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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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[ ७०. दिग्द्रव्यनिषेधः। ]
अथ
तथा दिग्द्रव्यमप्याकाशादतिरिक्तं न जाघट्यते । सूर्योदयास्तमयादीनुपलक्ष्य आकाशे एव पूर्वपश्चिम दक्षिणोत्तरादिदिग्व्यपदेशव्यवहारप्रवृत्तेः । आकाशव्यतिरिक्तान्यदिग्द्रव्यप्रसाधकप्रमाणाभावात् । आशाः ककुभः काष्ठा इत्याद्यभिधानानि विद्यमानाभिधेयवाचकानि अभिधानत्वात् भूम्याद्यभिधानवदिति दिग्द्रव्यसद्भावप्रसाधकप्रमाणमिति चेन्न । जगदुत्पादिका प्रकृतिः प्रधानं बहुधान कमित्याद्यभिधाने है तोर्व्यभिचारात् । तेषामभिधानत्वेऽपि विद्यमानाभिधेयवाचकत्वाभावात् । भावे वा पदार्थानामियत्तावधारणानुपपत्तेः षडेव पदार्था इत्यसंभाव्यमेव स्यात् । किं च । अभिधानमस्तीत्यभिधेय सद्भावकल्पनायां पूर्वपश्चिमदक्षिणोत्तरादिदशप्रकाराभिधान सद्भावात् दश दिग्द्रव्याणि प्रसज्येरन् । तथैवास्तीति चेन्न । नवैव द्रव्याणीति संख्याव्याघातप्रसंगात् । दिग्द्रव्यस्य एकत्व संख्याव्याख्यान विरोधाच्च । अथ दिग्द्रव्यस्यैकत्वेऽपि उदयास्त: पर्वतादिभेदेन पूर्वपश्चिमाद्यभिधानभेदः प्रवर्तत इति चेत् तर्हि तथा एकस्यै
७०. दिग्द्रव्यका निषेध - वैशेषिक मत में दिशा को पृथक द्रव्य माना है । किन्तु यह आकाश द्रव्य से भिन्न नही है । सूर्य के उदय या अस्त के सम्बन्ध से आकाश के ही भिन्न भिन्न भागों को पूर्व पश्चिम आदि नाम दिये जाते हैं । अतः दिशा स्वतन्त्र द्रव्य नही है 1 आकाश वाचक शब्दों से भिन्न शब्दों - आशा, ककुभ, काष्ठा आदि के प्रयोग से दिशा द्रव्य का अस्तित्व सिद्ध करना उचित नही । प्रकृति, प्रधान आदि शब्दों का भी ( सांख्यों द्वारा ) प्रयोग होता है किन्तु इतने से उन तत्त्वों का अस्तित्व सिद्ध नही होता । यदि प्रत्येक शब्द के प्रयोग से स्वतन्त्र तत्त्व का अस्तित्व सिद्ध करें तब तो तत्त्व असंख्य होंगे फिर पदार्थ छह हैं इस प्रकार गणना करना संभव नही होगा । दूसरे, दिशा शब्द के समान पूर्व, पश्चिम आदि शब्दों का भी प्रयोग होता है । तो क्या इन सब को पृथक द्रव्य मानना होगा ? यदि ऐसा मानें तो द्रव्य नौ हैं यह कहना संभव नही है । तथा दिशा द्रव्य एक है यह कथन भी गलत सिद्ध होगा । दिशा द्रव्य तो एक है किन्तु सूर्योदय आदि की अपेक्षा से पूर्व, पश्चिम आदि भेद होते हैं यह कथन