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-६२] समवायविचारः
२१३ रूपादिवत् , संबन्धत्वात् संयोगवत् । तथा समवायः स्वाश्रयविनाशाद् विनश्यति परतन्त्रैकरूपत्वात् आश्रितत्वात् संयोगवदिति समवायस्योप. तिविनाशवत्वसिद्धरनित्यत्वसिद्धिम ननु संयोगस्य परतन्त्रैकरूपत्यासि ः साधन विकलो दृष्टान्त इति चेन्न। संयोगः परतन्त्रैकरूपः गुणत्वाल् आश्रितत्वात् रूपवदिति संयोगस्य परतन्त्रैकरूपत्वसिद्धेः।।
तथा समवायः सर्वगतो न भवति सकलमूर्तिमद्रव्यसंयोगरहितत्वात् पटवत् । ननु समवायस्य सकलमूर्तिमद्व्यसंयोगरहितत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । समवायः सकलमूर्तिमद्व्यसंयोगरहितः महापरिमाणानधिकरणत्वात् पटादिवदिति तसिद्धेः। अथ समवायस्थ महापरिमाणानधिकरणत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । समवायः महापरिमापााधिकरणो न भवति अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिवत् संबन्धत्वात् संयोगवदिति महापरिमाणानधिकरणत्वसिद्धमतथा समवायः सर्वगतो न भवति महापरिमाणानधिकरणत्वात् अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिवत्, संबन्धत्वात् संयोगवदिति च। तथा समवायः एको न भवति सकलमूर्तिमद्रव्यसंयोगरहितत्वात् महापरिमाणानधिकरणत्वात् अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिवत् संबन्धत्वात् संयोगवदिति समवायस्य नित्यत्वविभुत्वैकत्वानुपपत्तिरेष स्यात्। ननु सत्तासामान्यस्यापरतन्त्रैकरूपत्वेऽप्यनेकत्वाभावादनैकान्तिको मानना चाहिए क्यों कि समवाय आश्रित तथा परतन्त्र माना गया है। जिस तरह संयोग सम्बन्ध है, आश्रित है तथा परतन्त्र है उसी प्रकार समवाय भी है अतः संयोग के समान समवाय भी अनित्य - उत्पत्तिविनाशयुक्त सिद्ध होता है। .
समवाय सर्वगत भी नही है क्यों कि वह सब मूर्त द्रव्यों के संयोग से रहित है - महान परिमाण का नही है। समवाय रूप आदि के समान आश्रित, परतन्त्र तथा अद्रव्य है (द्रव्य नही है ) तथा वह संयोग के समान एक सम्बन्ध है अतः वह महान परिमाण का - सर्वगत नही है। इन्हीं कारणों से समवाय का एक होना भी संभव नही है। सत्तासामान्य (अस्तित्व) सब पदार्थों में है अतः वह परतन्त्र होने पर भी एक है - अनेक नही - यह कथन भी अनुचित है। सामान्य स्वयं द्रव्य नही है, परतन्त्र, आश्रित, सब मर्त द्रव्यों के संयोग से रहित एवं