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इन्द्रियविचारः
२२५ यभिचारात् । तस्य रूपादीनां मध्ये शब्दस्यैवाभिव्यञ्जकत्वेऽपिनाभसत्वाभावात् । तथा वायवीयं स्पर्शनं रूपादीनां मध्ये स्पर्शस्यैवाभिव्यञ्जकत्वात् जलशैत्याभिव्यञ्जकव्यजनवायुवत् इत्यनुमानमप्यसत्। एलालवङ्गकर्पूरश्रीखण्डादिभितोर्व्यभिचारात् । तेषां जलशैत्याभिव्यञ्जकत्वेऽपि वायचीयत्वाभावात् । कुतः तेषां पार्थिवत्वात् । पार्थिवं घ्राणं रूपादीनां मध्ये गन्धस्यैवाभिव्यञ्जकत्वात् कुंकुमगन्धाभिव्यञ्जकघृतवदित्यनुमानमप्य. समञ्जसम्। पाण्डुमृत्पिण्डशुष्कचर्मादिष्वभिषिक्तजलादेः तत्र गन्धस्यैवाभिव्यञ्जकत्वेऽपि पार्थिवत्वाभावात् तेन हेतोयभिचारः अनुलिप्तमृगस्वेदादिगन्धाभिव्यञ्जकशरीरोष्मणा व्यभिचाराच्च । तथा आप्यं रसनं रूपादीनां मध्ये रसस्यैवाभिव्यञ्जकत्वात् लालादिवदित्यनुमानमप्ययुक्तम्। भोज्यवस्तुषु सकलरसाभिव्यञ्जकलवणेन हेतोयभिचारात् । ननु लवणमाप्यम् अप्सु जातत्वात् करकादिवदिति लवणस्य आप्यत्वसिद्धेः हेतोर्न व्यभिचार इति चेन्न। लवणस्य आप्यत्वसिद्धयर्थ प्रयुक्तस्य हेतोः शंखशुक्त्यादिभिर्व्यभिचारात् । तेषामप्सु जातत्वेऽपि आप्यत्वाभावात् । लवणमाप्यं न भवति मधुररसरहितत्वात् हरीतकीवत्, लवणरसोपेभेरी और कोण का संयोग भी सिर्फ शब्द को व्यक्त करता है किन्तु वह आकाश निर्मित नही है । इसी प्रकार सिर्फ स्पर्श को अभिव्यक्त करने से स्पर्शनेन्द्रिय को वायुनिर्मित मानना गलत है । इलायची, लौंग, कपूर आदि से जल का शीतस्पर्श व्यक्त होता है किन्तु ये पदार्थ वायुनिर्मित नही हैं । ध्राण इन्द्रिय से सिफ गन्ध की अभिव्यक्ति होती है अतः यह इन्द्रिय पृथ्वीनिर्मित है, केशर के गन्ध को व्यक्त करनेवाला धी पार्थिव होता है, यह कथन भी गलत है । सफेद मिट्टी अथवा मुखे चमडे पर पानी छिडकने से भी गन्ध व्यक्त होता है किन्तु पानी पृथ्वीनिर्मित नही है। इसी प्रकार शरीर की उष्णता से कस्तरी आदि का गन्ध व्यक्त होता है किन्तु उष्णता पार्थिव नही होती । रसनेन्द्रिय रस को अभिव्यक्त करता है अतः लार आदि के समान वह जल निर्मित है यह कथन भी ठीक नही। भोजन के पदार्थों में नमक सब रसों को व्यक्त करता है किन्तु वह जलनिर्मित नही है । नमक पानी से मिलता है अतः ओला आदि के समान वह जलनिर्मित है यह कथन भी ठीक नही । शंख, सीप आदि भी पानी. से मिलते हैं किन्तु वे जल निर्मित नही होते । नमक जलनिर्मित नही है वि.त.१५