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-३२ ] वेदप्रामाण्यनिषेधः
८९ पुरुषोच्चारितत्वं तथा च वेदवाक्यानां पुरुषोच्चारणसभावात् सिद्धसाध्य. त्वेन हेतोरकिंचित्करत्वमिति चेन्न। कादम्बर्यादिकाव्येषु या प्रसिद्धा इदंप्रथमता' तादृग्भूतेदंप्रथमताया एव प्रसाध्यत्वात् ।
तथा पौरुषेया वेदाः राजादोनां चरित्रोपाख्यानत्वात् भारतादि. वत् । अथ वेदस्य राजादिचरित्रोपाख्यानत्वाभावादसिद्धो हेत्वाभास इति चेन्न । पुराकल्पेषु पुरातनक्षत्रियाणां चरित्रोपाख्यानप्रतिपादनात् । तत् कथमिति चेत् । अज्ञातज्ञापको विधिः संध्यामुपासीत अग्निहोत्रं जुहुयादिति। अनुष्ठानप्रवर्तको मन्त्रः अग्नये स्वाहा, अग्नेः इदं न मम इत्यादि । अनुष्ठानस्तावको अर्थवादः 'यस्मिन् देशे नोष्णं न क्षुन्न ग्लानिः पुण्यकृत एव प्रेत्य तत्र गच्छन्ति सर्वस्याप्त्यै सर्वस्य चित्य सर्वमेव तेनाप्नोति सर्व जयति' इत्यादि। पुरातनचरित्रोपाख्यानम् - 'पुराकल्पे वे पौरुषेय हैं ही यह कहना भी अयोग्य है। प्रतिपक्षी वेद को जब पौरुषेय कहते हैं तो उन का तात्पर्य यह होता है कि कादम्बरी आदि काव्य जैसे कवियों द्वारा नये बनाए जाते हैं उसी प्रकार वेदमन्त्रों की रचना ऋषियों द्वारा की गई थी।
वेद पौरुषेय हैं यह सिद्ध करने का बलवान प्रमाण यह है कि वेदों में राजर्षियों की चरित-कथाएं पाई जाती हैं। वेदमन्त्रों के मुख्य चार प्रकार हैं - विधि, मन्त्र, अर्थवाद तथा पुरातन कथावर्णन। विधि वह है जिस में अज्ञात वस्तुकी जानकारी दी जाती है, जैसे - ' सन्ध्या की उपासना करनी चाहिए, अग्निहोत्र का हवन करना चाहिए।' अनुष्ठान में उपयक्त वाक्य मन्त्र हैं, जैसे-' अनि को अर्पण हो, यह अग्नि का है, मेरा नही'। अनुष्ठान की स्तुति करनेवाले वाक्य अर्थवाद हैं, जैसे- 'पुण्य करनेवाले लोग मृत्युके बाद उस स्थान में जाते हैं जहां गर्मी नही होती, भूख नही होती, ग्लानि नही होती, सब की प्राप्ति तथा संग्रह होता है, उस से सब प्राप्त होता है, सब पर जय प्राप्त होता है । पुरातन कथा का उदाहरण इस प्रकार है - 'पुरातन समय में देव तथा असुर युद्ध कर रहे थे, उस में देवों को विजय प्राप्त हुआ', 'अंगिरस यज्ञ कर रहे थे, उन के लिए पृष्णिक् धर्म
१ प्रथमकालोत्पन्नत्वम् । २ स्तुतिकारकः । ३ गत्वा, । ४ प्राप्त्यै । ५ ज्ञानाय ।