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ईश्वरनिरासः तमेव । कालात्ययापदिष्टत्वमपि विदेहसदेहविश्वकर्तृविचारेण' प्रागेव निश्चितमिति सर्व सुस्थम्। [२५. सृष्टिनित्यत्वसमर्थनम् ।] .
तस्माद् विमतं कार्य पुरुषकृतं न भवति असंभवद्विदेहसदेहकर्तृकत्वात् यदेवं तदेवं यथा व्योमादि तथा चेदं तस्मात्तथेति प्रतिपक्षसिद्धिः । अत्र विवादाध्यासितेषु कार्येषु विदेहसदेहकर्तुरसंभवस्य प्रागेव प्रतिपादितत्वाभासिद्धो हेतुः। विपक्षे घटादावसत्वनिश्चयान विरुद्धो नाप्यनैकान्तिको न प्रकरणसमश्च । सपक्षे व्योमादी सत्त्वनिश्चयान्नानध्यवसितः। पक्षे साध्याभावनिश्चायकप्रमाणाभावान कालात्ययापदिष्टः। व्योमादी साध्यसाधनोभयसभावान्न दृष्टान्तदोषोऽपीति । तथा विवादापन्न कार्य पुरुषव्यापारनिरपेक्षजन्यं शरीरिप्रयत्ननिरपेक्षजन्यत्वात् व्यतिरेके घटादिवदिति च। ननु अशरीरिप्रयत्नजन्यत्वेन पुरुषव्यापारजन्यत्वं भविष्यतीति चेन्न । शरीररहिते प्रयत्नाभावस्य प्रागेव समर्थितत्वात् । परमाणुओं के संयोग में बाधक कारण सदा ही विद्यमान रहते हैं। तथा यह जो सृष्टि के विनाश और उत्पत्ति की प्रक्रिया है वह प्रत्यक्ष आदि किसी प्रमाण से सिद्ध नही है । अतः पृथ्वी आदि को जन्य कहना ही युक्त नही। इसलिए पृथ्वी आदि के निर्माता की कल्पना भी व्यर्थ है।
२५. सृष्टि के नित्यत्वका समर्थन-पृथ्वी आदि किसीके द्वारा निर्मित नही हैं क्यों कि इन का निर्माता सशरीर भी नही हो सकता
और अशरीर भी नही हो सकता। जैसे आकाश का सशरीर या अशरीर कोई निर्माता नही है - वह स्वयंभू है वैसे ही पृथ्वी आदि भी स्वयंभू हैं । इसके विपरीत घट आदि जो पदार्थ पुरुषकृत हैं उन का कोई शरीरधारी निर्माता होता है। पृथ्वी आदि के ऐसा कोई निर्माता नही है अतः वे स्वयंभू हैं। ( इस अनुमान की निदोषता का तान्त्रिक विवरण मल में देखना चाहिए।) निर्माता अशरीर नही हो सकता यह पहले स्पष्ट किया ही है।
१ अशरीरसशरीर । २ यत् असंभवद्विदेहसदेहकर्तृकं तत् पुरुषकृतं न भवति । ३ यथा व्योमादि पुरुषकृतं न भवति । ४ इदं कार्यम् असंभवद्विदेहसदेहकर्तृक मिति । ५ पुरुष कृतं न भवति । ६ भूभुवनभूधरादिः। ७ भूभुवनादी। ८ भूभुवनादिकम् । ९ यत् पुरुषव्यापार निरपेक्षजन्यं न तच्छरोरिप्रयत्ननिरपेक्ष जन्यं न यथा घटः ।