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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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[ ३९. माध्यमिकानां बाह्यपदार्थाभाववादः तन्निरासश्च । ]
__ अथ' मतं बहिःप्रमेयापेक्षायां प्रमाणं तन्निभं च ते इति कथंकारं कथ्यते । बहिःप्रमेयस्यैवासंभवात् । तथाहि । घटोऽस्तीति केन ज्ञायते । ज्ञानमात्रेण घटज्ञानेन वा । ज्ञानमात्रेण चेदतिप्रसंगः पटलकुटशकटादिशानेन घटाभावज्ञानेनापि घटोऽस्तीति निश्चयप्रसंगात् । अथ घटज्ञानेन घटोऽस्तीति निश्चोयत इति चेन्न। इतरेतराश्रयप्रसंगात् । ज्ञानस्य घटनिश्चायकत्वे सति घटनिश्चयः घटज्ञानत्वे सति घटनिश्चायकत्वमिति । तस्मात् घटादिबहिरर्थनिश्चायकप्रमाणाभावात् बहिः प्रमेयाभाव एव । तथा च प्रयोगः । वीताः प्रत्ययाः निरालम्बनाः प्रत्ययत्वात् शुक्तौ रजतप्रत्ययवत् । अथ शुक्तौ रजतप्रत्ययस्य निरालम्बनत्वाभावात् साध्य विकलो दृष्टान्त इति चेन्न। वीतो विषयः असन्नेव भ्रान्तिविषयत्वात् स्वप्ननभोभक्षणवत् । तथा वीतो विषयः असन्नेव अर्थक्रियासमर्थत्वात तत्राविद्यमानत्वात् खपुष्पवत् । तथा नेद रजतमिति ज्ञानं प्रागप्यसत्त्वावेदकम् अबाधितप्रतिषेधप्रत्ययत्वात् निर्विषाणं खरमस्तकमिति
३९. माध्यमिकों का निराकरण-माध्यमिक बौद्धों का कथन है कि विश्व में बाह्य पदार्थ ही नही हैं अतः उन के विषय में प्रमाण या प्रमाणाभास का प्रश्न नही उठता। वे प्रश्न करते हैं कि घट का ज्ञान सिर्फ ज्ञान से होता है या विशिष्ट घटज्ञान से होता है ? यदि सिर्फ ज्ञान से घट का ज्ञान होता है तो पट-ज्ञान से भी घट का ज्ञान होना चाहिये किन्तु ऐसा होता नही है। घटज्ञान से घट का ज्ञान होता है यह कहना परस्पराश्रय है क्यों कि घट को जाने विना घटज्ञान का अस्तित्व सम्भव नही है । अतः घट आदि बाह्य पदार्थों का निश्चय किसी प्रमाण से नही हो सकता । घट आदि का जो ज्ञान प्रतीत होता है वह सब सीप में प्रतीत होनेवाली चांदी के समान अथवा स्वप्न में आकाश के भक्षण के समान निराधार है ! ये सब पदार्थ आकाश के फल के समान या गर्दभ के सोंग के समान शन्यरूप हैं क्यों कि इन से कोई अर्थक्रिया सम्भव नही
. १ विज्ञानाद्वैतवादी । २ कथमित्यर्थः । ३ बहिःप्रमेयं घटपटादिकम् । ४ तत्रापि ज्ञानमात्रं वर्तते । ५ शुक्तौ रजतज्ञानं निरालम्बनम् ।