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विश्वतत्त्वप्रकाशः
[१५संपद्यते, आधारग्रहणप्रतियोगिग्रहणयोरसंभवात् । संभवे वा तग्राहिण एव सर्वज्ञत्वात् सर्वशसिद्धिरबोभूयिष्ट । किं च ।
'प्रमाणपञ्चकं यत्र वस्तुरूपे न जायते । वस्तुसत्तावबोधार्थ तत्राभावप्रमाणता ॥'
(मीमांसाश्लोकवार्तिक पृ. ४७३ ) इत्यभिहितत्वात् । अत्र तु सर्वज्ञसद्भावविषयतया आगमाद्यनेकप्रमाणप्रवृत्तेरभावस्यावकाशो न स्यात् । तस्मादभावप्रमाणमपि सर्वज्ञाभावं नानुगृह्णाति । तस्मादागमप्रामाण्यसमर्थनार्थमबाधितविषयत्वादिति युक्तो हेतुः समर्थित एवःस्यात् । तथा च प्रमाणभूतो ' यः सर्वाणि चराचराणि' इत्याद्यागमः सर्वसमावेदयत्येव । तथा च सर्वशासिद्धावागमस्याप्रामाण्यांत्, अप्रमाणादागमात् सर्वज्ञसिद्धरयोगादिति वचनं यतः३ शोमेत। [१५. सर्वज्ञसद्भावे प्रमाणानि ।]
यदप्युक्तं नापि प्रत्यक्षं सर्वज्ञावेदकं प्रमाणम् अत्रेदानीं सर्वज्ञस्य प्रत्यक्षेणानुपलब्धेरिति, तत्रास्मदादिप्रत्यक्षं तथैव । योगिप्रत्यक्षं तु सर्वज्ञमावेदयत्येव । अथ योगिप्रत्यक्षस्यैवाभावात् कथं सर्वसमावेदयतीति चेत्र । प्रागुक्तक्रमेण योगिप्रत्यक्षस्य समर्थितत्वात्। तथा पहले कभी देखे हुए सर्वज्ञ का यहां अस्तित्व नही है इस प्रकार का ज्ञान होना सम्भव नही है । सब पुरुषों के विषय में जो जाने वह स्वयं ही सर्वज्ञ होगा। मीमांसकों की अभाव प्रमाण की व्याख्या इस प्रकार है'जिस विषय में (प्रत्यक्षादि) पांच प्रमाणों से ज्ञान होना सम्भव नही उस विषय में वस्तु के अस्तित्व का ज्ञान अभाव प्रमाण से होता है। इस के अनुसार भी सर्वज्ञ के अभाव का ज्ञान अभाव प्रमाण से सम्भव नही क्यों कि सर्वज्ञ का अस्तित्व आगम आदि प्रमाणों से ज्ञात होता है यह पहले स्पष्ट किया ही है । इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि प्रत्यक्षादि किसी भी प्रमाण से सर्वज्ञ का अस्तित्व बाधित नही होता। अतः पहले उद्धृत 'यः सर्वाणि ' आदि आगमवाक्य अवाधित होने से प्रमाणभूत सिद्ध होता है।
१५. सर्वज्ञ सद्भावके प्रमाण-अब सर्वज्ञ के अस्तित्व में साधक प्रमाणों का विचार करते हैं। प्रत्यक्ष से सर्वज्ञ का ज्ञान नही होता इस
१ प्रत्यक्षानुमानागमोपमानार्थात्तयः। २ मीमांसकैरभिहितत्वात् । ३ कुतः शोभते अपि तु न शोभेत ।