________________
विश्वतत्त्वप्रकाशः
[३०
नायाःसर्वदा ईदृग्भावमात्मनानात्वंच समर्थयन्ते । शांकरीयभास्करीयास्तु 'तस्मादात्मनः आकाशः संभूतः आकाशाद् वायुः वायोरग्निः अग्नेरापः अद्भ्यः पृथ्वी पृथिव्या ओषधयः ओषधिभ्योऽन्नम् अन्नात् पुरुषः' (तैत्तिरीयोपनिषत् २-१-१) इत्याद्युपनिषद्वाक्यैरीश्वरादिदेवतासद्भावं जगतः सृष्टिसंहारक्रमं पुनश्च
सर्व वै खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किंचन । आरामं तस्य पश्यन्ति न तं पश्यति कश्चन ॥
(छान्दोग्योपनिषत् ३-१४-१) इत्यात्मन एकत्वं प्रपञ्चमिथ्यात्वं च समर्थयन्ति। तत्रापि भास्करीया ब्रह्मणः सकाशात् प्रपञ्चस्य मेदामेदसत्यत्वं च वर्णयन्ति मायावादिनस्त्वमेदमेवेति । नैयायिकवैशेषिकास्तु षोडश षट् पदार्थान् यह प्रजाओं का राजा भी ध्रुव रहे । राजा वरुण, देव बृहस्पति, इन्द्र तथा अग्नि तुम्हारे राज्य को ध्रुव बनाएं।' इस के विपरीन शांकरीय तथा भास्करीय वेदान्ती ईश्वर. तथा देवताओं का अस्तित्व मानते हैं, जगत की उत्पत्ति और प्रलय मानते हैं, आत्मा एकही मानते हैं तथा संसार को मिथ्या कहते हैं। इन के प्रमाणभूत वेदवाक्य इस प्रकार हैं'उस आत्मा से आकाश उत्पन्न हुआ, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि (वनस्पति), औषधि से अन्न तथा अन्न से पुरुष उत्पन्न हुआ।' 'यह सब ब्रह्म ही है, यहां नाना कुछ नही है, सब उसके प्रभाव को देखते हैं, उसे कोई नहीं देखता।' इन में भी परस्पर मतभेद है - शांकरीय तो सिर्फ अभेद ही मानते हैं. भास्करीय ब्रह्म और प्रपंच में भेदाभेद मानते हैं। नैयाथिक सोलह पदार्थ मानते हैं और वैशेषिक छह पदार्थ मानते हैं। ये दोनों जगत की उत्पत्ति और प्रलय मानते हैं, ईश्वर और देवताओं का अस्तित्व मानते है, प्रपंच सत्य मानते हैं तथा आत्माओं की संख्या बहुत मानते हैं। इन के प्रमाणभत वेदवाक्य ये हैं - ' यह एक देव है जो पृथ्वी तथा आकाश को उत्पन्न करता है, इस की आंखें सर्वत्र हैं,
१ ब्रह्मणः । २ आत्मानम् । ३ शांकरीयाः। ...