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इन्द्रियविचारः तत् प्रत्ययस्येन्द्रियार्थसंयोगाभावोऽपि तेनैव निश्चित इति हेतोः कालात्ययापदिष्टत्वाविशेषात्। अथ चक्षुः संनिकृष्ठेऽर्थे क्रियां जनयति बहिःकरणत्वात् कुठारवदिति चक्षुषःप्राप्यकारित्वसिद्धिरिति चेत्र । पूर्वोत्तर...गशब्दादिभितोर्व्यभिचारात् । कुतः तेषां बहिःकरणत्वेपि संनिकृष्टऽर्थे क्रियाजनकत्वाभावात् । बहिर्विशेषणस्यानर्थक्येन व्यर्थविशेषणासिद्धत्वाच्च । ननु करणत्वादित्युक्ते मनसा हेतोर्व्यभिचारस्तनिवृत्यर्थ बहिर्विशेषणमुपादीयत इति चेन्न । मनसोऽपि संनिकृष्टात्मादौ शप्तिक्रियाजनकत्वात् तेन करणत्वादित्येतावन्मात्रस्यापि व्यभिचाराभावात् । ननु चक्षुः प्राप्तार्थप्रकाशकं व्यवहितार्थाप्रकाशकत्वात् प्रदीपवदिति चेत्र । स्फटिककाचाभ्रकादिव्यवहितार्थप्रकाशकत्वदर्शनेन हेतोरसिद्धत्वात् । साधनविकलो दृष्टान्तश्च। तस्माञ्चक्षुः प्राप्तार्थप्रकाशकं न भवति अधिष्ठानसंयुक्तार्थाप्रकाशकत्वात् , यत् प्रातार्थप्रकाशकं तदधिष्ठानयुक्तार्थप्रकाशकं यथा त्वगिन्द्रियमिति प्रतिपक्षसिद्धिः। अथासिद्धोऽयं हेतुरिति चेत्र । नयनस्य स्वसंयुक्तपित्तकाचकामलाअनतृणादीनामप्रकाशकत्वेन तत्सिद्धेः। ततश्चक्षरिन्द्रियं पुरोवस्थितद्रव्येषु संयोगसंबन्धेन संपद्धं तत्संवित्तिं जनयतीत्यसंभाव्यमेव । और पदार्थ के संयोग से होता है यह कथन भी ठीक नही क्यों कि चक्षु और पट का संयोग नहीं होता यह प्रत्यक्ष से ही सिद्ध है। कुल्हाडी बाह्य साधन है, वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर के ही क्रिया करती है, उसी प्रकार चक्षु भी बाह्य साधन है अत: वह पदार्थ से संनिकर्ष होने पर ही क्रिया करती है यह अनुमान भी ठीक नहो। ( यहां एक वाक्य खण्डित प्रतीत होता है । इस अनुमान में ' बाह्य' साधन कहने का भी विशेष उपयोग नही है- सिर्फ साधन कहने से भी वही अर्थ व्यक्त होता । अन्तरंग साधन- अन्तःकरण का कार्य भी आत्मा से संनिकर्ष होने पर ही होता है यह न्यायमत कथन है। अतः बाह्य साधन ही संनिकर्ष से क्रिया करते हैं यह संभव नही। चक्षु और पदार्थ के बीच कोई व्यवधान हो तो चक्षु से पदार्थ का ज्ञान नही होता अतः चक्षु प्राप्त पदार्थ को ही जानती है-यह अनुमान भी ठीक नही । चक्षु और पदार्थ के बीच काच स्फटिक, अभ्रक आदि के होने पर भी चक्षु पदार्थ को जान सकती है अतः उक्त कथन सदोष है। यदि चक्षु प्राप्त पदार्थ को जानती तो