Book Title: Vishva Tattva Prakash
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh

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Page 463
________________ ३३० विश्वतत्त्वप्रकाशः [पृ. १०० कि घट जैसा कृत्रिम है इस अनुमान में यह कहना कि घट तो सुना नही जा सकता फिर शब्द कैसे सुना जा सकेगा-अपकर्षसम जाति होगी। यज्ञ में हिंसा निषिद्ध नही है फिर वह पापकारण कैसे होगी यह इसी तरह का अपकर्षसम जाति का उहाहरण है | पृष्ठ-१०१-वेद का कोई कर्ता नही, दोष कर्ता से ही उत्पन्न होते हैं, अतः वेद में कोई दोष नही है-यह कुमारिल भट्ट का तर्क यहां प्रस्तुत किया है। इस का एक उत्तर लेखक ने यहां दिया है कि वेद के कर्ता नही यह कथन ही ठीक नही, वेद के कर्ता हैं और वे अल्पज्ञ हैं। इस तर्क का दूसरा उत्तर यह है कि यदि दोष कर्ता से ही उत्पन्न होते हैं तो गुण भी कर्ता से ही उत्पन्न होते हैं । अतः वेद को कर्तृरहित होने से निर्दोष माने तो उसी कारण वेद को गुणरहित भी मानना होगा। इस तर्क का उल्लेख अभय देव ने सन्मतिटीका में किया है। पृ. १०३-ज्ञान की प्रमाणता स्वयंसिद्ध है अथवा अन्य साधनों पर अवलम्बित है यह यहां प्रस्तुत विषय है । लेखक ने यहां प्रामाण्य की उत्पत्ति पुण्य के कारण तथा अप्रामाण्य की उत्पत्ति पाप के कारण कही है। किन्तु कर्मों का जो विवरण जैन ग्रन्थों में है उन से यह कुछ विसंगत है । शुभ वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम तथा शुभ गोत्र कर्म को पुण्य कमों में अन्तर्भूत किया गया है तथा अन्य सब कर्म पाप कर्मों में आते है३ । इस के अनुसार ज्ञानावरण कर्म का कार्य पाप कर्म का कार्य है। किन्तु ज्ञान होना यह पुण्य कर्म का कार्य नही कहा जा सकता। प्रामाण्य वा अप्रामाण्य की उत्पत्ति स्वतः नही होती इस विषय की यहां की चर्चा बहुत अंशों में प्रभाचन्द्र के विवरणानुसार है । (न्यायकुमुदचन्द्र पृ. १९६-२००) पृष्ठ. १०५-१०८-ज्ञान के प्रामाप्य का ज्ञान परिचित परिस्थिति में स्वतः होता है तथा अपरिचित स्थिति में अन्य साधनों से होता है यह यहां १) उत्कर्षसम तथा अपकर्षसम जाति के लक्षण वात्स्यायन ने न्यायसूत्रभाष्य में इस प्रकार दिये हैं-दृष्टान्तधर्म साध्ये समासजन् उत्कर्षसमः। साध्ये धर्माभावं दृष्टान्तात् प्रजसतः अपकर्षसमः (सू. ५।१।४)। २) पृष्ठ ११ गुणाः सन्ति न सन्तीति पौरुषेयेषु चिन्त्यते । वेदे कर्तुरभावात् तु गुणाशकैव नास्ति नः ॥ ३) तत्त्वार्थसूत्र ८-२५,२६ सवैद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् । अतोऽन्यत् पापम्।

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