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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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भूत विकारत्वात् । मूर्तत्वात् अचेतनत्वात् पटवत् । ज्ञानं वा न शरीरगुणः सति शरीरे निवर्तमानत्वात् व्यतिरेके शरीरगन्धवदिति । ननु इन्द्रियाश्रितत्वेन सिद्धसाध्यतेति चेन्न । तस्यापि बाधितत्वात् । नेन्द्रियाणि ज्ञानादिगुणवन्ति करणत्वात् भूतविकारत्वाज्जडत्वात् मूर्तत्वात् कुठारदिति । ज्ञानादयो नेन्द्रियगुणाः सतीन्द्रिये निवर्तमानत्वात् व्यतिरेके इन्द्रियरूपादिवत् । अन्तःकरणाश्रितत्वेऽप्येते" हेतवः प्रयोक्तव्याः। तस्मात् ज्ञानादयो जीवगुणाः अर्थावबोधकत्वात् अजडत्वात् स्वसंवेद्यत्वात् स्वप्रतिपत्तौ परनिरपेक्षत्वात् व्यतिरेके रूपादिवदिति जीवस्य ज्ञानादिगुणाधारत्वात् द्रव्यत्वसिद्धिः ।
से बना हुआ है । इसी प्रकार ज्ञान भी शरीर का गुण नही हो सकता क्यों कि ( मृत अवस्था में ) शरीर के विद्यमान होते हुए भी उस में ज्ञान नही होता । जो शरीर का गुण हो- जैसे शरीर का गन्ध है - वह सर्वदा शरीर में रहता है । इसी प्रकार इन्द्रिय भी ज्ञान के आधार नही हैं क्यों कि इन्द्रिय भूतों (पृथिवी आदि ) से बने हैं, मूर्त हैं तथा करण (साधन) हैं- जैसे कुठार होता है । ज्ञान इन्द्रियों का गुण नही है क्यों कि ( मृत अवस्था में ) इन्द्रियों के विद्यमान होते हुए भी ज्ञान नही होता । जो इन्द्रियों के गुण हैं- जैसे इन्द्रियों के रूप आदि - वे सर्वदा इन्द्रियों में विद्यमान रहते हैं । इसी प्रकार अन्तःकरण भी ज्ञान का आधार नही हैज्ञान अन्तकरण का गुण नही है । ज्ञान इत्यादि जीव के गुण हैं क्योंकि
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अर्थों का बोध कराते हैं, जड नहीं हैं, स्वसंवेद्य हैं - उन की प्रतीति के लिये किसी दूसरे ( व्यक्ति या पदार्थ ) की आवश्यकता नही होती । रूप इत्यादि शरीर के गुण हैं, उन में अर्थों का बोध कराना आदि ये विशेषताएं नही हैं । इस प्रकार ज्ञानादि गुणों के आधार के रूप में जीव द्रव्य का अस्तित्व सुनिश्चित है ।
१ यस्तु शरीरगुणो भवति स तु शरीरे न निवर्तते यथा शरीरगन्धः । २ इन्द्रियं न ज्ञानादिगुणाश्रयं भूतविकारत्वात् मूर्तत्वात् अचेतनत्वात् घटवत् । ३ यस्तु इन्द्रियगुणो भवति स तु सतीन्द्रिये न निवर्तते यथा इन्द्रियरूपादि । ४ शब्दादिज्ञानस्य अन्तःकरणाश्रितत्वेऽपि । ५ मूर्तत्वात् जडत्वात् इत्यादि । ६ यस्तु जीवगुणो न भवति स अर्थावबोधको न भवति यथा रूपादि ।