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विश्वतत्त्वप्रकाशः
[७८मन्दप्रकाशेन सह तमसो दर्शनात् । तस्माद् भाट्टपक्षेऽपि तत्त्वयाथात्म्यशानाभावात् पुरुषाणां स्वर्गापवर्गप्राप्तिरपि नास्तीति निश्चीयते । [ ७८. प्राभाकरमते शक्तिस्वरूपसमर्थनम् । ]
अथ मतम्, द्रव्यं गुणः क्रिया जातिः संख्यासादृश्यशक्तयः।
समवायः क्रमश्चेति नव स्युर्गुरुदर्शने ॥ तत्र द्रव्यं पृथ्व्यादि । गुणो रूपादिः। क्रिया उत्क्षेपणादिः। जातिः सत्ताद्रव्यत्वादि। संख्या एकद्विव्यादिः। सादृश्यं गोप्रतियोगिकं गवयगतमन्यत् । गवयप्रतियोगिकं गोगतं सादृश्यमन्यत् । शक्तिः सामर्थ्य शक्यानुमेया। गुणगुण्यादीनां संबन्धः समवायः। एकस्य निष्पादनानन्तरमन्यस्य निष्पादनं क्रमः प्रथमाहुत्यादिपूर्णाहुतिपर्यन्तः। इत्येवं नवैव पदार्थाः। एतेषां याथात्म्यज्ञानात् निम्श्रेयससिद्धिरिति प्राभाकराः प्रत्याचक्षते। हैं - इस से भी उन का स्वतन्त्र अस्तित्व स्पष्ट है। अतः प्रकाश का अभाव अन्धकार है यह कथन युक्त नही है। इस तरह भाट्ट मीमांसकों के मत का विचार किया।
___७८. प्राभाकर मत में शक्तिस्वरूप का समर्थन-प्राभाकर मीमांसकों के मत से द्रव्य, गुण, क्रिया, जाति, संख्या, सादृश्य, शक्ति, समवाय तथा क्रम ये नौ पदार्थ हैं। इन में पृथ्वी आदि द्रव्य हैं। रूप आदि गुण हैं । उत्क्षेपण (ऊपर उठाना ) आदि क्रियाएं हैं। सत्ता, द्रव्यत्व आदि जातियां हैं। एक, दो, तीन आदि संख्याएं हैं। गाय के समान गवय होता है तथा गवय के समान गाय होती है - यह उन में सादृश्य हैं। शक्य कार्य से जिस का अनुमान होता है उस सामर्थ्य को शक्ति कहते हैं। गुण, गुणी आदि का सम्बन्ध समवाय है। एक कार्य होने के बाद दूसरा होना यह क्रम है - जैसे प्रथम आहुति से अन्तिम आहुति तक होता है । इन नौ पदार्थों के योग्य ज्ञान से निःश्रेयस की प्राप्ति होती है।
१ प्रभाकरस्य । २ शक्यादुत्तरकार्यादनुमेया ।