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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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सावयवत्वात् घटादिवदिति भूभुवनभूधरादीनां कार्यत्वसिद्धिरिति चेन्न । तत्र सावयवत्वं नाम अवयवैरारब्धत्वम् अवयवेषु वृत्तिमत्वं वा स्यात् । प्रथमपक्षे असिद्धो हेतुः। कुतः। अवयवैरारब्धत्वमेव कार्यत्वमिति हेतोः साध्यसमत्वात् । द्वितीयपक्षे अवयवसामान्येन' व्यभिचारः। कथम् । अवयवसामान्यस्य अवयवेषु वृत्तिमत्वेऽपि कार्यत्वाभावात्। अथ सामान्यवत्त्वे सत्यवयवेषु वृत्तिमत्त्वादिति चेन्न । तथापि हेतोराद्यद्रद्वयणुकावयवगतरूपादिभिर्व्यभिचारात् । तदन्यत्वे सतीति विशेष्यत इति चेत् तर्हि न कोऽपि हेतुर्व्यभिचारी स्यात् । सर्वत्र तदन्यत्वे सतीति वक्तुं शक्यत्वात् । मा भूद् व्यभिचारी हेतुः का नो हानिरिति चेन्न । अपसिद्धान्तापातात् । कुतः स्वयमसिद्धविरुद्धानकान्तिकाद्य भिधानात् । हैं यह नियय भी योग्य नहीं क्यों कि उत्पत्ति के प्रथम क्षण में सभी कार्य द्रव्य अमूर्त होते हैं यह न्यायदर्शन का ही मत है। भूमि आदि सावयव हैं अतः कार्य हैं यह कथन भी योग्य नहीं। सावयव का अर्थ अवयवों से आरम्भ होना अथवा अवयवों में विद्यमान होना ऐसा दो प्रकार से हो सकता है । अवयवों से आरम्भ होना और कार्य होना एक ही बात है अतः एकको दूसरे का हेतु बतलाना योग्य नहीं । दूसरा पक्ष-अवयवों में विद्यमान होना भी सम्भव नहीं क्योंकि अवयवसामान्यअवयवत्व-अवयवों में विद्यमान तो होता है किन्त कार्य नहीं होता । इस एक बात को अपवाद मानें तो भी मूल हेत निर्दोष नहीं होता-आद्य व्यणुक आदि के अवयवों में रूपादि विद्यमान होते हैं किन्त वे कार्य नहीं होते-नित्य होते हैं ऐसा न्यायदर्शन का ही मत है। अतः अवयवों में विद्यमान होता और कार्य होना इन दो बातों में अवश्य सम्बन्ध नहीं है यह स्पष्ट हुआ।
__ १ अवयवेषु अवयवसामान्यस्य वृत्तिरस्ति तस्याः कार्यत्वाभावः। २ अवयवत्वस्य, अवयवत्वं सामान्यं घटे घटत्वं पटे पटत्वं वर्तत एव । ३ भूभुवनभूधरादिकं कार्यं सामान्यबत्त्वे सत्यवयवेषु वृत्तिमत्त्वात्। ४ नित्यानां तु रूपादयो नित्या एव इति नैयायिकेनोक्तत्वात् । ५ नैयायिकादीनां । ६ प्रकरणसमकालात्ययापदिष्टादि ।