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-८७] बौद्धदर्शनविचारः
२९१ पपत्तः। नाप्यनुमानं बाधकं क्षणिकत्वप्रसाधकानुमानानां प्रागेव निराकृतत्वात् । नागमोऽपि बाधकः। उभयाभिमततथाविधागमाभावात्। सौगतमते प्रत्यक्षानुमानाभ्यामन्यप्रमाणाभावाच्च। तस्मात् प्रकृतप्रत्यभिज्ञानस्य बाधकाभावात् प्रामाण्यसिद्धेस्ततो विमतानामात्मादिपदार्थानामक्षणिक. त्वसिद्धिर्भवेदेव। ___तथा आत्मनोऽक्षणिकाः दत्तनिक्षेपादिग्राहकत्वात् व्यतिरेके प्रदीपशिखानिर्गतधूमवत् । यदि क्षणिकत्वं न दातुर्निक्षेपकस्य वा तदानीं विनष्टत्वे तत्पदार्थ स्मृत्वा पुनरनुगृह्णीयात्। ननु संस्कारसद्भावात् तद्वशेन ग्रहणं भविष्यतीति चेन्न । तस्यापि क्षणिकत्वेन तदानीं विनष्टत्वात् । अथ उत्तरोत्तरसंस्कारोत्पत्तेः सद्भावात् तद्वशेन पुनस्तद्ग्रहणः भविष्यतीति चेत्र । तेषां तद्वस्तुवानिभिज्ञत्वात् । तथा दत्तनिक्षिप्त; पदार्थाः अक्षणिकाः स्मृत्वा पुनर्ग्राह्यत्वात् व्यतिरेके चपलादिवदिति च।__ तथा आत्मनः अक्षणिकाः भूयो दर्शनात् गृहीतव्याप्तेः स्मारकत्वात् ज्ञान का साधक ही होगा। निर्विकल्पक प्रत्यक्ष से भी बाधा सम्भव नही। एक तो निर्विकल्पक प्रत्यक्ष का अस्तित्व ही नही होता (यह आगे सिद्ध करेंगे), हुआ भी तो स्थिर पदार्थ उस के विषय नही होते अतः उस विषय में वह बाधक नही हो सकता । क्षणिकत्व के समर्थक अनुमानों का अभी खण्डन किया है । अतः अनुमान भी प्रत्यभिज्ञान में बाधक नही हो सकता । आगम भी बाधक नही हो सकता क्यों कि एक तो जैन और बौद्ध दोनों को मान्य आगम ही नही है, दूसरे, बौद्धों के मत से प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो ही प्रमाण हैं । अतः प्रत्यभिज्ञान का कोई बाधक प्रमाण न होने से उसे भी प्रमाण मानना चाहिए । प्रत्यभिज्ञान प्रमाण से आत्मा आदि पदार्थ स्थिर ही सिद्ध होते हैं-क्षणिक नही । ___यदि पदार्थ दीपक के धुंए जैसे क्षणिक हों तो किसी के पास धन धरोहर रखना और उसे वापस लेना आदि व्यवहार नही हो सकेंगे। धन रखते समय जो व्यक्ति है वह यदि उसी समय नष्ट होता है तो धन चापस कौन लेगा ? धन रखने का संस्कार बना रहता है अतः वापस लेनेकी सम्भावना है यह कथन भी उचित नही । सब पदार्थ यदि क्षणिक
१ बौद्धमते आगमाभावः जैनमते प्रत्यभिज्ञाबाधको न। . . .