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मायावादविचारः
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पक्षोऽप्ययुक्त एव । करणवृत्तिरूपस्य ज्ञानस्य अविद्यानिवर्तकत्वासंभवात् । तथा हि । करणवृत्तिरूपं ज्ञानम् अविद्यानिवर्तकं न भवति जडत्वात् पटादिवदिति । ननु ज्ञानस्य जडत्वमसिद्धमिति चेन्न । करणवृत्तिरूपं ज्ञानं जडम् उत्पत्तिमत्त्वात् वेद्यत्वात् पटादिवदिति वेदान्तिभिरवाभिहितत्वात् । अथ ज्ञानं स्वप्रकाशाद् विनाश्यवत् तमोरित्वात् प्रदीपवदिति अज्ञानस्य अभावादन्यत्वसिद्धिरिति चेन्न । अस्यापि हेतोर्विचारा. सहत्वात् । तथा हि तमोऽरित्वं नाम अज्ञानारित्वमन्धकारारित्वं तमोरित्वमात्रं वा । प्रथमपक्षे हेतोः सपक्षे सर्वत्राभावादनध्यवसितत्वं स्यात् साधनविकलो दृष्टान्तश्च । द्वितीयपक्षे स्वरूपासिद्धो हेतुः पक्षीकृते ज्ञाने अन्धकारारित्वाभावात् । तृतीयपक्षो नोपपनीपद्यते अजडजडयोर्ज्ञानान्धकारारित्वयोस्तमोरित्वसामान्याभावात् । अन्यदधिकं पूर्ववत् । तस्मात् ज्ञानं स्वप्रकाशात् विनाश्यरहितम् इन्द्रियाविषयत्वात् रूपादिवत् अद्रव्यत्वात् प्रमाणत्वात् निष्क्रियत्वात् अजडत्वात् विपक्षे प्रदीपवदिति अनुभव से नष्ट होनेवाली कोई अविद्या नही होती नित्य अनुभव के प्रकाश से किसी अज्ञान का नाश नही होता । दूसरा पक्ष भी सम्भव नही क्यों कि साधनरूप ज्ञान को वेदान्ती जड मानते हैं तथा जड ज्ञान से अविद्या की निवृत्ति नही हो सकती । साधनरूप ज्ञान उत्पत्तियुक्त तथा ज्ञेय है अत: वह जड है यह वेदान्तियों का मत है । ज्ञान तम का विरोधी है अतः उस के द्वारा किसी का नाश होता है - वही अज्ञान है यह कथन भी उपर्युक्त प्रकार से ही दूषित है । ज्ञान चेतन है तथा अन्धकार जड है अतः उन में नाशक- नाश्य सम्बन्ध सम्भव नही है । ज्ञान किसी वस्तुको नष्ट नही करता क्यों कि वह इन्द्रियों से ज्ञात नही होता, रूपादि गुणों से रहित है, द्रव्य नही है ( गुण है ), निष्क्रिय हैं तथा चेतन है ( जड नही है ) । इस के प्रतिकूल दीपक जड है, क्रियायुक्त है, द्रव्य है, रूपादि गुणों से युक्त है तथा इन्द्रियों से ज्ञात होता है । अतः ज्ञान का अभाव ही अज्ञान है यह स्पष्ट हुआ । तदनुसार अज्ञान चांदी का उपादान कारण नही हो सकता यह भी स्पष्ट है ।
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१ ज्ञानप्रकाशात् यत् विनाश्यं भवति तत् अभावरूपं न, अभावस्य विनाशितुं अशक्यत्वात् । २ अज्ञानारित्वं प्रदीपे नास्ति । ३ यत्तु विनाश्यसहितं तत्तु इंद्रियविषयं इत्यादि यथा दीपः ।