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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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अथ मध्यपरिमाणयोगित्वं संनिवेशविशिष्टत्वमिति चेत् तथापि गुणकर्मप्रध्वंसेषु हेतोरभावाद् भागासिद्धत्वम् । अथ द्वितीयपक्षः कक्षीक्रियते परीक्षादक्षैर्विचक्षणैरिति चेत् तर्हि गुणकर्मप्रध्वंसेष्ववयवित्वादिति हेतोरप्रवृत्तेर्भागासिद्धत्वमेव स्यात् ।
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ननु सर्व कार्य सर्ववित्कर्तृपूर्वकं कादाचित्कत्वात् यत् सर्ववित्कर्तृत्व पूर्वकं न भवति तत् कादाचित्कं न भवति यथा व्योम, कादाचित्कं वेदं, ' तस्मात् सर्ववित् कर्तृपूर्वकमिति भूभुवनादिकानां सर्वज्ञकृतत्वसिद्धिरिति चेन्न । अत्रापि कादाचित्कत्वादिति हेतोर्भूभुवनादिष्वभावेन भागासिद्धत्वाविशेषात् । कालात्ययापदिष्टत्वं च हेतोः स्यात् । कथमिति चेत् बुद्ध्याद्यङ्कुरादिपटादिकार्येषु सर्ववित्कर्तुरभावस्य प्रत्यक्षेणैव निश्चितत्वात् ।
[ २२. जगत्कर्तुः शरीरविचारः । ]
अथ सर्ववित्कर्तुरशरीरत्वेन अस्मदादिप्रत्यक्षग्रहणायोग्यत्वात् कथं तदभावः प्रत्यक्षेण निश्चीयत इति चेन्न । शरीररहितस्य कर्तृत्वायोग्यत्वात् । विनाश ये कार्य तो होते हैं किन्तु विशिष्ट आकार के मध्यम आकार के नहीं होते ( आकाररहित होते हैं ) । अतः कार्य होना और विशिष्ट आकार के होना इन में नियत सम्बन्ध नहीं है। विशिष्ट रचना का तात्पर्य अवयवयुक्त होना है यह उत्तर भी सम्भव नहीं क्यों कि गुण, कर्म, विनाश ये कार्य होते हैं किन्तु अवयवयुक्त नहीं होते । अतः sarat होना और कार्य होना इनमें भी नियत सम्बन्ध नहीं है ।
पृथ्वी आदि अनित्य हैं अतः ईश्वरनिर्मित हैं यह अनुमान भी सदोष है । एक तो पृथ्वी आदि अनित्य ही नहीं हैं । दूसरे, बुद्धि आदि तथा वस्त्र आदि अनित्य कार्य ईश्वर निर्मित नहीं हैं यह भी प्रत्यक्षसिद्ध है – बुद्धि का उपादान आत्मा है तथा वस्त्र तन्तुओं से बनता है । अतः अनित्य होना और ईश्वर निर्मित होना इन में नियत सम्बन्ध नहीं है ।
२२. जगत्कर्ता शरीरका विचार -- सर्वज्ञ ईश्वर अशरीर है अतः वह प्रत्यक्ष से सामान्य मनुष्यों को ज्ञात नही होता किन्तु प्रत्यक्ष से ईश्वर का अभाव भी सिद्ध नही होता यह कहना ठीक नही । ईश्वर
१: गुणादयः अमूर्ताः अतः तेषाम् अवयवित्वं नास्ति । २ कार्यम् । ३ अनुमाने ।