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मायावादविचारः
प्रत्ययप्रवर्तनयोर्बाधिकाभावो असिद्ध इति चेन्न । प्रत्यक्षानुमानागत्मसाक्षात्काराणां बाधकत्वाभावस्य प्रागेव समर्थितत्वात् । तस्मादिदमिति' देशकालाकार नियतत्वेन प्रतीयमानं वस्तु अनिदं न भवतीति देशान्तरकालान्तरभावान्तरव्यावृत्तमेव प्रत्यक्षेण प्रतीयत इति प्रत्यक्षं भेदग्राहकं प्रमाणमिति सिद्धम् ।
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तथा न केवलं प्रत्यक्षं शब्दोऽपि भेदं प्रतिपादयति । तथा हि । घट इत्ययं शब्दः घटाभावतदाश्रयभूतान् पटादिसकलपदार्थान् व्यवच्छिन्दनेव घटं प्रतिपादयति । तद्व्यवच्छेदाभावे घरप्रतिपादनाभावात् । कुत एतदिति चेत् घटस्य स्वाभावान्याशेष पदार्थव्यवच्छेदाभावे अभावरूपत्वं सर्वात्मकत्वं वा स्यादिति घटशब्दवाच्यत्वानुपपत्तेः । तस्मात् घटशब्दः घटाभावान्याशेषपदार्थान् व्यवच्छिन्दनेष घटं प्रतिपादयतीति शब्दादपि भेदसिद्धिः । तथा चोक्तं
निरस्यन्ती परस्यार्थ स्वार्थ कथयति श्रुतिः । तम विधुन्वती भास्य यथा भासयति प्रभा ॥
बाध प्रत्यक्ष अनुमान, आगम या आत्मासाक्षात्कार से नही होता यह पहले विस्तार से स्पष्ट किया है । अतः अबाधित जागृत - ज्ञान को प्रमाण मानना ही चाहिए। यह वस्तु इस देश, काल तथा स्वरूप में है, इस से भिन्न देश, काल या स्वरूप में नही है इस प्रकार भेद का ज्ञान प्रत्यक्ष सिद्ध है यही इस विवेचन से स्पष्ट होता है ।
प्रत्यक्ष के समान शब्द प्रयोग द्वारा भी भेद का ज्ञान होता है F घट इस शब्द से घट का बोध होता है उसी प्रकार घट का अभाव तथा घट से भिन्न सब पदार्थों से उस के पृथक होने का भी बोध होता
। यदि ऐसा नही होता तो ' घट ' कहने से समस्त पदार्थों का बोध हो जाता अथवा किसी पदार्थ का बोध नही होता । अन्य सब पदार्थों से भिन्न एक 'घट' पदार्थ का ही घट शब्द से ज्ञान होता है यह भेद का ही समर्थक है । कहा भी है: 6 जिस तरह प्रकाश अन्धकार नाश कर पदार्थ को प्रकाशित करता है उसी तरह श्रुति पर- अर्थ
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१ भूमण्डलादिप्रपञ्चलक्षणम् । २ यत् तु यत्रैय देशे तत् तु तत्रैवेत्यर्थः 1 ३ घटस्य स्वस्य अभावः येषु ते स्वाभावास्ते च ते अन्याशेषपदार्थाश्च । ४ सर्वे पदार्थाः घट एव इति सर्वात्मकत्वम् । ५ पदार्थम् । वि.त. ११