॥३०८|| एतद्वचनमात्रेण ब्रूता सा दक्षिणे भुजे ।
14
श्रुत्वा व्याघुट्य चायातः प्रातः प्रचलितः पुनः ॥ ३०६ ॥
1. B1 Is and [39] मक्तं ज्ञायते न हि ४ and B किचिदव । 434 135 and B तोयं Bud B विषि । 7 B7 Band B पादवतः 10. Bhumits the
9. B1, B and B 12. B1 and 13" "यहम् | 13. Bा |
B1.
B1 वायालयति श्रेष्ठिश्च । 3. BIB 5131, B2 and 3" मनः । 8.331, B3 and B3 नामास्ति | verses 307-11 । 11. B3" दास्यते ।
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चतुर्थः प्रस्तावः तथैव दक्षिणे मागे देव्या शब्दायते भृशम् । पुनर्वेश्म समायातो निजश्रेयोभिलापुकः ॥३१०।। अरुणोदयवेलायां यावद्गच्छति मार्गतः । देव्या शब्दसरकशब्दश्चटकः' कापि जल्पितः ॥३११|| तावदशरथः श्रेष्ठी सोत्साहवचनं जगौ । मातरस्माकमप्येवं वचः किं श्रावयस्यहो ॥३१२।। निषेयेदं मुखे वाक्यं रथं खण्डितवान्पथि | तावत्सूर्योदये देव्या निजस्थाने समागता ||३१३॥ पप्रच्छ चटकाद्यान्सा मार्गणास्मिन् गतोस्ति कः । यथोक्तं चटकेनोक्तं श्रेष्ठिपुत्रेण यत्कृतम् ॥३१४|| शकुनो हाहापरत्वेन चिन्तयामास मानसे | अग्रे श्रेष्ठिसुतस्यापि मृत्युरस्ति कथं कृतम् ॥३१॥ शकुनोप्यात्मलज्जातः कृत्वा रूपं द्विजन्मनः । मिलितः केटके गत्वा तस्य श्रेष्ठिसुतस्य च ॥३१६।। सोपि सार्थस्थितो याति कमाद्वैराटमाययौ । सपरिच्छद 'आयातः श्वशुरस्य निकेतने ||३१७॥ जामातरं तं विज्ञाय श्वशुरः सालकादिभिः । संमुखं तस्य चायातः कृतं गौरवमादराव ॥३१८|| जामाता तैः समानीतो गृहमध्ये कृतादरः। कृतमाङ्गल्यकाबारः श्वश्रुभिः शालकादिभिः ॥३१९|| मर्दनोद्वर्तनं कृत्वा स्नानमोजनकादिमिः । दिनं हर्षातिरेकेण क्रीडाधैरत्यवाहयत् ॥३२०॥ जाता संध्या ततः स्त्रीभिर्नन्दा संस्नापिता तनौ । शङ्गारषोडशोपेता कृता भूषणभूषिता ॥३२१॥ एकरक)यौवनसम्पन्ना भूषाभिभूषिता पुनः" । साक्षादेवाङ्गनाकारा प्रेषिता शयनीयके ॥३२२||
1. Band B2 °टिकः । 2. B1, B2 and [कययित्वा रि(वि)दं। 3. BI, and 13 साभिः। 4. B1, Baud Hदमा । 5. B1, B2 and B3 तम्य मा(चा गत्य । 6. BT and Bालिका 1 7. B1, Band B दिवा हर्षप्रमोदेन क्रीडाभिरतिवाहितः । 3. B4 BPanl B शृङ्गार पोरण: (Bhind sो) कृत्वा विभू। 2. Bl and B: विभूपाभिविभूषिता; 13: विभूषणविभूषिता ।
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भोजचरित्रे
चिन्तयामास सा कन्या संकेतो यत्र विद्यते । पूर्वं तत्रैव गच्छामि पश्चान्निजधवान्तिके ॥ ३२३ ॥ एवं विसृश्य सा कन्या यचस्यायतने गता । चिन्तयत्यन्तरे यक्ष' आगता पतिघातिनी ॥ ३२४ ॥ * या स्त्री निजपतिं त्यक्त्वा भजतेन्यपतिं पुनः । पतिघातकृतं पापं तयापि समुपार्जितम् ॥ ३२५ ॥ अद्याइमस्याः पापिन्याः शिक्षां दास्यामि निश्चितम् । विमृश्यैकशवस्यैषं देहे यचेोप्यधिष्ठितः ॥ ३२६ ॥ सजीवं ( वो) मृतक ( को ) जातं (तः) तां भाषयति कामिनीम् । dore महती लग्ना भद्रे ! कथय कारणम् ॥ ३२७॥ साप्यूचे परिणीतों मे मर्ताय समुपागतः । तद्विशेषवशात्स्वामिन्! विलम्बो मेध्युपस्थितः || ३२८|| संकेतितनरख्या जाद्वदते मृतपूरुषः ।
संतुष्टाङ्गिनं मे दत्त्वा याहि निजे प्रिये ॥ ३२६ ॥ स्नेहादुत्कण्ठिता कन्या याचदालिङ्गनं ददौ । दन्तैर्नासां कराभ्यां च कर्णावत्रोटयच्छि (च्छ ) वः ||३३०॥ कन्यका निजदोषस्य गोपनाथ गृहे मता । भर्तुः समीपमागत्योः स्वरेणापि पूल्कतम् ॥३३१|| कन्यकायाः पिता माता बान्धवाश्च समागताः । कार्य को न कुप्यति मानसे ||३३२ || वणिक्कुले " न जातोयं जातश्चाण्डालजे कुले" यदेषा बालिका मद्र । त्वयाजन्म " विडम्बिता ||३३३ || तावत्कोलाहलं श्रुत्वा रचकाः समुपागताः । बन्धयित्वा दृद्धं नीतः प्रातर्भूपस्य संनिधौ ||३३४||
1. B1, Band B यश्चिन्तयतं चित्ते 2 Ba adds the following atter this verse:
यतः इलोकम् - आशाभङ्गो नरेन्द्राणां गुरूणां मानखण्डनम् 1 पूयं शय्या च नारीणामशस्त्रवयमुच्यते ।।
1
Ba stops with आज्ञानङ्गो नरेन्द्राणाम् । 3. B1 133 and 13 14 B1 B and H3 तबा तत्यभु। 5 B1, B2 and BS सजीवों भूमका मालापयति कामिनी( नि ?) 6. B1 and Ba तिपुरुषव्या" । 7. B1, B and BA पौषः । 8 B1, Be and B आलिङ्गनंथ संतुष्ट | 9. B1, He and Ba कृता । 10. B [B2nd B वणिषु। 11. 32 and Ba लेजै: क्वचित् 112. B1, Be and B भद्रा जन्मावधि ।
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चतुर्थः प्रस्तावः श्रुत्या व्यतिकरं राजा ब्रूते कोपारुणेचणः । मद्भाचपुत्री रे पाप ! निर्दोषेयं विडम्निसा ॥३३॥ विस्मितः श्रेष्टिपुत्रोसौ चिन्तयामास मानसे । शकुनस्तादृशो जातः कार्य नील्याजनीदृशम् ॥३३६॥ भूपोवक् कथमानीतः पापिष्ठोयं ममाग्रतः । शूलिकायां समारोप्य आदिष्टं बन्धकान् प्रति ॥३३७॥ वधाय नीयमानेस्मिन् हाहाकारपराः प्रजाः । शकुनो द्विजरूपेण भूपस्याने न्यवेदयत् ॥३३८॥ श्रूयतां देव ! मद्वाची रोपं च हृदि मा कुरु । राजनीविकथा पूर्व भाविनी संश्रुता त्वया ॥३३६॥ —तथा हि' अविवेकी नृपः स्थानमन्यायपुरपत्तनम् । उन्मार्गी नाम मन्पस्ति सर्वलगरः" प्रधानका ॥३४०॥ राज्यं तस्यानया रीत्या सर्वदापि प्रवर्तते । कियत्यपि दिने देव ! यातं तभिशम्यताम् ॥३४१॥ चौरेण पातितं धात्रं श्रेष्ठिनः कस्यचिद्गृहे" । मितिः पपात सहसा" ज्ञानपातकरोपरि ॥३४२॥ पूत्कर्तुं स गतश्चौरो द्रुतं भूपस्य चान्तिके । अन्यायश्च.महान् जातः श्रूयतां मवचः प्रमो! ॥३४३।। गतः श्रेष्टिगृहे स्वामिन् रात्रौ क्षात्रस्य पातने । भित्तिपातात्कटी भग्ना पूत्करोमि त्वदग्रतः ॥३४४॥ तच्छ्रुत्वा भूपतिः क्रुद्धः क्षणाच्छ्रेष्ठिनमाह्वयत् ।
ईष्टम्विधानि कर्माणि करोषि त्वं पुरे मम ॥३४॥ 1, BI, Be and Bs निर्दोष सा। 2. BL BE and B कार्यमत्पन्नमोदशम् । 3. B1 B and B3 शूलिकारोपनीयोवमादिष्टं वधकान् । + Bl. Band B मानोसो। 5. BL BU and B3 °परा प्रजा । 6. BI, B and B भूपाने स्फुर्यतो [BI जिती; Ba सा वदत् । 7. BI चा। 8. El, BP and By adds, after this verse, the following :-राजाप्यूचे तपापि त्वं कषां कपय मत्पुरः । बामगोचे बक्तदा राजन् श्रूयतां में कया स्वया । 9, Bund Bo add अन्यायपुरपत्त [BIसनोपरि कथा before this verse | 10. B मलिङ्गः । 11, B अन्यायरीत्या राज्य ते प्रवर्तयन्ति सर्वदा। 12, 131, Baid B३ श्रेष्टिकस्य गृहे पोरैरारब्धं वारपातनम् । 13. BI, Band Bd मामा पतिता भिसिः। 14.1 And BO जातं मन्या ( ?)। 15. BI and B तं श्रुत्वा।
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पर
भोजचरित्रे निरागसोस्य चौरस्य कटी भग्ना स्वया कथम् । ईशी मित्तिका कश्चिन्मन्दिरे कारयत्पहो ॥३४६॥ श्रेष्ठायचे नास्ति.मे दोषो दोपश्चितिकरस्य च । द्रव्यदाने प्रशतोहं न शक्तो मितिकर्मणि' ॥३४७॥ राजोपे त्वद्वचः सत्यं प्रेषयामास सद्भटान् । वेजारकाः समानीता नत्वा भूपं पुरः स्थिताः ॥३४॥ भू(भ)कटीभीषणी राजावदनान्" मितिकारकान् । ईशी किं कृता मिचिश्चौरोपरि पपात या ॥३४६॥ तैरुक्तं नास्ति दोषो नः परं किं कुर्महे प्रभो !। यद्वधः नियत स्थिता ॥३५०।। एभिः सत्यं वचः प्रोक्तमानीता श्रेष्ठिनो" वधूः । उन्मत्ता यौवनेन त्वं यतिस्थता शिल्पिनोगतः" ॥३५॥ साप्यचे नास्ति मे दोषो गच्छन्त्या जिनमन्दिरे । नग्नो दिगम्बरो दृष्टो लज्जिताने ततः स्थिता"३५२।। श्रुत्वा भूपोवदवाक्यं श्रेष्ठिवध्वोदितं नृतम् । नग्ने दृष्टे पुनर्लज्जा कथं वीणां न जायते ॥३५३|| आकारितः स दिवासा भू(भ्र)कुटीभीषणेषणः । नम्नत्वं दर्शयस्यत्र'' कथं भ्रमसि मत्पुरे ॥३५४॥ दिग्यासा नोत्तरं दत्ते यावत्तिष्ठति मूकवत् । तावद्भपः सकोपोवक शूलारोपोस्य चोचितः ॥३५५।। दिग्वाससं पुरः( रस )कृत्वा यावद्गच्छन्ति ते भटाः । प्रेरिता द्रव्यदानेन वणिग्भिस्तावदागतैः ॥३५६।। पुनरागत्य भूपाये तलारक्षा बदन्ति हि । स्वामिन् दीर्घोस्ति दिग्वासाः शूलाल्पा क्रियते कथम् ॥३५७॥
___ 1. BI, Brand 133 निरापराधी । 2. B1, Bal 33 कोपि कारापति मन्दिर । 3. BI, B and B दोष(पर) चेजाफरस्प प। 4. BE and | मित्तिकारकः। 5. Bi, Bi and B प्रेषयन् मुभटाम्निजान् । 6. B1, BP and 13 बदते । 7. BE, Bs and B न दोषोस्मामु तैषमत। 8. B1, B- and B३ श्रेष्ठिनोस्य वधु पुषी। 9. IB1, Be And B तत्सुता । 10. BI, B and BA यौवनोन्मतिका जाता स्थिता यणिछ । 11. B, Rand B3 लामा सेनारमसंस्थिता । 19, B1, Ba and B३ दर्शयस्योगा। 13. Bl and B2 विग्वाप्समग्रतः कृत्वा । 14. B1, Ba and B' सखारा विज्ञपंति ( ज्ञापयति ) 01 15. Bund B° शूल्या ह्रस्वा करोमि किम् ।
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चतुर्थः प्रस्तावः भूपोवक् शूलिकामानो' यः कोपि पुरुषो भवेत् । समुत्पाद्य स दातव्यः प्रष्टव्योहं पुनर्नहि ||३५८|| नमस्तस्य न भूई निस्ता निजन्धिरात् । परापास्तदा भ्राता संखो मिलितः क्षणात् ॥३५६।। तं शलिकानुमानेन ज्ञात्वा भूपस्य सालकम् । लात्वा समानयामासुः शूलाम्यणे बराककम् ॥३६॥ स वृतान्तः श्रुतो राड्या रोदिति स्म गुरुस्वरम् । आगत्य भूपतेः पार्वे सा भृशं क्रन्दति स्म च ॥३६१।। प्रधानास्तु समायातास्तस्या आकर्ण्य रोदनम् । ददुः शिक्षा नरेशाय धीयते" दुःखतो मनः ॥३६२।। दण्डं दवा तलारचे नेष्यामो नृपसालकम् । दीनाराणां सहस्त्रं च दापयित्त्वा स मोचितः ॥३६॥ तादृशं सब राज्येहं पश्याम्याश्चर्यमद्भुतम् । निरागाः श्रेष्ठिपुत्रो यच्छूलायामधिरोप्यते ।।३६४|| निर्मन्तुरस्त्यमौ देव ! नाशिकाकर्णकर्तनात् । कथयामि द्विजोप्यूचे वृत्तान्तोयं निशम्यताम् ॥३६॥ भवद्वयापादितश्चौरः पतितोस्ति पुरादूगहिः । गत्वा तन्मुखं हस्तौ विलोक्यौ कौतुकेन भोः ! ॥३६६॥ द्विजवाक्याद्गतो राजा कौतुकी नालसोभवत् । दृष्टौ तस्य करे को नासिका मुखमध्यतः ॥३६७।। विस्मयेन ततो राजा ददर्श द्विजसम्मुखम् । किमेतदिति चाश्चर्य कथय त्वं ममाग्रतः ॥३६८।। नन्दिकापाश्च वृत्तान्तं श्रुत्वा भूपो द्विजोदितम् । भगिन्या लघुनन्दायाः श्रेष्ठिपुत्रो विवाहितः ॥३६६॥
1, BIB and By "माने । 2. 131, BE and BA राज। 1.31,B And B3 मिलितः सम्मुखो( खस् तदा । BIBand B"ति करुणवरम । 3. BI, B and Ba भूपमागस्य तत् । 6. BI, BAnd B3 धार्यते। 7. I31, 13 and Hd तलारे [Band Bar] भयो । 8. BI, Buel B2 °है (पि) पश्याम: कौतुकं महत् । 9. BT, Re and B च ।
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भोजचरिने शुकोवा शकुनासोपि निःसृतो मरणापदः' । विवाहितान्या भार्यास्य समागाकुशलाद्गृहे ||३७०।। चन्द्रसेनेन भूपेन यथा शुकमुखाच्छुतम् । शाजनजातावास्तिक्यं पुनः पृच्छोत्तरं ददौ ॥३७१।। शकोवादि मामग्री विवाहाय कृता त्वया। नैमिसिक समाहृय पृच्छा छुर्वागमे तथा ॥३७२।। नैमित्तिकवचः सम्यक् मिलितं नैव चान्यया । बामणेनोमि (स्थि?)तो रालो राजापुत्रो नृपो यथा ॥३७३।। ।। अत्र अजापुत्रकथा सविस्तरा का संक्षेपतः कथनीया ।। अथ पुष्फा(पा)वतीकन्याविवाहाय नरेश्वरः । प्रस्थितः सुमुहूर्तेन शनैः शोभनैस्ततः ॥३७४।। शुकराजः समीपस्थः शिक्षा दले यथा यथा । तथा तथाकरोत्सवे चन्द्रसेनो नरेश्वरः ॥३७५|| ससैन्यः सपरीवारों मित्रः सह च पण्डितैः । क्रमान्मार्ग समुलध्य ग्रामाटग्यां पुरादिकम् ।।३७६।। काश्चनपुरसीमायामासमो यावदागतः। तावरपृच्छति भूनाथः शिक्षा कीरान्तिके पुनः ॥३७७।। शुकराज ! कतिष्ठामः किं कुर्मश्च समादिश । कन्येयं परिणतव्यास्माभिः पुनरहो कथम् ।।३७८।। कन्यावाञ्छापरं भृपं शुकोवक् श्रयतां तथा । माता पिता च" कन्यायाः परमाईतभक्तिमान् ।।३७६।। तत्सुतापि महाजैनी जिनपूजार्थहेतवे । समागच्छनि चोद्याने पुष्फा(पा)वचयनामके ॥३०॥ प्रासादो महता तत्रोग्रसेनस्य सुतेन हि । कारितो रत्नसिंहेन श्रीयुगादिजिनेशितः ॥३१॥
1. B1, IBP and 83 पदानु । 2. B1, Band 3 कुशलेन गृहा है ?)गतः। 3. Bi, Hai B तदा । 4. BL, 132103 मित्रः मह पण्डितः [BA पिडतः] । 5. I31, B2 and
करोमि | 6, BLE and 13s "fe 7. B4B and 3 युगादिन्निनमन्दिरम् ।
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चतुर्थः प्रस्ताव पित्रोरस्याः कुमार्याश्च निश्चयोप्यस्ति मानसे । इदं मम सुतारलं जैनो हि परिणेभ्यति ॥३२॥ सा कन्या तत्र पूजार्थे नित्यं याति जिनालये । राजन् ! यदि विवाहेच्छा वर्तते तदिदं कुरु ॥३८३।। संस्थाप्य दूरतः सैन्यं स्वमत्र' स्नानमाचर। शुचि वस्त्रं परीधाय गृह पूजोपचारकम् ॥३४॥ मयापि गम्यते पूर्व तत्र देवकुलधुना । एतत्सर्वं त्वया भूप ! करणीयं द्रुतं वचः ।।३८५॥ शुकेन च यथा प्रोक्तं भूपालेन" तथा कृतम् । राजा स्वल्पपरीवारश्चलितः फीरसंयुतः ।।३८६।। युगादि भुवने नत्वा राजा गर्भगृहे स्थितः । शालायो पञ्जरं बवा प्रविष्टो' दधिणे भुजे ॥३८७।। जिन गरिता मौसम कार्योत्सर्गे स्थितो यावत् कुमारी तावदागता ।।३८८॥ सखीपञ्चशतीसाध नपुरारावझकनिः । वस्त्राभरणभूपाळ्या चैत्यद्वारेण संस्थिता ।।३८६।। शुकोवक स्वागतं तुभ्यं सुशीले ! सद्गुणान्विते ! चार्यतां नपुरारावो भूपो ध्यानाच्चलिष्यति ।।३६॥ नारीनपुरझाकारैर्यस्य चित्तं न पश्चलम् । स श्रीमान()मियोगीन्द्रः पुनातु सुवनत्रयम् ॥३६१ कुमारी तदघोलुब्धा" समायाता शुकान्तिक । भूपरूपं समालोक्य जाता मदनविठ्ठला ॥३६२।। भोः कीर ! कयास्माकं भूपः कोसौ क चागतः । क्व गमिष्यति किं नाम कथं स्वल्पपरिमादः ॥३६२।। कीरो मन्दस्वरणोचे संप चन्द्रावतीपतिः ।
प्रयाति जिनयात्राये" राजासो चन्द्रसेनकः ॥३६४।। 1. BL. Band इमां ! 2. IRA, BAnd [३४ "पि । 3. BI, I and B दूरतः स्वाप्यत गन्यं भवता स्नानमाचर। 4. B1 गकार 1381, B and I यद् । 6. B1, 3: and B3 भूपतस्तत् । 7. 13 म। ४. 11, Bund B प्रवेश। ". B1, Be and B नस्याष्ट । 10. B1, 13 and His oumit the whole rerse | 11. B1, B and Ba वर्ष । 12. B1, Bund Ba'पाय।
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मोजचरित्रे एवं श्रुत्वा कुमाचे हातो राजा तवैव हि । परं गुणेन केन त्वं तिर्यदुःवि(ग्दुःख) निषेवसे ॥३६॥ शुकोवक् श्रृयतां बाले ! गुणा भूपशरीरजाः । गुरुणा यदि वर्ण्यन्ते न पारः प्राप्यते तदा ।।३६६॥ शुक उवाचक्षारो वारिनिधिधने मलिनता कर्णे न धर्मे रुचिः कल्पेप्यस्त्यकुलीनता कठिनतायुक्तश्च चिन्तामणिः । चैमुख्याचरणा तु देवसुरभिर्नीचाश्रितस्ते वली सर्वे दुषणपिताः भृणु सखे ! निषणोयं नृपः ॥३६७॥ एवं निर्दपणं वात्वा तिष्ठामि वरसुन्दरि ।। अहं पृच्छामि कोरोवग् यदि नो मयि कुप्यसि ॥३६८।। साप्पचे न हि कुप्यामि कीरोचक तद्वचः शृणु ! प्रौढा प्रौढगुणोपेता कुमार्यद्यापि किं त्वकम् ।।३६६॥ तयोको निजवृत्तान्तः कुमार्यो पितृमातृजः । वरिष्यति वरो जैनो मिथ्यात्वी मां न च क्वचित् ।।४००। यद्येवं शुकराजोवा यदा राजायमुत्तमः । आकृष्टस्तव पुण्येन समायादोत्र भामिनि ! ॥४०१॥ दरीकृत्वाखिलाः सख्यः कुमाथे शुकाग्रतः। अनेन तब भूपेन मोहितं मम मानसम् ।।४०२ स्थापनीयस्त्वया कीर ! भूपोयं दिवसत्रयम् । मातृपित्रोः समाख्याय परिणेष्यामि नान्यथा ॥४०३॥ यदैनं मे" न दास्यन्ति तदा 'मन्मरणं ध्रुवम् । इति निश्चित्य महाचा स्थातव्यं भूपते ! त्वया ॥४०॥ एतदूचनमाकर्ण्य राजा गम्भीरमानसः । पूजां कृत्वा जिनेन्द्रस्य निःस्तो गर्भगेहतः ॥४०॥
1. Hircl प्यस मया [ 182 पि] | 2, B1, It and B न न [BI ननु । 3.31 32 and 3 वष नगीसमः। 133 रोकृत्य सखी: सर्गः। 5. B1, B and B3 मो। 6. BI, B" and B3 यदाप्यनं। १. 134, Bani BB मर । ४. B1, 3e und 31 पतिस्त्वया ।
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चतुर्थः प्रस्तावः
तावत्कन्या स्वलज्जातो वस्त्राभ ( व१)रणपूर्वकम् । सखीभिः सपरीवारा गता गर्भगृहान्तरे ||४०६ || राजा शुकं समादाय सहर्षः सैन्यमागतः । प्रशंसां शुकराजस्य कुरुते स्म मूहुर्मुहुः ||४०७ || राजवर्गीय लोकाग्रे कथयामास भूपतिः । शुकराजो मया प्राप्तो नूनं चिन्तामणीसमः || ४०८ || कन्या जिनार्चनं कृत्वा स्नेहाकुलितमानसा । शून्यचित्ता गृहे प्राप्ता सखीभिः परिवारिता ||४०६ ॥ विकृतां विह्वलां कन्यां ज्ञात्वा त्रैलोक्यसुन्दरी । पृच्छति स्म सखीवर्ग पुत्री ' चिन्तातुरा कथम् ॥ ४१० ॥ तद्वचान्तं सखीदिष्टं ज्ञात्वा राज्ञी न्यवेदयत्" | भूपतेरग्रतः प्रायोभिप्रायं स्वसुताकते ॥ ४११ ॥ भूपेनोक्तं ततो भव्यं जातं मन्ये हृदीप्सितम् । "करस्खलितघृत्पूरं पतितं शर्करोपरि ||४१२ || उग्रसेनस्ततो राजा सुतापा णिग्रहोत्सुकः । चन्द्रसेननृपस्थान्ते जगाम' सपरिच्छदः ||४१३ || चन्द्रावतीपतिस्तावद्दष्ट आस्थानमण्डपे । चामरैर्वीज्यमानस्तु वत्रेणालंकृतः स्थितः || ४१४ || सरसाः सगुणाः सौम्या वामदक्षिणयोर्बुधाः । अनेकमन्त्रिसामन्तालंकृतो दृष्ट उन्नतः ||४१५|| उग्रसेनः सभामध्ये संनिधौ यावदागतः । तावच्चन्द्रावतीशोषि प्रोत्थितः संमुखस्ततः ॥ ४१६ || "
स्नेहेन च समालिङ्गय नमस्कारपुरःसरम् | प्रेम्ले (म्) कस्मिन्विष्टरेपि निविष्टं भूपतिद्वयम् । ४१७॥
दछ
1. B3 °च॑ । 2, B1, B2 and BJ च। 3 B1 B and B3 कम्पयत्येव । 4. B',
1
B° and Ba °ते च । 5. P1 and P: पुत्रि । 6. B1, Band B नृपायतः । 7 RI, B and 33 कथयामासभिप्रायं सुताया यन्मनोगतम् 8 B1, Ba and B करा" । 9.13 1 2 and R& गछति । 10. Bt and Ba म्याः पण्डिता वामदक्षिणे 11 संनियो। 12 Ba omits this verse, but repeats the next verse
Bi and B: पाववापाति
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भोजरिये 'प्रकृष्टविनयेनापि सुधामधुरया गिरा । चन्द्रसेननृपस्याय उग्रसेनो व्यजिज्ञपत् ॥४१८।। धन्योहं मत्पुरं धन्यं धन्या राज्यरमा मम । धन्या वेला घटी धन्या यज्जातं तव दर्शनम् ॥४१६॥ पवित्रय पुरं नस्त्वं पवित्रय पुरीजनम् । प्रसादं कुरु मे भूप ! पवित्रय गृई मम ॥४२०॥ विनयावजितो भूपश्चन्द्रावत्या नरेश्वरः । शुकपञ्जरमादाय चचालापपरिच्छदः ।।४२१|| महतो विनयाद् भूपो नगरेपि प्रवेशितः । मर्दनोद्वर्तनस्था(स्ना नमोजनाद्यैश्च सत्कृतः ।।४२२॥ ताम्बूलास्वादनं कृत्वा वामशायी क्षणं बभूव । प्रसुप्य चोस्थित ज्ञात्वोग्रसेनः समुपागतः ।।४२३॥" विनयादग्रतो भूपोम्येत्य विज्ञपयत्यदः । सुहृदप्यागतो गेहे प्राप्यते भाम्ययोगतः ॥४२४|| तव पार्श्वे गजावादि स्वर्णादिमणिमौक्तिकम् । वर्तते त्वद्गृहे भूरि भवतः किं ददाम्यहम् ॥४२शा परमस्मद्गृहे बस्ति कन्यारत्नं मनोरमम् । पुष्फा(प्पा)वतीति नाम्ना या मम तो त्वं' विवाहय ॥४२६॥ चन्द्रसेननृपस्तावदुप्रसेनाय भाषते । स्वया दत्ता मया प्राथा" दानं किं स्यादतः परम् ।।४२७॥
1. BHBe gnd B परमे (म) 1 2. Bt and B oर्णनं तव । 3. BI, B- and Bs मित् में गहम। 4. B1 and 2 "वल्या। 5. BI, Be and t३२ मणेभूटामशायक: [B ] | C. 31,Band B प्रसृप्तादुस्थितं । 7. Ba acids the following after this veres :
मुक्त्वोगविंशतः स्वादु कमत्रानशामिनः । आयुमिकटिस्थस्य मृत्यु(वति पावति ।। वामपायी द्विभोजी च षषद्विपुरोधके ।
सकृन्मथुनसेवेव जीवेदर्षशतं नरः ॥ ४. B1, B and B3 भूत्वा विज्ञापयति भूपतिम् । 9. Band B मम आतं; B मया दतं । 10. B1, B2 und B गृहीता मे ।
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यतुर्थः प्रस्ताबः शोभने दिवसे प्राप्त विवाहं च सविस्तरम् । कारयामास भुनाथः सुतायास्तद्वरस्य च ॥४२८|| करमोचनके दत्ता गजाश्या वस्त्रभूपण | चन्द्रावतीशे कन्याया' जातः स्नेहः परम्परम् ॥५२६।। कियन्त्यहान्यपि स्थित्वा ह्यग्रसेनगृहे नृपः । जातौ प्रीतिपरौ तौ द्वावत्यन्तं भूपती तदा ॥४३०॥ मुत्क(क्त्वा)लाप्य ततः स्थानाच्चलितश्चन्द्रभूपतिः । पुष्पावत्याः पिता माता शिक्षा दसः शुभावहाम् ।।४३१॥ भक्ता श्वशुरश्चश्रृणां सयरनीनिन्दनं त्यज ।
पतिप्रेमपरा वत्से ! त्वं निष्ठ' सहचारिणी ॥४३२।। यथा--जंपिज्जइपियं विणयं करिज्ज वज्जिज्ज पुत्रि ! परनिंदं ।
विसणे विहु मा मुंचसु देहच्छाय व्य नियनाहं ॥४३३॥ मिलित्वा पुत्रिजामात्रोदखा शिक्षामपि प्रियाम् । सपरिच्छदोग्रसेनो व्याघुट्य सदनं ययौ ॥४३४॥ चन्द्रसेनस्ततो राजा पुष्पावत्यान्वितः स्त्रिया । शुकेन सह ते मार्ग गोठ्या स स्मातिवाहति ॥४३|| अविलम्बप्रयाणेन प्राप्ता चन्द्रावती पुरी । मन्त्रिभिनिर्मितोत्साहः प्रविष्टो नृपतिः पुरे ॥४३६।। अन्तःपुरे गतो राजा सर्वोप्यन्तःपुरीजनः । पट्टराझी विनागत्यानमन्नृपपदद्वयम् ॥४३७।। सर्वासां च सपत्नीनां पुष्पावत्य मिलत्प्रिया। ताभिर्युता बस्तत्र गता यत्र शशिप्रभा ॥४३८|| धनेन' विनयेनाथ पुष्पावत्या शशिप्रमा। समुत्थाप्य" समानीता प्रतिमा भूपपादयोः ।।४३६।।
IR, Balgn कम्यानन्द्रवाशाग्यां। 2. IBT, IR and B 'चन्नसेनकः। 1. 31, 13 and ! छायेव । 4. B लक्तं च iasleind of यथा। . BI,BP and B. पस्य भूपपादयुगं नमन् । . 13: 'बाग। 7.131 12 131_B पर (म) । B. Bi, Hand B"नापि । H. IBSBianct 138
रर
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भोजसरित्र शुकोवा पराश्यग्रे फलं प्राप्तं कदाग्रहान् । यथा कृतं तथा प्राप्तं न दोषो भूपतेरियम् ॥४४०|| उपहास्यं विधायेत्थं शुकोभून्मुदितान्तरः । राजापि नूतनस्नेहा क्रीडतेन्तःपुरे स्त्रिया' ।।४४१।। चन्द्रसेनस्य कन्यास्ति नाम्ना मदनमञ्जरी। परमं यौवनं प्राप्ता वस्योग्या महागुणा ॥४४२॥ एकदा कन्यका दृष्ट्वा शुकं नियंञ्जनस्थितम् । पप्रच्छ हृद्गतां चिन्तां न शृणोति यथा परः ॥४४३|| शुकराज ! त्वया प्रायो भूमीमण्डलमध्यतः । राजानो वहवो दृष्टाः सद्गुणाश्च कृपापराः ।।४४४|| परं पृच्छामि ते पाश्र्वाच्छिष्या देया प्रियङ्करी । अहं प्रौढ वयः प्राप्ता कं भूपं बरयाम्यहाँ ॥४४५।। शुकोवग यद्यहं पृष्टस्तदा त्वं मद्वचः कुरु । गुणानामेकमावासं वर त्वं भोजभूपतिम् ॥४४६।। वर्णने भोजभूपस्य देवाचार्योपि न समः । तव योग्यो वरः सोस्ति रोचते वाथ तत्कुरु ॥४४७॥ युग्मम् कन्योचे कीर ! सत्योक्तिः परमस्त्यत्र कारणम् । श्रूयते बहुभायोंसो मां स्मरिष्यति वा न वा ॥४४८|| कीरोवग्भोजभूपस्य कियत्यः सन्ति बलमाः । चतुःषष्टिसहस्रस्त्रीमा चक्री निशम्यते ॥४४६।। गुणैः प्रधानताप्यस्ति रूपेण न हि किंचन | मोजस्य पट्टमहिषी सूत्रधारसुना यथा ॥४५०|| कुमायुंचे कथं काम्ति" मूत्रधारस्य कन्यका । कथं विवाहिता राज्ञा सा कथा कम्यतां शुक ! ||४५१॥ कीरः प्राह शृणु त्वं भो ! थारायां भोजभूपतिः ।
मुखेन राज्यं कुरुतेमरावत्यां यथा हरिः ।।४५२॥ 1.2 Be and 3 पुरस्थितः । .. I3 [111 परम योषने । ३. 131, I32 and B3 ते शिक्षा दातम्या (व्यां) हितकारिणीम् । 1. 15I, Pund । 5. , Band Bहम । 6. BI, R: and B3 कामो। 7, BI R- 'धारक । ४. HI, B and Rs भूपे ।
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चतुर्थः प्रस्तावः अन्यदास्थानसंस्थस्य भूपस्या समागतौ । चटिका चटकश्चैकः कलहन्तौ परस्परम्' ||४५३|| मनुष्यभाषया ने चटको भूपतेः पुरः। स्वामिन्नेषास्ति भार्या मे अपत्ये च तवाग्रतः ॥ ४५४ ।। मया कलहतेप्येषा बराकी प्रतिवासरम् । स्फे (स्फो)टपाम्मद्विरोधं त्वं' कुरु स्वामिन् ! पृथक् पृथक् ॥४५॥ गृहलक्ष्मीरपत्ये च न्यायमार्ग यदा मम । समायाति तदा देयं न वेदस्याः प्रदीयताम् ॥४५६॥ भूपोवग न्याय एवायमपत्यानि पितुः किल । चटिकोचे कथं गजनीदृशं भापितं वचः ॥४५७|| ये च मात्रा धृता गर्म सोढा यत्प्रसवव्यथा । यया च पालिता बालाः सा भूपेनान्यथा कृता ॥४५॥ राजोघे क्षेत्रदृष्टान्तं चेत्रे वपति कर्प(प)कः । निष्पन्ने सोपि गृह्णाति न हि क्षेत्रस्य किंचन ॥४५॥ चटिकोचे यदाप्येवं प्रमाणं भूपतेर्वचः । टंक्युत्कीर्णाक्षरैः शालायां न्यायोयं विलिख्यताम् ॥४६०॥ चटिकोक्तं कृतं राजा भूपोक्तं च तया कृतम् । गता सापत्यदुःखेन तीर्थे कुत्रापि कामिक ॥४६|| धारायां भोजभूपाने जातिस्मृतियुता मुता। भवेयमुत्तमे वंशे झपां संचिन्त्य सा ददौ ।।४६२।। धारायां सूत्रधारम्य सोमदत्तस्य मन्दिरे । पश्चोचग्रहसंभूना सुता मत्यवतीत्यभूत् ।४६३।। लाल्यमाना प्रयत्नेन वधे सा दिने दिने । जानिस्मृतिगुणोपेता जाता द्वादशवार्षिकी ।।४६४॥
BI II and B समागनौ। . HP and 13 ते। .BI. Band E षा कलतेस्मागु । 4. 131, Bani B विरोध फैिटयास्मासु। 5. B1_tummits this verse And the first all of the hiltoning | | B
ध्य तं । 7. Band । भूपे । 8. HTTPard [33 वनानि मा !
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भोजचार गृहे यत्कथ्यते कार्य नवचस्तु न' लुप्यते । पितुरिष्टा मुखे मिष्टा दुष्टा दृष्टजनेपि सा ॥४६५।। सत्यवत्यादि चैकस्मिन कथिनं पितुरग्रतः । गृह्यतां पहुमूल्येन सुजात्योश्वोनिसुन्दरः ॥४६६॥ सुतावचनमात्रेण गृहीतो घोटकोद्भुतः । विख्यातो नगरीमध्ये सद्गुणात् "तस्पराक्रमात् ॥४६७॥ विद्यन्ते यस्य कस्यापि घोटिकाः मदनस्थिताः । ताः सगर्भा पभूखुश्च भूत्रधारस्प घोटकात् ॥४६॥ पूणे गर्भ प्रसूतास्ते जात्याश्वाः सुमनोहराः । शिवातः सूत्रभृत्युच्या निजाश्वान पृच्छति स्म शम् ॥४६६।। तेप्यूचुस्त्वत्प्रसादेन किशोराः सन्ति नीरुजः । श्रावयन्यपि लोकेभ्यः कतिचिद्वासरा गताः' ।।४७०॥ एकदा तेन धूर्तेन सूत्रधारेण तैः समम् । समारब्धो झगटक: समय॑न्तां मदश्यकाः ।।४७१॥ अश्वाधिपा चदन्त्येवं किं वयं नाथवर्जिताः । किंवा भूपस्त्यमेवास्यस्माभियंत्कलहायसे || ४७२ ।। सूत्रधारस्ततः प्रोचे स्थिरीभाब्य किमाकुलाः । पश्यतस्त्वद्विभोर गृ(अ)हीष्यामि तुरङ्गमान् ॥ ४७३ ॥ कलहो दारुणो जातो लोकेषु न निवर्तते । गतास्ते भूपतेरग्रे पूत्कर्तुं घोटकाधिपाः ॥ ४७४ ॥ भूपेनाकर्ण्य वृत्तान्तः(न्त) समाहृतः स मूत्रवित् । सत्यवती'सुतायुक्तः समायातो नृपान्तिके ॥ ४७५ ॥ परम्परं समालाप्य ज्ञातवृत्तः स भूपतिः । सूत्रधारं पृच्छति स्म' विवादायं क शिक्षितः ॥ १७६ ॥
1. BI, B3 and 8 नवः कन। . 133 | I दिन । B.P1 and poणास्त ;' ।।। णात्स | 4, 13,BAI I3 रान गवान् ! . [: काग च समाग्नं । 6. ITI, B: audB पक्षमता तब भुपेन । 7. I, B al 1: न्या। ५. 31, 13 ind [ छते सूत्रधारस्य ।
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चतुर्थः प्रस्तावः सूत्रधारसुता प्रोपे शिक्षितोय तवन्ति । सकोपः प्राह भूपालो मत्पाच्छिक्षितः कथम् ॥४७७|| साप्याहास्थानशालायां' टंक्युत्कीर्णाक्षरावली । वाच्यतां यच्चटिकाया न्यायमार्गः कृतस्त्वपा ॥४७८|| गजदन्तावलिन्यायादग्रतः स्यान्महद्वचः । प्रदापयतु चास्माकं किशारान् मत्तुरंगजान् ॥४७६।। सामन्ता मन्त्रिमिः सार्थ ज्ञात्वाभिप्रायमीशितुः । स्वं स्वं किशोरकं तस्मै ददुः मूत्रभृते क्षणात् ॥४८॥ विस्मिता च सभा सर्वा गृहीताश्च किशोरकाः । सूत्रधारः समायातः सत्यवत्यान्वितो' गृहे ॥४८॥ दुष्टचित्तेन भूपेनाहूतः सूत्रभृदप्यथो । सत्कृत्य बहुधा पूर्व' कथयामास तं प्रति ॥४८२।। कुरु दुर्गपुरोमध्याः कथयामि यथाविधि । कपिशीपिरिष्टात्तु कुरु दुर्ग' "ममाज्ञया ॥४८३।। नो चेत्सव विरुद्ध स्याज्ज्ञात्वा कुरु यथोचितम् । विलक्षः सूत्रधारस्तु श्रुत्वैवं च गतो गृहे ॥४८४|| सचिन्तं पितरं ज्ञात्वा' सत्यवत्यपि पच्छति । यथोक्तं भूपतेर्वाक्यं कथितं तत्सुताग्रतः ।।४८५॥ किमेतद्वचनं तात ! स्थीयतां कुरु भोजनम् । हृष्टस्तेनैव वाक्येन कृताचारः स भुक्तवान् ॥४८६॥ सुतोशिक्षामुपादाय गतो भूपस्य संनिधौ । शिल्पी व्यजिज्ञपद्धृपं श्रूयतां महवः प्रभो ॥४८७।। कियदन्नं भोजनाय" यदि दापति क्षितीद' । तदा निश्चिन्ततामेत्या(त्य)' पुर्या दुर्ग करीम्यहम् ||४||
I. BI, Baad 19 गाप्यूचे स्थान । 2. 131, If anuty गृहीत्वा च किशोरकान् । 3. B1, Banrl Poया वती। 1.8 गृहम् । 5, 51, 13 | B f दुगं नमशानं । B.TER सम्म । 7. 111, 13" HTINE चिन्तान पितुन्धि।। II, HA1 हषितस्तंन ।
. , I II चारा । 140 II, IBif; भोजनाय विहान। 11, II, B- and 33 °नप। 12. 11',
I d 138 निश्चिन्नको भूत्वा ।
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મ
भोजवरित्रे
high भूवादिष्टं देयमन्नं मदाज्ञया । पित्राज्ञया कोष्ठकेपि सत्यवत्यागता पुनः || ४८६ ॥ माकरं समादाय यावन्मापति कोष्ठिकः । आदिष्टं कन्यया तावन्मा पितुं त्वं न जानसे ||४६० ॥ कोष्ठिकोवग्यथा पूर्वकर्माप्यते मया । माप्यते तु तथा रीत्या त्वमन्यद्वेत्सि तद्वद् ||४६१॥ कन्योये कुरु मद्वाक्यं मापे पूर्व शिखां कुरु । पश्चात्पूरय मापं त्वं देह्यन्नं विधिनामुना ||४६२ ॥
किमज्ञानासि बाले त्वं कोष्ठकेनापि भाषितम् । जातः परस्परं वादो गतं भूपस्य संनिधौ ॥ ४६३ ॥
उभयोरपि वृत्तान्तं श्रुत्वा भूपेन भाषितम् ।
कथं बाल ! शिखा पूर्व श्रियदास्ति कौतुकम् ||४६४||
कपिशपरि दुर्ग कुर्वे तत् किं न कौतुकम् । वक्रोक्तिवचने राजा दृष्टदुष्टात्मकोजन || ४६५ ||
श्री पिडा (दु १)ष्टकन्यायाद् (१) भूपोप्येवं जगाद सः । पूर्वं मया विचायं ततो बुद्धः परीक्षणम् ||४६६ ॥
एवं विमृश्य भूपालः " सूत्रधारगृहे गतः ।
after सा शुमेह' सत्यवती विवाहिता ॥ ४६७॥ करमोचनके तेन दत्तास्तेस्वा: (श्वाः) सभूषणाः" | गृहीत्वा तद्ग्रहात्सर्वं पुनरेवं जजल्प रा ||४६८ ||
भूयतां मद्वचो वाले ! यदामि तवाग्रतः । माता पिता तव भ्राता शृणोत्वन्यः परिच्छदः * ॥४६६॥
मत्सुश्री मद्गृहादश्वो ममात्रं महिभूषणम् । यदा संपद्यते तुभ्यमागन्तव्यं तदा गृहे || ५००॥
1 BJ 132 and B दीयतं । 2. पिताशया । 8. 131 and 138 पूर्ण भाप
1
oversight | 5 134, Bannd
1
10. B4
Band | सत्यसन्धानता तत्रागारे 4 B2 onits this hall probably by 6 Band B भूनाथः। 7 BI शुभे l] 133 प्रति 1
1
8 बुद्धि 8. H1, url 133 दत्तावान वस्त्रभूषणान् । ॥ Be and B चान्यः परिजनस्तव ।
1
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1
!
!
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1
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चतुर्थः प्रस्तावः एतद्वचनमाख्याय भूपोप्यागा'भिजे गृहे । मातापित्रादिकान दृष्ट्वा कन्या दीनान्बदत्यपि ॥५०१|| 'चिन्ता का भवडिभी र नबुद्धिकौशलम् । कियद्भिर्वासरते मया पूर्या मनोरथाः ।।५०२|| इति शान्तबचः प्रोच्य स्थापितः स्वपरिच्छदः । कियत्स्वहस्सु भूपोपि ससैन्यो निर्गतः पुरात् ॥५०३॥ सीमालाः सन्ति भूपाला ये केपि च महाबलाः । भोजभूपप्रतापेन जाताः सर्वे निरर्थकाः ॥५०४॥ ज्ञात्वा भूपस्य वृत्तान्तं सत्यवत्या "विचिन्तितम् । सूत्रधाराय विज्ञाप्य सामग्री प्रगुणीकृता ॥५०॥ नरवेषं च जग्राह कियत्सख्यन्विता तदा । वैदेशिकाः स्वर्णकाराः सज्जिताः माहेतवे ॥५०६॥ सुवेपाः सद्गुणाः श्रेष्ठाः सेवकाम्तेपि सत्कृताः । सालङ्कराः सुशोभाळ्यास्तुरगस्तुरगी य(त ?)या' ||५०७|| एवं समग्रसामग्रीयुता पुंवेषधारिणी । सत्यवती दिनः कैश्चित् प्राप्ता सैन्येस्य तत्क्षणात् ॥५०८|| स्थिता प्रदेशेष्येका भूपस्य मिलने गता । तत्रापि लब्धसत्कारोपविष्टास्थानमण्डपे ॥५०६।। प्रधानैः सेवकः पृष्टः कोसौ हि प्रवराकृनिः । वैदेशी सेवनायातो नाम्नासौ सत्यसंगरः ॥५१०॥ कुमारेण समं प्रीतिः मंजाता तस्य भृपतेः । निर्वाहाय ददौ द्रव्यं न ललौ सत्यसंगरः ।।५११॥ पुरग्राम मे कार्य न हि द्रव्यैः प्रयोजनम् । द्यूतक्रीडार्थमायातो मोजभृप ! नबान्तिके ।।१२।।
1. B1. 13" and [३९ भूगम्चागा।. , 132 anl 3 *: स्माभिः( रेष) पुरयामि मनीरपान । : 31 und 32 पापि । + plaind P नतः। 5. BL, Bu India 'यया यता।6.31 and B थानवे बरे। 7.3ommits thie verse |
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भोजचरित्रे कुमारी भृभुजा' साध क्रीडति स्म दिवानिशम् । तत्रोत्पन्ने रसे कापि स्वभाज्यमपि विस्मृतम् ।।५१३॥ लुब्धं ज्ञात्वा नृपं तत्र' कुमारस्तु प्रजापति । तवाश्वेपि हि ढाल्यन्ते पाशका भूपते ! मया ५१४॥ नथास्तु भभुजाप्युक्तः कुमारेण जितस्ततः । प्रेषयामास "भपाश्वान् स्वस्थाने पुनरप्यवक् ॥५१५॥ शरीराभरणं सर्व स्थाप्यतां देव ! सांप्रतम् । तथा कृते च भूपेन कुमारेणापि तजितम्" ।।५१६|| स्थाने स्वे तत् प्रपयित्वा" कुमारोवक् पुनस्ततः । छत्रचामरकादीनि स्थाप्यन्तामधुना' तब ॥५१७|| राज्ञा नान्यपि मुक्तानि कुमारेण जितानि च । स्वस्थाने प्रषितान्येवं शयनाय समुत्थिनः ॥५१८॥ भृपावाद्गविणी जाता कुमारस्य सुरक्षिका तेन तादृशभूषादि स्वर्णकारैम्तु कारितम् १५१६॥ वस्तु नादृशमेवाभूछत्रचामरकाद्यपि । एवं कृत्वा निजं कार्य कुमारेणापि चिन्तितम् ॥५२०॥ सर्व भूपस्य यद्वस्तु दीयते तहिं सुन्दरम् । दवाह कौतुकेनेदं गृहीतं क्रीडता मया ॥५२१॥ एवं दृष्ट्वा सभा सर्वा हृदये च" चमत्कृता । सत्यसंगरको नाम सार्थकं कृतवानिजम्" ।।५२२॥ एवं च प्रत्यहं क्रीडन्नेकदा सत्यसंगरः । कथयामास भूपस्य "क्रीडयतेद्य "स्वभार्यया ।।५२३॥
1.31. Hund नपतेः। 2.1, 182 111 IN ले च । 3. B1, 1} and उत्पद्यते रसः कोपि माजपि हि विस्मति:[13 मम् || ... 33 ind B जातं यदा भूपं । 5.82 नं । 511, 2112 113 वयाने अंपयत्य। 7.121, 13:1udBI पुनर्वदति भूपनिम्। 8. B. Parl 10 मरोरादपणाः गर्व स्याप्यन्ते 1. 111 111132 ते जिताः । 10. 131, Rand B प्रेपयिन्वा निज म्यान । 11. 181, 18 Rd 1 स्थापलयाना । 12. B. Beault तुङ्गमा। 13. B1,Bin B3 तादृशा भूषणाः सर्वे स्वर्ण कारैः सुकारिताः । 11. BI, Bund: गृदोन कौनुकने कोदि परीक्षण। 15. Bi, B. And Bन । 16. BL BE LB नमो। 17. क्रीई। 18. 111, 13 ul IRS स्वम्ब।
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चतुर्थ प्रस्ताव स्वभार्या दीयते तुभ्यं मयका यदि हार्यते । यदि त्वया हार्यते स्त्री देया मम दिनाष्टकम् ।।५२४।। का चिद्दासी प्रदास्यामि चिन्तितं हृदि भभुजा'। क्रीडति स्म समं तेन विमुश्यैवं नरेश्वरः ॥५२।।। जितः स भूभुना सद्यो जातः कोलाहलः क्षणात् । कृत्रिमं च विलक्षवं प्राप्तोसौ सत्यसंगरः ॥५२६।। ऋतुकाले कियत्स्वेषा दिवसेषु गता स्वयम् । भूपपार्वे सशृङ्गारा स्त्रीवेषा दिव्यगन्धभृत्' ।।५२७|| करागरुकस्तूरीधूपधूम्रण वासिता । सताम्बूला समायाता दिव्यरूपं दघत्यसो ॥२८॥ तथा चातुर्यतस्तिष्ठेद्यथा भूपो न लक्षते" । प्रहरत्रितयं तस्थौ मपतेरन्तिके तु सा ॥५२६।। अपकीर्ति निजा श्रुत्वापवादाद्रीतमानसः । भूपतिः प्रेषयामास पश्चात्तां सदने निजे" ॥५३०॥ तयास्ति' प्रत्ययार्थ च गृहीता भूपमुद्रिका । समायाता निजे स्थाने चतुर्थप्रहरे निशः ॥५३१॥ कार्यसिद्धिः कृता सम्यग् भूपस्योक्तानुसारतः। धारायामेत्य" वृत्तान्तः कथितो मातुरप्रतः ॥५३२।। मुदिताः स्वजनाः स पितृभ्रातमुखास्तदा" । सुखितागमयत्कालं कियन्त्यपि दिनानि सा ॥५३३|| मोजभूपः समायातो जित्वा सीमालभूपतीन् । राज्यं सम्यक् पालयति" कोपि नोपप्लवाप्तिकत् ॥५३४||
1. Blind R' भूपेन चिन्तित चित्ते दास्यामः कां च दालिकाम् । ५. B. Band B एवं विश्य भूनाम: कोडप(ड)ते तत्सम तदा । 3. BE, IB and B3 जिलो भूपतिना। 4. BI, IRe and B I 5. 131, Band B36. BI, BP and B अन्तरेण ऋतुस्नानान कियत्यपि दिनगता । 7. BT, B and U3 सुगन्धद्रव्यलेपित।। 8.131,BP and B. भूस्वा स्त्रीरूपधारिणी । 9. Bl, B- and a तथा तिष्ठति चातुयें यया भूपो न लपति । 10. Bl BP and B स्थिता व दिवस [ Band 13 प्रहर ] श्रोणि लोकोक्ति पत्तिश्रुता। 11. BI, B and B आत्मनो लधुर्ता ज्ञात्वा प्रेषिता मा निजे गृहे। 12. 13I and 13विक्षपा। 13, Bl and B2 वा। 1. BI and B% काम ; 133 कार्यसिद्धिः कृता सम्पक यथा भूपेन भाषिता । 15. Bl and B. यथा भूपेन भाषितम् [B ता] | 16. B1, 13% and Us धारामागत्य 1 17. BI, BB und B पितपरिजनादयः । 18, B1, 13 and B3 3 | 14. BIB and B पालयते सम्यक् ।
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भोजचरिने सत्यवत्याः म सद्गर्भो ववृधे निरुपद्रवः' । तया च पूर्णेदिवसः सूनुः सूतः शुमे दिने ॥५३५|| उच्चस्थाने ग्रहाः पञ्च परमोच्चाश्च केचन । लग्नपः केन्द्रगोश्वस्थोरिष्टहान्य च ते ग्रहाः ॥५३६॥ सूत्रधारः प्रमोदेन करोति स्म महोत्सवम् । चक्रुर्जातककर्मापि गोत्रवृद्धाः स्त्रियोपि ताः ॥५३७|| नखशुद्धिस्तु संजातादशमे दिवसे कृता । भोजितो बन्धुवर्गोंपि नामस्थापनकं व्यधात् ॥५३८॥ देवराजोमिधानेन लाल्यमानो दिने दिने । क्रमेण पञ्चवर्षीयो जातो रूपगुणाधिकः ॥५३६॥ तावद्गृहकिशोरास्ते संजाग इन तुरङ्गमाः । शोभने दिवले सत्यवत्येवमकरोत्पुनः ॥५४०॥ स्नापितः पाणिना बालो विलु(लि)प्तः कुङ्कुमद्रवैः । अलकृतः सुवस्त्रेण दिव्यभूषणभूषितः ।।५४१॥ छत्रेण चामराभ्यां च कुण्डलाम्यामलङ्कृतः । भोजराज्ञोवतंसेन देवराजो विनिर्मितः॥५४२|| सुतो(त) हये समारोप्य स्वयं स्थित्वा सुखासने । वादित्रे वाद्यमानेम्बा गता तत्र चम्युता ॥५४३॥ आस्थानस्थोपि भूनाथश्चिन्तयामास मानसे | "चित्र जनसमूहोयं किमायातीति पश्यति ॥५४४॥ तावत्सूत्रभृतागत्य विज्ञप्तो भोजभूपतिः । मत्सुतैषा समायाति यथादिष्टा त्वया पुरा ॥५४५|| भूपेनोक्तं च यद्येवं तदा प्रत्याययस्व माम् । एवं श्रुत्वा ददौ राज्ञ तां "नामाङ्कितमुद्रिकाम् ॥५४६॥
1. B द्रवम् । ५. B2 and B3 परिपूर्ण दिनस्तत्र । 3. Bl onils this while verse | 4. 131, B2 And B महदुत्स। 5. BI, 13 and B "ता । ।,Bl and 133 °जामि । 7.Bt, ge and Bसत्यवत्यकरीत्व दिदा । 8. Band B. वादियद्यमाना मा पियसन्यसमन्विता । 9. BI, B and B एतजन। 10. BI, 13 and B५ कोतुकम् ! 11. 181, B- and BI सुत्रवित्ताबदा। 12. B1, B and B "तिम् । 13. B1, B2 and B तस्मै तन्ना ।
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चतुर्थः प्रस्तावः स्वकीयां मुद्रिको दृष्ट्वा हृष्टो हृदि महीपतिः'। स्वोत्सने सुतमारोप्य जातो रोमाञ्चकचुकी ॥५४७|| विसर्जिना समा सर्वा नीता चान्तःपुरे प्रिया ।। मिमिले च तथा सार्क विस्मयाकुलमानसः ॥५४८|| बुद्धिप्रपञ्चचतुरां ज्ञात्वा तां स नरेश्वरः । सकलान्तःपुरीमध्ये पथराज्ञी चकार च ||४|| शुकोवक् शृणु कौमारि । गुणः किं किं न लभ्यते । एतदाख्यानकं श्रुत्वा प्रोचे मदनमञ्जरी ॥५५०॥ त्वचो हि मया कोर ! कसव्यं नात्र संशयः । नरोन्यौ वरणोगो में सहोदरसमोर द्वि' ।।५५१!! इति निश्चित्य कौमारी जाता भोजेनुरागिणी । झात्यानुरागं तन्माता वदति स्म नृपामतः ॥५५२।। सुतामनोरथं ज्ञात्वा चन्द्रसेनमहीपतिः । अमात्यं प्रेषयामास धारायां भोजसंनिधौ ।।५५३॥ दिनः स्तोकरमात्योपि प्राप्तो घारापुरीं ततः । प्रासादमन्दिरश्रेणीं गतोपश्यच्चतुष्पथें ॥५५४।। कोटीश्वराश्च ये सन्ति दुर्गमध्ये वसन्ति ते । लक्षेश्वरा बहिःस्थाश्च वसन्ति तितिपाज्ञया ॥५५५।। तेषां गृहापणान्पश्यन् संप्राप्तो भूपमन्दिरे । आश्चर्य विविधं तत्र किं किं पश्यति युग्महक् ॥५५६|| शुभ्रान्मनोरमांस्तुङ्गान् स्वर्णकुम्भैरलङ कृतान् । ऊर्ध्वग् व्यथितग्रीव आवासान् पश्यति स्म सः ॥५५७।। गजशालागजान मनानपश्य"पर्वतोपमान ।
हव्य(य)शालाहयान् सूर्यरथाश्वाभानपश्यतु ।।५५८। 1.Band Bहष्टचित्तस्तु भूपतिः। 2. B1, Band Bs गसोर(तश्चान्तःपुरे नृपः । 3. B1, B2 and 133 विस्मयाकुलाचन मिलिजस्तस्त्रि[B] and B पि]या सह। 4. BI जायते; 32 and 33 वायलें। 5. B व्योमं न; B and 'यो हिन। 6. BI, Be and B3 न्यधरणेस्माः। 7. 13, Bal B's "ममं विदुः । , RI, Bani B चन्द्रसेनेन भूपेन सुसाभिप्रायजानतः (ता)। 9. 131, Band B मन्दिारनाम्यान् गतः पश्यंश्चतु। 10, B,
and B3 ये कंचिद्रमन्ते दुगंमध्यागाः। 11. 31, 2 Id B3 माश्चर्य[B]कौतुकं । 12, 1, Tamd पश्यन्नुतगाम 1 13. 11, Ey and B• पश्यन मन्ये सूर्यरथीपमान ।
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भोजचरित्रे
एवं पश्यन् गतस्तत्र यत्रास्ति द्वारपालकः । ज्ञातोदन्तनृपाज्ञातः संप्राप्तो भूपसंनिधौ ||५५६ || भोजभूपस्य चास्थानं मनुष्यैर्वर्ण्यते कथए । शतानि पञ्च विदुषां तिष्ठन्ति वामदच (चि ) ||४६० || चामरेवज्यमानस्य शीर्षे छत्रं विराजते । सीमाला ये च राजान उपविष्टाः समान्तरे ॥ ५६१ ॥ भोजराजोपि तन्मध्ये शोभते वासवोपमः । नमस्कृत्योपविष्टः स शिवं पृच्छति भूपतिः || ५६२ || शिवं चन्द्रावतीशस्य शिवं दारसुतेषु च । शिवं तद्गजवाहानां तद्राज्ये वर्तते शिवम् ||५६३ || सोप्याह त्वत्प्रसादेन सर्वथा निरुपद्रवम् । परं कार्यवशेनाहं प्रेषितोस्मि तवान्तिके || ५६४॥
चन्द्रसेनगृहे पुत्री नाम्ना मदनमञ्जरी । भोजभृपस्य सा दत्ता' लग्ने लेख एष ते || ५६५ ।।
तं लेखं कर आदाय गुरुवचयति द्रुतम् ।
L
शृणोति स्म सरोमा भूषां हृष्टो मनोन्तरे ॥ ५६६ ॥ स्वस्ति श्रीशुक्लदशम्यां वैशाखे गुरुवासरे । आगन्तव्यं विवाहार्थं त्वया भोज १ स्वसेनया ।। ५६७ ||
तत्पत्रं वाचयित्वा च प्रमोदेनातिमेदुरः ।" संतोष्य भूभुजामात्यो दानमानैर्विसर्जितः || ५६८ ॥ स्वयं चादाय सामग्रीं' विशेषात्सैन्यसतिः । सोत्सवश्चालितो भोजः सामान्यैः शकुनैरपि ।। ५६६ ॥ कियद्भिस्तु दिनैः प्रासभन्द्रावत्याः पुरोहिः । स्नेहात्संमुखभायातश्चन्द्रसेनः स भूपतिः || ५७० ||
8. B1 and
B 2
1. B1, Bs and B3 मंषि । 2. B1, 132 and 139 पुत्रदारादिभिः शिवम् | 4. 31 and B2 दत्ता सा । 5 B1 11 and B3 भूरः सहर्ष रोमांचं प्लुतिस्तु शृणोदियम् । 6. B1 135 and 123 प्रमोदामोदमेदुरः | 7134 EE and Ba च कृतसामय्या 1 6. 131, Band B
त्यां
दहिः |
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१०
3.5
चतुर्थः प्रस्तावः राजानो मिलितास्तत्र जाता प्रीतिः परस्परम् । काप्यावासे समानीय स्थापितः सपरिच्छदः ॥५७१।। शुकं नियंजनं ज्ञात्वा कुमार्यागत्य पृच्छति । त्वदादेशरतो' भोजः शिक्षा देहि ममाधना ॥५७२॥ कोरावग्यदि शिक्षा में करोषि गुणशालिनि !। तदा सर्वसुखप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः ।।५७३।। दत्त्या शिक्षा कुमार्यास्तु प्रेषिता सा निजे गृहे। शुकस्य पञ्जरं तेन नीतं विवाहमण्डपे ॥५७४।। लग्नस्यावसरे प्राप्ते हयेनारुह्य भूपतिः । दानेन श्रीणयन् दीनान् राजद्वारे समागतः ॥५७५।। कृता विवाहजाचारा नीतश्चतुरिकान्तरे। 2.0 मोजेन सह कौमारी जगृहे' फेरकत्रयम् ॥५७६|| चतुर्थे फेरके प्राप्ते कुमार्यप्यूर्ध्वतः स्थिता। पृष्टा च सा कथं भद्रे ! त्वं नो दास्यसि फेरकम् ।।५७७|| पितृभ्यां कारणं पृष्टं कथयत्येव कन्यका | भोजोयं न भवेद्र पो 'ह्यधुनच श्रुतं मया ॥५७८|| पित्रोक्तं किं जनोक्न प्रत्यक्षोयं स भूपतिः । कन्यकोचे च यद्येवं भोजबद्दर्शयेत्कलाम् ॥५७६।। परकायाप्रवेशस्य कलां मे दर्शयिष्यति । तदेनं परिणेष्यामि किमन्यैहुभाषितः ॥५८०|| सुनाया निश्चयं ज्ञात्वा भूपो भोज व्यजिज्ञपत् | स्त्रियाः कदाग्रहः सोयं भजनीयो यथातथा ॥५८१॥ चन्द्रसेनवचः श्रुत्वा मोजभपो व्यजिज्ञपत् । एकं मृतं छगलकं समानय ममान्तिके ॥५८२।। इमां तस्य गिरं श्रुत्वा शुकः "सजीवभूव सः। निजदेहं संग्रहीष्यामीति चिन्तापरः स च ।।५८३||
.
LEGP
RIVISURY
___ 1. B1, B2 and 139 "देशे तो। 2. 131, Band B दापय मेघुना । 3. III, Brand B वी । 4. B1, B2 and B संजाता। 5. BI, Beauti B चविसरे । 6. Band B3 कुमा(य)प्यतः । 7. B1, Band B मोजो न हीत्येषोप्य । 8. BI, B- anup: भोजे । 9. BI, Band Ba सज्जो।
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भोजचरित्रे भोजभूपगिरा लागः समानीतस्तदन्तिके । मन्त्राजीवितछागस्य विवेशाङ्गेस' तत्क्षणात् ॥५८४॥ छगलं जीवितं दृष्ट्वा जना यावच्चमत्कृताः । तावच्छुको निजे देहे प्रविष्टो मन्त्रसाधनात् ॥५८५॥ वाचालिता जनाः सर्वे सामन्ता मन्त्रिसेवकाः । "पुरोहितादिप्रमुखा हृष्टास्ते भूपदर्शनात् ॥५८६।। चन्द्रसेनस्य भूपस्य सुता जाता प्रमोदभाक् । ततो भोजनरेन्द्रस्य' जातं वीवाइमङ्गलम् ॥५८७|| मुता सा पाजिभिदत्ता गजवाजिरथादिभिः ।
चन्द्रसेनः सभूनाथो दत्ते स्मांशुकभूपणे ।।५८८|| • शुकं मृतं समालोक्य” दुःखितश्चन्द्रसेनराट् । ज्ञात्वा भोजनरेन्द्रेण स्ववृत्तं न प्रकाशितम् ॥५८६॥ यथा - अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च । कञ्चनं चापमानं च मतिमान प्रकाशयेत् ।।५६०|| अथ प्रभाते संजाते राज्ञा भोजेन भाषितम् । आज्ञापयति मे राजा गच्छामि स्वपुरे तदा ।।५६१|| चन्द्रसेनः सुताय तो शिक्षा दत्त्वा गुणाधिकाम् । कियद्भुवं" गतः साध भोजो "चालितवान् हठात् ॥५६२॥ एकतः शुकसन्तापः सुताविच्छोहितः पुनः । कप्टेन गृहमानीतो मन्त्रिभिश्चन्द्रसेनकः ॥५६३॥ भोजभूपः खिया साकं शास्त्रचर्चाविधानतः । मार्ग बहुतरं नैव लक्ष्यमानं न वेत्ति सः॥५६४|| कतिचिदिवसः प्राप्तो धाराया' बनभूमिषु । प्रारब्धोस्त्युत्सवो"लोकमहता विस्तरेण च ।।५६॥
___1. Bl and it! मन्त्रात्स्व(द) जीवछागस्व हे विशति । 2. BI, Band B3 फार्म जोवितवान् । 3. B1, BAnd 31 पौ। 4.1, IR Id B3 नरेन्द्रेण । 5. BI, and 33 या मातभि । . B1 32 and 13: "दिकान् । 7. B1, Be Ant B3 पजरात शुकमा । 8. [31, R: and B "मेनकः । ५. 133 च instead of यथा । 10. B1, BAnd 83 किपदमी। 11, 11 वलि । 12. 11, I and 3 चर्चादिभिः पथम् । 13, 131, Bani 133 टपमान न जानाति तथा मार्गश्रमादिकम् । 14. BT and "या। 15. BI and IB प्रारब्ध मच्छवम् ।
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चतुर्थः प्रस्तावः
गता प्राप्ता च राज्यश्रीश्चान्यः पाणिग्रहोत्सवः । इति हर्षपरो लोकः प्रवेशयति' भूपतिम् ॥५६६ ॥ भोजभूपः समायातः प्रमोदान्निजमन्दिरे । अन्तःपुर्यादयः सर्वे समायाता नृपान्तिके || ५६७ || पूर्वोक्ताभिः समस्या भिरुपलच्य नृपोत्तमम् । योजिताञ्जलयः सर्वे प्रणेमुः पदपङ्कजम् ||५६८ ॥ मन्ये चिन्तामणिः प्राप्तोथवा कल्पतरुः किमु । नृपस्य दर्शनं जज्ञेन्तःपुरोणां प्रमोददम् ||५६६|| यथा— 1
पेम्माउ राण' णवजुव्वणाण खाण मेलए जाए" । जं संमु इयं सुक्खं तं भयवं केवली घ्रुणह || ६०० ॥ तनुं स्वां गृहीत्वास्य धूर्तस्य पाश्र्वत् ततश्चन्द्रसेनस्य पुत्रीय मूढा ।
अवन्तीं गतो राज्यधानीं स जीया'
द्धरां शुज्यमानश्चिरं मोजभूषः ||६०१ ||
इति 1 मोज चरित्रे परकाया प्रवेश विद्याभ्यसनो देवराजजन्मनो नाम चतुर्थ: प्रस्तावः ||४||
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परा लोकाः
प्रवेशयन्ति । 2. B1 zataz: 13, B1, Be
1. B1, B2 and 133 and Ba सामन्त पूर्वी । 4. 133 उक्तं च instead of यथा । 6 B2 2 andB पेमा उराण | 6. B3 जाही। 7. B1, B2 and Ba जं कप्पई सुखं । SBI Band 133भ्यां 131, Band Ba नीं (या) सामग्रयां | 10 B adels पाठकवल्लभकृते; B2 adds धर्मघोष्ाच्छे यादोन्द्रश्रीधर्मसूरि सन्ताने श्रीमही तिलक सूरिशिष्यपाठक राजबल्लभ ।
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[ अथ पञ्चमः मस्तावः ]
ईग्विधा च राज्यश्रीर्भुज्यमानो निरन्तरम् ।
दीने पोदापयद्दानं श( स ) त्रागाराण्य मण्डयत् ॥ १ ॥
"
अन्तःपुरस्थितो भूपः कियद्भिर्दिवसैस्ततः । राज्यश्रियं पालयन् समास' नाम राज्ञी सगर्भा संजाता नाम्ना मदनमञ्जरी । यत्नतः पाल्यमानास्तु पूर्यन्ते दोहदाः पुनः || ३ || परिपूर्णेर्दिनैर्जातः शुभग्रह निरीक्षितः । बच्छराजोजो नाम्ना' ववृधेसौ दिने दिने ॥ ४॥ देवराजष्टवर्षीय वोभूत्पञ्चवार्षिकः । अतीव वल्लभौ राज्ञः " दिप्तावध्ययनाय तौ ॥१५॥ दिनैः स्तोकतरैर्जातौ सर्वशास्त्रपरायणौ । तच्छास्त्रकलाभ्यासौ बाल्यादप्यनयोर्वमौ ||६|| देवराजोपि संजातः क्रमाद् द्वादशवार्षिकः । चच्छराजः पुनर्जज्ञे नववार्षीयकः क्रमात् ||७|| उभयोः प्रीतिरत्यन्तं नखमांसाधिकास्ति च ।
7
10
अथवा नेत्रवत्तेषां प्रीतिः श्लाध्या जनेपि हि ||८|| यथा *-- सह जान रासा' सह सोयराण सह हर" ससोयवंताण | नया ववमाणय अजम्म" अकित्तिमं पिम्मं ॥ ६ ॥ भोजभूपस्य तौ पुत्रौ प्राणेभ्योप्यतिवल्लभौ " । गुणेनात्मप्रभावेण बल्लभः को न जायते ॥ १० ॥
12
कियत्यपि दिने। 3 B1 B
33
राजेति नामेन | 5. B1,
139 "कापि हि। 8 B3
1. B1, [23 and B ने | 2 B7 B2 and a and B पुनरेव हि राज्य (ज्यं च ) पालयामास । 4. 131, B2 and Band Ha "वाको । . B1, Be and 3 भू । 7 B1, B2 and उक्तं च instead of यथा । D. BI, Bs and B जग्ग [ B3 ग ]राण। 11. Band B3 आजम्प 132 आजन्म 12 Br Hand B ते पुत्राः प्राणादपि हि बल्लभाः | B1, B2 and Ba continue the plural forms instead of the dual ones even in the following verses and we neglect these variations I
10. B4 and I हरि
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पञ्चमः प्रस्तावः
चन्द्रसेनेन भूपेन प्रहिता अन्यदा नराः । उत्सुका मिल'नायेयुर्भोजस्य प्रान्तिके क्षणात् ॥११॥
भूपोद्याप्यस्ति संसुप्तः कथितं मध्यवर्तिभिः । उत्सुकान् पुरुषान् ज्ञात्वामात्यैरेवं विचिन्तितम् ||१२|| पथा'बालको नृपतिश्चैव गुरुः सिंहोथवा रिपुः ।
कुन्दः स्थिन को आप ॥ १३॥
तत् किं कुर्मोनामात्या यावदेवं विचिन्तयन् । तावत्कुमारौ भूषस्य क्रीडन्तौ समुपागती ||१४|| अमात्यaatent at गतौ यत्रास्ति भूपतिः । प्रयुद्धस्तद्वचः श्रुत्वा कुर्वश्वित्ते धर्ना रुवम् ॥ १५ ॥ केन दुष्टात्मना जागरूकोहं निर्मितः चणात् । यावत्पश्यति कृष्टासिस्तावष्टौ कुमारको ' ॥१६॥ अम ( व १ ) ध्याविति भूपोदात्पुत्रयो देशपकम् | या क्षेत्रे मदाशास्ति कार्या तावस्थितिर्न हि ||१७আ पदन्द्रस्याप्सरोमध्ये भानुमत्यस्ति नामतः । तामानीय समेतव्यं नान्यथा दृष्टिगोचरे ॥ १८॥ पितुः शिक्षावतो वाचं' शीर्षे यारोप्य तत्क्षणात् । पाणिना खङ्गमादाय निर्गतौ कि ||१६|| गरबा मात्रन्तिके नवा तौ व्यजिज्ञपतामिति" । दाताज्ञायाः प्रमाणार्थमावान्यां गम्यते पुनः ||२०|| गच्छतः पथि सोमाली भि(खि) घेते नोष्णशीततः । तृषापीडमानौ तौ कातरत्यं न गच्छतः ।। २१ ।। बाल्येपि वर्तमानौ तौ महासाहसशालिनौ । मार्ग संप्राप्ती समुद्रतटके पुरे ||२२||
10
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1. B1 and 132 मिली। 2. B1 102 and B3 प्रातके क्षणे । 3. [31] and B उच्छ; B° उच्छु। 4. B" उषतं च instead of यथा । 3. BI A and B कोटयन्तो समागती। 6. BI Band | कुमारमति ! भान्मति ! 7 BIB and B3 स्नेहीभूद्रोषवारणः । 8. 31, Be and B तथापि नृपतिः कोपात्तयोः । 9. Band B3 आणिषापि (माशोदश्वपि १ ) तुर्याचां 1023 32 and 135 गतो तो मानुपादान्ते नमस्कृत्य व्यजिज्ञपन ।
4
B
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भोजचरित्र ततस्तद्भाग्यसंयोगात्सार्थवाहो धनञ्जयः । पूरयन्नस्ति चोहित्थं दृष्ट्वा तावपि समिती ।।२३।। धनञ्जयेन वो पृष्टौ युवाम्यां कुत्र गम्यते । कृतः स्थानात्समायातौ भवन्तौ कारणं किमु ॥२४॥ तावाहतुश्च सार्थेश ! ह्यावां वैदेशिको नरौ। साहाय्यात्तव पश्यावो द्वीपान्तरगतों श्रियम् ॥२५॥ सार्थेड्वदति भो' भद्रौ ! युवामयापि चालको । जलान्तमय सुखं संदहा पले पई ।।६।। अर्भकावृचतुश्चिन्ता न कार्या सार्थवाइ भोः ! वेलायामागमिष्याव आवां कार्ये तवैव हि ॥२७॥ हसिन्वा सेवका ऊचुः श्रुत्वा तद्वचनश्रियम् । सार्थेश ! कुरु सार्थीयों" दिनमप्यतिवायते ॥२८॥ वाहने तौ' समारूढौ सार्थाधीशस्य चाज्ञया । पाथोधौ पूरितः पोतः पवनाद्याति चोत्सुकः ॥२६॥ कियद्मिस्तु दिनैर्गच्छन् वाहनस्तु महोदधौ । स्तम्भितो वाइकैः पुम्भिः धावाभीतमानसः ॥३०॥ लग्ना नाकारमद्धत सुवाते सति ते पुनः" ।। एकोथ सहसा यातो द्वितीयो निस्सरेमहि ॥३१॥ खिन्नाः खेदपरा जाताः कथंचन न निस्सरेत् । मन्यन्ते बहुलं भोगं स्वगोत्रजमरुत्ततेः" ||३२||" श्रेष्ठ्य चे देवराज ! त्वं पूर्वोक्तं वचनं स्मर | त्वद्वाक्ये मम संदेहो न मे(च) भावी कदाचन ॥३२॥
1.BLE and R प्रोहण[111 णः] पूर्यमाणास्तु । 2. 31, Band Ba Tोपडोपान्तर: । 3. यः। 4. 19, Band 133 मार्थेशो वदतै । 5. 31 and B: भ्रमण(णे) जलमार्गण। 6. B1, Barl 133 साथै तान । 7. B1, B. anti In 'नेन । 8. B1, Be and B कुवातादातभीतिप्तः । 9. B1, Be and !! पुनः मुनातकं ज्ञात्वा लग्ना नारंगमुदधतम् [11 धुतम् सम्]। 10. B*, Rs End B3 भोगभागादि मान्यन्ते देवानां स्वस्वगोत्रज्ञाम [ Bा जम् ] 1 11. B adds the following niter this verst: 39 -
भाता देवान्नमस्यन्ति नपस्कुर्वन्ति रोगिणः ।
निर्धना विनयं यान्ति युद्धा नारी पतिवमा ।। 12. B1, Band Bअतः परं च । 13.BI नाम ।
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पञ्चमः प्रस्तावः यदि शक्तिस्तवास्तीति भपकारं तदा करु । संनद्धः स पुमान् सयः परोपकरणक्षमः ॥३४|| दवा शिक्षा निजभ्रातः स्वमाहुबलपूरितः' । नारशालालग्नो ददौ झम्पा महोदधौ ॥३५॥ लग्नः सन् शृङ्खलादेशे गतो दूरे कियत्यपि । सावत्प्रासादम्पृकाग्रे विलग्नादर्शि' शृङ्खला ॥३६॥ आश्चर्य देवराजस्य जलधौ चैत्यसंस्थितम् । दृष्ट्वापूर्वमिदं स्थानं पश्चान्मोचामि' शृङ्खलाम् ॥३७|| विमश्येदं गतश्चन्ये पारदर्भगृहात । श्रीयुगादिजिनस्तावदृष्टः पद्मासनस्थितः ॥३८|| एकचिन तीर्थेशं यावदाधं स्तथीति सः । एका स्त्री तावदायाता वृद्धा काचिन्मनोहरा ।।३६।। तां रष्ट्वा देवराजोवग मातः ! कथय कारणम् । अगाधजलधावेतस्केन चैत्यं विनिर्मितम् ॥४०|| एतच्छुत्वावदद् वृद्धा सर्वा" मूलादिमां कथाम् | हे वत्सैकाग्रचिरोन श्रोतव्यं मदचस्त्वया ॥४१॥ श्रीयुगादिजिनेन्द्रस्थ प्रव्रज्या सरे तदा । भरथाधा चभूचुस्ते" शतमेकं तनू भवाः ॥४२।। क्षात्वा युगादिदेवेन सर्वेषां च पृथक् पृथक् । सर्वे जनपदा दत्ता" विभज्य स्वयमेव हि ॥३३॥ अयोध्या भरते तक्षशिलां बाहुबलिन्यपि । . नामानुसारतोन्येषां देशानपि ददौ मुदा ॥४४॥ दत्त्वा संवत्सरं यावद्दानं श्रीनाभिनन्दनः । दीक्षामादाय विच्छत् कृत्वा कर्मक्षयं ततः ॥४५॥
1. B1, BP and B' बुद्ध्वा सावाबाहभिः। 31,BE oil 133 शृङ्खलालग्नमानस्तु । B. Bi and B दृष्ट । 4. 181 and 13: "मुञ्चामि । 5. BI, Fail B यो विनिर्मितः 1 6. BE, Usaid Bएवं श्रुत्वा नतः प्रोत्रं वदा । 7. III, RIL 13 धूयतां । 8. B1, B2 and B दोक्षाया .. BI,P and B भरथ- बाबली मुख्याः । 10. IBI, and B3 दत्तानि सर्वदिशामि । 11. 131, and Bअन्यपां यद्यथा दत्त तत्तथानामदेशनः। 1', BIF and Ba विस्तारै।
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भोजचरित्र अवाप्य पशम शान' पुण्डरीक धरोपरि । संपूर्ण पूर्वलकं । प्रपाल्य वरणं वरम् ॥४६॥ निर्वाणानसरेप्यत्र प्राप्तः श्रीपुरपसने । सहस्रचतुरशीत्या मुनिभिः परिवारितः ।।४७} लपत्रितयसाचीभिः क्षामना प्रविधाय च । गत्वा च सद्रिः शृङ्गे सहस्रदशसाधुयुफ ॥४८|| चतुर्दशेन भक्तेन बद्धपद्मासनस्थितः । ययौ भोपपुरीं तत्र शुभभ्यानपरायणः ||४|| षट्पश्चाशदिक्कुमार्यश्चतुःपष्टिः सुराधिपाः । चक्रुर्निर्वाणकल्याणं चतुबनिकायकाः ॥५०॥ फियदिनैः समागत्य भरतेनाथ चक्रिणा | कारितः श्रीपुरस्थाने प्रासादोयं महापृथुः ॥५१॥ विश्रामस्थानकं ज्ञात्वा श्रीयुगादिजिनेशितुः । प्रतिमा स्थापयित्वात्र गतो ह्यष्टापदे गिरौ ॥२॥ गन्युतित्रयमानोच्च प्रासादं हि" हिरण्मयम् । चतुरं चतुशाल चतुर्विशतिना(का)न्वितम्"||५३|| कारयामास सश्रीकं प्रासादं सुमनोहरम् । श्रीमसिहनिषिधाई संपत्कोत्पनिकारकम्'' ||४|| कारयित्वा पसौ चक्री श्रीमद्भरथनामकः । गत्वायोद्ध्यापुरे राज्यं षट्खण्डानामपालयत् ॥५५॥ चतुर्दश च रत्नानि भाण्डागारेस्य जज्ञिरे । निधानानि नवैतानि करे जातानि तत्क्षणम् ॥५६॥
1. BI, B2 and | पञ्चमं ज्ञानमा[BI संपन्न । 2. Bk. It and 133 लक्षक चारि निर्मलं समः । 8. BI, BP and 3 बना मोक्षनधूम्त [131 and 2 त] शुभष्मानववारमतः । .. BI, Bp and Is देवेन्द्राणां चतुःषष्टिः सप्पन्नदिय मारिका: 15. कायिनि । H. BI, B. and भरपच[ B1 and B: चक्रवर्तिना 1 7. BI, I and I3 सविस्तरम् । ५. Bl and 13 जिनेश्वरीम् । ३. 131. B and II तं । 10. I uld P५ °तिक भुजम् । 11. B1, B2 and I सि[B संघ; 83 सिंघनिषद्याप्रासादं सथी सुमनोहरम् ।।2. 131 132 an Eनरंन्द्रेण भग्य चक्रवतिना । 13, 21, Banrl 1 गत्वा महें निज राज्यं पट्म्य पदम्ब भव्यते । 14. Blind IB मञ्जूषाकुरसरिस्त ताटे ।
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पञ्चमः प्रस्ताषा
१०६
अथ निधिः-- नेमप्पे'१ पंहुआ। २ पिंगमा ३ सम्मायण मह पउमे ५ कालेय ६ महाकाले७ माणवगमहानिही संखे । रत्नानि सेणावाप्रमुखानि" ॥ अन्तःपुरीचतुःपष्टिसहस्राणि गृहान्तरे । ज्ञेयाः पिण्डविलासिन्यः सपादलनमानकाः ।।५७॥ लहाश्चतुरशीतिश्च रथसद्दजवाजिनाम् । कोठ्यः षण्णवतिर्जाता प्रामपत्तिजस्पच ॥१८॥ "वासप्ततिः सहस्राणि बेलाकूलतटस्य च । अष्टादश च कोव्यः स्युलाससंबद्धवाजिनाम् ||६|| एवं राज्यश्रियं प्राप्य श्रीमदभरथचक्रिराट् । निषिष्टोस्त्यन्यदा स्थाने घेकदा स्नानहेतबे" ॥६०|| आनखं चाशिखं रूपं दृष्ट्वा दर्पणमध्यगम् । फाल्गुने पत्रहीनं च यथा वृक्षशरीरकम् ॥६१॥
(तद् )दृष्ट्वा चक्रवर्ती तु जातो वैराग्यरङ्गभा" । हृदये चिन्तयामास धिपं यौवनं च धिक् ॥६२||
1. 31 निश्यः; नवनिधानानां नाम कह ई। 2. 131, I and B3 निसर्प | 3. B1 पंड्य: B2 "यए: 13: विण्डयए। 4. पिङ्गल ।, B महा। 6. 31 काले । 7. 131, Ise and
* मागवगे महानिहि संग्डे 10। 8. Pt onils this wured; B३ अप चउबरतनाम | 9. 31, 32_und 83 सेणाव[B वा] १ मामाबई 13 वाई २ गोहि[Ba हिय] गय: लुरि[I]प ५ वतिय [Bा बड़ति; 1 वडि६ हाय ७ चर्मर छत्र९ चम्म १० मणि ११ कागणि १२ खड्ग [A4 ; 137 litra ATA? [ B' anul 19 do not number the items ] 1 10, B1, 13° and B गजानां च रचानां च चतराचीनिलक्षतः । 11. ISBAnucl यामाणां च पदानां च [i and B पदातीना | कोटीनां पण्णवपि । 19. BE BAnd 3 दि । 1: BI, Baid HA 'ति । 11, 131,13" and B तटानि। 15. BLE und B° मष्टादग्रस्तु(तु)कोटीनां लामबद्धतुरंगमाम् । 11. HI, Band B एवंविधा अ राज्ययोभो( )मता भरमचक्रिणा । 17. B1, B2 and Bएकदा स्नानहेन्वये प्रविष्टः स्नानमण्डगे। 18. 131, Band B वक्षस्तथा तनुः । 19, 31, B* and 13# 7/989: 1 20. US, 134 and 13% add the following alter this verse:-991[13 3 उक्तं च]--दरागजलबुञ्ज उबमें 1B- the verse storys here] जोगिए अलविदुरचर्क | जुम्वोयण गन्त्र [[33 व ]गमन्निम पागजीन 1 किमयं ( किमिदं । न म । Balls true store wers : सिमरायणहारी बलदेबो तय कमवा रोमा । संहरिया हर्यावहाणा का गणणा गरलगाम ।।
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... भोजचरित्र 'चला लक्ष्मीरचलाः प्राणाश्चलं रूपं च यौवनम् । चवलेतीव संसारे धर्म एकोस्ति निश्चलः ॥६३।। चक्रिणा घातिकर्माणि घानितानि पुरा भये । जिताश्चारित्रखड्गेनाप्यन्तरङ्गाश्च वैरिणः ॥६४॥ भावनायाः प्रमाणेन शुक्लध्यानम्य योगतः । संज्ञान मेवाहानं मारित्रण तपो बिना ॥६५॥ स्फुरदुन्दुभिनादेन विषुधैः पञ्चवर्णजाः । पुष्फ(प)पृष्टी रत्नपृष्टीश्चक्रे केवलिसत्कृतिः ॥६६॥ दशेन्द्रा देवलोकस्य" चन्द्रसूर्येन्द्रयुग्मकम् । द्वात्रिंशद्वयन्तरेन्द्राश्च विंशतिर्भुवनेश्वराः ॥६७॥ इन्द्रा एते चतुःपष्टिः शचीभिः परिवारिताः । दिक्कुमार्यश्च सम्प्राप्ता गन्धर्वाः किन्नरादयः ।।६।। गीतनृत्यादिवादित्रैः कृतकैवल्यकोत्सवः । भरतेशो जगादेवं "सौधर्मेन्द्रस्य चाग्रतः ॥६६|| चैत्यं विश्रामसंस्थाने श्रीयुगादिजिनेन्द्रजम् । विद्यते श्रीपुरस्थाने तस्य चिन्ता तवैव हि ॥७०|| तथास्त्विनि वचः प्रोक्त्वा हरिः सौधर्ममाययो । तस्माद्दिनादद्य यावत् शुश्रुषा क्रियते मया ॥७॥ पश्चाशत्कोटिकोटीक सागरेपु गतेष्वहो । द्वितीयस्तीर्थकुन्जज्ञ नाम्ना श्रीअजिनो जिनः ।।७२।। तस्मिन्नवसरे जातश्चक्री सगरनामकः ।
चतुःषष्टिसहस्रान्तःपुर्यस्तस्य च जज्ञिरे" ||७३।। 1.p3 adils यतः-मंझरागजल- belire tus vctse; II and arrl नः । 2, Bलमी । 3. stops the verse with प्राणाः । 1. 131 से रूप, 3 जीवित । 5. Bl and B चलारलेषु[Bय 16. IBud BA हि। 5.31 danlB चारित्रसुतपं। 8. BL att! B2 जम् ; [ ABI, B aid केवली महिमा कृता ! 10. BI, Bund BH देवलोकाश प्राप्ता । 11. B', BRIEF °वादिवानलिकान्छवः । 12. 13 सू। 13. !! Be And I यथास्तु वा तन [IBI कृत्व।। 14. 111, 132411137 गुभूपाक्रियतेस्माभिस्तहिनादा चावतः । 15. 133 गल्लक्ष। 16. 131, 13 and 13. साटिना । 17. B, sund I alग । 16. BI, Ra1 13: अनःगुरीभिरावृत्तश्चनु पण्टिगहलमाः ।
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एञ्चमः प्रस्तावः सर्वा अपत्यहीनास्ताः स्त्रीणां दुःखमिदं महत् । संतानेन च या होनास्ता हीनाः सर्ववस्तुभिः ॥७४|| यथादिनं दिनकरं विना वितरणं विना वैमवं महत्वमुचितं विना मुबचन विना गौरवम् । सरः सरसिज विना धनमरं विना मन्दिरं कुलं तनुरुहं विना श्रयति नैव सटीकताम् ||७|| पुन:दिगम्बरं गतवीडं जटिलं धूलिधूसरम् । पुण्यहाना न पश्यन्ति माधरामेवात्मजम् ॥७६।। उक्तं चतं मन्दिरं मसाणं जत्थ न दीसंति धूलिधनलाई । निवडनरईताई तिदुन्निणो डिभडिभाई ॥७७।। एवं विचिन्त्य बहुधा दुःखपूरितमानसः । उद्यान वनभूमीपु गतः सगरभूपतिः ॥७॥यथाजने रतिस्तु रक्तानां विरक्तानां बने रतिः। अनवस्थितचित्तानां न जने न बने रतिः ॥७६| दृष्टस्तु मुनिरुद्दाम केवलज्ञानभास्करः। अयोध्यायां समायातो भन्यसत्वान् विरोधपन् ॥८॥ नमस्कृतो सनिस्तेन सगराख्येन चक्रिणा' । देशनान्ते च विज्ञप्तः स एव मुनिपुङ्गवः ||८|| स्वामिन् ! सन्तानहीनस्य निष्फलं जीवितं धनम् । भगवन् ! मम किं' सूनुभविष्यति न वाथवा ॥२॥ मनिरप्याह भो भद्र ! पृच्छस्यादरतो यदि । सुताः पष्टिसहस्राणि भविष्यन्ति तवालये" ||३|| सगरोप्याह हे स्वामिन् ! सुतस्यैकस्य संशयः । कृतः पष्टिसहस्राणि कौतुकं वर्तते मम ||४||
1. BI, Band B संताने यो नरो होन: स होनः सर्ववस्तुना। 2. Ba उक्न र-instead of यथा। 1. ! and B2 PM + 132 133 पति रुउंति पुति याई दोभिन्निहिं भरूआई [ जच्छे होम नोशंतोपनम् । 5. B°ने । 6. BI, Bh and 133 मुनिसंही। 7. BI, y and
B सगरपक्रवर्तिन।। 8. 13113 11l Bih म 9.तश्चक्रिणा। 10. BI, B and Bहीमोय विफलं । 11. Binal 1: कथ्य[1344]नां भगवन । 12. 131 And B षा न हि । 13. B1, B2 and 13 यदि शस्मि सादगा। 14, BIBPanel B तब गई। 15, B1, B and B प्रोफता।
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भोजनारित्रे मुनिराह न संदेहो ज्ञेयं' तथ्यमिदं वचः। समुदायवशादेच भविष्यन्ति मुतास्तव ||५|| आम्रवृक्षफलं चैकं तुभ्यं यद्यद्य निश्यहो । प्रत्यक्षीभूय दत्ते यागत्य शासनदेवता ॥८६॥ स्तोकं स्तोकतरं तच्च दातव्यं प्रविमध्य भोः । समस्तानामपि स्त्रीणां' सन्ततिस्ते भविष्यति ||८|| एवं श्रुत्वा नमस्कृत्य मुनीन्द्रपदपङ्कजम् । प्रमोदमे दुरो भूत्वा चक्रवर्ती गृहे गतः ||८|| निशान्ते तदपि प्राप्तं फलमानस्य चक्रिणा' । स्त्रीरत्नस्य करे दस प्रोक्त्या व्यतिकरं च तत् ॥८६॥
ध्यौ च पद्यमहिषी किमन्यासां धनैः सुतैः । एकोपि यदि मे भावी राज्यधुर्यस्तदा" वरम् १६०|| यथासिं चाबहुभिः पुरैः शोशलापकारकैः । वरमेक: कुलालम्बी यत्र विश्रभ्यते" कुलम् ||६१॥ पुनःकिं तेन जात' ! जातेन मातुविनहारिणा । स जातो येन जावेन वंशो याति समुन्नतिम् ॥६२।। उक्तं - एकेनापि सुपुत्रेण सिंही स्वपति निर्भयम् । स एव दशभिः पुत्रारं महति गर्दमी १६३॥ एवं विचिन्त्य सहसा भषयामास तत्फलम् । उत्पद्यन्ते च तद्गर्भ जीवाः पष्टिसहस्रकाः ॥६४|| राझ्या गर्भस्थजीवेषु वर्धमानेष्वहर्निशम् । जलोदरमिवोत्पन्नं जठरं जातवद्गुरु ||९|| पूर्णवहस्सु सुषुये भत्कोटकसमान सुतान् । निर्वात स्थापितास्तेपि धृतप्लुतस्तान्तरे" ॥६६॥
1. BI, Bal 133 यथा। 2, 31, R and 1. अब रात्रो यदा तुम्मे फलक चायबमाजम् । 3. B E and B सविमज्य च । 1.1, Banti |" जीणां पप्टिसहस्राणां । 5. 81.Band BHदान्मे । 6. 131. 13- und 13 तत्तपा। 7. Band B. फसच्चकतिना। ४. 11, 132 and 133 किमन्यत्रंभिः । ५. BI, Bund Rs घोरेय तद् । 10. B1, "विश्रमते11. विधामते । 11. Bimits this verse as well as the next | 12. II and B जासु । 1:1. P1. and Pastop with fमही। 14. 131, B2 and B मनसा। 15. 131, B. and B पूर्ण विनय प्रसर्व। 18,BB and B3 रन च।
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पक्षमा प्रस्तावः वर्धापनं पुरे तत्र कारित चक्रवर्तिना । प्रदर्स नाम सर्वेषां वृद्धि प्राप्ताः क्रमेण ते ||६७|| पाठिताः समये सर्व शास्त्रशस्खादिकाः कलाः" । यौवनेन च संयुक्ता' रूपश्रीनिधयोमवन् ।।९८|| यथा-- खादयतु यदपि तदपि हि मलिनं वासश्च परिदधात्वा । प्रकटीकृत लावण्यं तदपि रमणीयम् ||६६|| एकदाष्टापदे यातो यात्रायै सगरो नृपः । पुत्रदाग़दिसंधन चातुर्वण्येन संयुतः ॥१०॥ नमस्कृत्य जिनान साश्चतुर्विशतिसंख्यकान् । विम्बद्वयं च पूर्वस्यां दक्षिणम्यां चतुष्टयम् ।।१०१॥ बिम्बाष्टकं पश्चिमायां दशकं च तथोचरे । एवं संपूज्य संस्तूय वर्णयंश्च" यथाविधि ॥१०२।। संघभक्तिं च संघाचा कृत्वाचारान् यथाविधि । समायानो निजे स्थाने सगरः मंघसंयुनः ॥१०३।। कुमारा हर्षपूरेण गिरेरुत्तीयं भूस्थिताः । कीर्तनं पूर्वजानां च दृष्ट्वोर्ध्व भुवि संस्थितम् ।।१०४।। भरतेन कृते तीर्थे ।" परिखा न कृता कथम् । पश्चमारकजा लोकास्तीर्थध्वंसविधायिनः ॥१.५॥ भविष्यन्ति ततोस्माभिः क्रियते परिखोधमः । यथागम्यं भवेत्तीय विलम्बो न विधीयते" ||१०६॥ 16अधर्मेषु विलम्यः स्यात् विलम्बो बन्धुचिग्रहे । बिलम्बः परदागसु धर्मे नैव बिलम्पयेत् ।।१०७||
1. 131,BLEIt 13५ च । . 131 ट्रास्त्रशा । 3.131, al IR का कलाम् । 4.31, B2 und B: नेनापि सम्प्राप्ता। 5. Buil 1st | .R, Rand B बसने परिदया [10]यथवा । 7. 31, and 13 आरित । ४. 131, 13 and 133 सगरो राजा पात्रामा (५)प्टापद गमः BI, I. acl ! वद्य वाममात् । 10. 181, 132 and B: एतान संस्तूय संपूज्य षर्णयानी। 11. BI, Ruid I33 पो रुपः । 12. BT and B कृतं यन । 13. B1, 32 and 13५ पञ्चमः( म कालजा । 14. BI, Re and B५ यताम् । 15. Bind Badd पथा; Ba adds वनं च।
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Re
भोजचरित्रे
सर्वे ते खनने लग्ना यावद्भवनरागृहाः | स्थितास्तदा यदा तेन भवनेन्द्रेण वारिताः || १०८ ।। पुनस्ते चिन्तयामासुः कुमाराः प्रौढपौरुषाः । जलपूर्णा या होषा परिखा स्यात्तदा वरम् ||१०६ ॥ दण्डरत्नं समादाय चक्रिणः परिखां व्यधुः । पूरमाकाशगङ्गायाश्चिक्षिपुश्च तदन्तरे ॥ ११० ॥ गृहाणि भुवनेशानां जलेनोपप्लुतान्यथ क्रोधेनागत्य तत्स्थानात् भुवनेन्द्रीय सत्वरः ॥ १११ ॥ गृहीत्वेकः कुमारस्तु' बोलितः परिखाजले । एकायुषः प्रमाणेन सर्वे मग्नाश्च ते जले ||११२ ॥
श्रुतं "सागर भूपेन सुतानां मृत्युकारणम् । दुःसहं दारुणं दुःखं वृद्धेष्वपि विशेषितम् ॥ ११३ ॥ यथा
बालस्स माइमरणं भज्जामरणं च जुव्वणारं मे | वृद्धस्स पुचमरणं तिनि विगुरुपाई दुखाई ॥ ११४ ॥ पुनः -
हा दियय" चज्जघडिओ अह वा घडिओ" सि सारखंडेहिं । पुतद्द "विओगसमये जं न हुओ खंडखंडेहिं ॥ ११५ ॥ उक्तं चगोभद्रः सगरस्तथा दशरथः श्रीमान्नृपः श्रेणिको
नागाक्षो रथिकः प्रसन्ननृपतिर्धात्रीधवः '" कोणिकः । ज्ञानाढ्य हरिभद्रसूरिमुनिपः सूरिश्च शय्यंभवः
पुत्रप्रेमणि मोहितान के गाम्भीर्यभाजोपि हि ॥ ११६ ॥
15
तदा महोदधेस्तीरे कारितं चक्रिणा सरः । योजनशत विस्तीर्ण सागरामिधमुत्कटम् ॥११७॥ सगरः सागरी कीर्तिं गङ्गाकीर्ति भगीरथः । रामस्यामिनवा कीर्तिरेका भार्या न रक्षिता ||११८||
18
1
1, B2, Bt and B 3 ख़ुनिनुं । 2 B [32] and 13: चक्रवतिसमीपतः। 3. B1, B2 and B* कुमारकं गृहीत्वा च । 4. B1 बोधि । 5 B1 32 and DJ सर्वे मग्ना जलेन ते । 6. BL, B and B a 7, B1, B2 und Baqaräft fadma: 1 8. P1 and P3 stop the verse with माइमरणं । 9. P3 omits पुनः । 10. B1 and B है। 11 B3 1 12 B1, Bt and B वियों। 13, Br omits उक्तं च । 14 B2 पतिः | 15. 131, Be and B पोजनानां बताना विस्तारं सागराभिश्रम् | 16. Bt, and B " omit this verse
1
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पञ्चमः प्रस्तावः कियत्यपि गते काले जलधेमध्यमागतम् । तवैत्यं वत्स ! जानीहि पृच्छायास्तेद उत्तरम् ॥११॥ एतदाख्यानकं तत्र चैत्यस्योत्पत्तिमूलजम् । तयाप्सरोवृद्धयोक्तं देवराजस्य चाप्रतः ॥१२०॥ सद्गुणं सस्वरं कान्तं सलावण्यं मनोहरम् । चैत्यमध्यस्थितं बालं दृष्ट्वा जाता दयापरा ||१२१॥ साप्ययोचत्कुमाराने शृणु रूपत्रियों निधं ।। त्यज देवकुलं तिष्ठ प्रच्छलो मद्गृहान्तरे ।।१२२|| कुमारोवकिमम्मे ! त्वं भाषसे भीतिकृद्वचः । देवो वा दानवः कोस्ति यस्य भोतिर्निगते' ॥१२३॥ देवेन्द्रस्याप्सरा अस्ति नाम्ना भानुमतीति सा । मत्सुता प्रेक्षणे नित्यं नरे द्विष्टा समेष्यति ||१२४॥ रूपाधिकं नरं दृष्ट्वा विशेषान्मारयत्यसौ । एवं मत्वा सुता" मे त्वं तिष्टैकं कोणके क्षणम् ॥१२॥ देवराजो वचः श्रुत्या दृष्टोत्यन्तं स्वमानसे । एषा भानुमती नूनं भूपेनाभाषिता पुरा ॥१२६।। पूजोपकरणं कृत्वा पृजायै स्वकरे विभोः" । तामायान्ती" स विज्ञाय कपाटान्तरके स्थितः ॥१२७॥ तावन्नपुरझंकारैर्भानुमत्यप्युपागता। संप्रदायेन संयुक्ता स्त्रीणां वृन्देन चाता ।।१२।। प्रविष्टा गर्भगेहे' सा ददर्शाहन्तमर्चितम् । नूनं नरेण केनापि पुजितोयं" दुरात्मना ॥१२६।।
1.1, Band B°तः । १.BI,Band B चत्योयं वच्छ !।Bi, Y: and R3 मूलतः । 4. B1,139 an B कथित देवराजाने अप्सरोव दवा ता । 5. BLY and B निधिः । 6. Bunt : भौतिक वनः; B2 सप्रीतिक वनः । 7.31, and 13 दानवो वापि विभीतिः कस्य कथ्यते । 8. I31, Ba and B: दृष्टा । 9. BI,Rand B3 सुनी। 10. B1, Ba and Ba दावा महोस्वा जिनमचितः। 11. IRI, ReaIRED आगच्छन्ता । 12. BI, I and 131 गर्भगेहें प्रविष्टा। 13. 131, 13 and [B "मो।
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भोजचरिने एवं निरूप्य सा वाला यावत्पश्यति सम्मुखम् । कुमारो रूपवांस्वायदृष्टः कन्यकया तया ।।१३०॥ घृतवैश्वानरन्यायाज्ज्वलिता कोपबहिना । दृष्टमात्रः कुमारोयं भस्मसाळापतः कृतः ॥१३॥ गीतनृत्यादिकं कृत्यं कृत्वा प्राप्ता दिवौकसि । तमैचदागता वृद्धा कुमारं मस्मसात्कृतम् ।।१३२।। पश्चात्तापपरावृद्धा महादुःखप्रपूरिता । विलापं कुर्वती वक्त्रं चिन्तयामास मानसे ।।१३३।। पुत्रादभीष्टो मे बालः केनोपायेन जीव्यते । निश्चित्यैवं गता वृद्धा सौधर्मेन्द्रस्य संनिधौ ॥१३४॥
तोपानानि गुणाति कलान्यावाग तत्क्षणम् । दौकितानीन्द्रभूपाने सुगन्धात्सोपि हष्टहत् ॥१३॥ जातीभिश्चम्पकाद्यैश्च बकुलैः स्वर्णकेतकैः । शतपत्र श्च मरुकैर्दमनायैः सुगन्धिभिः ॥१३६॥ इत्यादिभिः शुभैः पुष्पैः प्रीणितो देवताधिपः । संतुष्टः प्राह वृद्धायै वरं वृणु यथेप्सितम् ॥१३७।। ईदृग्विधां गिरं श्रुत्वा वृद्धा जाना प्रमोदभाक् । . देवराजस्य वृत्तान्तं हपंग्रे मूलतोवदत् ।।१३०॥ गुणरूपनिधिलः समायातो जिनालये | भानुमत्या नरद्वेषाच्छापतो' भस्मसात्कृतः ॥१३६।। यदि तुष्टोसि हे देव ! तदा जीवापयाङ्गजम् | पश्चात्तापोस्ति मे तस्य नेन 'विज्ञपयाम्यहम् ॥१४॥ कृपापरो वदेदिन्द्रस्तदेदं लाहि मेमृतम् । सिञ्चनीयं त्वया भस्म जीविष्यति स बालकः ॥१४॥
1. B1, Band Bाण कीगार: मापन भरमसान, ५. 131. Rand B* पंच परि. स्पज्य | 3. HI BRIT BH[B iti 1राचा)]भादाप्टमानमः । 4. B1, 13 anul 13) पेन । 131, Ite and Bमें। 0.111, 13 and | विषा । 7.1 2 1 BA जोवयिष्यति बालकम् ।
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पञ्चमः प्रस्तावः मदने परमानीय प्रेषणीयस्त्वया गृहे । 'तथास्तु कथयन्त्येषा गृहीत्वामृतमद्भुतम् ।।१४२।। समायाता निजे स्थाने सिक्तस्तभस्मपुखकः । जीवितस्तत्क्षणाद्वालो मन्ये सुप्तः समुत्थितः ॥१४३॥ कुमारः कथयामास मातर्जागरितः कथम् । श्रुत्वा वृद्धाबदसस्मै भानुमत्या यथा कृतम् ॥१४४।। सोप्याह मातरेचं वेत्तदाई जीवितः कथम् । वृत्तान्तों मूलतः सर्व कुमाराने निवेदितः ॥१४॥ कार्यार्थी च कुमारोक्क् सौधर्मेन्द्रं प्रदर्शय । जनोक्तिहु दृष्टं स्यात्सुन्दरं जीषिनाबहोः ।।१४६॥ वृद्धाप्यूचे तदा भव्यं याज्ञास्तीन्द्रस्य चेदृशी। इत्युक्त्वा द्वावपि प्राप्तौ सौधर्मेन्द्रस्य संनिधौ ॥१४७।। कुमारेण सभा दृष्टा पूर्णा सामानिकहरेः । न झायते तदा कश्चिदिन्द्रः कोन्योधवापरः ।।१४८|| आसन्नः स गतो याबद्र पनो मोहितो" हरिः । पुनः पुनः समालिङ्गय स्वोत्सङ्ग स धृतः क्षणात् ॥१४६।। पृच्छतीन्द्रः क वत्स" ! त्वं किं वा कोसि किमागतः । वृत्तान्तं मुलतो वत्स ! श्रोतुमिच्छामि ते गिरा ॥१५०।। कुमारेण निजं वृत्त कथितं च हरेस्तदा" । शापादग्ध इति श्रुत्वा भानुमत्यां चुकोप सः ॥१५१।। सापि तत्र सभा याता हरिणाकारिता द्रुतम् । देवि त्वं गर्वितासीग्लो"कोपद्रवकारिणी ॥१५२।। एप बालो गुणाधारी रूपलावण्यमन्दिरम् । दह्यमाने त्वया दुष्टे ! नागला कि दयापि ते ॥१५३।।
1.BI, Bantl 1यथा 12. BI, I airl सिनित भरमपुजकम्। 3. BI, I and B | 4. 131, B: unti l b. 11, 13 mil तम् । 6. 31 'त'; B3 जन्मोस । 7. B1 3A 13 च ।s. I31, B2 NBTरितन्द्रसमान ! 13 amel B3 नि]: । 4. B. ALL I33 में मोहितवान् । 10. B1, and I वछ। 11. 1, 32 R11d 3 ने हरिगा मह । 12. B2 जानुभूतम् Bाद्भुमा । 18 , I3 and Ba देवत्व गरिता नूनं लो। 14. 131, 13 uncl IB दयमान पाविष्ट दयापि [13 and 13 onit this inst word] तव नागता।
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२१८
भोजरिये एतदागोमवदण्डाच्छापं लाहि त्वमप्यहो । मदाज्ञावरातो दुष्टे नृलोके' मानुषी भव ।।१५४॥ अथावसरमासाद्य कुमारः कोविदाग्रणीः । समुत्थाय नमस्कृत्य येन्द्रमेवं व्यजिज्ञपत् ।।१५५।। यदाज्ञा प्राप्यते स्वामिन् ! तदा व्याधुख्य गम्यते । इति तस्य गिरं श्रुत्वा हरिवंचनमत्रवीत् ॥१५६।। किं कुर्वे ' वत्स" ! स्वर्गे मनुष्यावस्थितिन हि । त्यत्समानं नरं नो चैत् पार्थाद्रीकरोति कः ॥१५७|| परं याचस्व मत्पाधिस्किचिद्रोचते तत्र । निर्लोभत्वं समादाय कुमारो वाक्यमबत्रीत् ॥१५८।। यतः-- सर्पाः पिबन्ति पयनं न च दुर्बलास्ते
शुष्कैस्तृणैर्धनगजा बलिनो भवन्ति । कन्दैः फलमुनिबरा गमयन्ति कालं
___ संतोप एव पुरुषस्य परं निधानम् ॥१५६।। संतोपात्प्राणिनां लक्ष्मीः स्वल्पापि हि सुखप्रदा। असंतुष्टस्य पुंसोपि सौख्यं कोटीश्वरस्य नो ॥१६०॥ तब प्रसादतः म्यामिन् राज्यमृद्विश्च पुष्कला । लोभादपि हि या प्रीतिः सा प्रीतिर्ने प्रशस्यते ||१६१॥" वचसानेन देवेन्द्रो न सामान्यः पुमानसौ । तथापि वत्स ! देवानां दर्शनं न हि निष्फलम् ॥१६२॥ तत्तथास्तु कुमारोबग्यदा दिशसि" वाञ्छितम् | तदा भानुमतीमेतामन्यां श्रद्धां च मेय' ॥१६३||
I.BL BE and B: पक्षाशा गच्छ रे दाटे[ Bा मनुजे । 2. BI, Band B कुमौं । 3. R1, Be and R 3 छ। 4. Bl and 13 उक्तं च Instead of पल:; B* ornity this word and has no substituter 5. Besthe verse with पवनं। . Pl and Pend it with स्तुणा कन्दः। 7. Bi ae! 112 "रि';33 ऋ०। 8, 13s adds the following alter this verses
दंत कृमि रंग यण जबधन सब रात । जनही तानि रक्षणी तक तोन्नं विस्वत ।। ममनही मातं. नदी सच्चिकालवहंत ।
गरपसनहीनुनजल बंगाहो विहरत ।। End बच्छ । 10. 13. Banग्याद दाम्ममि । 11.HIRBA समय।
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१२६
पञ्चमः प्रस्तावः इन्द्रद से गृहीत्वा ते मिलित्वा निर्गतस्ततः । चैत्ये पुनः समागत्य नमस्कृत्यादिमं' जिनम् ।।१६४॥ प्रक्षिप्य पञ्जरे ते द्वे चैत्येशा रुझ तत्क्षणात् । सिद्धे कार्ये विवेकी ना बिलम्ब न करोत्यही ।।१६५|| शृंगस्था शृंखला मुक्त्वा बद्ध्वा पञ्जरकैस्ततः । उद्धृतो नंगरः सोपि संलग्नो याति यावता ॥१६६।। कियत्यपि गते दूरे शृङ्खलायाः करश्च्युतः । पतितः सहसास्यैव चैत्यस्योपरितः स्खलन् ॥१६७॥ देवराजः क्षणं स्थित्वा चिन्तयामास मानसे । करगोचरमायात दैवात्कार्य पृथाभवत् ।।१६८॥ यतः - किं करोति नरः प्राज्ञः शूरो वा यदि' पण्डितः । देवं यस्य छलान्वेषी (पि) करोति विफलां क्रियाम् ।।१६६।। 'वत्सराजो मम भ्राता मिलिष्यति कथं मम । भानुमत्याश्च वृताया वियोगोप्यतिदारुणः ॥१७०॥ एवं मत्वा समुत्तीर्य प्रविष्टो जिनमन्दिरे । ज्ञात्वा मरणजं कष्टमिदं वचनमब्रवीत् ।।१७१।। श्रीयुगादिजिनाधीशाधिष्ठातः ! शृणु मद्वचः । मिलिष्यति यदा बन्धुरन्नपानं तदा मुखे ॥१७२।। स्थितो जिनालये तत्र निराहारः कियदिनैः । गोमुखोस्ति झाधिष्ठाता देवी चक्रेश्वरी ततः ॥१७३|| चक्रेश्वरीपुरः सोपि" यक्षाग्रे च वचो" जगौ । लङ्घनं चात्र चैत्येहं कुहं च निये यदा ॥१७४|| अपकीर्तिस्तदा बाढं भविष्यति महीतटे । तदाग्रहात्तथा कार्य यथा कीतिर्जिनेशितुः। ॥१७॥
___ 1. B1, B2 at Rs धर्म। 2. B1, B.End B नाम । Bt, Brand B1 "त्यपि। 4. B and B दः कार्य वृषाकनमः 13ommits thus verse: 5. B1 3 यथा:
उक्तं च instead of पतः । 6. Pland ps end this Verse with प्राशः। 7. Hi and Ba (म) ५। 8. Bs and * वन्छ। ". I83 'ने। 10. BI, ARE and B तेन पक्रेश्वरी देवी। 11. B2 and B. वपन । 12. BI, Bund नेश्वरी ।
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१२०
भोगचरित्र यक्षोषक शणु हे देवि ! पूर्व सचं परीक्ष्यते । पश्चादस्य करिष्यामि संयोगं बन्धुना समम् ।।१७६।। एवमस्य' परीक्षार्थ सिंहशार्दलरचमाम् । रूपं कृत्वा स यक्षेन्द्रो रात्रौ मीतिमदर्शयत् ॥१७७॥ परं कुमारः कस्यापि भयं न कुरुते हृदि । प्रत्यक्षः सत्यतो यचोभृत्स विंशतिवासः ॥१७८|| कण्ठे कन्यां करे दण्डं पद्भ्यां विपुलपादुके । खटिकां च करे कृत्वा योगिवेपः समागतः ॥१७६। पक्षो वदति वत्स" ! त्वं मत्पाघृिणु वाञ्छितम् । कन्धां गृहाण मत्सत्को चिन्तितार्थप्रदायिनीम् ॥१८०॥ पादुकाभ्यां पदस्थाभ्यां यत्रेच्छा तत्र गम्यते । खटिफया च लिख्यन्ते गजाजिरथादिकाः ॥११॥ एतद्दण्डप्रभावेन स्पृष्टाः सीभवन्ति ते । चतुरङ्गचम्युक् त्वं' परचाद्गच्छ यथेप्सितम् ॥१२॥ एवं दत्त्वा कुमाराय शिक्षा तद्वस्तु चावतम् । कुण्डे झम्पां ददौ यक्षः क्षणेनाश्यतां गतः ।।१८३॥ देवराजकुमारस्तु यावत्पश्यति विस्मितः । तावचक्रेश्वरी देवी' चलङ्गण्डलभास्वरा" ॥१८४॥ कुमारं कथयामास कथं वत्स ! पिलम्ब्यते । युगादीशप्रसादेन पूर्यन्तां त्वन्मनोरथाः ॥१८५|| देव्यास्तद्वचनं श्रुत्वा पादुके परिधाय च | कन्यादण्डौ समादाय खटिका सञ्जिता करे ॥१८६॥ चन्धुर्मे यत्र वत्सोस्ति भानुमत्यप्सरा अपि । पादु केहं तत्र मोच्यो विलम्बो नात्र युज्यते ॥१८७॥
1. B1, B2 and 3 शृणु भने । ५, BI, R and R" सत्वपरोक्षणम् । ३. 1, 2 and B३ कृत्या पश्चात्करिष्येह। 4. BIR ind 3 तदा सत्य ! 5. BA, B. and Ba "वेषे । 6. Bland बन्छ । . B1, B and ! युक्तः । ४.B1, B- and Hस्तु म । 8. BL B and H"री प्राप्ता । 10. 13 भासुरा। 11. said वाट | 12, 18, Hs and Ba पर्यन्ते से मनो। 13.01. Hind B पत्र मे बन्धुवाछोस्ति यत्र भानुमत्याप्सराः ।
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पः प्रस्तावः
एतद्वचनमात्रेण समायानस्तदान्तरे ।
वत्सराजः' सदुःखात्मा यत्रास्ते भानुमत्यपि ॥ १८८ ||
सहसा पुरतोतिष्ठदेवराजो हि बान्धवः । विस्मितः पादपद्मानि नमस्कृत्य व्यजिज्ञपत् ||१८६ | बान्धव ! स्वं स्थितः कुनैतावन्ति च दिनान्यपि " | कथं क्षीणाङ्गकोत्यन्तं वेषोयं कथमीदृशः || १६० || वृद्धायाः "पद्मानम्य भानुमत्यास्तथैव च । वत्सराजवचसोपि प्रत्युत्तरमभाषत || १६१|| वत्स ! दत्ता मया म्पा सर्वेषां पश्यतस्तदा । कथितः सर्ववृत्तान्तो यावदागा हि ते पुरः || १६२ ।। सर्वेषां लङ्घनं ज्ञात्वा ह्येकविंशतिमे दिने । देवराजः स्वकन्यायाः" प्रत्ययार्थं करोत्यदः || १६३ ॥
कण्ठादुत्ता मुक्त्वाग्रे कन्था पाश्र्वप्रियाच सः । स्नानपर्व सुदेवाची" पश्चाद्भोज्यं यथेप्सितम् || १६४||
संप्राप्तं भोजनं तेषां प्रमोदात्पारणं कृतम् । चित्ते द्वावपि संतुष्टौ तौ व्यचिन्तयतामिति ॥ १६५॥
देवराजोवदद्वत्स !" यजातं वाञ्छितं फलम् ।
समसादो युगादीशः सानिध्यं गोमुखस्य च || १६६ ।। किमर्थं स्थीयते ह्यत्र कार्यभ्रंशी हि मूर्खता ।
12
पितुराज्ञा कृतास्माभिर्गत्वा वाञ्छापि पूर्यते ॥१६७॥
बन्धुनैवं समालोor's प्रयाणे कृतनिश्चयः ।
रात्रौ विलय तत्रैव प्रातस्तौ द्वौ समुत्थितौ ॥१६८॥
ts
१२१
1, B1, Bejund 13 बच्छ । 2 IIT, 132 and 3 दिनानि च । 3. B1, Bs and s पाद 431
1
Be and 15. 11, 12 and R 6. Pl, has argued auftrag of verse 294 below instead of graami ką â gre nud consequently units the तं two verses fullowing the present tube 7 B1 and 132
तिमं दिनम् B3 °तिमन्दिरं । 10. B1, B2 and Baaf
8. B1, B2 and 49. 11, 12 and Baqat 11. Be and B3 बच्छ। 12 37 and B स्थीयतामत्र । 13 131 32 and Ba एतद्वन्धुभिरालोच्य |
१६
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१२२
भोजपरिष देवराजेन कन्थाला पादुके पादयोऽते 1 खटिकां दण्डमादाय चेदं वचनमब्रवीत् ।।१६६॥ वत्स ! वामाञ्चलं लाहि कन्याया मातुदक्षिणम् । पृष्ट्या(ष्ठा)श्चलं भानुमस्या ग्रहीतव्यं करे दृढम् ।।२००॥ हे पादुके ! नयास्माकं समुद्रतटके पुरे । एतद्वचनमात्रेण संग्राप्ता वाञ्छिते पुरे ।।२०१॥ स्थिता एकप्रदेशे ते रम्यासु वनभूमिषु । प्रमोदादिवसान् कांश्चित् स्थिताः कौतूहलेन वें ॥२०२॥ चिन्तितान् देवराजोपि फुटान खटिफया तया । रूपकान लिखयामास गजवाजिपदातिकान् ॥२०३॥ येन येन यथा दण्डः स्पृशत्येष तथा तथा । सजीवो जायते सोपि सुधादण्डप्रभावतः ।।२०४॥ एवं गजाश्व सामन्ता बहवस्तत्परिच्छदाः। देवराजो नृपः ख्यातः स्वसैन्यपरिवारितः ॥२०॥ सुखासनस्था सा वृद्धा भानुमत्यपि सा तथा। वस्त्राभरणभूषाच्या दासदासीमिराता ।। २०६।। ससैन्यश्चलितस्तावबन्धुप्रीतिमनोहरः । ग्रामाकर पुरोधानं क्रमादुल्लंघयन् पथि ।।२०७।। धाराया वनभूमीप स्थित सैन्यं महर्द्धिषु । वादियधमानस्तु देवराजः स्थितस्ततः ।।२०।। दृष्टवा सैन्यश्रियं तस्य लोका विस्मयितान्तराः । ज्ञापयन्ति स्म भूपस्प स्वामिन् ! कि कोप्यभून्नपः" ॥२०६।। भोजराजोवदत्तेभ्यो ज्ञायते नैय" किंचन | कम निश्चयं प्रेष्यं'' प्रेपयित्वा स्वपुरुषम् ॥२१०॥
1. Pland P2 मा तुद क्षणम् । 2. BT | १. Bा एवंविधाद। 4. BI, BE And B तसथा। 5. B1, avi B ग्रामागार"। BI, B and BF 'मानस्तु । 7. B1, Band B विस्मयमानसाः। 8. B1, 13* andu विशापयन्ति भूपाये। 9. B1, Be and 129 कोत्र भूपतिः । 10. 31, Bal 133 न हि । 11. B1, 134 and B निश्चयोय करिम्पामि ।
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२२३
एबमा प्रस्तावः . एवं कृते सति नृपे समायातो नृपासिके । प्रहितो देवराजेन म एको व्यजिज्ञपत् ।।२११।। पुत्रौ' भोजनरेन्द्रस्य देवराजोभिधानतः । बच्छराजो द्वितीयोस्ति विज्ञापयति मन्मुखात् ॥२१२॥ देशपट्टे त्वया देव ! पूर्व निष्कासिती सुतौ । भानुमत्यन्वितावेतौ चतुरङ्गचम् नौ ।।२१३॥ श्रुतं बाल हि भूपेन करतोगमा । सर्वाङ्ग शीतलं जातं यदग्ध विरहाग्निना ॥२१॥ वपिनं पुरे चक्रे प्रमोदान्मन्त्रिपुङ्गवः । कुमारोक्तमयो' सर्व दास्यप्यन्तःपुरे जगौ ॥२१५॥ मुतसंतापदग्धानां राशीनां च मनोरथाः। पुनरागमवाामिस्तयोः पल्लविता द्रुतम् ॥२१६॥ भोजभूपः स तत्काल त्थितः सपरिच्छदः । चतुरङ्गचमूयुक्तः समस्तान्तःपुरीधृतः ॥२१७) उत्सत्र' कारयामास नगरे नगरान्तिकात् । तोरणईशोभामिश्छादितं गगनाङ्गणम् ॥२१८|| एवं कृत्वा समायातो भूप उधानभूमिषु । सबन्धुर्देवराजोपि पितुः संमुखमागतः ॥२१६| तस्य पादौ समाश्रित्य परमाद्विनयामतौ' । उत्थापा(प्या)लिङ्गयामास" वाहनस्थो धराधिपः ॥२२०॥ पुत्रश्रियं नृपो वीक्ष्य" भानुमत्यप्सरोवराम् । स्वप्नानुसारतो नाला भुक्तापि धुपलक्षिता ।।२२१॥ बरादित्तलग्नेन भानुमती विवाहिता । विवाहात्पुत्रसंयोगान्जाती हपयशो' नृपः ॥२२२॥
1, BI, Bund Rad2. UP andयस्त । B. BI, BP and B जातं । 4. B1, B- and B रोदगतकं । 5. 134, H atil Ba शि: सिक्ताः । 6. B', BF and B: भूपस्तु। 7. RI, Bantl 13° उछवं । 8. 137 नागर जनैः। । IB1, B and B3 छाद्यते । 10. B1, B Ell B नमस्कृत्य । |1. B" and B3 परम(मविनयेन तो 12, B1, He and B आलिशिता( त ? ) ममायाय । 11. II; I and [ दष्ट्वा पूष्ट्रिय भूपो। 18.
Badगालो ।
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भोजचरित्रे
सत्यवत्याः समायाता सार्थे मदनमध्जरी । पुत्रदर्शन सोत्कण्ठा पश्यन्ती तौ चतुर्दिशम् ||२२३ || देवराजवत्स 'राजौ दृष्ट्वा तां चातिहर्षितो । पतितौ पदयोस्तस्या' न्यस्य भूमौ स्वमस्तकम् ॥ २२४॥ सकुटुम्बस्तदा भ्रपः पृच्छति स्म निजं सुतम् । कथं राज्यस्मा प्राप्तानीता भानुमती कथम् ॥२२५॥ देवर |जकुमारोवम् नत्वा भूपपदाम्बुजम् । कथयिष्ये यदा' यूयं श्रोष्यधोयुक्तमानसाः ॥ २२६॥ देशपट्टे गतौ यावद्विवाहं भूपतेः पुरः । वृतान्तो मूलतः सर्वः कथितः स्वजनाग्रतः ॥२२७|| राजा राज्ञी समुत्थाय द्वावपि प्रस्तुताञ्जली | तौ व्यजिज्ञपतां नत्वा वृद्धायाश्चरणाम्बुजम् ||२२|| अस्मत्कुलमुद्धरितं राज्यं "चोद्धस्तिं त्वया । जीबाधितः सुतोयं मे ह्युपकारः कृतो मम ||२२६ || एवं चमत्कृता " वृद्धा दानमानेन तोषिता । सत्यवत्या निजे स्थाने स्थापिता पुत्रवत्सला ॥२३० ॥ पुत्रागमनजोत्साह विवाहं भोजभूपतिः । प्राप्य इर्ष पूर्णः सन् प्रवेशमसृजत्पुरे" ॥२३१॥ वादित्रैर्वायमानस्तु भट्टाजयजयारत्रैः ।
स्त्रीणां माल्यगीताद्यैः समायातो नृपी गृहे ॥ २३२॥ निष्कण्टकतरं राज्यं पालयन भोजभूपतिः । देवराजकुमाराय युवराजपदं दात् ।।२३३||
14
1
11
I
1. B1, BA and B या 2 H13 B1 32 and B9 पुत्रस्य वना | 131 13 and स्वाया। 6 Bt ardds the tollowing
1. B1, Band B
after this verse :
हांस्ता (मा) रोमाचा मुतप्रेमविमोहिता । उला (त्या) यांत्मानो तो हदभूभिः ॥
7. Haar 8. B1, B2 and 133 1398 z 191 anegra safannę 1. B1, H2 and Ba "ज्यम् । 10, 131 132 and B संस्कृता । 11. 131 B and 133 बच्छ[B1]लात् । 12. B1, Band 21 12, 131, 1 and 18 sadrazaqa; gå÷gazì? | 14. 131, 21:33 पात्यमानस्तु भूपतिः ।
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.
१३
पडखमा प्रस्तावः कियन्त्यपि दिनानीशः स्थितोन्तःपुरमध्यगः । भानुमत्यप्सरोरूपव्यामोहितमनास्ततः ॥२३४।। एकस्मिन् दिवसे राजा विज्ञप्तो राजपूरुषः । उद्वासयितुमारन्धो देशः सीमालराजमिः ॥२३॥ एतच्छ्रुत्वा स भूपालः कोपादरुणलोचनः । प्रयाणं दापयामास चतुरचमूवृत्तः ॥२३६।। एकत्र च सरस्तीरे स्थितः सैन्य युती नृपः। भोजनावसरे प्राप्ते राज्ञा भानुमती स्मृता ।।२३७|| विरहासापसंतापान रतिं लभते कचित् । प्राणः प्रयाणमारब्धं भानुमत्या अदर्शने ॥२३८!। न पयंत्र न भूपीठे न जने न बनान्तरे । समाधिर्न हि कुत्रापि विना तां प्राणवस्त्रभाम् ॥२३६।। सर्वेपि वररुच्याया मिलिता मन्त्रिपुङ्गवाः । कुर्वन्ति स्म किलालोचं विलक्षास्ते परस्परम् ।।२४०॥ यदि व्याघुरति मापस्तदा ते वैरिभूसुजः । देशं विध्वंसयिष्यन्ति का स्याद्वारयितुं धमः ॥२४१॥ मन्त्रिणः कथयामासुः सर्वे वररुचेः पुरः विलम्बः कार्यते भूपातचित्तस्यैव दर्शनात् ॥२४२।। दध्यो वररुचिः सत्यमेवेभिर्मे प्ररूपितम् । भानुमत्या हि रूपं चेत् करोम्यत्यतं यहम् ।।२४३॥ म्मृत्वा सरस्वती देवीं कृत्वा सुन्दरवर्णकम् । चिो मानुमतीरूपं निर्मिमीते स्म सुन्दरम् ।।२४४|| निष्पमं तद्यथायोग्य स्थाने स्थाने" तथाविधम् । प्रोचे वररुचिर्वाक्यं भारत्यै प्रीतिपूरितः ॥२४५।।
1. 131, I3 And R पितोर (तम्या)न्त:पुरान्तरं । 2. I31 पोपः। 3, [31, B2 and
भुमैः । 4. BE IS antI13 बने[RI ALB न कस्मिन । 5. B1, B2 111d B: आलोच जयते सत्र । HBI Bandgi 7.1,Be and B क्रियतस्माभिः किचिचित्रा(?)मरनान् । ४. II, R 11t1R: वर्णकमुभम् । . EIHind B योग्य स्थानं तं पि ।
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ત
भोज चरित्रे
रूपं मे सृजतः कापि विस्तृतं स्यात्प्रमादतः' | तत्र मातस्त्वया सम्यकरणीयं तथाविधम् ॥ २४६ ॥ एतद्वचनमात्रेण यावचिन्तयति" द्विजः । कुञ्चिकाप्रान्मषीविन्दुः पतितां गुपदेशगः ॥२४७॥
3
तं प्रमार्ण्य ततश्चित चिन्तयामास पण्डितः " | पुनः पपात तत्र मषीन्दुस्तथैव सः ॥ २४८ ||
एवं वारत्रयं यावत् पतति स्म पुनः पुनः । तथैव स्थापितः सोपि जातं रूपं यथोषितम् ॥ २४६ ॥ तद्रूपं दर्शितं राज्ञो वररुच्यादिमन्त्रिभिः । हर्षाचित्र करे लावाङ्गोपाङ्गानि व्यलोकयत् || २५०|| ललाटं च मुखं नासाकपोलं लोचनद्वयम् । कर्णाद्यत्रवान् वीच्य' न कुत्राप्यन्तरं भवेत् ॥ २५१ ॥ एवं निरीक्षमाणः संस्तिर्ल" गुप दृष्टवान् । विस्मितश्चिन्तयामास विकल्पानेवमीश्वरः " ॥ २५२॥ विश्वासाच्यते लोके हाविश्वासी न वञ्च्यते । अन्तःपुरे व्यभिचारो वररुच्यृद्भवस्ति हि || २५३ ||
प्रियाविरहजं दुःखं विस्मृतं तस्य कोपतः । वर्क नरमाहूय तस्याप्येवमब्रवीत् ॥२५४॥ " एते वररुचेत्र े निष्कास्थ मम दर्शय । करणीयं हि attisgव्यहं पुनर्नहि || २५५ || वधकैर्विप्रतायैष भद्रचितः " पुरोहितः ।
नीतोरण्ये महाघोरे" यावद्वाताय सञ्जितः || २५६ ||
a विस्भूतं यत्र कुत्रापि रूपनिर्माप्रयत्यमापणं मया । 2. BI 132
and Ba °ले | 3. 131,
and 83 गृह्यस्मसु । 4. BJ Baund TIP नम् । 531, 133
and B3 ते 1 6. B1, Band I3 विलोकयन् । 7. Bi Band Ba राजयः सर्वः 1
开
and 127 स्तु लि। 10. B1 Hand Ba "नेक 12 11 He anal 233 "न" | 13, 11, 132 nd Hs
1. BI, Be and
8. Bन हि कुत्रापुरतरम् 1 9 1 19
भूपतिः 11 and नोतो (च) महाघीराम् ।
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१२७
पञ्चमा प्रस्तावः विप्रोवग् वधकं ज्ञात्वा दुष्टचित्तो भवान् कथम् । सोप्याह द्विज ! किं कुर्वे' वयमादेशवर्तिनः ॥२५७|| भूपोक्तिमन्यथा कर्तुं वयं नैव क्षमाः कचित् । शिक्षां देहि तदस्माकं सर्वथायति सुन्दराम् ॥२५८॥ द्विजापि वधकं प्रोचे राज्ञोक्तं कुरु मे द्रुतम् । अन्यथा सकुटुम्ब त्वां भूपोयं पातयिष्यति ॥२५॥ एतद्वचनमाकण्यं वधकोयग् दयापरः । नाम न श्रूयते यत्र तत्र गच्छ द्विजोत्तम । ॥२६०॥ स्वरधार्थ वररुचिः स गतोन्यत्र कुत्रचित् । प्राप्तो मृगाक्षिणी लात्वा वधकोवि नृपान्तिके ॥२६१॥ दरम्थे चक्षुषी तेन दर्शिते मोजभूपतेः । तदर्शनात्म संतुष्टः क्रोधो नैवास्त्यतः परम् ।।२६२।। द्वितीये दिवसे प्राप्ते देवराजो नृपात्मजः । गतः स्वल्पपरीवारो श्वान् वायितुं पहिः ॥२६३।। प्रहितो भूभुजैकेन तुरङ्गोयं ममा तः । कुमारस्तं समारूढो भवितव्यप्रयोगतः ॥२६॥ उधाने चाहितः पूर्व पश्चान्मुक्तोतिवेगतः । कियती च भुवं गत्वा पं(ख)चितः स तुरङ्गमः ॥२६॥ तदा" चतुर्गुणीभूय" भूमि वेगादलङ्घयत् । योजनानि" कियन्त्येषोरण्ये नीतोतिमीषणे ॥२६६॥ खेदखिन्नकुमारेणादयेको दतस्ततः । नीत्वा तस्याप्यधोमागे समुत्प्लुत्यावलम्बितः ॥२६७|| मुक्ताश्वोपि पदे यस्मिंस्तस्मिन्नेव स" संस्थितः । उत्तीर्य स कुमारोश्वादुपविष्टस्तरोस्तले ॥२६८॥
1. B1, Band B: तप्यूजि | कि कुर्मों । 2. BI, BP and B भूपो घात करिष्यति । 3. 31, Baul IR मः । +. B1, Bud3. मग चक्षुः समादाय वरकाप्ता(कोणान्) । 5. P. Be and Is तेन दृष्टेन । 5. B1, Band B. दिवसे द्वितोय। 7. B1, BP and 83 °विणें । 8. B1 पचि; B पिचि । 2. 31, 13 anl 133 तया। 10. B Band Bणो भूत्वा । 11. BI, BAnd L: "नानां । , B1, Bad B3 तत्र तेनैव । 13, B1, Band ३३ उत्तीर्णः ।
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१२
भोजचरित्र विश्रान्तः शीतलच्छायवृत्तस्याधः कुमारकः । तुरगः सुकुमारत्वात् प्राणमुक्तो बभूव च ॥२६६॥ कुमारश्चिन्तयामास किं जातमसमञ्जसम् । क राज्यं राजलीला मे क पित्रोरपि संगमः ॥२७०॥ वृक्षास्तु सरलास्तुङ्गा अत्राटव्यां च सन्त्यमी । सूर्यस्याभ्युदयश्चास्तं कचिन ज्ञायते मया ॥२७॥ अत्रान्योप्यस्ति संतापः सिंहव्याघ्रसमाकुले । डाकिनीशाकिनीभूतप्रेतराक्षसपूरिते ।।२७२॥ ईग्विधे बने घोरे चुसपायः स पीडितः । सरः शीतलवाःपूर्ण ददर्श कापि च भ्रमन् ।।२७३।। वस्त्रपूतं जलं पीत्या स्थितश्छायातरोस्तले । पुनम्राम च चने कस्यापि मिलनेच्छया ॥२७४।। भ्रममाणे कुमारेस्मिन् सूर्योप्यस्ताचलं ययौ । दुष्टजीवमयभ्रान्तः समारूढः कचिदब्रुमे ||२७५|| संवाह्य यावदात्मान कुमारः स्थानमाश्रितः । व्याघात् त्रस्तस्तरौ तत्र समारूढोथ वानरः ॥२७६॥ भयभीतः कुमारस्तु खङ्गमादाय संस्थितः। नरवाण्या कपिः प्राह भयं मा कुरु मा कुरु ।।२७७।। पश्याधोमुख्य चस्यास्ते सिंहो दारुणेक्षणः । त्वया सह मम प्रीतिदुष्टोयं मात्र भक्षयेत् ॥२७८|| वानरस्य गिरं श्रुत्वा विश्वस्तो राजनन्दनः । वृक्षाधोभागगस्तावद् दृष्टः सिंहोथ" दारुणः ॥२७६।। भूम्या पुच्छ समुत्फाल्य नीत्वा शीर्षोपरि क्षणात् । प्रसार्यास्यं ततो गुञ्जन् वसम्मुखमुच्छलन् ||२८०|| मृगेन्द्रभयभीती तो बानरमाप'नन्दनौ ।
वृक्षस्थौ सुहृदो जातौ जलातश्च परस्परम् ॥२८१॥ 1. B1, Band | सुकुमार शान्तः प्राणान् विमोचिन: [[मुमोचितम् (मुभीष मः)] । 2. Bi and B2 तमंदिवलें। 3. It and ty: बलः । 4. BP. B and Bः । 5. B. B: and BJ पश्य वृक्ष अधोभाग सिंहासो । 5. B) "नि । 7. 31. Bs and Ba "नए'1
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पञ्चमः प्रस्तावः
असौ दुष्टस्वभावोस्ति बुभुक्षापीडितो हरिः । आवाभ्यां न प्रमादो हि' करणीयः कथंचन ||२८२|| वात प्रकुर्वतोरेवं गता रात्रिः कियत्यपि । वानरः कथयामास श्रूयतां राजनन्दन ! || २८३ ॥ निद्रा व्याप्नोति ते बाढं नेत्रयो रजनीचणे' | शेहि त्वं तन्ममोत्सङ्गे पूर्वप्राहरिकोस्म्यहम् ||२८४ ॥ श्रुत्वा मस्तकं सुप्तो विश्वस्तो राजनन्दनः । afi प्राहरिकं ज्ञात्वा सिंहो वदति तं प्रति ॥ २८५॥ आवां वनेचरौ द्वौ स्त आवामेकत्र वासिनौ । आत्मवर्गे कुरु प्रीति परवर्ग कृतः सुखम् ||२८६|| नवनेचरयो: " प्रीतिः पूर्व शास्त्रस्ति' निन्दिता । तदिमं देहि मे मत्यं चिराद्राज्यं वने कुरु || २८७/ सिंहस्य वचनं श्रुत्वा कपिर्वचनमत्रवीत् । aaj raat किं स्यात्सारास्तिवानृणाम् ॥२८८||
ददाम्येनं कथं तुभ्यं दत्ता वाचा मया यतः " ↓
एवं मत्वा मृगेन्द्रत्वं मुचैनं गच्छ चान्यतः ॥ २८६॥ मृगेन्द्रः पुनरप्यचे चुधार्त
11
दिनत्रयात् ।
कृपा नोत्पद्यते तुभ्यं दृष्ट्वा मां दीनमानसम् || २६० || कपिरूचे कृपा भद्र ! दुष्टे जीने कृता वृथा । जीवित प्रापितो दुष्टः सुन्दरं कुरुते न हि " || २६१ ।।
एवं विवादवशतां गतं यामद्वयं निशः ।
15
प्रबुद्धः स कुमारोपि कपिनैवमवाद्यो || २६२||
१२६
1. 81, R2 and Ḥ2. 14, 12 and 139 aifq e 3, B1, B2 and B प्रमादो न हि अ (वा) स्माभिः । 4 31 Hs and Pu कपिरूचे कुमाराधे निद्रा व्यापयते तव । 5 B1 B2 and B3 " च्हंगे | 6. 131 13 arel [33] नरे वने [ [B] न]चरं । 7. BB Ba and 333° में) 9. B3, 132] and 19 वाचा सारं च देहिनाम् । 10 111, B2 and B3 दत्ता वाचा मयः [B] यस्य ] ददाम्येनं त्वया ( यि ?) कथम् 1 11 B1 He and B3 मृगारिः। 12. B1, Ba and BS जोबा निता (तो? ) [B] हि दुष्टात्मा सुन्दरं महि किंचन । 13, B1, B and 83 एवं वादविवादेन 14 B1, B2 and 33 a 15 B1 Be and B वानरेण षच जगी ।
२
१७
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१३०
भोजपरिने सुप्यते मयका मित्र ! जागरूकस्त्वमप्यहो । न कापि पर्तते शक्षा स्वपिमाहारके सति कपिः पुनरपि पाह' प्रपञ्ची हरिरस्त्यसौ। विप्रतारयति क्रूरो' दातव्यो न तथा प्यहम् ॥२६४॥ एवं श्रुत्वा कुमारोवक् अपश्ची किं करिष्यति । कालिन्यां रमते हंसो न श्यामागस्तथाप्यसौ ॥२६॥ प्राहाथ वानरो वत्स ! मा कूर्यास्त्वं रुषं मयि । सुष्टु वा दुष्टकार्य वा मानवाजायते ध्रुवम् ॥२६६।। इति गाढतरां शिक्षा दत्त्वा राजसुताय सः । अविश्वासी वानरोपि संनद्धः शयनाय सः ॥२६७॥ कुमारस्य स उत्सङ्गे सुप्तो निर्भरमानसः । ज्ञात्वा सिंहस्ततोवादीत् कुमारं मृष्टया गिरा ॥२६८।।
दुष्टात्मा वानरो धू? मीतस्त्वय्ययं हितः । • गतेन्यत्र मयि त्वां हि मक्षयिष्यति नान्यथा ॥२६६|| एवं यावत्सनिद्रोय भूमौ पातय मत्पुरः । भक्षयित्वान्यतो यामि श्रेयसा त्वं गृहे ब्रज ॥३०॥ कुमारोवग्धिता शिक्षा वैरिणोपि हि गृह्यते । मृगेन्द्र ! सत्यमेवोक्तं का मैत्री स्यानेचरे ॥३०१।। न मे युक्तमिदं कार्य कुमारेणापि चिन्तितम् । भवितव्यतया बुद्धिः परं भवति ताशी ।।३०२॥ कुमारोप्येवमायेद्य यावर्त सुव्यपातयत् ।
कपिस्तावत्समालम्ब्य तथैवारूढवांस्तरौ ॥३०॥ - ___ 1. B1, B and 13 मवता मित्र! जागरूकोप्यहं घुना। 2. B1, Band B म हि शंका प्रकर्सच्या माय 1 3. BI, B- and कपिरूचे कुमाराय । 4. B1, B and B यते दुष्टो। 5. B1, BP and B स्वया । 6. 31, 132 and B न हि श्यामतनुः कथम् । 7. BI, Be and B कुमारोत्संगमाश्रित्य । 8. B1, Band B वानरो धृतंदुष्टात्मा । ३. BIBE and B एवं शाका मनिद्रीयं। 10. Bi, Bi and B कुशल स] 1 11. Hands चरैः। 12. B2 and 33 TERA: Hafru; et onits the previous verse and this foot ! 13, B1, Be and B'तच्यानुमानेन बुद्धिर्भ ।
-
-
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पञ्चमः प्रस्तावः
१३१
विलदाश्चिन्तयामास कुमारो यावदात्मनि । कपी रोषारुणः प्रोचे यथा ज्ञातं तथा' कृतम् ॥३०४|| यद्यहं पातयामि त्वा वाचा मे यात्यहाँ तदा । एवं कर्णे लगित्वाय ददौ दारुणचीत्कृतिम् ॥३०॥ ततः कुमार संजातो मूको अधिलचेष्टितः । सैन्यकोलाहलातापत्कपिसिंहादयो ययुः ॥३०६॥ तसः पदानुसारेण पृष्टौ सैन्यं समागतम् । वनभूम्यन्तरे भ्राम्यश्चचान्तरेष्वपि ॥३०७|| केनापि' पक्षमारूढः कुमारोप्युप लक्षितः । समायाता चम्स्तत्र" दृष्टः शाखामृगोपमः ॥३०८|| कुमारं पृच्छति क्षेमं विसेमिरा" प्रजापति । भूमावेहि पुनः प्रोक्तो' विसेमिरेति भापति ||३०६॥ सामन्ता मन्त्रिणो वक्त्रं स्वं स्वं पश्यन्त्यमी मिथः । पालोटव्यामिहैकाकी" जातः प्रेताधिष्ठितः ॥३१॥ पश्चात्तापपराः सर्वे किं कृन विधिनाधुना । निर्माय विश्वालङ्कारं कलङ्कः किं कृतोधुना" ॥३११॥ एवं विचिन्तयन्तस्ते" समारोप्य सुखासने। कुमारं तं पुरस्कृत्यानयामासुपान्तिक ॥३१२।। भूपोप्यालापयामास वीच्य चेष्टा सुतस्य ताम्" । आस्ते ते कुशलं वत्स ! विसेमिरोत्तरं ददौ ॥३१३॥
- .. ..
1. B1, B3 and B* यद्वेदमि[ B1 and D- द्विम् तादृशं । 2. B, Brand Bd यदि त्यां पातयिष्यामि । 3. B1, B2 Fnl B गम्यते । 4. B1, Rand BR 5. B1, Ba and B3 कुमारस्तंन । 6. B1, B2_und B: इलान्नष्टा: कपिसिहादयोपराः। 7. B1, Band B कुमारो । 8. B1, BP and B* दुरास्केनोग। 9. B1, B3 and B3 नुसं त्तत्र । 10.11 and B2 substitute safar and B34 fazakar liere as well as in the following versey | 11. B1, B: und 13 समागच्छात्र भूम्यां भी [B And 130 मो] । 12, B1, B: and B3 सामन्तमश्रियन्त ( गहस )मुखं पश्वन् परस्परम् । 13. BI, B* And B3 'व्यामर्थकाकी । 14. BI, B and B3 कलहूं कि कृतं त्वया । 15. BA, B and B3 संचिनयमानास्ते 1 15. BA, B- and Bय समानीतो(arr) न । 17. B1, B2111d Bोष्टी मुनस्य मदोक्ष्य भूपेनालापितस्तत:!
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१३२
भोजचरित्रे
कुमारवचनं श्रुत्वा भोजभूपः सुदुःखितः । सुतरत्नस्य दोषोपं विधिना विहितः । कथम् ॥ ३१४॥ किं जातं कस्य दोषोयं प्रतीकारोस्ति कीदृशः । चिसे' दोलायमानस्तु धारायां प्राप्त ईशिता ||३१४५ ।। कुमारचेष्टितं चीन्क्ष्य सत्यवत्यस्ति दुःखिता । कथयामास भूपायें पश्य देवेन यत्कृतम् ||३१६|| उपायो हि कुमारस्य करणीयो यथाविधि । येन नीरोगतामंति तव पुण्यप्रभावतः ॥३१७॥ भूपेनानेकविद्यानां दर्शितो मन्त्रवादिनाम् । प्रतीकारः कुतस्तैश्च गुणो नाभूत्कथंचन ||३१८ || रायूचे श्रयतां स्वामिन्! भवेद्वररुचिर्यदा' । नदैवैतं कुमारं हि कुरुते रोगतिम् ॥ ३९६ ॥
भूपोच देवि ! किं कुर्मः कुकर्मास्ति मया कृतम् | पश्चातापो ममात्यन्तं करा चिन्तामणिर्गतः ॥ ३२० ॥
राज्यप्युवाच वधकः समाकर्ण्य अपृच्छताम् । भाग्याच्येदस्ति जीवन् स सुन्दरं किमतः परम् || ३२१ ॥ आकार्य वधकः पृष्टो" भूपेन कृतनिर्भयः " । सोवक कोपो न मे कार्यः सत्यवादे | " कथंचन ॥ ३२२ ॥ जीवन्मुक्तोस्ति कारुण्यात् " प्रच्छन्नं भ्रमति क्वचित् ।
12
यानि सन्त्यनेकानि भयं न मरणात्परम् ||३२३|| एवं श्रुत्वा नृपो हृष्टो जीवन्नस्ति स चेद्गुरुः '' | तदा यथा तथा कृत्वानेष्यामि स्वान्तिके लघु
॥३२४॥
यथा ।
BABA and B 3 वितं । 3. B3 दबेन । 131, B2 and 19 तदाच B1, Bald Ba पश्चा व्यते] भाग्ययोगेन । 10. H Be and R3 कोपो देव ! न
1. B1, B2 and B विहिलो विश्विना । 4 B1 and B णीयस्तथाविधः । १३० d B कुमारस्य नीवजं कुरुते क्षणात् । 7 131 132 and Ha साधुना कि मे । B1, Band B जोबन [B] Bē and H" काः पृष्टा । 11 B Be and
+
जीविनी
मुक्तः । 14 131, Be and
चास्माभिः करणीयः । 13 BA Ba and 133 कृपया 133 जोन्यमानोस्ति चंद [13° स ] गुरु: 1 15. 01 02 and 33 कृत्या माईचा नियामि निजान्तिके ।
·
में सहमा and B 18. B
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१३३
पञ्चमः प्रस्तावः इसि निश्चित्य मनसा खुपायश्चिन्तितो महान्' । ग्रामे प्रामे निजा भाई शेषिताः सोरहेको ।।१२।। कथयन्ति प्रतिग्राम ग्राहोयं नृपवर्करः । स्थूलं कृशं वा यः कर्ता स राज्ञो मारणोचितः ॥३२६।। ग्रामीणास्तवचः श्रुत्वा सर्वे जाता मयाकुलाः । शुभूषितोयं स्थुलः स्यादन्यथा च भवेत्कृशः ॥३२७॥ नन्दकग्रामवास्तव्या मिलिनास्ते महत्वराः । गता वररुषेः पावें विज्ञप्तिः पामरैः कृता" ॥३२८|| शास्त्रोदन्तं द्विजः प्राह' श्रयतां भद्धचोधुना । शुश्रुष्य बोत्कटः सायं प्रात:श्यो काग्रतः" ।।३२६॥ तदुक्तं तत्र कुर्वाणैर्गते' काले कियत्यपि । पामरैर्वोत्कटा नीता धरायां भूभृदाशया" ॥३३०।। भूपादेशाद्गृहीतास्ते बोत्कटास्तोलिता अपि । स्थूला केषां कृशः केप सदृशा नोत्तरन्ति ते ॥३३॥ तोलितः सम उत्तीणों नन्दकयामसंगतः। पृष्टास्तेपि द्विजं ज्ञात्वा प्रेषितास्तत्र मानवाः ॥३३२।। द्विजोप्यन्यत्र स गतो न लब्धो नृप पूरुपैः । विज्ञप्तो नृप' आगत्य स्वरूपं कथितं समम् ॥३३३।। प्रहिताः पुरुषा राज्ञा ग्रामे ग्रामे निजाः पुनः' । प्रामीणान कथयामासुः साक्षेपवचनैद्रुतम् ।।३३४।। युष्मद्ग्रामेषु" ये कृपाः प्रेष्या धारान्तरे तु ते ।
विवाहो भोजभूपस्यासन्नीयं समुपागतः ॥३३॥ 1. B', B andl B हृदि । 2. B1, B- and IF 21 . 131 and B2 बोकटम् (ट:)। 4. DP, Be anel B "पिता भस्म्यू लो न शुश्रूषा । 5. BI, PO and I3 T6. Bl, B: and B रजमः। 7. BI, B: and B प्रोत् । 8. RI, B2 and B३ मवान् । 9. BIES and B विरीग्रतः । 10. B1, B and Ba तस्यादेशे तथा कुर्वन् गतः। 11. BI, B and Bi 'टाः सर्व धारां नीता नपाझया। 12. B1, B2 and Bs राजादेशे गता भटाः । 13. B1, Band Ba राजपो"1 14. B1, B and B: भूप। 15. BL BE and By: कथिताखिलः । 16. Bi, Bhand B3 पुन: प्रहितवान भूपो। 17. B1, 13 : und B नरान्निजान । 18. B1 * and 19' कषयन्ती Bअलि ग्रामोणान् । 19. B1, Band B ग्रामग्रामेषु । 30. B1, B2 and B' ध्रुवम् ।
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१३४
भोजचरित्र ग्रामीणास्ताडद्यमानास्ते कूपान्प्रेषितु'मक्षमाः । क्रियते किं प्रोच्यते किं देशः सर्वोप्युपद्रुतः ॥३३६॥ सणवाडा भिधे ग्रामे जनास्तत्र निवासिनः । स वररुचेः पाश्र्चे समागत्य व्यजिज्ञपन् ॥३३७॥ तेषां वार्ता समाकण्यं द्विजः प्रत्युत्तर ददौ । यं गत्वान्तिके राज्ञः कथयन्त्वेव मद्वचः ॥३३८॥ अस्माकं कूपका ग्राम्या नागच्छन्ति पुरे प्रभोः' । एकः कपो नागरिकस्तदर्थ प्रेष्यतां वरम् ॥३३६॥ द्वावेकत्र यथा बवा प्रेष्येते भूपतेः पुरः । इसित्वा भूपतिः प्राह वचो वररुचेरिदम् ॥३४०॥ अहिताः पुरुषास्तत्र प्राप्तो नैव गतः क्वचित् । पुनः प्रेषितवान भूपः प्रतिग्रामं निजानरान् ॥३४१॥ चालुकारज्जयो लोकैः प्रेष्या राज्ञो गृहाद्गृहात् । बन्धनाय तुरक्षाणां विलोक्यन्ते महादृढाः ॥३४२॥ बचोसमञ्जसं श्रुत्वा ग्रामीणास्ते विलक्षकाः । न मुच्यन्ते राजपुंभिर्लचादानादपि क्वचित् ।।३४३।। देवग्रामनिवासिन्यः सकला मिलिताः प्रजाः । कृताञ्जलिभिरूवेथ ताभिर्वररुचिः पुनः" ॥३४४|| ज्ञातवृत्तो वररुचिस्तेषां प्रत्युत्तरं ददौ । गत्वा च भोजपाचे तैर्विज्ञप्त" पामरैर्जनः ।।३४५॥ देव किंचिम जानीमो ग्राम्याः प्रेतसमा वयम्" । एका रज्जुदर्शनीया रलिभ्यामस्सदग्रनः ॥३४६॥ हसित्वा भूपतिः प्राह ग्राम्याणां नेटशी मतिः ।
बुद्धिर्वररुचेरेपा शीघ्रं गच्छन्तु भी भटाः ! ॥३४७॥ 1, B2, B- and B पचालन । 2. 13t and 152 १४; शिणवाहि(av) | 3. B1, Band B३ गत्वा नपपादय । 4. 131, Rand B प्रमों।B कूपैक नागरीक चेत् प्रेष्यत देव तद् । 6. B1, Bund 13 प्रेपयामस्तथा कुछ। 7. 31, Bad B प्रतिमामे भटरनपि । 8. B p and F मिB1 द; B ]ो क्रियतां दुटम् । 9. IBL, R and B गता बरकचियंत्र विज्ञप्तस्सः कृताञ्जलि । 10. B1, rse and B: भोजभूपाले विज्ञप्तः। 11. B1, Us and Ba देव न ज्ञायतेस्माभिप्रामीणाः प्रेनसायाः। 12.11, 133al B आद्यं दर्शय सिन्दुयाँ।
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पञ्यमा प्रस्ताव राजादेशाद्गतास्तेषि' स गतोन्यत्र कुत्रचित् । ग्रामे ग्रामे शोषितोपि न प्राप्तः स तु कुत्रचित् ॥३४८॥ पुनः प्रहितवान् भूपः प्रतिग्राम निजामरान् । कथयामास तल्लोकान् श्रूयतामेकचित्ततः ।।३४६|| ग्रामे ग्रामेपि ये सन्ति" राजमान्या नरा इह । यथाविधि नृपादेशस्तथागन्तव्यमत्र तैः ॥३५०।। ग्राम्या भीताः समाचतुर्भुपादेशविधिः कथम् । ऊचुस्तेप्येकचित्तैस्तु स विधिः श्रूयतामहो ॥३५१।। न पादचारैर्नारूढेश्छायायां नातपेपि न । भवहिरवागन्तव्यमादेशो राज्ञ ईदृशः॥३५२|| ईग्विधं नृपादेशं श्रुत्वा लोको व्यचिन्तयत् । द्रविणग्रहणोपाय' आरन्धोयं महीभुजा ॥३५३॥ गोदावरी निवासिन्य एकत्र मिलिताः प्रजाः । गता वररुचेः पार्वे विज्ञप्तस्ताभिरमृतम् ॥३५४॥ द्विजोवग्मेषमारुह्य शीर्षे कार्या च चालिनी' । मच्छिवां प्रविधायैतां यान्तु शीघ्रं नृपान्तिके ॥३५॥ गताश्चैतं विधिं कृत्वा दृष्ट्वा भूपेन दूरतः । हसित्वा ताः स पप्रच्छ जातो वररुचिया ॥३५६।। नरान्प्रेषितांस्तत्र न प्राप्तो धीनिधिः" क्वचित् । खेदखिन्नस्ततो भूपो निराशः सन् द्विजे" स्थितः ॥३५७|| दच्यो चररुचिश्चैवं गमनानसरोस्ति मे | कृत्वा रूपपरावर्तसुपकारं करोम्यहम् ।।३५८।। सुखासने समारुह्य वधूवेषधरो द्विजः । मतो घारापुरीमध्ये पटहो यत्र वाद्यते ॥३५६।।
1. 131, Bi and B तास्तत्र । 2. B1, I and BA मे । 3. B1, Be and R प्राम पामेष में फेषिः । *. BP BP and B२ च्यग्रहणकोपाय"। 5. B1, B2 and 133 वयो । 6. B1, Bi and B विज्ञप्तस्तैः कृताम्जलि । 7, BI, B and BN कुर्याच[B कृत्वा च] पालिनीम् । 8. Bl and B पृच्छते तासां । P. Bl and B: "चिस्ततः; 3% ornits this verse completely 1 10. B3 नगरे । 11. Bi, B* and B स्तहिजे । 12. BI and B2 विद्यते ।
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भोजपरिने
दिव्यबस्नभृता' वाला दिव्याभरणभूषिता । सुखासनात्समुसीय पटई स्पृष्टवत्यहाँ ॥३६०॥ ये नराः पटहारचा चितमस्तैनरेश्वरः । कयापि श्रेष्ठिवध्वाधागत्य स्वत्पटहो धृतः ॥३६१।। तद्वचःश्रुतिमात्रेण प्रेषिताश्च निजा नराः। तथैव वाहनारूढा समानीता नृपान्तिके ॥३६२।। यवन्यन्तरतः' क्षिप्ता स्वीजनान्तश्च "संस्थिता । भूपस्तु सपरीवार उपविष्टोग्रतो पहिः ॥३६३॥ देवराजकुमारोपि यवन्यासनतः' स्थितः । समक्षं सर्वलोकानां वध्वा पृष्टो नृपात्मजः ॥३६४॥ द्विजः प्राह कुमाराय तव देहे व्यथा किसु । विसेमिरावचस्तावद्वभाषे तक्यूं प्रति ॥३६५।। एतद्वचनमाकर्ण्य रोग ज्ञात्वावद्विजः । एकाग्रेण कुमारेदं श्रोतव्यं मदचस्त्वया" ॥३६६॥ विश्वासप्रतिपन्नानां बचने का विदग्धता । अङ्कमारुह्य सुप्तानां इन्तुः किं नाम पू(पौरुषम् ॥३६७।० एतद्वचनमाकर्ण्य कुमारः पुनरब्रवीत् । त्यक्त्वा बाद्याक्षरं प्राह सेमिरे"त्यक्षरत्रयम् ॥३६८] सा वधूः पुनराघष्ट श्रूयतां नृपनन्दन । स्थिरं चित्तं समाधाप" यद्वदामि तवाग्रतः ॥३६६||
1.31, and Bस्त्रावता । 2. 131,132 and B स्पष्टवान् स्वयम्। 9. B1, Ba und 133 प्रेषयित्वा नरान्निनान् । 4, B1, ud Ba # 1 5. BI, B and BA नरसं । 6. B1, B and B यारोपविष्टस्लत्पुरो। 1. Band B पवन्यासन[B निके। 8. 31 omits this verse 1 9. B1, 132 anti Bएमवित्त कुमार त्वं धूयतां मदखिलम् ! 10. BI and By substitute tris verse with another Vurse which reads as fellows:
मंमारस्य अ(त्व)मारस्य वाचासारस्म देहिनाम् ।
वाचा विचलिता यन मुकृतं तेन हारितम् ।। 11. B1, B and B कुमारेणापि भापितम्। 12. B1, BO And B तमाचलर सावत् । 13. B३ घमेरें । 14. B1 दाय ।
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मानस्तावः सेतुं गत्वा 'समुद्रस्य महानद्याश्च संगमे। ब्रह्महा मुच्यते पार्मिमत्रद्रोही न मुच्यते ॥३७०|| एवं श्रुत्वा कुमारोपि त्यक्त्वान्त्या(द्या)तरयुग्मकम् । आलापितो वदत्येवं मिराक्षरयुगं मुखे ॥३७१।। ऊचे पुनर्वधूरूपा कुमाराग्रे शृणु स्वकम् । हितवाक्यं तृतीयं मे कथयामि यथाविधि ॥३७२।। मित्रद्रोही कृतघ्नश्च ये च विश्वासघातकाः । ते नरा नरफं यान्ति यावचन्द्रदिवाकरौ ।।३७३।। वधूवचनमात्रेण राजा विस्मितमानसः 1 पुत्रमालापयामास परमस्नेहतत्परः ॥३७४॥ पितृवाक्याकुमारोवग्रकारमेकमक्षरम् । चमत्कृता सभा सत्रां श्रुत्वा श्रेष्ठिवधूवचः ॥३७|| राजस्त्वं राजपुत्रस्य यदि कल्याणमिच्छसि । देहि दानं द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः ॥३७६।। एतच्छलोक चतुष्केन नीरोगोभन्नपात्मजः । एवं श्रवण मात्रेण विस्मितो भूपतिर्जगी ॥३७७|| श्रेष्ठिनोसौ वधूः कस्य श्रेष्ठिनः कस्य वा सुता। पाठिता केन गुरुणा सुसिद्धा सत्कुलाप्यसौ ॥३७८|| आश्चर्य तु परं मैदो यदहवासिनी । भाषा'मरण्यजीवानां जानात्येतद्धि कौतुकम् ।।३७६|| राजोवाच, युग्मम् । पुरे क्ससि कौमारि' ! पटव्यां नैव गच्छसि | ऋक्षव्यापादिजां वाचं कथं जानासि पुत्रिके, ! ॥३८०||
1. Bl and B: सेतुबन्धम'; व (स) यं गत्वा । . . anti B* मसानयां च; B3 गङ्गासागर । 3. Ri and B.मुवति । *. Rl and B य तया; 133 मराक्षरद्रय तदा। 5. BI, Band B% नस्य | G. Bl and BR:३५ [म] 17. Rand Bविजादीना; BISपात्रेण। 8. RAJही दानं च सूत(शुद्धपत)। ५. 13 नतः श्लोक । 10. 13, B and B विस्मितः श्रुति । 11. Bt and BP पाहब। 12. B2 काम् । 13. B2, BP And B3 ति। 14. 181, B2 and B 'री। 15. B1 and B५ °दिकी वाचा । 16. BI and: जानात्यसो वधः, B सुन्दरि ।
१८
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भोजचरित्रे वधूः प्रत्युत्तरं दत्ते यवन्यन्तरके स्थिता । धेमथहं पत्प्रसादेन तद्वचः श्रृणु भूपते ॥३८१॥ देवाचार्य प्रसादेन जिहाने मे सरस्वती । तत्प्रसादेन जानामि भानुमत्यास्तिलं यथा ॥३८२॥ एवमत्यद्भुता' वाणी श्रुत्वा धाराधिपोवदत् । न वेत्ति तिलवृत्तान्तं मां च वररुचि विना ॥३८३॥ एष नूनं वररुचिर्वधूवेषात्स मागतः । विना तेन न" मत्र्येषु बुद्धिलेशः कृतः स्त्रियः ॥३८४|| चिन्तयित्ववमेवान्तर्यवन्या' मोजभूपतिः । दूरीकृत्य समाश्लिष्टोमीष्टो वररुचिर्द्विजः ॥३८५।। तयोः प्रमोद उत्पन्नो द्वयोरपि परस्परम् । संजातो हृदि संतोपो यं जानाति विधिः परम् ।।३८६॥ प्रमोदेन दिवा रात्रौ शाखचर्चापरायणौ। गमयामासतुः" कालं सुखेनापि ष सर्वदा ॥३८७|| नृपतिमोजगुणाधिककीतनं श्रुतक्ती किल भानुमती मुदा । नृपतिना कुतुकं हि विवाहिता सुमतिना पुरुषेण साप्सराः ॥३८॥
इति धर्मघोष गम्छ । राजवल्लभफूने भोजपरित्रे भानुमतीवियाहवर्णनो देवराज
सजीभवनवर्णनो13 नाम पञ्चमः प्रस्तावः 1411 ५ ॥
1. B3 वना। 2. 131, B2 and B. देवगुम। 3. B नाहं ना || +. B एवं स्तुत्वा तां। 5. B', BP and Bs वेगे | B1, BP and 133 तदिना न हि। 7. BI, By and 3 "यित्रा ततस्वित्तें यवन्या। 8. 31, 32 and B यग्नात हर्ष। १. 111, 32 and 33 " तज । 10. BI, Be and Ba नं। 11.37 श्री गोष। 11. 31 and Be add before this word; श्रोधर्ममूरिमेलाने मूलपट्टे[B]श्रीमहोलफसूरिशियपाठकश्री B: adds धर्ममरिसंताने पाठकश्री'। 13. 131, BF and B3 सज्जीभूतवर्णनो ।
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EXPLANATORY NOTES | Tho Numbers Donote The Verses)
I PRASTĀVA 1. 7597 or f o ol Akvasena', (the king of Väravas! ) viz. Pareranátha, the 23rd Tirthankara of the present vasarpine, who was lom in Variņas!
Anfang, 'Gautama and others who were the heads of the garag'. Nahavira is said to have divided! Luis followers into nine yanas or schools, each bcaded by a gunu that or gunakida, selected out of his chief disciples, Gautama, whose full name was Gautama-Indrabhati was Maltavira's first disciple and was the liced or a guna ol s0). aft7aak, 'the story of the donation of food ( a Talsuses/ix compound) or 'the story of the donor of lood' (a Bahuveiht compounil). Seu Prastava II1, verses 74 ff., and Prastava IV, verseg 175 fi. Fa e: A karnadharaya or Teluruska conpound.
2. NET N WAT i sku, viuus person.' Him : The modern Malwa in Central India.
* II: Tlie n:odern Dhat in the Malwa couttry, 5. F ati gara : C1. Prastāra lV, versc 556. 6. lar: a free : Tafant f ri sega: 7. #17, 'pride.' fyra : name of the father of Muaja. Sce Introduction.
8. 3919, Statc crat, commerce etc. Cí. Praslava II, verse 89. All or 4967. He fanily of the Parainātas. Note tlac clision of one syllable to suit the metre, cf. ar: gar zo eft
: in the Mandhata Platcs of Devapăla, ( Ep. Ind. Vol. IX, p. 109, versc 21 ).
9. glag:--The regular forn afragt: is changed to honour the metre.
10. af, obviously itsel in the sense of 'lie enjoys in which senst the form should be भृक्त । Better rea1 बुभुजे। तत्समम् used for तया समम् note the position of समन् in the con pound. CI. 379aly | Prastava IV. vers 389). Similar irregular compounds are not wanting in Jain Prabanas.
11. :- Ao irregular form for goa: 12. To supplement the idea of this verse BI quotes the following stanza :
fat gar hafa MEAT I Aafet 441 far as I 13. चतुर्षा बुद्धपधिष्ठितः:= सामदानादिपु चतुबिधेषूपायेषु चतुर्षा प्रकारामानया बुद्धपा अधिष्ठितः । 14. aftags afar: 'witli paraphernalia'. 17 = fazifeH: 1 15. Egit (Prakrit)-- (Sanskrit ), TENISTA— used in the sette of
GT 291 379 Ter i Sote the compound without sämarikya, th:, a Deği word teaning Fa: 1 tafamaag. 'as it poor lian (will take ) a treasure'.
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BHOJACHARITRA
[ First 19. वृत्तान्तम-Note the neeuter gender of the word which is rather very rare. भूपन प्रियायाः अग्रतः मस्य वृतासम् ( उपस्वा ) "पुण्ययोगाल्लम्धोसी है भने ! अङ्गजन्मवत्पास्मः" इति जगतम् इत्यम्ययः ।
20. (X) Tlic Praktitir word in means 'deep affection'. 21. 179997, festival (w child's Tsirthi'. Cf. te Prakritic 49149.
23. षष्ठिकाचार, religious FOLLOy priormed on the sixth day after the child's birth', in honour of the Motlier goddess Shashths, who is believed to decide the wlult future of tur Twlio177m thattar. मनशशि 'entting or wishing of the rutils (of the childy. BR exilains the terril as नखशुद्धिप्रमुख अशुषिटालमा, This ceremony aperATa tu be link unt very popular. दशालिके, unxiously wrong for दश महनि, 'on the teenth das".
31. Vote the construction, सिन्पुनृपेण कन्ये ती विवाहितो.
32. Note that: disvBalic ftbeing changed into trisyllablc fat: to suit the metre. 31 supplements ilic ilea layelluoting: गुणवत्तमतां याति बालोपि वयसा न हि । द्वितीयायां शशी यन्या पूणिमाया तमा न हि ॥ यस्यास्ति विसं स नर: कुलोमः स पण्डितः स श्रुतवान् मशः । स एव दस्ता स प शनायः सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्त ॥ विभवः पज्यते लोक न शरोरामि देहिनाम् । चाण्डालोपिनर श्रेष्ठी यम्यास्ति विपक्ष घनम ( The sucund of these tlxee verses occurs in Bhastrilari's Milisatule, v.51.)
33. TE#, 'a lustered child', 34. BI surplinents by quoting thu fuliowing . एयागच्छ समं विशासनमिदं प्रीतास्मि तं दर्शनात् का वार्ता परि दुर्बलोसि व कथं कस्माभियर पसे । इत्येवं गृहमागतं प्रगयिनं ये भाषयन्त्यादरात तेगं युक्त मसंहसन ममसा गग्तुं गई सर्वदा ॥
Iliis verse is found in the Panchatantra (N, S. Press, 1936, p. 108, verse 276 ) with sille variations.
39. This verse is found in the Hkupradesa (Peter Peterson. 1887, P.112).
40. स्पर्शयन, fur स्पृषान् । स्पर्शयन पाणिना स्पटम, वात्सल्येन हेतुना पुनः पुनः हस्तेम स्पृशन् इत्यर्थः ।
41. विनाशमित्यादि-तब नाशार्थ यतन्नप्यसो सिन्धुलः मक्तिगौरवात् परिपालीम एव तु हन्तव्यः इति भावः।
42. पदृच्छया - मयेष्टम् । वादिधक, old age'. परं भवम्, 'next life' or great prosperity, i. camiksha'.
44. A fluxitun. via . षट्को भिद्य मन्त्र:,is attributed to CliAajakya. (The Nitiststras, Mysane, 1957, pt.3, p.2, sıra 33). To supplement the idea Bl adds: eget fuck मन्त्रश्चतुष्कर्णस्तु धार्यते । विकर्णस्पाय मन्त्रस्य ब्रह्माप्यन्तं न गच्छति ।
Tluis Vutic is fom ili Vallal eva's Sihtashilawadi / vurse 2718).
45. रहाटकार, is it word imitative of u sound. here that of the sword. पारितः, 'caine Track'.
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Prastave }
EXPLANATORY NOTES
46. नन. 'certainly'. Blessing a bero witha blood-tilaka is often described in the populur ballads in India.
___49. स्थापितो मुजभूपतिः, अर्थात् मुभ्यो भूपतिवम स्थापितः । Note the compound without samarthya.
50. सिन्धुरामा for सिनाराज: or farधुराद । 30. Erit, an instruneat or weapon made or iron', 57. उत्थीयमानः, ior उत्तिष्ठन् । 60. तेलक: = सैलिकः ।
62. To supplement this verse Bl quotes the following: अषमा घनमिति बसमानी हि मध्यमाः । उसमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतो धनम् ।। This oil-mitler-Sindhula episodc is found in ane of the N5s of the Prabandhachintamani. It reads: बन्यबा (सिन्धुझेन ) पाराविर्माचिता । तेन (तलिकेन) नापिता। ततः कोपाटाल्य तस्कण्ठे माफयित्वा क्षिप्ता । तसिकेन रावा कता।
राजा पुनः सरजामकरायत् । बलोस्कटवन भीतो भुजनपः। Prateendhuchintamani ( Singhi Jaina Series .NO.I, 1991, p. 21 ). The word पारापि, is from the Desi पाराई, rneaning 'a big thing made ol irun'.
65. (N) वष्ठ, 'a aervant'.
70. To supplement this verse Bi quotes a verse, the correct reading al which is as follows:
आक्रोशिशोपि मुजनों न ववेदवाक्यं संपीडितोमि मधुर भरती दमः ।
मोरो जनो गुणशतैरपि सेम्यमानो हास्य हि यददति सत्कलहंषु वाच्यम् ।। This verse is found in the Subhashitanati [ verse 277].
71, ज्येष्ठको = 'मस्लो', P1 and Pl 74. करूम् लम्' (?)। पृष्टो for पृष्ठ । 76. को पाने-Rightly को जानोस, CI. the Hindi कौन जाने, 'who knows'. 77. सूर ( Prakrit } = शूर ( Sanskrit ),
Tlic story Ol blinding Sindhula is found in only one of the MSS of the Prabandhackintamani (Op. cit p. 21-22 ) which Tons as follows:
इतपच कपि मर्दनकारियो महाकलावन्तो देशान्तरादागता राज्ञा मिलिताः । ..............तेब स्वासया हस्तपादावलान्यतार्य पुनः सज्जीकुर्वन्ति । ......."हो राजा सिन्धुलस्याप्येवं कारयति । तस्यापत्तारितषु निश्चेष्टतां गतस्प नेनोशारं चकार । सज्जस्य तस्य नेत्रग्रहणे क: समर्थः ? बत: अनेम प्रकारेण ।
18, ग्रास, 'inaintenance' or land given for mainternance'.
81. नरः, 'men', nominative plural of न्। चूधामणो, probably refers to an astrological work. CI. Camilyfisura, The names like Chidamansara,ika.
84. जातो दुष्टपहै:-दुष्टा हषित लम्मे बात इत्यर्थः ।
85. अक्षरचोरिका, a bit of paper containing letters i. e. words on the future of the new burn'.
86. तेन राज्ञा मावेषोंन प्रचोदिताने नरा प्रत्यर्थः ।
88. This verse is found in Ballalasena'y Bhojaprabantha (V. S. Pruss, 1921, p. 2, verse 6)and in the Prashantinachintamani (op. cit., P. 22. verse 35 ). सगोडो fag , probably the Dekkan with the whole of North India i.c. Bllarata Varsha'.
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WR
BHOJACHARITKA
20. जन्मकुण्डलिका, 'the horoscope'.
१४. राज्यस्य = राज्यम् ।
[ First
99. बाल्ये पनि संतिष्ठते इति वाल्यसंस्थः | B1 supplements the context by quoting the folowing : का*: पद्मवने घूति न कुरुते हंमपि पोदके मूर्खः पण्डितसंगमे न रमते दासोप सिंहासने कुस्त्री सत्पुरुषे सदा न रमते नीचं जनं संघले या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता दुःखेन सा त्यज्यते ॥ विद्यारत्नं सरकबिता भोगरत्न मृगाक्षी वाक्ारएनं परमपदत्री मानरतं तुरङ्गः । अम्भोरस्नं विदशस टिनी मासरत्नं वसन्तो भुमुलं कनकशिखरो मूर्तिरत्नं जिनेन्द्रः ॥ Both of these verses are found in the Subhashitaralnabhäṇḍāgāra (N. S. Press, 1952, p. 84, verse 21, and p. 115, verse 45) with some variations of which केनापि न रयज्यते, for दुःखेन सा स्मज्यते, and नृसिंहः for जिनेन्द्रः are.worth noticing.
104 वचन Cf the Prakritic बहूण, in the sense of वध, or हमन
108. B1 and Ba lave विधीयते, instead of विषोगताम् This shows that the author, or at least the cupyists, do not differentiate between the Present Passive Indicative and the Passive Imprative. And it is why we have the former in the place of the latter in a number of places in this work.
111. कृते कार्ये ई.ट. यस्मिनाये । नित्रकारकात् – चित्रकारद्वारा इत्यर्थः ।
112. क्षोदकपट probably the bark of the kshirodala tree. ' एप viz.भाग: i. c. in verse 117 below.
114. Note the Prakritism in प्रेमम् ।
115. Atfer this verse add' een end: a: attiecqz: gufta:' 1
117. This verse is found in the Bhujaprakantda (up. cit. p. 7, verse 38 }, Prabandhachintamanı (op. cit., p. 22, verse 35) etc. To supplement this verse, B adds tle following: "एतत्काञ्यय ( क्षणात् प्रबुद्धेन मुजेन मोजो न हतः । न धरणी धरणोपर मुंगई नकन भूपति भूषर सिंगई। गते कौरवपाण्डव जगघणी वसुमती कामहि आपणो ॥
121 भोजदुःखमित्यादि-मृति विना मे मनो भोगदियोगदुःख न विस्मरेदित्यर्थः ।
182 विद्यमानः for जीवन् ।
125 आत्मानं पालकत्वेन (पालितरवेन) प्रकटोकुत्पेत्यर्थः ।
126. B1 supplements: थषा शिखा मयूराणां नागानां व मणिर्यथा । तथाहि सर्वशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम् ॥
127, गोला ( Prakrit ) गोदावरी तीरं समर्पितम् - तोपर्यन्तमभयाप्तं राज्यं समर्पितमित्यर्थः Cf. भोजसोमायां न स्थातव्यम् etc. in verse 129 below. B1 supplenients राज्यं पालयते राजा सत्यधर्मपरायणः । विजित्य परसैन्यानि क्षिति धर्मेण पालयन् ॥ आशामानफलं राज्यं चकले तपः । परिशानफलं विद्या दत्तभुक्तफलं धनम् ॥ The last verse is found in the Dvalrinis atputlatiles ( Wpakhyana, 11 ) and in the Subhashitaraabhaagara (p. cif.g P. 157, verse 186/.
129 मोमा, territory'.
1
130 प्रधानादोषशङ्कायां सत्यामित्यर्थः । काष्यं दत्त्वा having offered wood' i... for preparing a tuveral mile; cf. "हद्रावित्यो नृपते सान्तमवगम्य कामपि भाविनोमविनोतया विपक्ष विमुक्ष्य स्वयं जितानले प्रविवेश " Prabandharil.tote on cit. p. 22-23,
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES
१४३
131, Bi supplements:
न मिमिता केनचित् पूर्वदृष्टा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गो । तथापि सृष्णा रघुनन्दनम्य रिलाशकासे fratterie: 11 This verse is found in the Dugtrinisat petalika (upakhyana 1) with some variations.
134. This verse also is found in the same work (opakhya 24) and it appears to be a quotation from a culogy on a chicf known as Dalapatiraya. Another verse on the same chief is found in the Stbhashitarainablsandagara (op. cit. p. 115, verse 28). एलपति may also mean 'A leader of the army'.
136. कोषाध्मातममा, vir "लेमपः" PL and Ps हिण्ठि दापयति = दिण्डिम शब्दापयति । उपद्रोति, for उपद्रवति; Cf. the Vedic उपद्रोसा, उपद्रोष्यति etc,
187. Bl supplements : गर्वान्वितेन तेनोक्तं रे वराक ! महीतले । न कोपि पुरुषोत्रास्ति 4 बागच्छन्ममोपरि ।। तावहिपप्रभा पोरा पाचनो गरुहागमः 1 तावत्तमःप्रभा लोके यावन्नोदयते रविः ।। विना कार्यण ये मूडा गच्छन्ति परमन्दिरे । ते नरा लघुतां यान्ति रवेषिय यथा शशो ॥
1:39. Probably we have tu correct क्षेत्रेण { in all MS into मात्रेण.
140. Bclure this verse one may expect an expression like a sferonfundeter श्रुत्वा मुन उवाच" | Originally मज्यसे कण्डः पादेस्यः । यस्य कण्डो सम पादस्यो भन्यते तस्मेत्यर्थ. ct. "कृत्वा पद नो गले" frararakshasa ( III. Verse 26 }. BI SIpplements: दृष्टं श्रुतं न तितिलोकमध्ये मृगा मगेन्द्रोपरि संघरन्ति । विघन्तुदस्योपरि चन्द्रमाक्रे किंवा विशालोपरि मूषकवन ॥
141. गोक्षुर(०रक) = Prakrit गोकावुरय, means 'n sin roupl pricky shrup'. So, "विस्तारिता:" etc. apneers to descrilhe as follows : Taila, having Munja's reply. cansed gokashurn-like iron-horns to be spread on the battle field in order to prevent the advance of Muñja's elephant during tlio war. Ct. बमानास्त etc. in verse 152 below. Ha supplements:
पद्यपि रति सरोषो वनस्थोय मत्तगोमाय: 1 तदपि न फुप्पति मिझो हसापुरुषेषु कः कोपः 11
TSB attributed to Bhartrihari is found in the Subhashitaralnabhandara (op. cit.. p.229, verse 17) with some variations.
143. विद्युतां धोती पस्मिन्काले तस्मिन्लित्यर्थः । इकारान् मुंचति = हङ्कारान् कुर्वति । पर (Desi) == कबन्ध | Ci. Hindi |
!45. Note the epic from भाम्यन्ते। शून्यकेकाणाः - "मश्वरनिसा' Pa and Ps. केकाणः - "घोडा" BI I अर्थनति हेतौ तृतीया ।
148. Vote the localism in काया । This verse with some variations is often met with in the inscriptions on the hero-stones in the Kannada speaking area (Ct e.g. Ep. Carr. Vol. VIII, Sb. 251-52).
148. दामिणः, "Taila". 150. This versc appcars to be a quotation, 151. सिन्धुवेसा, "currents or tides of the (river) Sindhu". 152. गोक्षरैः-See note on verse 141 tboves
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१४४
BHOJACHARITRA
[ First
158. B1 supplements प्रादौ रूपविनाशिनी कृशकरी कामस्य विध्वंसिनो ज्ञान माग्वकरी तपः सयकरी धर्मस्य मिर्मूलिनी । पुत्र कलत्रभेदमकरी लज्जाकुकोच्छेविनो मामापीडति सर्वदुःखजननी प्राणहारी
षा ||
159. तापयति, 'melts'.
11. सन् विद्यमान गर्यो यस्यास्ता सद्गर्षाम् । प्रसस्यति, 'utters. R1 supplemetns : व हि सिंहा मुगक्षयो बुभुक्षिता नैव तुगं चरन्ति । तपर कुलीना व्यसनाभिभूता न तोचकर्माणि समाचरन्ति ||
164. मली, food'; f मलीदा in Hindi. पश्यन्नपि दिशो दिशम् 'staring at one direction after another [in perplexity ]. B1 supplements: मांसपेशीम की चार जितः पशुभिः पुरुषाकारैराक्रान्ता च मेदिनी । दरिद्रो व्याधितो मूर्खः प्रवासी नित्यसे वक्रः । जोषम्लोपि मूलाः पञ्च पचमिते मही ।।
165 गरिष्ठसि नृपास्मासु — 4 sarcastic remark,
166. गम्यम् used for गन्तव्यम् ।
169, Originally seat instead of war ( ? ) 170 ईक्ष्य for प्रेक्ष्य, as in epics,
172. This verse is found in the Prabandhachintamani (op. cit., p. 23, verse 36), with some variations.
175. वापयामा ed in the set of
re
176. मुक्ताः, Le स्थापिताः । प्रचक्रमे Scit, 'भोज: ' P1
179 रसवती, 'a kind of dish mede of cured milk with sugar and spices'.
179-80 विदा वास्या 'कारणं किम् ? नोंदित मधुरं
गुणः, (तस्मात् ) पत्रो सकारणा अस्थि' इति चिम्लिसम्; ( ततः ) क्षणात् सा वासी स्नेहाम्मूकं नृपं प्रति (धर्म पत्री मनिकटे ) बलु योग्या, बथवा न ?" इत्यवदत् इत्यर्थः । B1 supplements :
अर्थनाशं मनस्तापं गछे दुरितानि च । वचनं चापमानं च मतिमान् न प्रकाषायेत् ।। This verse is found in Prastava IV [ verse 590]. Cf. मायुवितं गृह मन्त्रमोषध संगमे । दानमानापमानं व नव गोप्यानि सर्वदा ।। (Dvatrimsakputtalika. Utahhyana 1).
182 वापिता = कारिता । वामपादेन तिष्ठति for वामपादमनुतिष्ठति ।
186 B1 supplements: खान नास्ति दोषायं स्वभावमनुवर्तते । कुर्वन्ति तेषु साङ्गस्थं ते तला मलकाः खलाः ।। दुर्जनस्य दुराज्य ( द ) रूप वाचा चन्दनशीतला । मधु स्रवतिजिह्वाये हृदि यह विषम् ।। सच में पर्वता] ब्रा न च मे सप्त सागराः । कृतना हि महाभारा मारं विश्वासघातनम् । अहो प्रकृतिसादृश्य दुर्जनस्य खलस्य च मधुरैः कोपमायाति कटुकैरुपशाम्यते ॥
187. Wer A Dest word meaning 'a kick'. Cf. छात
189 पावस .., वधः ।
191. मर्कटेन etc : One may expect मर्कटो हि योगिनेव भ्राम्यते । योगी = मर्कटोपजीवी । 192. This Prakritic verse is found in Prabandhachintamani op. cit. p.23,
in Hindi.
verse 38 ).
193, IE, s. a. ater, (Hindi) i, a kind of thin, large bread, made of wheat, sugar and ghee. ण्डितम् 'broken".
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES
星期
194. अहम् = मण्डकः or मुजः क्षण्डिताः, 'were rebelled against' or 'were disree garderl'.
106. गृहीत्वा etc. - A sarcastic remar
198. This verse, with some variations, is found in the Prabandhechintamani (op. cit., p. 24, verse 36 ).
190. quefacía:, fixed on the stake'.
200. This verse is found with some variations in the SubhashitaratnabhandaBra fop. cit. 11. 91. verse 36 ) and in the Bhujaprahsndha (op. cit. p. 28, verse 144 - 202. This Prakrit verse is fund with some variation in the Prabandhachintamani (opeit. p. 24, verse 39. B1 supplements :
भ्रान्तं देशम दुर्गविषमं प्राप्तं न किंचित् फलम् त्यक्त्वा जातिकुलाभिमानमुचित सेवा कृता निष्फला । भुक्तं मानविवर्जितं परगृहे साशङ्कया कारुवत् तृष्णे । दुर्मतिपापकर्मनिरते नाद्यापि सन्तुष्यते ॥ This verse is attributed to Bhartgilari (Vairagyasataka, verse 4 ).
209 शूल्याम् = शुक्रायाम् Ci. Hindi शून्ये ।
204. Merutirnga puts this verse as well as the verse 213 below into the mouth of Munja himself before his tragic death (Prabandhachintamani op. cit. p. 24-25, verses 41-46 )
203. ज्ञास्यति = प्रकाशयति । दुष्टगोपन ( मधिकृत्य ) यत्प्रमाणं "अर्थनाशं मनस्तापम्' etc ( Prastāva IV, verse 591 तत् विज्ञातम् ( अतः गोपनं कृतम्
।
213. See Note on verse 204 above.
215, पुष्टश्च
— Regarding ( his ) name and special qualification ( lte ) was asked by the ministers'.
216. बापः 'father' आई, 'mother'. जाइ आणि 'als the daughter of the mother', This verse is found in the Prabandhachintamani (op. cit.' p. 27, verse 56 ).
218. साटकमलनिर्धाटक, remover of the dirts on the cloths'. पाटक-पट पटोरक tthief of the cloths of the village 9. Cf the Desi पीर, band of robbers'.
219. अत्रा अवाकान् वहन्ति भवनानि सतोरणानि सन्ति नीलं, नौर, पर्यास, सीरं दबिषु वा नास्ति; प्रासादशिखरेषु मूगतुल्यत्वान्मृगाः मृगाक्ष्यः संचरन्ति शैलशिखरेषु सुगारच घासान् अदन्ति इत्यर्थः । This verse and the verse 22 below, are found in one of the MSS. of the Prabandhus chintamani (op. cit., p. 29 verses 52, 53); with some variations.
220 " तद्मम न स्थितिः वाक्या" इति मत्वेत्यर्थः ।
281. बालिकांचे "लोहारपुत्रिकोचे " B1 See note on verse 219 above. भूतका इत्यादि यत्र कुले, मृतकाः गतायुष एव, ये जीवन्ति ते निःश्वसन्त्येव यत्र च कलहः दायादेष्वेव इत्यर्थः ।
यत्कुलीनाः (i.. लोहकाराः ) दारिभादिना गतायुषः मृतप्रायाः एवं जोबम्ति शुक्षसम्ति प इति वा । मृताः गतायुषवण जनाः यत्र कुले (लोहकारकुले ) स्वप्रतिकृतिरूपाभिः प्रतिमाभिः उच्छ्वसन्तीव जीवन्तीव वर्तते इति वा ।
223. This famous प्रहेलिका on the potter and his instruments is found in the १९
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BHOJACHARITRA
[ First
Stethoshitaratnathandagaral op. cit., p. 185 verse 19, B1 supplements: a h igit मिलिसा, तयोक्तम् - नदोषु दोयते दानं प्रतिमाही म जीवति । दातारो नरकं यास्ति तस्याहं कुलबालिका ।। अग्ने चित्रकरपुत्रो मिलिता, कात्यम् ? तयोमतम् - विहिता निरिंचा मागा गमाः शक्तिविवर्जिताः । बलमुक्सा भयास्तत्र तस्याहे फुलवालिका 11
224. : Sail. fem: White describing the meeting of Sarasvatikutumba with the hunter's wife. Rajavallabha comunes, not very ingeniously, the episndes of Sarasvatikutumla, nt a hunter's wife's inceting wiili Bhaja; and of a conceitful scholar separately told by Merutunga (I'yahandhachiwumasi op. cit. p. 27-28 and p 29-30). Hence it is difficult to explain, suitably to the context, the expressions gforegleri ta: (verse 224) marwa ai ( verse 225 ), ar! #4, and ! (verse 226 ) and 925&fea: (verse 227)
226. q 'flesh'. This verse is found one of the MSS. of the l' aliandhachsutamat (Sce note on verse 224 and also in the Bhojapra landha ( vp. cit., p. 39. 40, verse 182 ) with some variation. Fax = ang
228, faraLised in the sense of FAKT: 1
230. trialfa-A form of Intenzivc, from the rool 'ta cry'. Note the localism in Fries !
231. f44, 'a verbal form'. cat, in the sense of Juar
233. qer, in the sense of 341 In the Prahandhachistanaigi, this gaar is found given to the grandson of Sarasvatikutumila (up, cit., p. 27). The expression
is docs not forn part of the samasya Cf. verse 236 below.
234. Vote the word ask, used in the sense of that portion of the verse to be filled up; 1. c., the first three fect of it.
235. This verse together with verses 237, 240, 242, 245 found, with some variations in the Prabandhachintamani (op. cit., pp. 27-28, verse 59-61 ). The second foot is from Kalidasa's Kumarasambkaus (verse 1).
237, Before Tat, add .cat CT 4919' See note ou verse 236.
238. Note the meaning of gol here, afaza e frat; Ct. Prabandhachintamaại ( op. cit., p. 27. 11. 26-27).
211. F =Fritter 242. Add, before this verse, 244. Xote the rare use of RTEFAT = T1
245. This verse is found in the Bhojaprabandha (op. cit., p. 46, verse 212) as uttered by the maid-servant carrying the Ay wlisk of Bhoja. Ci. also note on verse 235 above.
246. 4741: the possessive form of a f afarge: 247. Em viz rfor etc. 248. Tu obey the metrical rule q** , tlic expression af 1941 is
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES changed into तस्पिता । आशा, in the sense of अनुज्ञा ।
249. सीमालभूपाल = सोमान्तभूपाल ।
250-53. Here kajavaliablia deviates a little froin Merutninga, and lias not sufficiently worded luis narration, wilich is, therefore, a bit difficult to understand without the help of the relevuit passage form tlic Praburdhachintamani which runs thus : समस्तराजविरम्बनमाटक भिनीयमान"......""पो पामरं प्रति नाटकरसावतारं प्रसन् तेनाभिव| "देव ! अतिशायिन्यपि रसावतारे बिग नटस्य कथामायकवृत्तान्तानभिज्ञताए । पतः, श्रोतरूपदेवराणा शूलिकाप्नोतमुभराजशिरसा प्रतीयते" इति ।
250. मुन्न भूपस्य तळपदोद्भव सर्वमपि ( विषयमधिकृत्य रचितं ) नाटकम् इत्यर्थः । 251. मुजस्य करीटिं, शिरः, यावत् सावदाश्रित सर्वमपि कथावस्तु नाटकरवेन दर्शितमित्यर्थः ।
253, सत्यं नाटकलक्षणम्, the quality of drama is good' (1) सर्वचिल्लानि, Scit., तैलपदस्य | Note how serious the urmission of तमयदस्य is. Before the second half add तथापि।
254. नपः, ris., 'भोजः' Pl and Pa. Sote the Parasmaipada of the root रम् as in the epics.
259, Note the construction धारा वसते।
260. Ermála, also known a Bhillainala, is identified with the madern Bhihinal.
261. अवन्तो.. Ujjain, the earlier capital of the Paramaras. 263. Yotc the construction1 गुरोः समं प्रीतिः in the sence of गुरो प्रोतिः । 264. मुमतम् 'gifted', आप्यते न वा? - स्वीक्रियते न पा?
205. Note माचक्षो, for बायो and lit: epic form दधि । 'यदा अई: प्राप्यते, तदा प्रत्युत्तर देयम् इदानीं किमु ?' इति गुरोः प्रश्नवचनम् । विभज्येति - स्वीपमर्थमिति शेषः ।
266. भूगोल वर्तयित्वा for भूपो प्रसारयित्वा 1 The manuscripts have only वर्तयित्वा not शयित्वा ।
273, चारि लावा. "by UEcominga Jaina munk'. चारित्र. "the five Claritrms of the Rules of Conduct of the Jaina monks., Vis.(i) Samayika-Charitra, (ii)Chherlepasthi pani vit-charitra, (iii) Pariwaratrisuddha chayilya (iv) Saksunan pariw-chatvitra (v) Yathukkvada-crariira. Note the Construction 74: 414CTERI
75. After this verse. all : तदनन्तरं शोमनः आचार्यः सह चज्जयिनीती गतः, in order to tiderstand the context clearly: Cf. also Trabandhachinigami (op. cit., p. 36, Pp. 11-15).
277. This verse constitutes the contents of the Irteer lekla by the Sangta at Ujjayini to the sachitrya. पुरोषसः = धनपालस्य
278, वाचनाचार्य, 5. a. दापकाचार्य, u titcle borne thy sane Jaina scholar-monks. गीतार्थकोंविद, 'onetida Jaina munkjwho has SUR(i.c.mastered ) his studies and hence las bucome il scliolur'.
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BHOJACHARITRA
[ First ___279. प्रतोलोयान, in the sense of प्रतोलीद्वारपिधान; Cf. द्वार चोदवाटिते सति, in verse 282 below.
280. संस्तारक ध्यधात, 'made ( his } lued' i. b.. clepl'.
283. This verse is an adaptation of a passage in the Prabandhackiuizmani (0p, cit. p. 36, pp. 16-20 ).
584, मङ्गचिन्ताय, Ho attend the nature's call'; Cf.कायचिन्ता, in prastava III, verse l. 285. Ja, (i. e.) the head of the saugha at Ujjayin), B1 supplements :
शूद्रोपि पीलसंपन्नो गुणवान् बाह्मणी भत् ।
साह्मणोषि क्रियाहीनः शुद्रापत्यसमो भवेत् ॥ and CUTE H f«$ etc. i. e, the verse quoted to supplement the verse 34 above. And in adds also परवारिसर IRI
286. The idea is Vis : Sobhana first greeted the salgsa aud then, following the instruction of the guru, went liis brother's house,
287. चित्रशाला उपाययत्वेन दत्ता इत्यर्थः । 258. संसारादि मुमतं नान्त्रक, संन्यासिनम् इत्यर्थः । तेन us. 'शोभनम'pi and pa.
289, आषाकर्मियोन, 'sin resulling from आधाकर्मन्, or food specially prepared for the sake of a jaina bhikshu'. The jaina bhiksites are prohibited from accepting such tood.
Ci. मम्मचकरौं पति मुनिम्लेच्छकुलादपि ।
एकान्नं नैव भुजीत पहस्पतिसमादपि । in the same context in the Prabandhige lintawani { op. cit., p. 36, verse 85 ). गोचराय भिक्षाये।
.
29!. , 'a woman will liclict ( in jipisin )'. Note the very rare AtmunePada form शुद्ध्यमानम् 'इदं दमि अपि शुद्धधमानम् ?' इति गुसेः प्रवनः । "दिनत्रयसंवन्धि इदं दघि' इति धाश्किया संप्रोक्तम् इत्यर्थः ।
The fourth foot is the linal leclaration of the furk and it probally cans 'according the scriptures, it is 1100 acceptable for ine'.
292. प्रभानीयः, in the sense of प्रष्टज्मः । 293. Bl supplements :
पापालिवारयति मोजयते हितेषु
दोषं च गृहत्ति गुणान् प्रकटीकरोति । आपद्गतं प न जहाति ददाति लोके
सन्भिजलमगमिदं प्रवदन्ति सन्त; । 294, प्राक्षः, •s man with Haitli { in jainism }'विप्रतारकः - विशेषेण प्रतारक: 295. वाचा प्रपास्यते, used in the sense uf वाचा ( = बाक् ) मम्यक पास्यताम् ।
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Prastava
EXPLANATORY NOTES
१४६
298. To have a clear idea, we may have to add 'इत्यत्वा तथैवानोतन बलतकन in between the two halves.
298. अम्मामान् - i. . पलत:
299. साक्षरः, by the elcquent speakers ( i.e. the Jain trianks )'. द्वादशनम, .., the Five Armyrulas, the Three Ganauratas, and the Four gikshauratus, prescribed by the Jain Law.
309. मुकृत्वा = बिना
304. Fx1678: 'Ferri' Pi and 3. Manakala is the famous god of Siya in Ujjayin).
305. B1 supplements :
नकोपो न मानीनमाषा न मोमोन हास्यंन लास्य गीतं न कान्ता ।
न वा यस्य शनुन पुत्रो न मित्रं तमे प्रपचे महावदेव । । 306. संसारतारकाः = संसारात तारकाः ।
307. This verse is found with some variations in the Prabandytchintamani (op. cit. p. 38, versesI). विनानाशथा-नासिकया षिना ।
310. तुरङ्गानतिवाए, 'hy causing the horses to carry' i. c. riding on the liorses'. 311, भृतम् - प्रल: संपूर्णम् ! Note the conuppound पञ्चषभिः ।
314. Before this veric, add :वनपाल उवाच । This verso wit]i slight variation is found in one of the MSS of the P'rabandhachintamani (op. cit., p. 39, verse 66 ). सड़ागमिषतो विद्यमाना एषा सव वानरूपा शाला, नाटकशालावत् सदैव रसवती प्रगुणा च आस्ताम्: यत्र मत्स्मादयो डिनापयश्च पात्राणि, नाटकपात्राणि सन्ति इत्यर्थः । विङ्ग = न, a kind of third'. पुण्यम् etc. ; is a true Jaina, Dhanapala doubls whether nicrit can be acquired by the excavation a tank, Cf. सत्यं वप्रेषु शीसे शाशिकरप्रवलं पारि पीत्वा प्रकामं व्यच्छिन्नादरीष तहणाः प्रमुदितमनसः प्राणिसार्या भवन्ति ।
शोपं नोत अलीधे दिनकरकिरणान्त्यनन्ता विनाशं तेनीवासीनभाचं भजति मुनिगणः कूपवनादिकार्य ।।
(Praliandhackintamodhi—opy. cit., p. 39, verso 65; Pralkarakacharilt 1-X. S. Press, 1909–p, 235, 36, versc 187. In both the works the context is the sainc as here.
316. "मम कीतनक, कीर्तिपद, तशगं दण्ट्वा अयं धनपाल दृष्टयापि न सुखायत" इति नपो हृदये अकोप इत्यर्थः।
317. गुफामे मस्मिन् धनपाले मम देषो सपलक्षितः, दृष्ट इत्यर्थः । Or, originally गुरुरूपो मम ! 3:22. Blurileuments; विद्या नाम नरस्य पमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं विद्या मोगकरी मशःसुखकरी विद्या गुरुणां गुरुः । विद्या बन्धुजनो विदेशगमने दिया परा देवता विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहोन: पशुः ।।
This verse attributed to Bhartilari is found in the Sultashlanabhagwa (op.cit., P, अ) cl, l, Verse 15).
323. This verse is found in one of the MSSof the Pubundharhintamani (op.
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१५०
BHOJACHARITRA
[ Second
cit., p. 39, verse 67) and in the Prabhavakacharitra (op. cit., p. 233, verse 143) in
the sanie context.
331.
d af, 'In the later period devoid of the Kevala-jnana or Omniscience'. The paradhara mbavu i said to be the last Jaina to reach the goal of Kevala-jugna. After him, both the Kevala-juana and Moksha became unobtainable for men due to the degeneracy of the Avasarpipi. पूर्व मिथ्यात्वी, मिष्याज्ञानवान् घनपाल: इदानीं यथा प्रबुद्धः तथा न परः इत्यर्थः ।
332.
ter, a vow to lay down and not to get up'. Here the idea appears that Dhanapala took the sallekhana vow or a vow of voluntarily submitting to death through starvation. Cf. ....अनशनात्सीधर्मे गतः, in one of the MSS of the Prabandhachintamani (op. cit., p. 42, line 15). . . 11, 'begging pardon during the time of fust) for one's past misbehaviour',
II PRASTAVA
1. विज्ञप्तः .. विज्ञापितः ।
2. The first hall of this verse constitutes the report by the Pratihara, while the second half tells us what action was taken by Bhoja on getting the above information.
Kulinga is a country roughly comprising the modern Orissa,
:; probably
'a guest house near the nyagrodha trees. Note the position of a: in the compound.
3-4. These two verses make a pugmaka. giraffer, 'skulls'.
5. कथं मूल्यं विधीयते विधातुं शक्यते इति इर्म वार्ता, हृदये विचार्या, विचारणीया इत्यर्थः । इदं च भोजराजवचनम् ।
6. Before this verse add: af
7. 'महयकारणमधिकृत्य वक्तव्यम्' इति विज्ञप्तमित्यर्थः ।
8. feoqzrung siftarfa, 'taken out of the excellent bag'. Cf. the prakritic
照
10. चवक्त्रमार्गेण ।
11. सहस्रदशकम् 2. मूल्यम् ।
12. fz, a broken cowrie'.
16.
ft, an informer of good things'.
(Prakril) ft But Ra
17. Note the synonyms in a-fafa gaf explains वुहविस्थान, as 'पैठाणपुरपट्न' .. the modern of the Godavari in the District of Aurangabad in the it may be remembered that Paithan is known in the literature and in epigraplis only as Pratishthana. Paltthaya, Palithana Paithana or Fotuli, and not as Puthavisthqua
Paithan on the northern bank modern Malatishtra. However
18. कीर्तनक, 'praise' Cf. the Prakritic कित्तण | स्वयंवरः = स्वयं भर्ती वरणयाग्ययोविशेषः ।
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES
२५१
21. अवमाविष्ट, for अवाभाषिष्ट ।
200-21. तत्कमासुर्यात विनयान रजितः पुरोहितो इष्टषितः मन्, भूपस्याचे "तस्या गुणाः एकजिल्लया कथं वर्धन्ते चन्दोलकारविदुरा सा 'साक्षात्सरस्वती' इति मन्ये' इत्यमापिट इत्यन्वयः । -
24. Nare the synonyrus समस्तान्तः पुरी and रमणोगण । 26. सिञ्षय, for सिञ्च ।
28. विना विद्यमानानु अस्मान् इत्यर्थः । Note the epic Atmalnepada form सन्ते । रुम is not quite lappy here.
BI supplements : निर्दन्ता करटो हयो गतयुकश्चन्द्र विना शबरी- The other three quarters are not given ). It may be rememhcred that in verse 13 above, Bhoja is said to have becti proised as scholar by learned men. ____29. बाणास्य: The usual form is चाणक्य । चतुरचाणाक्यम् = घाणावयचातुर्यम् स. चाणक्पस्मेव चातुर्यम् ।
31. कचेन अलिता= कृर्षाला, 'adorned with heard'. Dharmapila akho is said to haye horne the title oferit, Sarasvati in the niasculine formi' conferred on him by Munjs ( See Prabakacloritra-op. cit. p. 241, verse 271 ). Cl. Also Tilakama. rjari-S. S. F, Bomlay. 1938-p.7 verse 53.
33. धर्मपरीचिषु = परीक्षकेषु । With slight variation this verse is found in the Bhuju prathaudha (op. cit. v. 181 .
34. rafafa: a Tritiya-Taljurusha. 36, गुरुः = बलीयान् । Note the localism in the expression एषा वार्ता कथनीया । 87. जने, जनस्य, सहजः, स्वभावः एव मणानं स्तूयते, मानत्वेन स्तूयते, न उपाधिः इत्यर्थः । 42. पञ्चप्रकार, i... those mentioned in the first half of the verse.
43. argita, 'a ceremony in which artif#, utlicrwise known in local diale cts as आरति (ie.n light rurming by means of ghce jis waved before the deity'.
45. गरिमा = गौरवम्, "importance'.
46, पारम्पयम् = नैरन्तयम् (?)। पारम्पर्य न हि ज्ञातम् : Vararuchi ampears to mean that he did not know wlether the cat would act always. CL. Bhoja's answer सदैवषा प्रकरोति, in the next vetse.
47. अन्या मार्जारिका अनया समा न भवति इत्यर्वः । 48-49. प्रातः एक मूषकममहोत, ततः अयं पण्डितः देवावसरे भूपसमीपे गत इस्यन्वयः । 53. पुज्यः:='महान्' Pl and P. 54. भुक्त्वा , for भुजन् ।
55. मात्राम ... यात्रायाम् | It is to be noted that a person travelling from Lazka to Godāvri cannot be met with at Dhara.
57. बलमानो, iron the root वल, "to return'.
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સર
BHOJACHARITKA
[ Third
57-58. 'तो गर्यो' इति प्रजापतिः अवकः ततः, ( यदा) बलमान ( पुनः दृश्येते ) सदा ममा (निकटे ) कथनीयम्' इति शिक्षां दत्वा इत्यन्वयः । प्रजापतिः = 'कुम्भकार: ' P1 The words पराङ्गी and qaf (verse 60 below), though onlinarily mean 'flying unt'. appears to be meaning used to mean licre horse flying by means of mechine'. Ct. the word བ་བཆ་ 'horse'; und alse अस्थाकावास्थितं सैन्यम् int verse 67 fielow.
60. Note the word स्फुरति ( from the root स्फुर,
of darkness. Cf. तमः प्रभा in nole on Prastava I, verse 137. and मास्कार are imitative words.
61.
63. अदग्धस्वर्णकार्येण = अत्युत्कृष्ट स्वर्णानयनरूपकार्यार्थम् ( ? ) | प्रस्थान स्थितः is on his
mnrcl'.
'inspite of great
65. Nate (Use [urm जल्पतु: for जजल्पतुः । महत्यपि कष्टे,
difficultics.'
7. अर्जुनम् :
= 'स्वर्णम् P1 and Pa
इष्टकाः ।
71. ताः
72. प्रेष्यन्ते
74. चोरें इन भोरवत् ।
75. प्रणे, in the morning' विज्ञप्त
व्यन्ताम् ।
'to shine ised as an adjective
विज्ञापितः ।
76. दान दाता मानेश्वर मानवतां मुख्यः ।
-
77. Note the gender of यज्ञम् ।
78. स्तोके अर्थे ( प्रेषिते सति ), न ( किचित् ) विरुद्ध
Z
होते इत्यर्थः ।
79. This verse occurs in ulte Dnatrinis' at pulilaika { jakhyana 18 ) and twice in the Panchatantra ( op. cit, P. 6, verse 19; and p. 191, verse 29.) स्वल्पादभूरिरक्षणम् = स्वल्पमपेक्ष्य परित्यज्य वा भूरिवस्तुमो रक्षणम् ।
80. तं विभीषणस्य प्रघानैः ।
81. ठोकिता, 'were offered'. 83. faqa:, 'were gent'.
84. उपाङ्गचक्रवर्ती, a master of state craft', बष:85. Note the localism, in the use of the word paid as a fine of tribute".
88, मंदिनीचारिणः = मेदिव्यामेव चारिणः ।
89. रङ्ग,
'divertion', भूमिस्थोपि देवराजयत् इत्यर्थः ।
विश्वम् ।
to mean "the amount
III PRASTAVA
1. कार्याचिन्ता, 5.4 षङ्गचिन्ता in prastava f, verse 285,
2. राजप्राहरिकान् नृपान्, the chiefs, working us Praharihas of Bhoja,'
4. अन्तः हृष्टः सन् इत्यर्थः । रमा, 'wealth'.
5. यः वरयषि: जास्त सः प्रगे, प्रातः, आगन्ता, आगमिष्यति, स एव न पर इमां बार्साम् अधिकृत्य प्रष्टरूपः इत्यर्थः ।
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES
१५३
8. सौमाला: - सीमान्ताः ।
. भट्ट, 'hereditary punegerist'. 11, इतः = गम:, ... मागतः 1 13. याचस्पृच्छति भूपालः, 'searcely when the king asks'. कारणम् - चिन्ताकारणम् । 15. धनदेवः, i... कुबेरतुल्पः । 16. कथयिष्यति = उत्सरयिष्यति । 18. परिच्छद, 'retinute'. 1. बाग्यव, "brother'. १३. निर्गमाइक्षिणे भुजे, 'on the rightern side froin the exit { of the gopura ).
4. उर्वः स्थितः, "Win.5 standing'. cf. अर्ध्वतः स्थिता [ prastava IV. v. 5771. 26. मानौमानपूर्व चोपविष्टः, [or "पूर्व चोपदेशितः।। 27. अनुमतापि शापिता सती उदन्तं कथयिष्यामि इत्यर्थः । 28. संदेहवाम = संदेहविषयिणों, संदेहविनाशिनी, श वाताम् । 31. कुम्भारौ ( Prakrit ) कुम्भकारी। 33, पाल्परिधात, amli e. nonr } the bank. 31. गम्यते, for गम्यताम् । 36. भवर्ष, . पर्यभव । 38. नाभिनन्दन, 'Rishabha'. 40. वासना, 41, त्वकम् = त्वम् 42, संदेह कथयामि -- संदेहविषयमधिकृत्य कथयामि इस्पर्षः।
44. पध्व ज्ञान, S. It, Paricharstings ., (i) Divyachakshas. (i) Divyasrotrs, (iii) Parichittujuana, (iv) Payun-wivas-armsmriti, and (v) Riddhi. Os out = पध्यममान, ' niscience',
5. धन, ry much', 50- एकचित्तःस्पिरो भूत्वा श्रृण इत्यत्ययः
51. ममस्थल, Desert-land', s. & Marumandala or Marwar. Satyapura may be itte- let with the marlern Sanchor in the above region. राजसूः, i. e. Rajput: Dharana is.ile nutne of the Rijmt.
54, कियन्द्रिदिवसः, ie, कियस्सु दिवसे पु गतेषु ।
36. पुलिन्द्राणाम् = पुलिन्दानाम् | The term palinda, though first applied to the a lorigins of the Windliya mountain, later used to denote the aborigines in general, Bt supplements :
पितुर्वर्गगता भूमिनिर्धनापि मुग्धावहा । सा च स्वर्णममी सका न में सक्षमप रोषते ॥ 57. अभोज्यं कृत्वा = उपोष्य, cf. verse 63 below.
58-59. मामक, साम = 'धान्य' Pl and Ps, It is a kind of millet called in Sanskrit syanmika. अग्रपक्वशिरोमाहात. 'due to the plucking of the first ripened heads ( of the syamaka plants)',
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१५४ 13HOJACHARITRA
| Third 60. लानि, 'tit-lits of the sympha. Yote the localism in तापे मुक्त्वा । अतिपाचमात् = सम्यक्पायनादनन्तरम् । तापे मुमत्वा पाक, अतिपावनादनन्तरं परिवेषणं च अकरोत् इत्यन्वयः ।
G1. भाजन .. अनम्य भाजन समीगे।
2. मदन्नम्, 'riult fooxi'. षट्भागेनेत्यादि-पड्भागेन परिच्छिय, अधिकप्रमाणं यथा स्यात् तथा परिवेथितमित्यर्थः। भानी - गगिनी ।
6.1. सत् = लथा ( एव )। 61. धर्मलाभस्याशिपमित्यर्थः । 66. This horse arrearstn huijuotatiun. प्राप्य' , 'पोवता:' Pland ps. 67. Before this Civrse) all: देवराज उवाच 68. भावतः, 'with devotion'. ti'. प्रासुक, 'TITe'; (i. Pristiva IT', verse 172. 75. स्वभावन, 'up her own accord', 77. अहम् = 'सारङ्ग' pl aurl Pr, Nitr: the repetition of महम्.
7. मृलोदितम्, i... लवेदनातुल्यम् उदितः । रा १ -- जले है. च पारण इव आकाशे गत इत्यर्थः ।
81, वल्लभाः-प्रियाः 16. भक्तपानादिविषया त्वचिन्ता अतःपरं मम अधौना अस्तु इत्यर्थः । 87. सत्र - "जिनालय' 1 and ps.
48. Note the Passive पाल्यमानः and लाग्यमान: 11sted fur tir Active पालयान: Rnd लालयानः recretctiv•1y. पूर्व, पूर्वस्मिन् काले, प्रर्पिनाः प्रदताः श्रियः राज्यादि धनसंपदः यया ताम् বাবিলিস্ ।
91, पतित: 'was therted, f. tlic Prakritic भूसारिअ, and धुत्तिा ।
12. म्हसरोपात... रोपेण । तलारक्ष: same: a तलवरः (of the inscriptions), meaning city-gard.
13. निरर्थकम् : महाचमं न भवेदित्यर्थः । 93. क्रियत्स्वहस्मु गतेय इत्यर्थः । ५४.काया कार्यः । 9. नागरिक्या, for नागरिकया । 100. नंकल्पमितिः अर्थात् तेषां गुणानाम् । 101. धन, 'many or 'great'. 103, प्रस्ताव, 'opportunity'. 104, काश्मीरमाल, Same as tlic: murdern Kashinst. 105. खाद्यफल, 'eatable Truits 1. 106. Nute the synonyms अहन् and दिवस । 107. Note वत् andl प्रथा llseil sitle hy sile. 1.08, जुफा = गहा । केटके, "in the rear' 109, यारितोपि न निवतसे इत्यर्थः । 110, विधामाया = विश्रामजननीम् । 111. कियत्स्वपि दिनपु गते इत्यर्थः ।
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES 113. gai 17, 'receive thic badise. It is obviously to show that he was the student of the yogin न अन्यथा-अन्यथा विद्याग्रहण न भविष्यति इत्यर्थः
1J7. इदम् = परकाय-प्रर्वधारूपमिदम् । परावतः for परावृत्तिः । 118. Before this verse, add : धूर्त ऊमे ।
112. सः = 'पूर्त:' pl and Ps __120. मुन्दरम् - शोभनम्, 'good'. क्रोद्भिः ॥i., चतुरङ्गादिक्रीडाः कुर्वनिरपि । राजा, i. तादृशाको बासु उपयुज्यमानो नपरवनाभिमतः पुत्तलिकादिवियोषः । क्रोसट्रो रक्ष्यते राजा, etc. iccause the king is the visible god, (Ven) the piccc called king in the chess ctc. is saved by the chess-players etc. ( with all efforts),
___121. The word uथा Roes with the next VATSEL,
122. The first liall is found in tliu Manchutaniya (o cit., p. 231, verse 90 ). लुब्धापित = लुश्चयित, in the sence of लञ्चित; And मुण्डापित = मुष्टवित, in the sense of मण्डित।
121-22. Here the allusion is to Vikrunadilya's Hous lrgend in which the king in the form of a parrot is described to hive taken teretuce ou a burlot.
123. सः = 'धूतः' pl and P3. परीवृतः, as in Prastava I. Verses. 12. Nate the dimarebada गच्छत । पशिष्टतः, ior पष्टः । 131. अनुवादादि : अर्थात् जगमानां, पक्षिणाम, भाषायाः अनुवादादि । 131. एतत्सत्यतरं वर for एतत्सत्यं बचो यदि ।
133 सोकतग वार्ता, 'very simple atter'. परम् = परन्तु । तिप्ठ, 'wait'. In onc ul the legenda of Vikrama, the saing details of datu aru sound as bring given to the lacru ly all avaricious yngist who had planned to kill the king in it sacrilice.
13. विश्वसेन च यांगिम्य: ftor ने विश्वसेद्योगिनश्च । धनम् in the sense of दोघम् । Cf. न वि भक्षयेत् प्राज्ञो न करेत् पन्नगः सह । न मि(वि ?)न्देद्योगिनां वन्द महाद्वषं न कारयेत् ।। ( Dralrims'atprattalikā, pakluzna I and 31 s.
___1.16. भूस्पृशाम, 'of persons'. सङ्केत पूरयंद्यस्तु etc: ci. verse 161 yelow unrl nitc on Prastava IV, versc 598.
117. उपस्करम् it, क्रोटोपस्करम् ।
151. स्वहस्तेन हत्या निर्धारित कृते शुकहे 'जीवितं संपरयरच' 'स्वजीवितं मनारय' इनि का नपस्य, नपं प्रति, योगिना ऊचे इत्यन्वयः ।
12. साधकाः, for माध्याः कथित । कार्यम् : कर्तव्यसयोपदिष्ट मित्यर्थः । 153. योगिनापि वजोयो भूपदेह दुतं नियोजितः इत्यर्थः । 154. Note the irregular sandh in talgia, foi thi sake of metre. 163. मशृङ्गारः, ctressel celegantls'.
IV PRASTAVA 1. नुपादेशे or तपादेदोन 1 द्रामम् , द्रम्मम् ।
१. भोजजीव:-a Baisarerifi comground. Cliandisatorili Trobably the nuodcm Cisteri near Lalitpur in ('111al Indir.
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[ Fourth
• 5. कथम्, 'why?',
7. Before this verse add शुक ऊचे । 8, में शिक्षां कुरुत - मया कर्तम्यरवन शिक्ष्यमाणामुपविश्यमानामनुतिष्ठत । 11. मामाभ्यां गम्यते ... मावां गमिष्यावः । पुलिन्न = पूलिन्द । 13. This verse appears to be a quotation. राजतं = विराजते । राजत-रजतमये ।
17. This verse attributed to Mayülü 15 muud il tid inntil (-.it, verse 2513),
19. शुकधायये प्रमाणता कृत्या 'कोरमूल्य समाविश' इति भूपालः पुनः पुनः वदति स्म इत्यर्थः । 20, धनम्, 'great amount'. 21. शुकः स्वादस्पः कृत्वा रस्पते इत्यर्थः ।
24. किर्याद्भिस्तु दिनः .. कियदिनानन्तरम् । बनेत्यादि-बहदिनसाध्यायाः वनक्रीडायाः अर्थे हे स्वामिन् ! गम्यताम् इत्यर्थः ।।
25. शशिप्रभा .. 'पट्टराशी' Pland P३. 36, पुरी, i..., अन्तःपुरी। 27. सामुद्रिकीम् ("द्रिकाम् ) - 'शरीरलक्षाणाम्,' Pl and Pi, i.e. शरीरस्य लागानि । 22. मक्षिकाः मष्य इव इत्यर्थः । 81. Note गत्या and गामिन्या 1 36. 'सा पट्टरानो' इति समादिशेस्यर्थः । 4. सरसमाना त्यम् : cf. मत्समाना, and स्वत्समाना in verses 45 and 47 above.
50. सपरिनका: lor सपत्नयः; cf the Prakritic मवत्तिया । मन्ये, scil.. 'महम्' PI and Pa.
52. भामोष for बाभोग, 'enjoying'. 64. बाह = पप्रच्छ । स्विस्या - तूष्णों स्थित्वा । 54. विण्डम् - विपरोत्तम् ।
57. ताम, mir., 'दासीम्' P and Ps. गृहीत्वत्यादि -- सा सी स्वसभी गृहीत्वा त्वं राजीप्रशामत स्वासि, तिर्यञ्चः मानवजिताः" इति वद इति नपः प्राह इत्यर्थः ।
59. भूपं कारय भोजनम् .. भूपं भोजम । 60. कुस्मितम् बाग्रहम् - कदाग्रहम् । 62. पालापान् - 'वधनान्' ( i.बदनानि ) Pi and Ps.
63. विकिनि, P1 and Ps explain this sword as हे विवकिनि। It may also he taken as an adjective of हृदये। Tlic usual reading of the verse's supplieniented by Rs is :
गतप्राया रात्रिः कृशतन शशी सीदता इव, प्रदीपोयं निद्रावशमुपगतो घूर्णन इव । प्रणामाली मानस्त्वमसि न नथापि क्रुषभही 1 कुचप्रत्यासस्या हृदयमपि ते चडि ! कठिनम् ।।
Vallatha attributes luis iurc to 13 innbhatti (Subtitrals op. cit. Verse 161212
सन्त्येवात्र गृह गह युवतयस्ताः गच्छ गत्वावना, प्रयासः प्रणमन्ति मि तव पुनर्वासों यथा वर्तते । बात्मद्रोहिणि ! दुनप्रसापितं कर्णे वृषा मा कृयामिछन्नस्नेहरसा भवन्ति पुरुषा दुःखानुवस्य यतः ।।
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Prastava]
EXPLANATORY NOTES
निःश्वासा वदनं वट्टम्ति हृश्यं निर्मलमुन्मध्यते, निद्रा नेति न दृश्यते प्रियमुख मदिवं रुद्यते । अशोषमुनि पादपतिसः प्रेयांस्तदीपेक्षिसः, सक्ष्य: । कं गुणमाकलम्प दपिसे मान चर्य कारिताः ।। Bolh the verscs are touiul in the Arartsalgka ( verses 91 and 92 ). 66. चित्ते कोपम् for चितारकोयम् । Note the Atmane pada form स्यजस्थ, for metre. 66. कुग्रहाल - कदाग्रहात् ।
68. जन्मेजयः = जनमेजयः । Note the clision of one syllable for metre. Cl. Prastava 1, verse 8. fry; = 'aut' pl und P3.
69. गते का कियत्यपि, 'for sounc tine',
१५. पाधोषौ = 'समदे' pl and P३. लातो विषममिती, 'in a place more inaccessible than Lanka'
73. देवसाम्यः प्रतीकार, अपकारं विना ते, कवचाः, नहि तुष्यन्ति इत्यर्थः ।
77. प्रमाणीकृ, 'to respect'. Xote the position of the indiclinablu समम् in the conipound.
78. वैमानिकाः - देवाः । 79. सुरप्रमोः - 'इन्द्रस्य' P1111d Pi. 80. ऐरावण = ऐरावत । मेले सति - मेलनसमये । 81. ही- हि।
87. जौनपाला "Sucklle liled on the back of a IIOTS='. भल्लकभीषणः = भल्लूकानामिव भोषणः ।
88. गुण = 'चापगुण' pland pa.
68.-93. Tille 39th uinor paran of the Atahabharata. called the Niratakatachayniddi prerran lulls us w Arjuna, at the instance of India vanquislied the Nivätakavachas, u ribu u dosras wlio yere uicunyucrable even lor India and whose dwelling pluce was in tle heart ol the ocean.
34. मध्यतागृहम् ।.. मध्येगृहम् । 97. हरिः = 'इन्द्रः' Pland P३.
28. देवानामपि आया, इच्छा, यस्मिस्तत्, देवा, देवानामपि काममोममित्यर्थः। Or uriginally देवांशम् ।
09. महियो = 'पट्टराशी' punrt Ps.
101. प्रियापरिजन:-प्रियाम्पैः परिजनरित्यर्थः I Note tihe word समम and its antecedent Instrumental, usually teund in the description ofसंघोंग here 11sed for वियोग।
___102. न दोयतं = न दीयताम् । दत्ता मया etc. - अनाथा, यदि मया वस्त्रादि न दीयत, तदा मया (वरो) दत्तो न स्यात् इत्यर्थः । अथवा, तृतीयः पादः इन्द्राणोदाश्यात्मकःमया दत्तः शाः जन्यथा ( i... मुषा ) न स्यात् इत्यर्थः ।
11038. नित्यं निहन्ति पंतु तहि परमित्यर्थः । 104. उत्सव: गह प्रविष्ट इत्यर्थः । 105. सभामुपविष्टः fur सभायामुपविष्टः ।
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BHOJACHARITRA
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105. आलापिसवान् स्त्रियः ।... स्त्रीभिः सहालापितवान् । 107, मनोरमा,. 'जन्मेजयस्य राशी' Plaurel p३. 10. देवदूष्यम्, 'the heavenly gurutent'. Cf. tlie Prukritic दूस and देवदूस । 111. राज्ञी मात्मनि ऊर्च इति भावः । प्रियः = "गर्ता' F1 and P३. 113. प्राणिकाः 'glists'. Cf the Prakritic पाहुणिअ, पाहुणग in the same sense. 111. चतुर्थाशन, wit.. भक्ष्य, भोज्य, लेख, and चोष्य । गभस्तिः = 'सूर्यः' pl and Ps.
11ti. Note the word 99, used in connection with a jewel. Cl. verse 109. above,
117. दानेन प्रेषिताः, obviously in this: sense of दानानन्तरं प्रेपिलाः । मुझग्राही = सुखी ।
119. Add tragen und Tatà, respx.ctively ut the beginnings of the first anul the second halvey of this versc. प्रच्छनोया, for प्रष्टया । वार्ता - विषयः । ममापि = मत्सकाशादपि ।
120. विधीयते . विधीयताम् तदोहधपूरणायेति शेषः । 131. मारिबाक मारणवा। 1.2. घातनीया for इन्तया ।
124. में अनाचा दर्शन not loy How instructions (intended to satisfy me) inadifferent way :).
135. प्रबत्तितः, for प्रवृत्तः । लखनम, fasting'. 181 किद्दिनः, Fur कियदिनानन्तरम् । 127. बुद्धिप्रपश्चं, "viurious tricks', ग्रहोसच्य, to be brought round', 128. लहते, "ahstains from facul'. 18. सा ( in the fourth fucot ) = 'वारी' P1. 133. दीनानां दुःस्थिताना च दानानि इत्यर्थः । 136, शोधिता, 'was searched'.
68-136. The brethastritsifgara Taranga ) tells us the following story : Once Jananejaya's son Satiniku fought in the side of the gods against the demons and dirl. Indra invited Satinika's son Saljastanikuto the strell. Being cursed by Tiluttamil ITC, this princc fost luis wife, who was [pull of laviug a batii in a blood-lilik in the silent way as Rajavallabha u tates. But Salasinikrl got lier back after fourteen years.
140, बाढ़ ()चयति स्वं यः, 'One who too dumantly thinkles Si: Lucatise' (B).
1.1. परिणोता वा, कौमारी वा, i... भपरिणीता वा, इति वृत्तान्तमित्यर्थः । Ci. कुमाद्यापि कि स्वकम् ? (verse: 399 14:00 }, a Tumstion of ths: parrot pul Lu Pushpivati.
45. P1 and PIL'xplain दोनिका विक्रमेण । शेनिका नाम्नी, विक्रमेया राजा. The 14T17E of this libroine is given also as Sechániin tlic succecdiny lil's viz., 155 etc. This story is actually lumit ataong the lands of Vibranua willi 501 Viriutius; F. doves, play the xurt of 111: sochaukus.
17. Varjatallan my lil identical with the place Varupatirtha ar Salilarājatirtlia on the mouth of the lulus, ukutiunel ill lliu dalloharat,
149, कियदः : अपवर्गे तृतीया । 120. संता तन्वती - 'संतापकी' P1 pa
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Prastava]
EXPLANATORY NOTES
१५४
1.56, fare: Passivu Mst puter Singular of the root , 'to coniuer'. 157. The NOTTEct neading of the verses supplementert by Ba is :
शशिनि खलु कलङ्कः कण्टक पानाले, उदधिजलमपेयं पण्डिले निर्धमत्तम् ।
युवतिवनिपातः पक्वला केदाजाले, पनिगु च कृपणत्वं रलदोषः कृतान्तः ।। चन्ने लाग्छनता हिम हिमगिरी क्षारं जल सागर, दाढे चन्दन गाय विषधराः पद्म स्थिता: कण्टकाः । स्त्रोरले हि जरा फुचेषु पतितं वृदस्य दारिद्रयता, - -..---साहित देवादिदं निर्मितम् ।।
[rlu titslut these two Wresolat Inknown author is found in the Subhashitãowli ( cit., Verse 3149 ) with some variations ).
13. मायजिता, Scit.. 'राजपुरुषैः' Plund P१. 104. राजपूत्रा: “warriors", 165. गता, wrong for सदा(?) 166. अन्पदा - एकदा । पवन्द्रः .. 'राजा' P1 भयाम - संबवाम् । 167. शिष्परिटमः = एकाकी । श्ता यवनिकान्तरे - यवन्धमतरतः स्यापिता । 168. पक्षोभयविशुद्धा = मातृपक्षे पितृपक्षे च परिशुद्धा ।।
170. Note श्रृयताम्, and शृष्ण, in the sarlie hall of the verse:. [s the modern Budurikirusna intencled by बदरी नामक वनम् ?
172. प्राप्तक, 'pure'. 17. दीयते, for वास्याषः । 174, किर्यास्तु दिनैः, i... कियहिनेम्पोनन्तरम् ।
175. समागतः, Scit., 'दावानल:' pl and PI. Note उपस्थितः, संप्राप्त: Aud समामतः in the same verse.
176. पर्यन्स, places Treeur hy;". 177. जले, Ior जाय । 178. बारममेन स्नेहः, ... आत्मजे स्नेहः । 179. मरयानाम् = पुंसाम् । 180. जन्म प्राप्य मंजाता इत्यर्थः । 18. पुषी, i... 'संघानिका' P and P. 183. वरः- चारैः। Nirle the gender nf बुसान्तः । 18A, विक्रमः, ... 'राजा' P1 And PH.
185. वागल वापर (?) a scliolar' ur : bray man'. कोडक, 'plnyer'. पौरदेश, probably denotes the liastern Indin. Far: 'many', it may be noted that the expressiuns बागलकीहकादयः (or "कोडनादिकाः ) and सक्रीडावाडिकाः (or "कोडवाष्टिका:) are of divibtful meaning, though they are obviously used to tefer to magicians and players, as the story aliows.
181. वहिवताल= अग्निबेताल etc. The legend of Vikrama tells us that the hero went ont witli his minister Bhatti and Vetala, called Agniverila ti.e.aghost, obeying his orilkers ).
187. गरिमान्वितः सन् प्रस्थित इत्यर्थः | Note अभिधान and नाम in the same hali. P1 and prexplain the secon! lhuli as "विक्रमभूपेन स्वनामान्तरं चक्रे अब ।
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RUOJACHARITRA
[ Foruth
186. समायामि, for भवन्ति or समातिष्ठन्ति ।
189. Fafen: etc., 'was well know even in lose places wliich were far renuvcd from { his way'.
1311. कनी = 'कन्या' pl and Ps.
1:03. सुम्बराः = सुस्वरगानणीलाः । सरसा: = सरमालापिन: सरसकविताकारोवा । मन्ये, sci., अहम् ( in the anthor).
194. सन्न हो = सन्नाह - कवच परिघाय' pl and PD. Note पास्त्रपाणिस्थः, evidently user in the sense of पाणिस्मशास्त्रः । Cf. कण्ठमादस्थः, in the sense of पादेस्यकण्ठः, in Prastiva I, verse 140,
1:37. वाचम् .. अहं तं प्रार्थना पूरयिष्यामि इति प्रतिज्ञानाचम् । 110. धार्यते, 'is preserved or is kept'. 201. शिक्षा, advice', 206. कन्ध = 'घर' Pl and Pa, 2408. नमस्कृतम् for नमस्कृतम् ।
209. तया, i... 'ग्रियया' PIRN P3. मायानीति-अग्निप्रबंशार्थ काष्ठानि मर्पयेति भावः (Cf vert: 212 below and tuote on Prastiva !, verse 131) ], नारिणामिन्यादि सामान्यतो नारोगा विशेषतः फुलस्त्रियामित्यर्थः ।
210. मतंपि, मनरि मगि इत्यर्थः । 911, A, C., 'Olord' is there anything called good conduct in your land ?"
213. काष्ठावरोहणे इत्यादि - चिताकाष्टारोहणसमये पन्धुभिः "सिष्ठ तिष्ठ" इति वन उध्यस इत्यर्थः ।
213. अकारापयत्, for अकारयत् ।
814, यम्मस्नान : It is believed that two baths are ncessary to get oneselt purified of the stvasaucra or the impurity caused lay being associated in the obsequics. ना-नरः ।
215. सत्पुरुषः पूर्वोक्तं वचः न अन्यया भवतीत्यर्थः ।
217. This verst appears to be a quotation. All MSS read 71:' only i via:= 'दरिद्रः' 21
221. कंवारं = 'नृत्यम्' P1 and 13. नरप = 'नृप' Pl and P३. धनम्, 'inf) great anmount'.
222. नपर्तोंक:-राजपुरुषाः । संमद, great joy'.
192-222. A story of a mngician similar to this is found among the legends of Vikruma Dualtiesalputtalihu. V pakhyana 30).
224 तिलक, 'caste mork'. 225. ज्ञाता = 'शातासि P1 and Pa.
926. प्रपितम् - उक्तम् । प्रत्ययः = परिनिष्ठित ज्ञामम् 'conficlence' or clear understa nding', दहे, Scit., 'अहम्' Pinnd Ps.
297. The word प्रस्यथ, appears to let in the serise of उद्देश्य, 'motive' in the first three instances. अंहतः = 'दानस्य' P and ps प्रत्ययस्तपा प्रत्ययः, सम्यक् शान, सभा, प्रत्ययः, उद्देश्यम्, इत्यर्थः ।
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Prastava
EXPLANATORY NOTES
238. लान, 'the moment nutnted from the sun's rise'. 230. ज्योतिः ज्योतिषिक: । सभामर्वा ='मभालोकाः' Pl and 'सोलोका:' P3. 21. विनिर्गतः । ८. आगतः । लानः, "began'. 213. लग्नः , 'clung'. 285. भूम्पः , lor भूमयः, stories'. महाजल, 'great floods', 237. महारजन् | tur महारज हॉल, 'in the following manrer'.
248. The verse is not fully given, obviously because it was very well known to the couvists. The full verse, loanl in Lo Pucitratantratop. cit., Tantrull p. 180, verse 180 j uis ur follows :
संपदि यस्य न हों, विपदि विषादी रणे व धोरत्वम् ।
न त्रिभुवनतिलकं, जनर्यात जननी सुतं विरलम् ।। 42. कैवारम् = 'नत्यम्' P1_ansl P3 . 243. 'कलाविज्ञः अयम्' इति राजा ज्ञातमित्यर्थः। 2:15. #ght, 1 Cruising admiration' i. c. one who is aclmired, or 'a jester", 272. मशृङ्गारः, 'dresed elegruntly'. मुखासन, 'a Palinquin'.
253, आङ्गिक for द्वाङ्गिकः । बङ्गे रक्षास्थाने अधिकृताः, द्वाङ्गिकार, 'officers Employed in watch station Hulier-ri,
2:54. नो मृजेत्, 'won't cle.
2:56. नरो रूपेण, correctly नररूपेण । तथापि इत्यादिः कौतुफदर्शनाकाझी योजनः वेषधारी सन् पश्यति इत्यर्थः ।
257. सः, vir., सेचानकः । 26. भूतं, in ttic st:llse of पनन्छ । 20. यदच्छया, in the sense of पंच्छम् । 261, गर्भसंभच = गर्भोत्पत्तिः । 20. कन्यका, vi, 'सेचानिका' 21 and P३. निराश्चर्य कुटम्, 'the most wonderful lic.' 260. पूर्वभवप्रियः, i... 'सेनामा ' P1 and P3, After this verse ardsसि सन्तुष्टः ।
2tik. yf, the Panchatantra ( op. cit) Tantra II, p. 170. verse 209 which runs as follows:
कुलं च शीलं च सनायता च, विद्या व वित्तं प वपुर्वयश्च ।
एतान् गणान सप्त विचिन्त्य देया, कन्या दुषः शेषमधिम्तभोयम् ।। 289. सेबानः, i... 'पुमान्' PJ Anal P3, 173. रजेन, for रमसा । 275. The second half rewats what is related in the first half. 276, प्राघूर्ण = प्राणिक, 'a guest'. पूर्ती = धूता । नितः = धूर्तः कृतः । 277. Onc expricts the second quarter to be चन्द्रभूपेण हि । 278. The usual reading of the verse supplemented by B8 is :
ददाति प्रतिरदाति राघवापोभिजपति ।
भुइते भोजयते चैव षषिध प्रोतिलक्षणम ॥ Ct. the Panchatantra, op. cit., p. 104, verse 51 and p. 196, verse 13). and Dugtrimisalpitalika uzakvāna 3 and 19).
२१
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१६२ BO-OJACHARITRA
[ Fourth 27. पञ्चामन, .. मधु, सीर, पयस्, दधि and घृत ।
360. गाबिसुवर्णावत: ( मदीयाः यदि दत्ताः, ते ) तव मन्दिरे ( विद्यमानानां ) पादार्पाः ( एष मवेयुः ) इत्यर्थः । लव, i. c. 'सत्र पर.म.' PI, तवैवेत्यर्थः ।
281, एतद्वचनमाकार्य, Scil. 'मन्त्रि मुरवात' Piund FA. 22, मण्डपम् = विवाहमण्डपम् ।
283. The worrl karanecharu literally means 'releasing of the hand of the brick lay the bridgmon) trut figuratively the end of the marriag. ceremony'. (1 verses 429 and 498 below and also :
मुमोच स कृतोदाहः करादत्सेश्वरी चषम् ।
ततस्तथा ददौ तस्मै रत्नानि मगधाधिपः । Kathasaritsrgasta ( op. cit, p. 54 yersE9 82-83), जामात करमोचन for मामा करमोचनं ।
28+. वीवाह - विवाह ।। 385, सेचानिका, i... 'मन्द्रसेनस्थ पत्री'p1.
the localisrn in the expression उग्रपोपरि in the sense of उद्यमे, i.. उद्यमविषये ।
289. ाकुनमांधेया, Wrong for 'जा येषा? But B3 explains the expression as 'शकुनअंध उपरि।
Ihasapura is usually identified with the modern Mandasor in Malwa. 293. पितृमातृभ्याम् for मातापितम्याम् । बालल्ये, for बालये वयसि ।। 2:07. 'अस्म पित्रा विवाहमधिकृत्य वार्तापि न कथ्यते' इति वदन्ती इस गित इत्यर्थः ।
211, संप्रदायेन मंतः , 'one who follows the custon'. . संप्रदायेन संयुता, jn Prasthivn V. GETSE 129, वामशायीत्यादि-पत्र श्रेष्ठो घामशायो स्वित्तः, सत्र नापिल: मंप्रदायेन संयुक्तः सन् आगल: इत्पन्वयः ।
॥, मस्प पाप्यन्तिकात् इत्यर्थः ।
304. निकट झस्ति मात्पन:-In Malwa there appears to be no Viratanagaurn neut Manilasur i... Dayapura, the home town of the Stashathin. Tlie' fituus Viratana. gara of the Mahabharata is identified with Bairat in the furint fripur Stale.
308. स्वरूपम् - वस्तुस्पितिम् ।
308. देव्या - देवी, (just as कन्या - कनी). The meaning of this ward is rather doubtful. It is this term that appears to be referred to as takana in Verses 315,316, 338 etc., below. So deriva may be same as the skenaderela or a goditess presiding aver ornens. (Ct. the expression ata: 1 in verse 312 below.) Again here the goddess appears to be supposed to make sound thrice at the left land site of a person ( denoting good omenl or him ) throug the mouth of sakter IIT INotss-lizard' whose sound is often similar to thout of a SIPLITOW. ( 01. verre 311 below), MART लदा यामि, अन्य ग्राम, अर्थात् श्वशुर ग्राम, सदा गच्छामि इत्यर्थः । ध्याधुटिवे, lur याधुटिष्यामि, or पायोटिष्ये, '(I ) will colls: back',
67. ग्रूता, ior उक्तवतो । सा, .. देवो । प्रात्तः, soil.. द्वितीयदिने (?) 811, चटक; 'a FIRETow', पाग्दसनाम्यः, a Bakriwriti compound. जल्पितः = पान्दितः।
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES
१६३
3133. The expression निवद्यद मुखे, denotes that the sentence was listered aloud. ct. विलापं कुवंती वो, in Frastava V. ecrse 133. खण्डितवान्, literally put bridle ( Om the lionscy [ C. thic Desi wurd #st, bridle' but used to mean drove' ]
11. यथोक्तम् = पूर्वोक्तम् ।
15. Note wliat lias been referred to as देश्या so for, is called here and after as शकुन: in Masculine. अप्रे=पुरो भागे। कर्ष कृलम् .., कम प्रस्थितम् । One syllable is super. fluous in the first pada of the verse.
316, केटके, 'in the rear'. Cl. the Gujarati keda ( Sanskrit कटि) 317. सार्था, companian in the journey. भायातः, seil, 'श्रेण्ठिपुत्रः' PL and Pa , 318, सालकादिभिः =ण्यालादिभिः ।
312-820, तैः श्वश्रूभिः शालकादिभिश्च गृहमध्ये समानीतः, कृतादरः, मदनीवर्तनं कृत्वा स्नानभोजनादिभिः कृतमाङ्गल्यका चारश्च गामाता हर्षासिरकेण क्रीडादिनमत्यवाहयत् इत्यन्वयः ।
331. नन्दा i.. 'थेष्ठिपुत्री' Pi artl P9 . अनारषोडशोपेला = अलंकारपांडशोपता । तनी संस्नापिता भूषणभूषिताचेत्यन्वयः | Note the localisin in तनो संस्नापिता ।
3325. Tlic verse: supplermented by B3 1s found in the Dukrissatputalika ( Aprkyiated }.
320. देह tor देहम् । 127. लग्ना, had passed'.
328. aftha waf, 'husbaud wlio las married (but not yet taket his wife to his tutime ).
331. पूरकृतम् = फूत्कृतम्, 'conmplained very laudly'. 3383. #! is not a quite happy ädelress in this context. 3:34. बन्यायस्वा . १. बद्ध्वा । मोतः, Sirit.. 'धेष्ठिपुषः' Pl and Pa . 3335. व्यतिकर, 'matter
139. Vous tlic third person war, and the second person 5 in the same haif. पुर्व भाग्निी , old'.
10, सर्वलगरः प्रधानक:-Read प्रधानः सर्वलाकरः । सबला, an inori club. Ea reads सलिकः, and expesins as 'सर्वलिङ्गनामा'.
12. क्षात्रं sunne is खात्रम् from the root खन्, Modig'. क्षानं पातितम्, 'a hole was durg (i.e, too enter the house ).' क्षात्रपाप्तकरः - खात्रबननकर्ता. Note the localisna in क्षानं पातितम् .
3343. पूरकर्तृम - फूरफर्तुम् । 34.4. भाषस्य पातने वारम्वमनं समय । 34.1. Adlel mar, before the second hall.
347-318. विनिकर and चेजारक are evidently used in the sense of भित्तिकार, masol'.
3310. सशलारा, dresscd clegantly'.
11, एमिः सत्य वचः प्रोक्तमिति विचिन्त्य राज्ञा भोता इत्ययः । Ad राजोवाच liefore the st:cond half.
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BADIACHARITRA
333 नूनम् = 'ऋतम् pr and ps
354. भृकुटीभीषणेो राजा नग्नत्वमित्यादि तं प्रत्युवाचेत्यन्वयः ।
356. द्रव्यदान, giving money as bribe.
357. तलारक्षाः = स्वनरक्षका:, 'potice men'. दीर्घ: 'tall', महपा = 'हम्बा' Bland B. शूलारोपणं कथं क्रियते इत्यर्थः ।
358, शूलिकामान:—a Bahusrihi compound of मुख type
360. सूचिकानुमानेन ज्ञास्वा शूलिकामानमनुस्तेन मानेन सहितं ज्ञात्वा । सालकम् = दयालम् । 362. शिक्षा, 'advice. घायंते, in the sense of घार्यताम् ।
P
1 Fourth
363. दण्ड, used to imean 'that which is paid ( as penalty ) तलारक्षे, for सलारक्षाय or रक्षेभ्यः । नेष्यामः forआनेण्यामः । दीदार, 'a gold coin' ( from the Greek @iwarius) It is not easily explainable why the king himself (or his ministers) had to pay his city guards 1000 dingus for releasing his brother-in-law. Probably it was in tune with the funny law of Anyayapurapattana.
64. यज्ज्ञातमन्यायपुसने, तादृशं तब राज्येपि पयामित्यर्थः ।
6. नन्दायाः भगिन्याः लघुनन्दाया: कनीयस्याः नन्दानाम्याः इत्यर्थः । नन्दाया भगिन्या सह लघु अविलम्बेन इति वा अर्थ ।
272-370. In legend of Vikrama, we niert a parrot telling a story of a disloyal wife almost like the above story. There a thief plays the part of the sakuna of the present story.
means this :
371. The construction is somewhat confusing, probably it चन्द्रसेनेन भूपेन यथा शुकमुखास स्रुतं तथा शकुनस्य जातो ( . . शकुने ) अस्तिमयं जातम् पुनः पुच्छा ( कृता तेन तवा शुकः ) उत्तरं दी। 372 आगमे, इति वा ।
शास्त्रे, निमितशास्त्रे अथवा आगमे ज्ञानाय, शुभनिमित्तस्य सम्यक्ज्ञानाय
174 अथ = "सवर " Panda या प्रामङ्गीकृता' सा, P1aal P3.
, evidently for तदनन्तरम्। पुष्रावलो. 'परिणेतुं
.
376. अटवा, for अटवी ।
380. Nule अर्थ - हेतु and the चतुर्थी । 381, महता = श्रेष्ठेन ।
for
389. अस्याः कुमार्याः पित्रोरित्यन्वयः । मम सुतारलम् 28. गृहाण is changed into ह to shil tle inetre.
one after allotter
अस्मत्सुतारत्नम् ।
38. मया गम्यते मया महू गम्यताम् । वचः वचोविषयं कार्यम् ।
37. युगादि: Jinn Rishabhu' गर्भगृह 'sanctum saneloron प्रविष्टो दक्षिणे भुजे, 'entered (a) in the right hand side. The first and second halves of this verse appear to have been interchangert.
388 अष्टप्रकार,, the five prjas mentioned in prastava II, verse 42, together with pradakshina, namaskara and prarthana ta in the stable posture for meditation', Cf. the Prakritic का मरम, काउसर and कात्रण in the same sense
asy. Note the prosition of the array सार्धम् in the compound. Cf. praskgeet.
verse tu,
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Prastava
EXPLANATORY NOTES
358-!!, सखोपश्तशतोसा कूमारी 'स्यद्वारेण आगता मंस्थिता, आगत्य संस्थिता, इत्यन्धयः ।
301.Neimiyatindras. a. Neniipithe wlo was the twenly-Second Tirthankata of the present. Jarastrbini
123. All कुमारी जवाच lrefore this versi'.
1. चन्द्रावती, tic., 'पू.' Pt and Pd, a city'. जिनयात्रा = जैननो यात्रा । 19:20. भूपशरीरजा:-भूपस्य पारीरेण महब जाताः जन्मनैव सिद्धाः इत्यर्थः । गुरुणा - देवगुरुणा ।
887. This verse appears to be a quctation, कल्पे- 'स्वर्गतरी P1 ani ps. The Masculine el which is ju the original is quinted here without changing the gender suitably to the context.
3.98, farsifa utc; ['1 and 13 rounds is of Un context luy adding at वितरियम्"। 13012. प्रोटा i... यसा प्रौढा । कुमारी = अनुता । न्यकम् = स्त्रम् ।
:, is explRitvedus 'क्लोन इत्यर्थ: 15 Pl and P3 , and it appears to le 12 ! Les alean 'connected with the fanily', faktet. 'allon-Jaipz': (f. Prastant I, Verse 331.
12. and Pampcar to suggest another reading रोकता: समाः सख्यin addi. tion tu कृत्वाखिला: सस्थः । समाः it. दयआदिभिः समाः ।
408. मातृपित्रो : for मातापित्रोः । 20.4. One inay baturally expect taifa leta in the fourth padir. 405. एसपनमाकण्यापि गम्भीरमानसः इति पूजाकरण हेतुः । 411, राजी, it. "सुतामाता" 1 and P५. भूनते: - "रत्रपतेः" Pi and I's
13. भव्यम् = मालम् । प्तपर-meaning "a kind of sweet-uneet. known alsu as "-is changea into) F? lor ili sakı offlictre.
418. उग्रसेनः = पचौपिता' Pr and Ps. 419. बला, 'scason'?). घटी, 'unit of tine'. 421. Niute the synonyms and नरेश्वरः।
+23. P1 and P9 slipplearc:111 Gulyभकत्वोपविशतोद्वन्द्वं'. wliile Bacompletes the Velsas given ill Hic font note Ci, tlic Grst verse with
भवत्योपनियतो हो वं भुक्त्वा संविधानः सुखम् | आयुष्यं क्रममाणस्य मृत्युवति घावति ।। Dravinaipallalili, pihevina 2).
121. मुहमपि भाग्ययोयत ( एम ) गृहे ( i.e, गृहम् ) आपतः प्राप्यते इत्यन्धयः । 427, उग्रसेनाय i.., उग्रसनं प्रति । .:11. मृतकालाप्य This sing lvirl furwel'. शुभावहाम = 'भव्याम्' PT Rolpa, +35. अतिवाहनि अनिराहयति । 18B. निमितोत्साहः, for कृतीत्माहः, n. Chaturthy Balhasritiictimjunrand.
38. शशिप्रभा .., 'पट्टराज्ञो' 'l and Ps . 410, दोपः, i., पृथ्नावती विवाहरूपो दोपः | Have we to correct into भूपतरयम् ?
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१६६ BHOJACHARITRA
{ Foruth 441. स्त्रिया, i..., 'नध्यपरिणीतया' P1 and P3 .
443. निर्यजनस्थितम् = 'मि स्थितम्' Pi and P3, चिन्ता पप्रच्छ, चिन्तामधिकृत्य पप्रच्छी त्यर्थः।
446. सदचः = मयोपदिष्टम् । 447. वा-यदि । अथती । 448. परं कारणम् = विरुद्ध ... पदुस्ताकरणों ) कारणम् ।
19. P! explains ; 'यथा चक्री अतुष्टिमहसस्त्रीपतिस्तथासावपि ।' कियत्यः, अल्पसंख्याकाएब, बल्लभाः पको पुनः चत्तु :पष्टिमहम्नस्त्रीणां भर्ता इति धूयते; तथापि स तास समानानुरागः इति वा । "फियत्य : सन्ति वल्लभाः ?' इति प्रश्नो वा अल्पसंम्पाका एव इति भावः ।
4510. प्रधानता, scil.. भोजमहिषीणां मध्ये। 138. मन्यदा - एकदा । कलहन्तौ, or कलहायमानो।
451. कलहते, fur कलहायते, or 'यति ( according to a few grammarians ). . कसहायसे, it verse 472 bulaw. स्फोटम ete., 'uut amoul 10 our quarrel and make us have divorced ur partitionedr. Or स्फटय, 'ren८. Citi:: Palitic फेडि।
456. गृहलक्ष्मीः , “property in the house'. न्यायमागें, 'according to law'. भम आयाति, 'belongs tu me'.
___458. येषां प्रसव्यथा = यत्प्रसवध्यषा । यया, ४., 'मात्रा' Pl anti P३. अन्यथा कृता i..., अस्वामिनी कृता।
453-80. निष्पन्ने, फले निवपन्ने सति, तत्फलं स एव, कर्यक एच पहाति इत्यर्थः । टडोरक। टपुरकोणक्षिरः, 'in letters engraved by thistle (on stone )'.
161. भूपोक्तं च तया कृतम्: 'अपत्ये च पिनुः किल' इति भूपोषितमनुसृत्य तया अपत्यादिकं दत्तम् इत्यर्थ: । कामिक = कामप्रदे ।
462, gia: Prakritic constructiul meaning jured', 40. पच्चोच्चग्रहसंभूता, .., पश्चान्यग्रहसमय संभूता ।
465. यत् कथ्यते इत्यादि-यत् कर्तव्यत्वेन कथ्यते, तत् वयः न लुप्यते, न विरुद्धयते इस्पर्यः । मिष्टा, 'sweet'.
466. गृह्यताम्, i. c. कोयताम् । 367, घोटका, 'a kcrsc'.
169. शम् = 'मुस्लम'P1 and PH. निनावानित्पादि-मध्यस्मदीयात्रा: सुखिनः ?' इति तत्स्वामिनः सूत्रधारः पृच्छति स्म इत्यर्थः ।
470. भावयत्यधि लोकेभ्यः, For ( अमुं वृत्तात ) लोकान् भावयति स्म । 471. मंगटकः, ' uarrel'. 473. स्थिरीभाव्यम्, Scil. मत्पक्षण; राजसंनिधौ जयो ममैव भविष्यति इति भावः ।
171. 19 maha, 'does not get settled among the penjale themselves an according to thi: practice:'.
179. गजबसालिन्यायात, cte:. The fusks of the elephant startalike, giwalik apri and treal: aliks.. Ill the same way llert tlic g cnt in the caso di te surastow (चटिका is also the judgement in the cascotthe lurges, us both of tleman based on
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES the same principle. महद्वचः, 'grical synu's wari i. in. a judgeITLE'. अनतः स्यात, 'wauld be equite obvious'.
488. किमेतत् = यत्किचिदेतत् । 187, शिल्पी = सूत्रधारः । IN. अनम, 'corn for foud'. एत्य ='प्राप्य' PLAnd P . +89. कोष्ठक = कोष्ठ कोष्ठागार, 'stale granary.
+dj. माम्, Insistire hi capacity', करम् tot करेण । कोष्ठिकः, 'officer in charge of the leustiha'.
90–92. A194, 'one who measures'. FEST, 'the portion of the grain etc, ) heaped up over a capacity measure
195. Fifqzitulaft etc., 'Is it not wonder that I build a fost on the head of amonkey ?'
1. प्रीत्यां सीवतीति प्रोतिषत् । ततो बुद्धः परीक्षणं कर्तव्यमित्यात्मनि जगादेत्यन्वयः । 16. करमोचन : Ste mote all verses $3 and 12 above. तेन i... मूत्रधारेण । 501. मातपिवादिकान् for मातापित्रा। 502. दृश्यम्, inr द्रष्टव्यम् । पूर्याः for पूर्णाः ( भविष्यन्ति ) । अहस्सु गतेषु इत्यर्थः । 101. शान्तवचः, 'gentle word', 514. सोमालाः = सोमान्ताः ।
506. नरवैषम् i.., पुषम् । सापहेतवं, 'for the caravati' i. c. to_gin the ceravan'.
507. तुरगो, a female brarse'. 508. मन्यस्य ... ( मोजस्य ) गम्यम् ।
10. सेबनायातः = सेवनार्थमायातः । असो,te., "सत्यवती प्रारनाम्ना" Pl and Pa. 311. प्रीतिः , friendship', लली; Past Purfect of the root ला, "n take'.
511, तवाश् lor तबाश्वन, or तवाश्वाय। वाल्यन्ते, from the Desi root डाल 'to throw dow11'. पाशक, indi:'.
515. The second half ts explained as 'सत्यवती निजगृहेष्वान् प्रेषयामासेत्यय:' by ' pl and P4.
51. गुविणी - गभियो । सेन, i.... कुमारेण ।
524. The first liulf appears to stand for वदार्या दौयतां मम मयका यदि हार्यसे । मयका = मया । मम श्री देयत्यन्वयः ।
529. The first half is in the sense of यथा भूपो न जानीयात्, तपा चातुर्यतोतिष्ठतः । P1 and Ps add : "अत्र सत्यवश्या नृपसंयोगे गो धृतः संभाव्यते बने पुत्रजन्मप्रतिपादनात्"।
530. ताम् i.... "सत्यवतीम्" Pi and ps,
531. निजे स्थान = "पितृगहे" 21 and p५ चतुर्दा प्रहरे निशः, but ci. ऋतुकाले किमत्स्वेषा दिवसेष and प्रहरत्रितयम्, respectively in verses 527 and K५५ Above.
634, सोमालभूपतीन् = सीमान्तनृपान् । 535. पूर्ण दिवस: .. पूर्ण दिवसे । 538, केन्द्रगोश्वस्पः, probabiy for केन्द्रगः स्वस्थः . स्वस्थः = स्वक्षेत्रस्थः ।
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BHOJACHARITRA
[ Foruth 538. नत्रशुद्धिः -- See note on Prosti.vRE, verse 33, संजातात - 'जन्मदिनात्' P1 and P.A
10. गृहकिशोराः, i, ., भृपावाद्गर्भ प्राप्तानां गहे विद्यमानानां तुरगीण किगोराः । एवं = वक्ष्यमाणप्रकारेण ।
513 बिनिमित्तः.in the sense of विशेषेण अलंकृतः । 14. मुखासन, 'a palanguin'. 5.15 प्रत्पाययस्थ, 'convince ( tue will proof).
149. A story to situilur lao that of Satyuvali, alsove told, is fountaneong the folk lorry of Trsuinal
550, मदनमजरो, it, 'पन्द्रसेनकन्या' P1 and ps.
01. वचः, i... बनसोपदिष्टम् । नरइत्यादि-अन्यों नरो न बरणीयो मया; हि, पनः, सः महोदरममो मे, सहोदरबन ममाभिमतः, इत्यर्थः ।
555. Cf. Prastavn I, NE:: 5, 334. अपश्यत for अपश्यत् । 5110 वामदक्षिणे, for वामदक्षिणपार्श्वयोः । 561, शीगें, it.,शीर्षापरि । सीमाला:- मीमान्ताः
iii. . . ., अमा::: : शिवम् इत्मा-ना-या गोपविष्टममाल्यं शिवं, कुशलप्रश्नं, पृच्छति इत्यर्थः ।
56. दाराः = 'स्त्रो'pi and p3, वाहानाम = 'अश्वानाम' P1 And Ps. 564. म; wit,. 'माघी' or and pt. ills, मल्लाने, it., निवाहशुभलग्नविषये । 5. गन्तोग्य = सम्यक तोषयित्वा ।
569. पालित: for 'चलितः । सामान्यैः, used in the SETISe opposite to शोभन: found in verse 374 above.
171. भोजः स्थापित इत्यर्थः ।
372. The Piztasddamalaşmaso recognises tic word x4 Sanskrit ) in the sense of स्थित।
SHTR. यदि शिक्षा में करोषि ... यदि मयोपदिश्यमान मनुतिष्टसि । 571, लेन, viz., रूपचन्द्रेण ।
57:. ta is used iu llie sense of marriage as in Hindi. Ut elc. According some Jin Custom), the bridegroom is to ride on a house to the libiese of Llic bride on the eve of lie marriage.
176–71 afro-A Sanskrilized form of the Desi fafcar. (meaning a Inarriage hall") and used in the sense of 't four-pillareesl mardana temporarily built fur celelauting the marriage in the house'. Cl. Ihe Gujariti chadi. फरक, 'gning around'. Cl. the Dasi फेरण, I!indi फेरना and thc Marithi फेर, फेरा। फेरकत्रयम : During the marringe imelion, tl: Jaina hride anl bridegroont are cxpected to make together pradakshinerts around fire anul four decorated pots, 01 by on, kept in tlie chaudl. oratrika and to perform dans of earch put, to smne near relntives. This Ceremony is called pheri of hcraka. It is said that utiless the fourth heraka, viz., the
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Prostava ]
EXPLANATORY VOTES
prudarstreytinda oltluc lorth not, is ver the bridegroom cannat chim to le Il bushand of the bride in ustian. Soir traveleret hieris instead of four. 17: Fuat,'stnoul ttp witholl moving'. (1. pristava IIT, verse 24.
584. 971 etc. the text requires artistene for 9:, va, wiu : Plund P3 i K., 41 1941 arrits: 1
685. T#: ., 'Tija:' pi and 1", i C. tet 1901: 16 . ' 1'? iind P fare: conserpcntly 'tiz] 44 694 P and pa,
5.815. arafosat: used in the sense of arar (i.6. i 1743, AJFAL) mar: 587. =faqja i
54M). Thuy verst intributed to baskyn is found in the ashitaratnabhäntBakit ( up. cit., p. 153, versi 28).
5.1. (af) 199f1 = ' P anel P319 . c. i; ci, prastāva I, verse 2:18.
193. 7 etc. 113: 972178 47901f7afy' pi and P!. strana, cillised one) to rituta 'k'.t'l. 11st prakritic of , in the same sense.
!3. T T:ETT TT 4#il forbifer: ( =fafa: ) from the Desi word aszt, 'scpuration'.
59%, mataifa: 49:,'y crempiletillg # stanza jaf which it portion is given in the way already indicated', csiciently as il Swetu pardy. Cf. prastava III, virke 146. The southere was Joridad Julboly to the cflect tatt a person, who could comp] *LE! : S usy ill i Kivril way, was to lhe understoul as the real Bbojil,
60, *T IETTY:- Note the change in the capital, and ci. tatata in vers 595 above. This fact appears to show that the presunt verse is 1 quotatinn. llie Passivt: 1759417; is for the Active 1:1
One of Uje popular lands of Vikrauna goes as sullows: The king Vikrama a t the rist of Harukawaprares certain clever Cut]cntes. After sometime the lattrs entered into the body of the former wlun he linisclfi. e. Vikrama) lai ente. red the hody a parrut. The Carpiuitor fietendeil 23 Vikramil. Though the king 's niinister found out 114 trac, le coulil 1300 cu anything. Vikrama, in tlic form of the parrot was doing wonders, and at lilst when his minister tactfully madu the pretender's life leilver Du: Ixody of Vilcramit anul criter into that of a ram, the king's life entsteil his uw burly to lt lappy Full VAT.
V PRASTĀVA 1. gafat etc. for gafari tizgled #3914:47TX, 'feeding house'. 2. f ferant, ie fitafet ! 3. FRS ='Taqa' P'I and P3, 1. faig fequi aa ruoa ( Prakrit ) - 06.
5. datiratfat 1954aa1a*:-It the previous Prastaru tuu author lies described that Bhoja in the form of a parrot masrater low Satyavatj came back to 1.im when Devaraja attaincd the age of five ( versc 539-47 ). Therefore only after
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wares Bhoja must have learnt the art of the Paramava francesa, stayed as a parrot in the court of Chandrasena at least some months, got back lis body, married Macanainanjari and then got through lier the son, Vatsa, Therforo Devaraja must have Loen older than Vatsa at least ly six or sovun years and nol by three years. And it is obvious thal the author is not aware ui this fact.
6. दिनः स्तोकतरैः-अपवर्ग तृतीया । 7. Note the agres of the priness. Suc albove. बार्षीयक: for वर्षीपः ।
8. नखमांसयोरन्योन्यं या प्रीतिः तस्या अप्पधिका इत्यर्थः । नेत्रयोरिव - नेत्रवत् । तेषाम् for तयाः ।
२. अकित्तिमम | Prakrit)='अकृत्रिमम' P1 and p3 . 11. प्रान्तिके - 'समीपे' P1 Anti PI . 12, समुप्त इति कथितमित्यर्थः । 13. न जाप्रणीयाः i..न जागरणोया:, used to mean 'should not be awaken'.
15. ( N ) कुवन भान्मति माग्मति, भानुमति ! भानुमति ! इति शन्दं कुर्वन् : One syllable is elided to suit the netru. This verso gives a clut tu (i) why Bhoja should be so Angry with l.is beloved sons; (ii) wly loe should all of a sudden ask them to bring Bhanuinati and how to wri t e identify wlien lac first saw her vers: 221 below). It is Evident hure that he was very happy with Bintimaty in liis dream when he was aculeu lwy liis sons.
10. Note the localism in जागरूको निमितः । कृष्टासिः, rit., 'राजा' P1 and Pa .
17. देशपट्टकम् i... देशानिष्क्रमणाचं प्रकटितम् प्रासापटटकम् । देशपट्टकमदात्, 'ordered barishment'.
19. fama 'giving instructions' or 'desirous of being able to do anything wanted'.
20. इति, 'as follows'. प्रमाणार्थम्, 'to honour' 21. The Prakritic सोमाल, means सुकुमार, "tender', पीरपमानौ, i... पीडपमानावपि । 23. Dhananjaya is the name of the merchant. cifre, 'a ship'.
26. अद्यापि बालको, 'still quite young'. जलान्त, = मध्ये समुहम् । सन्देहः । ... प्राणसन्देहः 1
27. वेलायाम = 'अवसर' Fi and P9 , अर्थात्, आपदवस रे ।
५४. सेवका 'श्रेण्टिसेवकाः' P1 and P५ . सार्थीय, 'one belonging to the band of the Inerchants'. अतिवारते for अतिवहति ।
29. वाहन, 'ship'. पवनात्सुकः पोतः, 'a ship, active due to the wind'.
31. लग्नाः , 'started', नागर, 'an anchor'. Cf the Persian langar, the Desi गंगर, meaning an anchor'. एका, इत्यादि--एकः ( उतुं) सहसाऽऽयातः, द्वितीयोऽप्यायातः एवं सर्वेऽपि; तथापि स नाङ्गरो न निःसुतः इत्यर्थः ।
33. न निःसरंतु, Seil.. नारः। स्वस्वगोत्रीयाणां, वंशीयानां मस्तां, देवतानां, सते:, समूहस्य इत्यर्थः ।
23. पूर्वोक्तं वचनम्, it the words in verse 27 above. 34. इति, goes with ऊचे in the previous verse. सः पुमान् .. देवराजः । 31. मोक्षामि for मोक्षयिष्यामि ।
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES
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४. युगादिजिम, kishabhanatha the first Tirthaiikara of the present Avassarpint".
3. तीनाम् = तीर्यकरम् ।
42-43. तद्भवाः = 'पुषाः' Pl and P३ . में एक पातं मरताचा तद्भवाः बभूवः, तथा सर्वेषां युगादिजिनन मात्वा पृथक् पृषक् विभज्य सय जनपदा। स्वयमेव दत्ताः इत्यत्ययः ।
#. नामानुसारतोऽन्येषाम् etc. Cf. इक्ष्वाकुक्षत्रियज्येष्ठा जातिज्ञा लोकबन्धुना । भूमौ वषमनापेन स्यापितास्तेऽत्र रक्षणे ।।
कुरवः कुरुदेशेऽसाधुग्रास्त चोप्रशासनाः । न्यायेन पालनाद्धोजाः प्रजानामपरे पिताः ॥ Ilurivants purami (Manikyachandra I)iganbara Jainagranthamals, No. 32-Chapter Ix. verses 43-44),
45. विचछत् = विच्छदमनात्, वराग्यात, through disregard'.
Cr. तस्मात्सांसारिफं सौख्यं त्यस्त्वान्त दुःखदूषितम् । मोबसौश्यपरिप्राप्यं प्रविशामि तपोवनम् ॥ (Ithid., verse 61). अथवा, बिच्छति = राजसदनातः विनिःसत्येत्ति पूर्वलक्षम् शेषः । दोक्षामादाय becoming an ascetic'. 944, annihilation of all karmas (by means of the Fourteen tituteralas).
___46. पञ्चमं ज्ञानम्, 'ourmiscisince'. पुणरोक धरोपरि i... भूमो पुण्डरीकवतं कृत्वा तदनन्तरम् । पूर्वलक्ष, पण पूर्वलक्षम् । The word पूर्व like सागर is the name of a very high nuunber, भरणम् = 'चरित्रम्' pl and P8.
Ci. छद्मस्थकालनिर्मुस्ता पूर्वलक्षां जिनेश्वरः । विजाहार महीं भम्यान् भवान्धेस्तारमन बहून् ।। Harivansa (op, cit., clhapter XIL verse 79).
15-46, All Gerurulsviz., दत्त्वा etc.. go with प्राप्त in verse 47.
47. The Time Šipurapattana remind us of Srinagara of SrinagaramahaStha which is described by Merutunga as a place where temple of Rishabla had bxcell built by Maladleva at the beginning of the Krita-yuga (Pranandhaschintanei.om. cit., P, 62. lines 10-15), and which is identified witli tihe modrou Alinicdabad. But according Rajavallatlia Sripurapatiana was a place which came lister into the abbys. So the place is reviidently an innagintry our.
निर्वाणावसरे, निर्वाणसमयात् A: Por, it is believed that Ristiabha attained Hinksha at Ashti]paula and real in Sripurapathalrs. सहस्रवतुरशोत्या etc. Cf. अभूवन् गणिनो मसुरगातिवचतुरुतरा। सहस्राणि गणापचासन्न शौतिश्चतुरुत्त रा ।Ilaristmiss (op. cit., charler 11, verse 54).
8. झामनाम् for भामणाम् 'Legging Turdian during the पyयणन्नत'. गवत्यादि-श्रीपुरासष्टापदगिरिशृङ्ग गत्येन्यर्थः ।
49. चतुर्दपोन मक्तेन for चतुर्दशभिर्ममतः। I and 12 appear ta_supplement: 'उपवासषट्केन'
H, Ci. verses tH8-69. मनुवनिकायकाः, "the four god-groups': ct. Heritripsa (loc, it
3 कियहिनः, ill the sense of किहिनेभ्योनन्तरम ।
52. Merutunga tills is that in the temple i kislilula at Sifurpattana, built by Mahile:VIL, There wils : Vity old cliarler of Bharata, which juired tire
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persoas to curry. (Pra1221dhichintamani mup. cit.-t. 631. Pronably Rājuvallalla thinks that the temple with the: charter of 13haratil mist his her built by hiln. i. also note on Verse: 47 abore.
5. चतुर्विधानिमामि ulvinash: TO THE ! नितिमिरनिनम् । As in Verse +9 alhost, thu: पूरण प्रत्यय SATYes no pur[Nis here.
The Jainas lieve thint cucli of the warpinis preceding to the prescuit une had twenty-four Trubarkans, just like the succeeding sarpiais will be having. Consequenlly there is 110 historical anachronistu in describing that Bharata, thu 5001 of the first Tirthankuta built a temple for tlic twiaty-four Törtitat karas, Similarly there is also 110 ilhachronisin ir lliurescriptiou of Sagarik as it conteniporary of the sccom] Tirtuante Ajita inul its the worshipper o tlor tehly-louc Tirthakaras (See verses 73-74 and 101-103 below).
H, भरथ 5. a, भरत. For the contuest of the six khanties by Bharata, see the Haritasa (op. cit., chapter XI).
51-57. अस्य Mix भरतस्य । निधानानि = निधयः । कर जानानि 'catne to this) hand. CI, चतुर्दशमहारत्ननिधिभिनभितः। निःसपत्नं ततयरक्रो बभोज वसुधां कृतो ।। काजश्वापि महाकालः पाण्डुको माणवस्तया । नसर्पः भवरनाश्च धानः एपश्च पिङ्गलः ।।
वतस्तस्य निषयो निधनान 11 llaritauisa (op. cit., Chapter XI, l'enses 113, 110-11).
57. पिण्डविलासिन्यः, sharlots staying for food ( and cloth )'. 58. रथसद्गजवाजिनाम: Nole the treatment of the compound as पशुवन्द्र । 5. लासमंबद्धवाजिन्; 'a horse kept for spuris'. 60. एकदा or एकत्र ।।
63. This verse with sliglıl varijs is not willi anong the iluprccatory teises in the inscripcions.
61. घातिकर्माण प्रातितानि, कामक्रोधादीनि ज्ञानाबरणानि नाशिमानि इत्यर्थः । Cl. the Prakritic घाइसम्म । पुराभव - पूर्वजन्मनि । अन्तरङ्गारच रिणः, i. c. 'क्रोधायाः' pr and Pd. Cf, निहत्य पातिकर्माणि केबाजानमाप्तवान् | Brihath rki kisick, Shighi ]rin Series Nev. 17, p. 321, verse 1: ).
66मावना = जातजन्यसंस्कार विशेषः । प्रमाणेन, in ille sense of प्रमाणस्य आधिक्येन । मुचलकामस्य = शुद्धम्म ( = अन्त्रञ्चदस्य ) ध्यानस्य । Cf. प्रातिहार्य कृत देव्या शुपन्द्रध्यानगतो मुनिः । Hrihirthatthalasa | luc, cit. j
6. नादनति-तहयोग नगोया । वर्ग, 'erleatur'. रत्नवृष्टी: fur feः । केलिमत्कृतिः 'as an houcair to that omniscieuil wa.. Blärata'.
07-13. Cr, प्रावित्तिदर्शन्द्रः स ( भरतः) कृसके बलि पूजनः । ( Harinament p. rit. Clhapter Xill, verse: +); annel also कल्पवासिन: १२, भवनवासिनः १०, पनरा: ८. सूर्याचन्द्रमसौ इति = ३२ ( Ilhid. andle ).
1. सोयन्द्र, 'ilhe chiel of the tti inclras of llle Flenter". 740, जिनेन्दगम, Liscel in the Lelise of जिनेन्द्रप्रतिमानत । चिन्ता, 'cure'. 71. प्रोपवा. jer प्रोन्य । हरिः = 'इन्ट:' मोवर्मन = 'देवलोकम'p1.
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Prastava 1
EXPLANATORY NOTES
Rus
72. The reading of 89 vz., 9597 1 21a1 amig, fulluwk the popular belial of the Jaina. For menning of this, she flu viie li iz
111. farmeran' p1 and P: 4977 = ' 99' pi and P3 A = 971197f 1 = 'cata pl,
75,76. These two verses appear to be 10tatious. 87. gaat. 'a devata obeying the Sasanas or orders of the Jina'. 89. F**, “incident'.
91. This verse is said to be in the Gul'usa plati (Subhashitaratuabandagaya, p. 90, culuni, 1, verse 19 ),
93. 519 = 'n' pai uud P The first hali is taken from a verse in the Panchatantri imp. cit., verse 27), and thic ollur bail runs: a : 969 57FURE ET Bul the second liali is from a verse ikitriluted to Bliartfihari (Nilisatuka, verse 25 ) of which the first half gues : fafara dari ar ară
93. This verse is found in the Subhashitaratnathundagatit (op. cit., p. 9, calunn , Verse !)
15. Fa7, as if il lacl the disease of cropsy.
16, 994471 uFii 'ill the broken pieces of prots) lilled with ghee' is from the riktig 'to break'.
99, This verse appears to be il quotation. The fourth pada is incumpleto,
104. Flere the tuthor appears to have coulounilect the sittäpada, or the Mount Kailasa, with ripura. CI. Hote: On verse 47 alove.
10.1. Pria 421914, "The fume-producing work' ;. c. 'the teinple, (built) by the ancestors'.
105. 95947#T:- *** #5 SITE, art at: 64: 1931T1714** A1: *9f74404 i dta, holy place'. Farjad in the sense ol 7 Fig143:
107. The things in which the autlior approvey of later dilay, ito aciually prohibited ones.
lun4916 'the lord of the patala, or netlier part of the world', 1111, , 'scepter'. ii. c. 18:1 111. T: S, W.** ITE! 113. aufwa, s. n. the Prakritic affect, sunk'. 116. Tliis verse appears to be a cuotacjou. 19+, at Hea u fae, acaat 06:1 197, a fra T EFT ATT 4:1 127. 14H: = ' 'p and pil, 128. ar
See ttc w Prastāvu IV, verst 29, 12!), *#, 77, a' Pland Ps. lii. qTja:44: 'the principle of fire and plec'. 132, Fatih = 'T ' Pline 1 133, familia : Cl. mide en l'rastava IV, verse 313.
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BHOJACHARITRA
[ Fifth
134. एवम्, 'in the following manner' सन्निधौ = 'समीगे' P. 135. वृहत = 'हरामनाः' Pland P३. 110. जीवापय, for जीवय । 141. बयेत् for अवदत् । लाहि = 'गृहाण' Pr and PI.
146. The meaning of the second hal is not quite clear. Probably it means : महोरपि जोषितात् ( यदि ) सुवरं दृष्ट, (तहि ) मह दृष्ट स्यात् ( इति ) जनोमितः ।
148. सामानि .. ( बस्त्राभरणरूपकात्यादिभिः ) समानः । 150, ब मयः ? किं वा ( करोषि ) ? कोसि ? किमर्थमागतः ? स्मथः । 157. पुणे, scil., 'अहम्' Pland P3. 158. निर्लोमत्वं समादाय = 'लोमं परित्यज्य' P1 and P३.
159. This verse is found in the Panchatantya (op. cit., Tantra II, p. 127, verse 151).
160. This versc appears to be a quotation, 14. = स्त्रियो PL and Pa . 165. Note the pereinthesis सिद्धे कार्य etc.' 166. भूङ्गयां शृङ्खलाम्, ... 'पृयोक्ताम्' P1 and pa .
169. This Verse is fo111m in the Subhashitaratnabrandgara (op. cit., pp. 90-91. verse 6).
170. भानुमत्याः वदायश्च वियोगः इत्यर्थः ।
173. Gomoklia, the male spirit, and Chakresvari, the icmale spirit are said to attend un Rishablia.
171. नाकेश्वरीपुरः, for धक्केश्वर्याः पुरतः । 'लनम्' fasting'. 176.है देवि - 'हे मकेश्वरि' Pl.
177. Note the local influence in the construction भीतिमदर्शयत्, in the sense of भीतिममनयत, "rightened'.
178. कस्यापि . ८. करमावपि । सत्यत: in his true form'. 179, खटिका, 'chulk'. 150, यक्षः .. ८. गोमुखः । सत्क, belonging to'; cf. the Pili सन्तक । 181, गम्यते used to men11 गातुं शक्यते । 182. पश्चात् चतुरङ्गमयुक त्वं यथेन गमछेत्यर्थः । 189, व्यजिजपत्-वत्सराज इति शेषः ।
122. 'सर्वेषां पश्यतां (i.e. सर्वेषु परयत्सु ) मया भंपा दत्ता' इत्यारम्य, 'यादागा हित पुरः' पति निगमय्य सर्वोपि वृत्तान्तः कथितः इत्यर्थः ।
1233; एकविशतिमे, for एकविझे । अदः, i.e. वक्ष्यमाणम् । 15. इति, in the iollowing manner'.
17. Jश, used in the sense uf दिलम् Rut el. स्वार्थभ्रंशो हि मूर्खता (Panchatantra, op. cit., Tantra III. p. 177 verse: 232).
108 कृतनिश्चयः प्रासीदित्यर्थः । 14. स इदं वचनमब्रवीत् इत्यर्थः ।
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Prastava ]
EXPLANATORY NOTES
300. पृष्टयाउवल, probably 111eans पृष्ठयञ्चल । पृष्टि, "back side.' अबल, "border of the garinent'. कथाया मातृदक्षिणम् 11sed to incam कमाया दक्षिणमचलं मातुरर्थम् ।
201. अस्माकम ८., बस्मान् । 302. वनभूमिषु-निर्धारण सप्तमो ।
203. रूपकान् = रूपान्। note the gender. लिलयामाद for मेलयामास । गमादिदृशान् रूपान, प्राकृतिविशेषान् लिलेख इत्यन्तः ।
2404 येन येल lor ये यम् । 205, परिच्छदा जाता इत्यर्थः । 206, सुखासन, a palanquin', 207. ग्रामाकर = ग्रामसमूह ।
2011. विस्मयत for विस्मयं पापित or विस्मित । शापति इत्यादि-'कोपि नपो भवेरिकम् ?' इति भूपं पृष्टवन्त इत्यर्थः ।
210. कर्तमम् etc., for कृत्वम निश्चय प्रेष्य प्रेषपामास पुरुषम् । 211. प्रहितः प्रेषितः । 215. उक्तम = "वत्रः" pl and ds. 216. तयोः ?., कुमारयोः । 317. तत्का मुस्थितः, for तत्काले पोत्थितः । 218. हट्ट, 'ruarket place.' 221. बाला, ... 'स्त्री' Pt and P. भुक्ता etc., cf, note orn verse 1:5 above. 22. वरापि, fir वररुचि to sthit the metre, लग्नेन for लग्ने । 22:). तो, vir.. 'पुत्री' pond P. चतुर्दियाम् । पतुदिक्ष। 228. यव्ये. तो 'बहम' Pt and Ps. 227. 'वेशपट्टे गो' इत्यारम्य यावद्विवाह, विवाहपर्यन्तं, सवों वृत्तान्तः कथितः इत्यर्थः ।
१७. उद्धरितम्, Prakritic form for उद्धतम् । जोवापितः = जीवयितः, in the sense of जोषितः ।
231. Vote the construction प्रबंशमसृजत्, for प्रवेशमकरोत् or प्राविशत् । ५३४, मट्टाण्जयजयारवैः for भाजयजयारवैः or भट्टानां प जमारवैः ।
235. महासयितुमित्यादि-सोमान्तराजः देशं, देशपणनम् चद्वासयित, देशानिनामयितुम्, आरम्पमित्यर्थः।
236. दापयामास - कारयामास । 288. ताप, fever', संताप 'burning' 239. समाधिः = (मनसः) समाधानम् । 240. मालोचम् = आलोचनम् ।
22. विलम्बः कार्यते भूपात्, in the sense of त्रिसम्यत हि भूपैन । तस्मि V., भानुमतीचित्रस्य ।
११. कृत्वा सुन्दरवर्णकम्, having prepared good or beautiful paint'. 246. मे विस्मृतम् i. 6. मया विस्मृतम् । 27, कुञ्जिका, 'a brush'.
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B'TOJACHARITRA 151. ( गया ) न कुमार अन्तरं ( i. 6. व्यवधानं ) भवेत, ( तथा ) फर्णाचवयवान् वोदय इत्यन्वयः।
12. निलम्, 'a imple (1ike it. 28. आयतिमुन्दरा शिक्षाम, advice (iclehing) gird in hiture'. Hin, या प्रदेशे त्वयि स्थित, सब नामापि न धूयत राजा, तत्र गच्छ इत्यर्थः । 20. द्वितीय, 'vext'.
i, कुमारः, vir... 'देवराजः' 1 Aul Pa. 2465. खचितः, probably for कशितः i.. कशया ताडितः ।
i. तदा चतुर्गुणोभूय etc. for तहा चनुगुंगोमूतवेगाद्भुमिमलतयत् । योजजानि हत्यादि-अश्वेग असं कुमारः कियल्यान योजनानि गत्तातिभीपर्णरण्ये मीत इत्यर्थः । . 217. ममतलत्यावलम्बिन:, jimping the aligtind LU110 Lite thorse'. Note the list of अवलम्बित:, in the Activi-MISE,
25. प्राणमयनः = शर्मुक्त: i... मुक्तप्राणः । 17. = 'अदव्याम्' Plund Ps. 1378, शीतलं: बामः, जल: पूर्णमित्यर्थः । 971, वस्त्रतं जलम्, 'water tiltirel by mims of .. clothi'.
976-77. ममारूढः ='चदितः' Pland Pi, 'rencheu', The lactivsi.d तरी are nume suitable to afca: than to ATEX |
The author aptreat's tu tliint that ध्यान सिंह Bre synonyms. And incuses वानर and कषि SC verses 278279, etc. below) in tlin St Is of ऋदा, or bear'. I wart wticli is used in tlic legend of Viktimaditya in this context. (cl. 10te en verse 3811 below). Ct, alsu qafqoft, and a faj 919 respetively in verses 299 and 380) helow.
277-18. Noto aht IITStTection मा कुरु and मा भक्षयेत् ।
1. हरिः = "सिंघः ( i..सिमः ) Pland P.3 21. क्षणे in the sense of समय । शेहि for मेरुव । पूर्वप्राह रिक, 'the first praharika',
288. नणां वाक सारा अस्ति चेत्, तवा स्ववपिरवर्गाम्यां (i. c. स्ववर्गीयः परचर्गीयः इति विषारणया किं स्यात् ? न किमपि इति भावः।
20. अगम्, is, अहम् । त्रयात् for अयम् । तुम्पम्, for नव । 21. Note भद्र ! alid दुष्टे, जोवे uttered in the same treath. 23. मयका = मया। 11. प्रपंची, 'cunning', 25. कालिन्द्याम् = 'यमनायाम्' P1 and T३. श्यामारः = काकः । असो १., सिंहः । 26. Note सुष्टु used as a nilun and in the sense opposite to दुष्टकार्यम् । 218, मष्टया-मिष्टया ।
299. Note the expression and safecafe alĘ; cinsite on verres 276-77 above,
300, Note the compound मत्पुरः ।। 302. इदं कार्यम् ..., विश्वस्तस्य पालन कार्यम् ।
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EXPLANATORY NOTES
3303. Note: the phrase याचा मे यासि in the sense of में वाचा मृषा भवति । एवमित्यादि-एवं पर्योक्तप्रकारेण, सकरवा, लगिस्वा समीपमागत्य, कुमारस्य कर्ण दामणवीस्फूति ददो. मकरोत इत्यर्षः।
806. प्रथिलस्य, पिशाचावेष्टितस्य, बेष्टा संचाता अस्य इति अपिलचेष्टितः, 'behaving as ii possessed by a slevil'.
3607. पदातुमारेण 'by following the iant nmarks (ui the prince). पृष्टी = पश्चात् ।
301. एकिस्मन् सैनिक कुमारं क्षेम पनि मति कुमार: विसमिग इनि प्रजापति इत्यर्थः । प्रजल्पति and भाषति (Paragrriaipada as in the epies) : Scil., 'कुमारः' P1 and PP.
310. Note the construction वर्ष स्व स्वम etc., in the sernor of Giocked at the isce of each other'.
12. सुखासन, 'n puli][un'. 313. ददौ, Scil., कुमारः । :11: इति चित्ते दोलायमानः, विविध चिन्तयानः, इत्यर्थः । 317. उपाय: 1. 2. रोगनिवृत्मुरायः । 31.1. कुरुत for पुर्यात् । 323, कृतनिर्भमः for निर्भयः कृतः । 124. मानेष्यामि .. आनयिष्यामि । 325. शोध = शोधन, 'searching'.
Iti. ग्राह्यः for ग्रहीतव्यः । बर्करः, a lamb' स्यूलमित्यादि.यः वर्कर स्यूल कृश वा कर्ता, करिष्यक्ति, स इत्यर्थः ।
327. शुषितः, 'if) attended upon'.
30. बोत्कट: a goat",
3.31-32. स्यूलः इत्यादि-केषां ( निकटे स्थापितः बोत्कटः ) स्थूल: फेषां वा कृथाः, केषां वा सदशा: ( i.. पूर्वसदृशाः) इति तोलिताः, तुलायामारोप्य परीक्षिताः ते बकरा' नोत्तरन्ति; परन्तु नन्दकग्रामसंगसो शेस्कटः, तोलिनः मन् 'समः' इति उत्तीर्णः इत्यर्थः । तेपि tic. नन्दकग्रामवासिनोपि । निजज्ञात्वा, i. c. द्विज तत्रत्वं ज्ञात्वा ।
133, स्वरूपम् = वस्तुस्थितिम् । ममम् - समकालम् ।
337, क्रिपते किम इत्यादि-कि कतम किंवा इममिति ते न जजः; किंबहुना, सर्वोपि देशः जनः, उपद्धतः, पीडितः इत्यर्थः ।
340. अध्येते, for प्रेषयिष्यते । 3341. प्राप्तः, पतः, Stil., 'वररुचिः' Pt snd pa. 342, ग्रा महाठा विलोक्यन्ते ता वालुकारज्जव: प्रेष्या प्रेषितम्याः इत्यर्थः । 1813, लश्चा , 'britie'.
B4ti. एका रज्जुः Scil., 'वालुकायाः' Pl and P३. बलिण्यामस्ततः परम्, 'we will return back (the rope) after seeing it';
332. नारदः ८., वाहनमनारदः । 356. ताः = प्रजा:पनान् । 357, निजे,i...हिजस्य प्राप्ती।
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355 BHOJACHARITRA
Fifth 359.44197, ‘palauquin'. Ta 77 - from the context it appears to be described that Bljoja had kept a druan at Dhará to lie soundedi ly those who wanted tu meet the kink or rather who came forward to curc Levaraja of the disease.
260–61. Yote the phrases Scrit and 97: both prubably in the sense of quot atfaa
367. It may be noted that this versc together with the verses 370, 373, 38), 382 are found in tile mukka o! the legends of Vikramjitya which is the source of the present episode ni Devaraja to a greul extent. It may also be observed that the first letters of these four verses, sung hy Vrsatuchi tu cure the prince, that together, constitutc tle mcaning less expression faifau, constantly repeated hy Desarsja. Morcover verse 987 is also quoted in the Mitapatdesa ( op. cit., p. 142, verse 55).
370. Sce acluve.
371. Tal frate : cf note on Prastíva IV, Verse 313, and verse 133 above.
372. = 1
376. See notu on varge 367 alovc, This verse is also found in the Panchita tantra (op. cit., p. 94, verse: 454 ).
375. TIL 376. See note on versc 367 above.
371. ga 1799117 6. C. FEETANA rifa zarna gay, 174, fermA.
803. See note on verse 807.
389. p1 and P3 comment '#FATF (1. e. ff) 991 á adala' 47 1. e, nit' pi and Ps. This Vere is found with some variations in the STEM of the legerd of Vikrania,
385.qayit . N atage P1 and pa.
988. Bhoja had already married Bhanumati (Ferse 222 above) and liad spent sonje happy days with her (verse 234 above). Then he marchied against his enemics and, during the course of the expeclilion, ordered the execution of Varsitucbi. HAS the author furyntten alt thoseOr, does lie want to indelicate that, suspecting Bhanumati's fidelity, Bhoja had livorced lier and now, having knowti lier innoricence, le marrier hier again?
It is to be noted that the story of Blaumati's picture is found, with sone Variations in the Kaththa or the introduction of the legends of Vikrama. In that story-told to Bhoja by liis minister-the king Xanda ol Vitālu pily's the part of Bhoja of the story told by Rajuvallalıhın; Nana's heautilul vite Bhoutati figures only as an carthly wonion; Devaraja's counter part is Jayapala; and Satananda, in the place of Vararuchi, does not paint the picture, but points it to the king the absence of the mole on the private part in the picture of Bhanumaty.
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INDEX
To Proper pames accoring in the text. [ Tlc Roman figures indicatc pastazas and the Arabic numerals denate verses.
कालिन्चो, V, 295. बजापुत्र, IV, 373.
कादमीर मण्डल, III, 104. अजित, V, 72.
कुवर, I, 323. अन्यायपुर, IV, 340.
कोणिक, V, 116. अमरावती, IV,93.
गंगा, II, 43; 1V, 170-71, 239; v, 118. अयोध्या, IV, H; V 44, 55, 80.
गंगाधर, V,76. अरुन्धत्ती, 1,245.
गुणमझजरी,1, 11,248. अर्हन्, I, 301; V, 139.
गुरु, I, 5.4; IV, 396. भवन्ती, 1, 261, 979; IV, 601.
गोदावरी, 11, 55; 1V, 78 V, 354. अविवेकी, IV, 310
गोभद्र,V, 118. अष्टापगिरि, V,52, 100.
गोमुख, V, 173, 196, श्रा आववसेन, 1, 1.
गौला, I, 127-29. गोविन्द, I, 31:1
गोडदेश, 10, 185. इन्द्र, 11, 70-71, 78, 80-83,91-81, 95,
गौतम, 1,1. 98, 102, 104; V, 18, 67-68, 141, 147. 48, 150.
गौरी, 17, 13. इन्द्राणी, IV, 100.
चक्री, IV,449.
चक्रेश्वरी,v, 173-74, 184. उनसेन, IV,49, 381, 413, 416, 118, चन्द्रभूपति ( चन्द्रसेन ), IV, 10, 14, 62, 286 423, 427,430, 434.
etc; V, 11. वजयिनी, 1, 26, 276.
चन्द्रावती, IV, 10, 12, 394, 414,416, उन्मार्गी, IV,310.
421, 499, 436, 553, 570. उपालचकवर्सी II, 84.
जन्मजय, IV, 68.79, 80-81, 99. ऋषमपंचाशिका, 1,328.
जयसेन, 11, 2,1, 13,
जिन, I, 303. ऐरामण, IV, 80.
तक्षशिला, v,44. कर्ण, IV, 397.
लप ( तैलपर), 1, 13, 138, 165,203, कलिङ्ग II, 2.
250,254-55. कवच, IV,73,90.
विकटाचल, IV, TE, कांचनपुर, IV, AB, 371.
त्रैलोक्यसुन्दरी, IV, 48, 410,
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१८०
BHOJACHARITRA
पुहविस्थान, II, 17. प्रसन्न, 1;116.
बदरीषन, IV. 170 269. बली, IV, 337.
राहबग्नी, v. 14. ब्राह्मो, 10; 150.
दलपति, I, 131, दापुर, IV, 292, नारय, IV. 2"', 112 118 दशास्य, I, 117, दामू, IIT, 53, 60, 71,76. देखग्राम, V, 44, देवदत्त, IV, 202, देवराज, III, 52, 57, 59, 61, 65, 6, 72; [V, 3, 5.12;V, 5, 7, 33, 37, 40
etc. देवशर्मा, 1,278-19 देवश्री, IV, 293. देवेन्द्र, 7, 124, 162.
भगोष, v, 118. भण्हसेना, IV, 49, 139 भरप (or भाल),1,43, 44, 51,85,60,68,
105. भ(or भुवनेन्द्र, V, 108, 111. भानुमती, V, 15, 124, 126, 128, 139
etc. भारतक्षेत्र, I,3. भारती, V,246. भीषणहीप, IV, 72, भोज, 1, 2, 88, etc. 11, 3, 11, 13,
14, 39, etc. III, 1, 10, 20, 25, 85 etc. [V, 2,6, 416, 442 etc. V. 10, 11, 210, 212 etc.
घनद, III, 15%3; 1V, 305. धनंजय,V, 23-4, घनपाल, 1,261,274, 376, 281-83, 292
etc,
धनश्री, III, 2. धरण, II1,51. पारा, 1, 4, 75, 203,259,319; II, 76,
81; 10, 119; IV,6, 452,462-63, 532,553-, 595; V315, 330, 354, ३४.
नखशुद्धि, I, 23. नन्दक, V, 328,932. नन्दा (नन्दिका), IV, 305, 921, 169 नन्दी, 1,323, नल, I,823. नागास,v,116. नाभिनन्दन, III, 38; V, 45. नामू, [11, 63, 71,77, नेमियोगीन्द, 11, 3:01.
मदनमञ्जरी, ]V, A2, 550, 565; V...
223. मनोरमा, IV, 69, 107, 124. मन्मथ, , 47. मरूस्थल, III, 51. महाकाल, 1,304. महाशर्मा 1,258. माधकाव्य, 1,260, माषपण्डित, ],260. मान्धाता,I, 117, मालष, I, B, 128, 137,138,163-64,232, 249; II, 76; III, 74; 10, 151, 370,
271,211,299,304, पुज, I, 4, 26, 33.38, 43-41, 48.49,
51-52, Sictc. मुरारि, 1, 323.
पुष्पावचय, IV, 380, पुष्पावती, IV, 49, 141, 287, 374, 426, 431,435,488-39.
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if Яl, 1, 235.
(or 1, 168, 170-71, 14.
य
युगादिनि ( or "दिदेव ) 1V, 321; V, 38,
42-13, 52, 70, 17%. युगादीप, V, 185, 106. yfoftar I, 117.
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१८२
BIO ACHARITRA सिंचानी, V, I.
संचन (ora Or oचान 'चानक ) [V,
189,191, 14.1, 245-46,35,258, मिटमेन, 1, 28. सिन्धु, I, 7, 29, 31, 33, 40, 45, 50, सेचानी ( or "पानिका or 'चनिका ), IV, 115,
___166, 1:10, 216, 266, 82,285. सिन्धुल, , , 37, 3, 55-56,61,03-015,
सोमदत्त, IV. 103. 68, 10, 11, 79100, 208.
सोमा, !!1, 22, 26, 31,16. सुनन्दा, 17, 191.
सोपमन्द,V, 14, 145-47, सुरपुरो, 1,6.
सोभाग्यसुन्दरी, ॥, 17, 25. मुस्थिताचार्य, 1, 302, 278.
हरि,1, 97, 113,462 V 148-49,151-52. सूर्य, 14.
हरिभद्रमूरि, V, 116.
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INDEX
'In
Introduction ( Tlie Roman numcrals dcnote the pages in tlic Introduction. ) A
and Flarsha, 1; greatness of, and Abul Fazal, aullar, XVI, XX
myths on, II; horoscogres of, and Xhavanalla, title of sonie Clălukya
attesopted execution ut, VII, XVI; kings, XVII and 11., XIX, XX
crowned by Munja, VII, XXII;
plans to liberate Munja, honours Ahmedabad, city, XV
Sarasvatkutuinbe, marries GuyaA---Akburi, work, XVI, XXn. Allahabad Fillar Inscription of Samudra
inanjar; and takes revenge over
Taila, VII; recognises the greatness gupta, In.
of Jainism, grades three skuils, Anritastatin s.a, Monday, II
marrics Saubhagyasundari, assuAnandavarddhana, author, XXII
mes tlie titles katilasarasvati Anantadeyn, Kaslauuri king, XVIII
and upangachakrarlaytin, values rajapoli, office XX
instinct and Acliuisition and learns annada, silt, VI, VIII
about his previous birth, Vli; Anustubh, netre, V
establishes feeding liouses, learns Apabhrama, dialect, V
the paralizy-pru's's-vidya Araryaraja, Paraināra prince, XII
and becomes a parrot, marries Ardlaslita1110-inandala, territory, XXIII
Satyavati and tests her intelligence, Āry, metre, V Ashaulio, lunar month, III, XVIII
comes back to his w11 budy,
marrics Madanainajari and Asvima, do, IV
expels his 50115, IX; marries Avant, city, VII
Bhi nuimati, quartels with, and Avantivarniani, kanuur king, XXII
conciliates. Vararuchi, XI; lis 13
superiority over Munja's sons tahula, lunar 111cilith, 11
XIII; sincrot|1 successiun ut, XIV; Ballz lasena, author, XII, XIV, XVII,
heirapparentcy of direct success Lájja, poct, in.
11011 01, and earliest record or, XVI; Bliädrapada ( sehelise ). lunar noutli, III Lilder brother of Vlanln., XXIII; Blīluitinti, vellstial nyiph, 18, XI
succeeds both Muaja and SindhuIzharata, ulatoris, X .
tāji, XVII; probabile date of Bharavi, poet, XV.
accession wi, XVII, XIX; rciyn Bhaja, Paramari king,
period of XVII, XVII; absence compared with Samudragupta
u records in the last decade.uf!
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{5%
BHOJACHARITRA
XVIII; probable date of the deaths Chauirkyn, dynasty, XV, XIX uf, XVIII, XIX; cumpared withi Chikkerur inscription, XVII, XX Kshitipati, XVIII; lis wars with C areyishd'Agul, work, XIX Ahavainali hiy rule referred tu in the Chintansanisāxaniki, liis existence not referred to by Pa- Dakshinaputina s, it, the Deccan, VII dmagupta. XIX, surrculer of fort Damn, Rijput princess, V11! by his general XX, his illyasiun Pasabala, author, XIX, of the Deccan, his success uver Dattako, man, XXI the Chalukyas, XX!; bis contenu. Deyala, Chulukyn king, XX purary Dhanepala, and his s0115
Devulāli plates, XVIII, XX Devazāja aud Vatsaraja, XXII,
Devaraja, Rajut prince, VIII XXIII,
Devarāja, Paranars prince, IX-X1, Bhoja (pseudu ), 1X
XXI1-XXIII Bhojachurika, crophon of Vi pro- Devnšaran, priest, VII
bable dute , V, XI; estiliatc Dhanapala, author, VII-VIII, XIV, XVI of, and divisku O, VI: Compared
end 1., XVII, XXII willi Vibrain's legends VI; Dlanishitha, nakshatra, IV Merufunga's words applicabile try, Dliari, capital, VII, IX, XVI. And historical facts in, XII; ou Dhari192, Rajput prince, Vill the origin of Mfuñija, XIII; on Me Dlamuaglioshagachchha, V character of Sindhuraja XV; on Dhavala, poet, 1 11, Munjay tatal expedition, XX; 01 Ditsala, Paramara prirce, XV, XVI the place al birth up, Macha XX11; and n, XIX, XXII Varsruchi's place in, XXII; 51pp
osted by Mindasi plates, XXIII. Bhojapyalandlock, work, XII, XIV, XVII.
Gadag inscription, XVII Bhillama 111, Yadava king, XVIII, XX. Ganga of Mysore, dynasty, XVI. Bliimmal, locality, XXII, XXIII,
Gauza, country, VIL Billiana, poet, XVIII.
Godavari, river, XVI, XX Buddha, founder of the Buddhisui, Goniukha, Adinatha's attendant, X
Greece, country, X11
Gujarat, der., XV Clialukyk of Badenci, dynasty, Xllln
Gliyjamasjari, Wolman, VII, XXI Chalukya (uf Kalya), do., XVII, II Gupta, dynasty, XXL
Guruvasara, il Chandara, Paramıra prince, XIII Chandra, kind of Sripura, XX Chandrasing, king of Chudrivati, IX Huusataja, Janina teacher, IV Chandravaty capital, IX
Harisheria, Ciupta general, I
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Harsha, sri-Harsha, Harshavardhann, Pushyabhuti king, and n, XIII Harshasimla, prob, a name of Sindhurāja, XII, XIII
Hiuen Tsang, Chinese traveller I n. I
Indra, god, X
Indarvajra, metre, V
Irivabenga Satyasraya, Chalukya prince of Kalyana, XIII
INDEX
Jayapida, Kashmir king, XXII Jayasena, Kalinga prince, VIII Jayasinha, Jayasi,la-Jayavarnan, Paramura king, XIII., XIV, XVIII and n., XIX
Juyasitisha II, Chalukya king, XXI Jinu, X
Jisobhadrasuri, jaina teacher, IV K
Kalachuri, dynasty, XIX Kalasa, Kashmir king, XVIII
Kaihana, poet, XII, XVIII Kalinga, country, VIII Kalyani, capital, XIX, XXI Kanchana, city, IX
Karttika, lunar mouth, U, XX Kasahradu, locality, XV
Kusidra-Paludi, do., XV
Kathasaritsagara, work, VI
Kaviraja. title of Bhoja, and of Samudra
gupta, I and 1.
Kayaprakasa, work, I n. Kiradu inscription, XV, XXIII Kirularjamiya, work, XV n. Kshitipati, Kashmiri king, XVIII and n.
૪
Kumarapala, Chaulukya king, XV Karchalavarasvati, title, VITI
L
Lakskmidevi, Vaisya woman, VII Laikā, dviper, VIII
M
Madannmafijari, princess, IX Magha, poet, VII, XXI, XXII and n Magha (different from the alove poct) XXII
Magha, lunar month, IV Maghakanya. work, VII, XXI Mahadanganyaka, office, I Mahamandates'vara, do,, XVI Mahisarman, priest, VII Mahavira, founder of the Jain religion, VI Mahayana, Buddhist sect, I n. Mabitinkasuri, Jaina teacher, V Malava, country, VI, X, XIV, XVI
and n
१८५
Mammate, author, In.
Mandlåta plates, XIV, XVIII and
XIX
1
Mandatri, epic king, VII Marudega, Marumanjala, country VIII, XV, XVI, XIX
Medapata, s. a. Mewar, XV
Merutunga, author, VI, XI, XIII, XV, XVI and ., XVII, XX, XXI, XX11 n.
Modasa plates XV n., XVI n.,XIX,XXII Mrinalavati, dasi, VII, XX Muñja, Paramāra king, VI, VII, XII, XI
n., XIV, XV and 1., XVI, XVII, XX, XXI; See also 1er 'Vakpati.'
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BHOJACHARITRA
N
date of V, XI; colphion on, V; Nāga, XV
ignorant oi geogphy, V; lsis indeb. Nigari (lain tyşe ), script, V
tedness to other ithers, VI, XI, Nagda, locality, XV
XII; Ius ilaject to glorify annu. Nagpur prasasti, XII, XII and 11.
hina, VI, XII; originality of, VI; Naikutujarasiri, jain teacher, IV
on Muzi's origin, X111; contused in Nimi, kajput princess, XIII
119ming the father and sou, XIII; punk, cyclic year, XVill
on ihja's birtlı, on Sindhuraja's Nahasankachurita, work, Xlln, minuing over luña, XV; 01 XII, XIX, XV., XVII, XIX, Iunis. 11. 1:1:
D r . XXIV.,
Bhara's crowning, on the soutlern
boundary of the Parrumam P:clingupta, poet, XII, XIV, XV and 17. kilicum, XVI; delers from MeruXVII, XIX,
twig, 1dan gupta and epigmplis, Prouachelhi, work, XX/1 anteln,
XVII:ld n.. On Thurja's invasion l'allavakanci, dynasty, XV.
of the Deccan, an Rudraditya's l'allshere inscriptun, XHIN.
foresigli, liis Muñ-AI inalayatiPatuiui, grunwirian, VI
cpisode, XX;on Muiñja's greatness, Parainara, dynasty 1, XII, XIV, Xv, on Samsyrtikutumbut and his xx
daugliter, XXI; on Mäghit, XXII; Pathaka, title, II, V
on Devziaja and Vitsuraja XXIlPauslia, lyyar month, IV, V
XXII! Prahandhr, a kind of literary work Rajutarangiri, Work, XVIII n. XXII n. II, VI etc.
Rajendra I, Chola king, XIII, Prabodhinchindiinggi, work, 11 n., V, Rajendra ll, do., Xilin, VI, XII and n., XIII
Rajendra, Chola prince, Xilin. Pradh:74, olicu, XX
Rikti Bhairava, cicity, IV Prabljaclynurn, author, XXII
Rama, epic liero, VII Prabhakacharita, work, XXII Ratnāvuli, queen, VI, VIL Prakrit, language, V
Rishaba msikia, work, VIII Purnapala Parinaca kind of Ābu, XIIL Rudraditya, minister, VI, VII, XX Puslepävati princess, IX
Kúpalchiadczu, king, IX I'ushyr, lurkar inoutlı, XVIJI Per-byablati, dynasty, 1 R
Sagara, chalisi, X Ríjrvallaliha,
Switz, seci, 1 an admirer of Bhoja, II; coerul. Salini, metre, V MSS of the Bhojacharetra nf, Smudragupta, cripta emperor, I ansi n. III, V; Mithililaksuri's Sesliga, V; Sandrakiyagaclclilie, 1V
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१८७
Sivaka, name, derived from Simhaka,
XI, XIII and n.
Shen, Rajput princess, VIII Sobhana Jaina monk, VII Soma, putleress, Vill
Sarasvati, goddess, XXI
Sarasvati kutomba, poet, VII, XXI and o. Semadatta, sutradhara, IS Sarasvalikugubacluhitri, poctess,
XXI and n.
Sanivasara, week day, I Santisuri, Jainu teacher, IV Saranga; Rajput prince, VIII Sarngadhara padhali, work, XXI
Sardalavikrita, metre, V Saravadhara, priest, VII Sarvadhikarin, ulice, XXII Sarväşraya, name, XXII Sariprabhi, queen, IX, XXI. Saku, era, XVII, XIX etc. Satavahana, king XXI n. Satyapura, locality, Vill
Satyavath, queen, IX Saubhaghyasundari, princess, VIII Sectinaku, pseudo-name of Vikran
IX
Suchanik, princess, IX Siddhasena, Jain teacher, VI Siladitya, title of Harsha, In. Siphabbat, another name of king
Sindhu, XII
INDEX
Simbaka, do, XII, XIII and n Sindhu, Paramāra king, V1, XII XIII, XIV and n., XV, XVII and , XIX, XXIII
Sindhula, do., VI, VII, XII Singhbhul, s. a, Simhabhata, XII. Sisu palavadhu, work, VII, XXI, XXII
und 11., Sivaditya, minister, VI Sivaditya, priest, VII, XXII
Sivaraje, Rajput prince, VIII
Siyaka 1, Parimuro king, XIII n Siyaka I, do,, XII and u, XIII, and n., XIV
Somesvara 1, Chalukyn king, XIII n.,
XX,
Somes var II, dot, XIII n. Sragdhara, metre, V
Sridhara, Paraman general, XX, Sri-Harsha, eller me of king Sindhu, XII and n
Srimala, locality, VII
Sripura, holy place, X Sepura, city, XX Subhusila, author XV, XX Sukravara, weekday, IV Salka, VII
Sumatisari, Juin teacher, IV Sundari, si, X
Suprabhadavu, man, XXII Susthitacharya, Jain teacher, VII
'T
Tada I, or Tailupa, Chalukya kang, VII, XVI, XIII and n., XX, XXI Tal, unidentified Chalukya king, XVI Tilagmula inscription, XVII Tilakanañjri, work, XIV, XVI and n., XXII and 1, Tilukwada plates, XVIII Trulokyasundar), queen, IX
[T
Udaipur, city, XV
Udayapur prasisti, 1, 11, X, XIII and n., XXI a., Ugrasena, king IX Ujjain plates, XX
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१८५८
BHOJACHARITRA
T
ractatin, title, Vin 1.peuceavajri, metre, V 13:4(1)la, l'aramiu prince, XY, XVI
11., XIX, XXIII
Vurii'itha, kiu in the souths, VIII Vuiris iliit, Parca king, XX Viwy, nummunity, VIII Vakputi, Valpati-Munji, t'arrim king.
XUS LC 11., XIV id , XVI, XVII, XX XX] n., See also
der 'Munja! Vinzana, author, XXII Vasaruchi, minister, VII, VIII, X1, XXII Varuna, city, 1x
Visartagad script , XIII Vuxnatikika, netre, V vatsaraj, Pasamarre puritace, IX, X, XXII Vilhishni, Rikshırsa, VIII Vikralna, cra, II-V etc. Vukama, Vikramaditya, legendary liero,
VI, IX, XXI . Vikramadityr V, Chmukya kiug, XXI Vikramaditya VI do., XVII Vikras rierucharilce, WHk, XVIII n, Vigala, Parintl king, XIII
Yâdava, dynasty, XVIII, XX Yudhishtliira, Epic here, VII
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P. I. P. III
1.11. ?
31
:53 1. 25
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Page #192
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BHOJACHARITRA
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P. ५७.
तभव
पुरीपक
कार्य
दम्यो
, ३६, 1.1. ४ , The intereled realing
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गुणिजनसुविमृष्टं भोजभूपस्य दाश्वम् P. ४४, ७१ Reut रोपाद्
for रोषद् P. ४६, . ९९ , नीरहविचः
" नीरहों वचः P. ५६, ५. ५३ Renal स्वामिण्या
for स्वामिन्य f. 11.3 , पुष्पोत्करस्य
" पुष्पाकरस्य v. ३०८ ॥ तदा यामि
तदायामि नत्रद P. ८५, ४.३८८ कायोत्सर्ग
कार्योत्सर्गे . ..
पुरीषक: सेबोच
रोवेस मुत्कलाप
मुत्क ( कल्वा ) लाप्य
कार्य ४. ५०२ वासररेते
वासरत ___v, २८२ ॥ चित्रपत्र
चित्तवव
दध्यो P. १२७, v. २५८ २७८ ॥ सर्वथापतिसुन्दराम्
, सर्वघायति सुन्दराम् ३३० , धारापा
" घरायां 57. S! . , Ci.the mukers likc.Chikailer, Cr. Chichintai Sara. prisircr, Chad citficrisirutki' "The monks like' Choi
ARCHIranited. P. १४२, 1. 115 After
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R. S asaxt'y, 1938 yers 4). Lui, ture the Srl boor
Fels: तयुद्धे दांगशास्त्राणाम्'. P. १४३, 1.141 Reuni Irving hearl Munja's reply fis tuving, funja's treply'
ghants'
, cliphiust.' "सिंहो'
1 मिमी' P. १४४, n. 17:Recruel :male'
Her necle'. th. 182 , वामगारमनु तिष्ठति
।। चामपादमनुतिष्ठति P.१४५ 111 fverse :1 Telu' ., versey velamy. ११. १४६, n. 230 , रट .. MISC 105
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, undern'. 11.273 'Chhedu'
. Chcete'. 11.377 Unit the worl lekh
Page #193
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________________ Kino Prastava 1 ADDITIONS AND CORRECTIONS P. 844, n. 27! React (961' for 1982'. P. x, n. 504 Plan 1: , pian!.. 11. 314 Omnit the bracket hefire 'Prahamuthuchiuluskan. Healti rirubnicalacriteri for "Prably richaritra, 11.16 hari it frem F. Ple, 11.17 Pratisht:1151a, Pali, 432, , Pratisth.FYLT, Pastilina, Paithana, l'otitelini, Partite ist, Paihin, l'histana' P. 31. n. 31 Dhen pala' 1 Dharmila'. 11.13 _All Nite the construction भूपों यथाविधि पूजां कुत्या, मारो 7991TAI P. , 11.1 P. 32, n. 67 Verse P. 44, n. 15% माध्याः कषित साध्या: कथिन P. 33, 16. 170) 1. 13:dar'ikatsion: Billarikstama P.PED, II. 294 ork' (11168'.