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-६१] सर्वगतत्वविचारः
२११ स्वरूपपदार्थग्राहित्वात् व्यक्तिविषयप्रत्ययवत् । तथा पटोऽयं पटोऽयमित्यनुगतप्रत्ययः नित्यव्याप्येकवस्तुविषयो न भवति अनुगतप्रत्ययत्वात् सदृशेष्वेव प्रवर्तमानत्वात् गेहोऽयं गेहोऽयमित्यनुगतप्रत्ययवदिति । ततश्च केनचित् सादृश्यव्यतिरेकेणापरं सामान्यं नास्त्येव । समानाभिधानसमानप्रत्ययसमानव्यवहारगोचराः समानाः, समानानां भावः सामान्यं, सदृशानां भावः सादृश्यमिति निरुक्तेः। केनचिदेकेन धर्मेण समानत्वसद्भावस्यैव सामान्यत्वात् । ननु अनुगतैकसामान्याभावे घटगवादिशब्दानां संकेतो न योयुज्यते व्यक्तीनामानन्त्येन संकेतयितुमशक्यत्वादिति चेन्न । यो यः कश्चन एवंविधपृथुबुध्नोदाद्याकारः पदार्थः स सर्वोऽपि घटशब्दवाच्य इति जानीहि,यो यः कश्चन एवंविधसास्नादिमान् पदार्थः स सर्वोऽपि गोशब्दवाच्य इति जानीहि इति संकेतयितुं शक्यत्वात् राशिग्रहादिशब्दसंकेतवत् ।
सामान्य व्यक्ति से भिन्न नहीं होता क्यों कि व्यक्ति से पृथक रूप में सामान्य की प्रतीति नही होती। 'यह वस्त्र है' यह प्रतीति उस पूरे पदार्थ को देख कर होती है अतः इस प्रतीति का कारण कोई नित्य, व्यापक एक विषय ( पटत्व सामान्य ) नही है। भिन्न भिन्न वस्त्रों को देख कर उन की सदृशता का ज्ञान होता है - वह किसी एक नित्य व्यापक (सामान्य) का ज्ञान नही होता । भिन्न पदार्थों में समान शब्द, समान ज्ञान तथा समान व्यवहार होने से उन्हें समान कहते हैं - समान होना ही सामान्य है - इस से भिन्न वह कोई स्वतन्त्र पदार्थ नही है। यदि सब व्यक्तियों में एक सामान्य न हो तो एक शब्द से उन का बोध नही होगा क्यों कि व्यक्तियां अनन्त होती हैं - यह आपत्ति भी उचित नही। किसी घट का आकार देख कर ऐसा बडा गोल आकार जिस का होगा उसे घट कहते हैं ऐसा संकेत हो सकता है – इस के लिए सब घट देखने की जरूरत नही। इसी प्रकार सास्ना आदि अवयवों से युक्त प्राणी गाय होता है ऐसा संकेत हो सकता है। राशि, ग्रह आदि शब्दों के संकेत भी इसी प्रकार होते हैं। अतः शब्दप्रयोग के लिए सब व्यक्तियों में एक सामान्य का अस्तित्व जरूरी नही है ।
१ घटोऽयम् इति अनुगतप्रत्ययः सामान्यग्राह्यो भवति चेत् तर्हि प्रतिघट सकलस्वरूपग्राहो न भवति कुतः एक सामान्यम् एकस्मिन् घटे स्थितं भवति तदा दृश्यते च घटं प्रति सकलस्वरूपग्राहित्वम् ।