________________
-६४]
समवायविचारः
२१७
दयुतसिद्धत्वासंभवात् । तथा हि । अवयवास्तन्तवः अंशुभ्यो निष्पत्राः अवयवी पटस्तन्तुभ्यो निष्पन्न इति अवयवावयविनोः पृथग् निष्पन्नत्वेन युतसिद्धत्वादयुतसिद्धत्वासंभव एव । तथा पटे रूपादयो गुणाः समवाधिकारणात् पटात् असमवायिकारणेभ्यस्तन्तुगतरूपादिभ्यः कुविन्दकरव्यापारादिनिमित्तकारणाञ्च निष्पन्नाः । पटादयो गुणिनोऽपि समवायिकारणेभ्यस्तन्तुभ्यः असमवायिकारणेभ्यस्तन्तूनामातानवितानरूपविशिष्ट. संयोगेभ्यः कुविन्दकरव्यापारनिमित्तकारणाच्च निष्पन्नाः । इति गुणगुणिनोः पृथग् निष्पन्नत्वेन युतसिद्धत्वाभावादयुतसिद्धत्वासंभव एवं स्यात् । तथा सत्तादिसामान्यानां नित्यत्वेन सिद्धत्वात् द्रव्यादिविशेषाणां स्वकारणकलापानिष्पन्नत्वाच्च सामान्यविशेषयोरपि पृथक् निष्पअत्वेन् युतसिद्धत्वात् अयुतसिद्धत्वासंभव एव स्यात् । तथा पटाद्यसर्वगतद्रव्यं तन्त्वाधुपादानकारणादिना समुत्पद्यते पटादीनां क्रिया च पटाधुपादानकारणादिना समुत्पद्यत इति क्रियातद्वतोरपि पृथग् निष्पन्नत्वेन युतसिद्धत्वादयुतसिद्धत्वासंभव एव स्यात् इति । किं च । अवयवावयविप्रभृतीनां भिन्नदेशभिन्नकालभिनकर्तृभिन्नोपादानादिकारणनिष्पन्नत्वाद्
का जो कारण है वही समवाय सम्बन्ध है। किन्तु यह लक्षण भी सदोष है। प्रश्न होता है कि अयुतसिद्ध पदार्थ किन्हें कहा जाय ? जो अलग सिद्ध हैं वे युतसिद्ध हैं, जो अलग सिद्ध नही हैं वे अयतसिद्ध हैं, यह कथन ठीक नही । गुण, गुणी, अवयव, अवयवी, सामान्य, विशेष तथा क्रिया, क्रियावान्, ये पृथक-पृथक निप्पन्न होते हैं तब उन्हें अयतसिद्ध कैसे कहा जाय ? वस्त्र अवयवी है वह तन्तुओं से बनता है, तन्तु अवयव हैं वे अंशुओं (रेशों) से बनते हैं - अतः इन की निष्पत्ति भिन्न भिन्न है। इसी प्रकार वस्त्र गुणी है वह तन्तुओं से बना है तथा रूप आदि गुण हैं वे तन्तुओं के रूप आदि गुणों से बने हैं - अतः गुण और गुणी की निष्पत्ति भी भिन्न भिन्न है । इसी प्रकार सत्ता आदि सामान्य तो नित्य माने हैं तथा द्रव्य आदि विशेष अपने अपने कारणों से उत्पन्न माने हैं - अतः सामान्य और विशेष की निष्पत्ति भी भिन्न भिन्न है। इसी प्रकार वस्त्र क्रियावान् है वह तन्तुओं से उत्पन्न हुआ है तथा वस्त्र की क्रिया वस्त्र से उत्पन्न हुई है-अतः क्रिया और क्रियावान की निष्पत्ति भी भिन्न भिन्न है । तात्पर्य-अवयव, अवयवी आदि को अयुतसिद्ध कहना योग्य