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-८८] बौद्धदर्शनविचारः
२९७ नाथान्तरमिति-तदसत् । तत्र पक्षे हेतुप्रयोगे पटो धर्मी तन्तुभ्यो नार्थान्तरं तन्त्वग्रह अगृह्यमाणत्वादित्युक्तं भवति। तथा च धर्मी प्रमाणप्रतिपन्नो न वा। प्रथमपक्षे कालात्ययापदिष्टो हेत्वाभासः। कुतः पक्षस्य धर्मिग्राहकप्रमाणबाधितत्वात् । द्वितीयपक्षे आश्रयासिद्धो हेत्वाभासः। धर्मिणः प्रमाणप्रतिपन्नत्वाभावात्। दृष्टान्तस्य' साध्यसाधनोभयविकलत्वं च। कुतः तन्तुभ्यो नार्थान्तरामिति साध्यस्य तन्त्वग्रहे अगृह्यमाणत्वादिति साधनस्य वा दृष्टान्तत्वेनोपात्ते वने असंभवात् । तथा यदप्यन्यदभ्यधायियद् दृश्यं सन्नोपलभ्यते तन्नास्त्येव यथा खरविषाणं दृश्यः सन्नोपलभ्यते च अवयवीति-तत्रापि पक्षे हेतुप्रयोगे अवयवी धर्मी नास्तीति साध्यो धर्मः दृश्यत्वे सत्यनुपलभ्यत्वादित्युक्तं स्यात् । तथा च धर्मिणः प्रमाणप्रतिपन्नत्वे पक्षस्य धर्मिग्राहकप्रमाणबाधितत्वात् कालात्ययापदिष्टो हेत्वा. भ्यासः स्यात् । खरविषाणवदित्यत्रापि अत्यन्ताभावः खरमस्तकस्थं विषाणं वा दृष्टान्तः। प्रथमपक्षे साध्यविकलो दृष्टान्तः स्यात् । अत्यन्ताज्ञान नही होता । किन्तु इस अनुमान का आधार ही ठीक नही है। यहां चस्त्र यह धर्मी है । यदि इस का अस्तित्व मान्य हो तो वस्त्र आदि अवयवी द्रव्य नही होते यह कहना व्यर्थ होगा। यदि वस्त्र का अस्तित्व ही मान्य नहीं है तो वस्त्र के बारे में कोई चर्चा कैसे हो सकेगी? अतः दोनों पक्षों में इस अनुमान का कोई मूल्य नहीं रहता। यहां दृष्टान्त भी ठीक नही है क्यों कि वृक्ष और वन का तन्तु और वस्त्र से कोई नियत सम्बन्ध नही है । अतः वस्त्र के विषय में वन का उदाहरण अप्रस्तुत है। इसी प्रकार अवयवी का बाधक दूसरा अनुमान भी उचित नही है-अवयवी यदि होता तो दिखाई देता, देखने योग्य हो कर भी गधे के सींग के समान ही वह दिखाई नहीं देता, अतः उस का अस्तित्व नही है यह कथन पर्याप्त नही है। यहां भी पूर्वोक्त अनुमान के ही दोष हैं-यदि अवयवी का अस्तित्व मान्य है तो अवयवी नही है यह कहना ठीक नही, यदि अवयवी का अस्तित्व ही मान्य न हो तो उस के विषय में चर्चा करना व्यर्थ है । यहां का दृष्टान्त गधे के सींग का अभाव यह हो तो अभाव सर्वदा रहता है अतः अवयवी नहीं है यह उस से सिद्ध नहीं
१ दृष्टांतत्वेनोपात्तं वनम् ।