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प्रस्तावना
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[ प्रकाशन
• आत्मानन्द सभा, भावनगर ]
न्यायावतारटीका -- सिद्धसेन के न्यायावतार की यह टीका अनुपलब्ध है । बृहट्टिपनिका के अनुसार इस का विस्तार २०७३ श्लोकों जितना था ( क्र. ३६५, जैन साहित्य संशोधक खण्ड १, भाग २ ) ।
हरिभद्र के अन्य ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं - धर्मबिन्दु, धर्मसंग्रहणी, योगबिन्दु, योगदृष्टिसमुच्चय, श्रावकप्रज्ञप्ति, समरादित्यकथा, धूर्ताख्यान, पंचवस्तु, अष्टकप्रकरण, विंशतिविंशिका, षोडशक, पंचाशक, दर्शनसप्तति, लग्नशुद्धि, लोकतत्त्वनिर्णय, उपदेशपद, सम्यक्त्वसप्तति, सम्बोधप्रकरण, धर्मलाभसिद्धि, संसारदावानलस्तुति, बोटिकप्रतिषेघ, अर्हच्छ्री चूडामणि, बृहत् मिथ्यात्वमथन, ज्ञानपंचकव्याख्यान आदि । उन्हों ने जिन आगमग्रन्थों पर टीकाएं लिखी हैं वे इस प्रकार हैं- आवश्यक, दशवैकालिक, पिंडनिर्युक्ति, जीवाभिगम, प्रज्ञापन, अनुयोगद्वार, नन्दी, चैत्यवन्दन, पंचसुत्त, वर्गकेवली, क्षेत्रसमास, संग्रहणी, ओघनिर्युक्ति ।
२२. मल्लवादी (द्वितीय ) - बौद्ध आचार्य धर्मकीर्ति के न्यायबिन्दु नामक ग्रन्थ पर धर्मोत्तर ने प्रदीप नामक टीका लिखी है । इस टीका पर मलवादी ने टिप्पन लिखे हैं । ये मल्लवादी नयचक्र के कर्ता से भिन्न हैं । धर्मोत्तर से उत्तरवर्ती होने के कारण इन का समय आठवीं सदी में या उस के कुछ बाद का है । सूरत ताम्र पत्र में? सेनसंघ के आचार्य मल्लवादी का उल्लेख है-उन के प्रशिष्य अपराजित को सन ८२१ में कुछ दान दिया गया था । अतः वे आठवीं सदी के उत्तरार्ध में हुए हैं । सम्भव है कि उन्हों ने ही धर्मोत्तर टिप्पन लिखे हों । इस टिप्पन की एक प्रति सं. १२०६ सन १९५० की लिखी हुई है । अतः उस के पूर्व ये मलवादी हुए हैं यह स्पष्ट है' ।
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१) एपिग्राफिका इन्डिया २१ पृ. १३३ । २) प्रभावकचरित के अभयदेव प्रबन्ध
में ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्ध के एक मल्लवादी आचार्य का वर्णन मिलता है । अभयदेव ने जब स्तम्भतीर्थ (खम्भात) में पार्श्वनाथमन्दिर की प्रतिष्ठापना कराई तब इन मल्लवादी के शिष्य आत्रेश्वर वहां ' कर्मान्तकर' थे ।