________________
२४६
विश्वतत्त्वप्रकाशः
[ -७५
माणत्वात् पुनरुक्त एव । तथा शिष्टेन स्वीकृतागमः सिद्धान्तः । सोऽपि प्रमाणपदार्थे प्रतिपादितत्वात् पुनरुक्त एव ।
तथा
पक्षहेतुदृष्टान्तोपनयनिगमनान्यनुमानस्यावयवाः पञ्च । तत्र संदिग्धसाध्यधर्माधारः पक्षः अनित्यः शब्द इति । व्याप्तिमान् पक्षधर्मो हेतुः कृतकत्वादिति । साध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्तः कृतकः सोऽनित्यो यथा घट इति । साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तो यन्नानित्यं तन्न कृतकं यथा व्योमेति । पक्षधर्मत्वप्रदर्शनार्थ हेतोरुपसंहार उपनयः कृतकञ्चायमिति । उक्तनिर्णयार्थ प्रतिशायाः पुनर्वचनं निगमनं तस्मादनित्य इति । इति चेन्न । तेषामनुमानप्रमाणे प्रतिपादितत्वेन पुनरुक्तत्वात् । किं च । अनुमानाङ्गानामपि पदार्थत्वाङ्गीकारे स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुः श्रोत्राणां तत्संनिकर्षाणां संकेतसाहश्यादीनां च पदार्थत्वं स्यादित्यतिप्रसज्यते ।
माना है यह स्पष्टीकरण भी योग्य नहीं । क्यों कि विपर्यस्त और अनिश्चित ज्ञान से युक्त व्यक्तियों को समझाने के लिये भी न्याय का आश्रय लिया जाता है ।
चौथा पदार्थ प्रयोजन है । इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के परिहार की इच्छा ही प्रयोजन है । इस के विषय में कोई आक्षेप नही है ।
पांचवां पदार्थ दृष्टान्त है । वादी और प्रतिवादी को समान रूप से मान्य उदाहरण को दृष्टान्त कहते हैं । अनुमान के अवयवों में इस का समावेश होता है अतः इसे पृथक् पदार्थ मानना युक्त नही ।
छठवां पदार्थ सिद्धान्त है । शिष्ट लोगों द्वारा मान्य किये गये वित्रय को सिद्धान्त कहते हैं । यह प्रमाण के वर्णन में ही समाविष्ट होता है । सातवां पदार्थ अवयव है | अनुमान के पांच अवयव कहे हैंपक्ष, हेतु, दृष्टान्त, उपनय, निगमन । उदाहरणार्थ - शब्द अनित्य हैयह पक्ष है । क्यों कि शब्द कृतक है - यह हेतु है । जो कृतक होता है वह अनित्य होता है - जैसे घट है - यह अन्य दृष्टान्त है। जो कृतक नही होता वह अनित्य नही होता-जैसे आकाश है - यह व्यतिरेक दृष्टान्त है । और शब्द कृतक है - यह उपनय है । इस लिये शब्द
1
१ तेषां प्रत्यक्षांगानामपि ।