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विश्वतत्त्वप्रकाशः
- [प्रकाशन - १ सं. कलाप्पा निटवे, कोल्हापूर १८९९; ३ हिन्दी अनुवादसहित- सं. खबचन्द्र व वंशीधर, जैन ग्रन्थ रत्नाकर, १९१३, बम्बई; ३ सनातन ग्रंथमाला, १९१५ बनारस; ४ कंकुबाई पाठयपुस्तकमाला, महावीर ब्रह्मचर्याश्रम, १९३८ कारंजा; ५ से. पं. दरबारीलाल, वीरसेवामंदिर, १९४५, दिल्ली]
न्यायदीपिका में धर्मभूषण ने कारुण्यकलिका नामक ग्रन्थ का उल्लेख किया है तथा उस में उपाधि निराकरण की चर्चा देखने की प्रेरणा का है। हो सकता है कि यह उन्हीं की रचना हो। हस्तलिखित सूचियों में उन के प्रमाण विलास का भी उल्लेख मिलता है। इस का विस्तार २००० श्लोकों जितना कहा गया हैं।
७०. मेरुतुंग-ये अंचलगच्छ के महेंद्रन्सूरि के शिष्य थे। उन की ज्ञात तिथियां सन १३८८ से १३९३ तक हैं । षड्दर्श निर्णय यह उन को तार्किक कृति है जिस में छह दर्शनों का संक्षिप्त विचार प्रस्तुत किया है। उन की अन्य कृतियां ये हैं - सहनिभाष्यटीका, शतकभाष्य, भावक प्रक्रिया, कातन्त्रव्याकरणवृति, धातुपारायण, मेघदूतटीका । तथा नमोत्थुगस्तोत्रटीका ।
७१. गुणरत्न-ये तपागच्छ के देवसुन्दर सूरि के शिष्य थे। इन की ज्ञात तिथियां सन १४०० से १४१० तक हैं। हभिद्र के षड्दर्शनसमुच्चय पर इन्हों ने तर्करहस्यदीपिका नमक विस्तृत टीका लिखी है। इस का विस्तार १२५० श्लोकों जितना है। प्रमाणनयतत्त्वरहस्य यह इन को दूसरी तर्कविषयक रचना है। इन की अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं-क्रिपारत्नसमुच्चय, कल्पान्तर्वाच्य, सप्ततिका-अवचूरि, पय-ना-अवचूरि, क्षेत्रसमास-अअचूरि, नवतत्त्व-अवचूरि, देवेन्द्रकर्मप्रन्य-अवचूर, ओयुिति उद्धार। ....
१) प्रबन्धचिन्तामणि आदि ग्रथों के कर्ता मेरुग इन से भिन्न हैं तथा इन के कोई ५० वर्ष पहले हो चुके हैं।