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ईश्वरनिरासः कुतः। विवादाध्यासितः कर्ता न भवति शरीररहितत्वात् मुक्तात्मवदिति प्रयोगसद्भावात्। अथ महेश्वरस्य शरीररहितत्वेऽपि ज्ञानचिकीर्षाप्रयत्नवत्वेन' कर्तृत्वं, मुक्तात्मनां तदभावादकर्तृत्वमिति चेन्न। शरीररहितत्वे ज्ञानचिकीर्षाप्रयत्नवत्वस्याप्यनुपपत्तेः। तथा हि । विवादापन्नः पुरुषः ज्ञानेच्छाप्रयत्नरहितः शरीररहितत्वात् मुक्तात्मवदिति। अथ महेश्वरस्य नित्यमुक्तत्वात् नित्यज्ञानेच्छाप्रयत्नवत्त्वोपपत्तेः कर्तृत्वमुपपद्यत इति चेन्न । तेषां नित्यत्वायोगात् । वीता शानचिकीर्षाप्रयत्नाः न नित्याः आत्मविशेषगुणत्वात् दुःखादिवत् , अनणुविशेषगुणत्वात् पटरूपादिवत् , विभुविशेषगुणत्वात् शब्दवत् । वीतः पुरुषः न नित्यज्ञानेच्छाप्रयत्नवान् मुक्तत्वादितरमुक्तवत् , योगित्वादितरयोगिवत् , पुरुषत्वात् संप्रतिपन्नयदि अशरीर है तो वह कर्ता नहीं हो सकता। जैसे मुक्त जीव शरीर-रहित होते हैं और कर्ता नही होते वैसे ही ईश्वर भी शरीररहित हो तो कर्ता नही होगा। ईश्वर में ज्ञान, जगत् के निर्माण की इच्छा तथा प्रयत्न ये विशेष हैं जो मुक्त जीवों में नही होते-अतः वह कर्ता है यह समाधान भी योग्य नही। ज्ञान, इच्छा तथा प्रयत्न ये सब शरीररहित पुरुष में सम्भव नही हैं-इसीलिये कि मुक्त जीव शरीररहित होते हैं, उन में ज्ञान, इच्छा और प्रयत्न का अभाव होता है । ईश्वर नित्य मुक्त है अतः उस में नित्य ज्ञान, इच्छा, प्रयत्न होते हैं यह कथन भी योग्य नही। ज्ञान, इच्छा, प्रयत्न ये आत्मा के विशेष गुण हैं अतः नित्य नहीं हो सकते । आकाश का गुण शब्द जैसे अनित्य है अथवा वस्त्र के रूपादि गुण जैसे अनित्य हैं उसी प्रकार आत्मा के ज्ञान आदि गुण भी अनित्य हैं। दूसरे, ईश्वर यदि मुक्त है तो अन्य मुक्त जीवों के समान उसे भी ज्ञान, इच्छा और प्रयत्न . १ ईश्वरस्य नित्यं ज्ञानं नित्यचिकीर्षा नित्यप्रयत्नोऽस्ति इति नैयायिको वदति । २ महेश्वरस्य । ३ अणुव्यतिरिक्ते सति पटरूपं न नित्यं विशेषगुणत्वात् अणुरूपं यदस्ति तनित्यमस्ति अत उक्तम् अनणुत्वेति । ४ शब्दः न नित्यः आकाशविशेषगुणत्वात् तथा ज्ञानेच्छादयः न नित्याः आत्मविशेषगुणत्वात् ।