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-पृ.२७२]
टिप्पण
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विषय की विस्तृत चर्चा पं. दलसुख मालवगिया ने प्रस्तुत की है (न्यायावतारचार्तिकवृत्ति टिप्पण पृ. १७६-८३ )।
पृ. २५८--दशरथ द्वारा ब्रह्महत्या की किस कथा का यहां उल्लेख है यह मालूम नही हुआ । मृगया में दशरथ ने जिस श्रवण कुमार का वध अज्ञान से किया था वह ब्राम्हण नही था अतः वहां ब्रह्महत्या का आरोप नही हो सकता । दशरथ के नरक जाने की कथा भी प्राप्त नहीं हो सकी। ये कथाएं पौराणिक हैं अतः इन्हें वेदवाक्य कहना भी निदोष नही है । वेदों में रामकथा के कोई निर्देश नही हैं यह प्रसिद्ध ही है। - पृ. २५९-आदिभरत की कथा भागवत (स्कन्ध ५ अध्याय ७ तथा ८) एवं विष्णुपुराण (खण्ड २ अध्याय १३) में हैं। दोनों में भरत के मृगरूप में उत्पन्न होने का वर्णन तो है किन्तु गंगायमुनासंगम का निर्देश नहीं है। भरत के आश्रम के समीप चक्रनदी थी ऐसा भागवत का कथन है। विष्णुपुराण में उसे महानदी कहा है । यह कथा भी पौराणिक है-वेदवाक्य नहीं। .
पृ. २६१–सत्त्वं लघु इत्यादि कारिका में अन्तिम चरण यहां साम्या वस्था भवेत् प्रकृतिः ऐसा है । प्रसिद्ध संस्करणों में इस के स्थान पर प्रदीपवच्चाथतो वृत्तिः ऐसा पाठ है।
पृ. २६७-प्रकृति के स्वरूप तथा उस के समर्थन का विचार विद्यानन्द ने आतपरीक्षा (पृ. २५०) में तथा प्रभाचन्द्र ने घायकुमुदचन्द्र (पृ. ३५४५६) में विस्तार से किया है।
पृष्ठ २७२-अभिव्यक्ति तथा उत्पत्ति के सम्बध का विचार उद्योतकर ने न्यायवार्तिक में तथा प्रभाचन्द्र ने न्यायकुमुदचन्द्र में प्रस्तुत किया है।
पृष्ठ २७६-कारण की शक्ति ही कार्यरूप में अभिव्यक्त होती है यह मत यहां स्वयूथ्य के नाम से प्रस्तुत किया है । दार्शनिक ग्रन्थों में स्वयूथ्य शब्द का प्रयोग साधारणतः अपनी ही परम्परा के भिन्न मतवाले लेखक के लिए किया जाता है । क्या भावसेन के सन्मुख कोई ऐसे जैन पण्डित की कृति रहो होगी जो इस मत का पुरस्कार करता हो ? यह असम्भव नही है, यद्यपि इस के लिए
१) रघुवंश सर्ग ९ श्लो. ७६ तेनावतीर्य तुरगात् प्रथितान्वयेन पृष्टान्वयः स जलकुम्भनिषण्णदेहः । तस्मै द्विजेतरतपस्विसुतं स्खलद्भिः आत्मानमक्षरपदैः कथयाम्बभूव ॥ २) पृष्ठ ४४४ साप्य भिव्यक्तिः प्राक् प्रवृत्तः सती आहो असतो इति पूर्ववत् प्रसङ्गः। ३ पृष्ठ ३५७ न खलु सापि (अभिव्यक्तिः ) विद्यमाना कर्तुं युक्ता । अविद्यमानायाच करणे सत्कार्यवादहानिः।