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विश्वतत्त्वप्रकाशः
आशाधर के अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं - जिनयज्ञकल्प (सं. १२८५), त्रिषष्ठिस्मृतिशास्त्र (सं. १२९२), सागारधर्मामृत तथा उस की टीका ( सं, १२९६), अनगारधर्मामृत तथा उस की टीका (सं. १३००), अध्यात्मरहस्य, सहस्रनामस्तोत्र, आराधनाटीका, इष्टोपदेशटीका, क्रियाकलापटीका, अष्टांगहृदयंटीका, रुद्रटालंकारटीका, भूपालस्तोत्रटीका, अमरकोणटीका, नित्यमहोद्योत, राजीमती विप्रलम्भ तथा भरतेश्वराभ्युदय' ।
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६०. समन्तभद्र (द्वितीय) - विद्यानन्द की अष्टसहस्री के कठिन शब्दों पर समन्तभद्र ने टिप्पण लिखे हैं । अष्टसहस्री की एकमात्र मुद्रित आवृत्ति में ये टिप्पण अंशतः प्रकाशित हुए हैं । सम्पादक के कथनानुसार ये टिपण अशुद्ध, पुनरुक्तिपूर्ण तथा कहीं कहीं अनुपयोगी थे । अतः उन में से कुछ को छोड़कर सम्पादक ने स्वयं कुछ नये टिप्पण लिखे हैं । इसलिए टिप्पणकर्ता के समय अदि का निर्णय करना कठिन है। पं. महेन्द्रकुमार ने इन का समय तेरहवीं सदी अनुमान किया है ।
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६१. भावसेन - मूलसंघ-सेनगण के आचार्य भावसेन विद्य का विस्तृत परिचय पहले दिया ही है । तेरहवीं सदी के उत्तरार्ध में उन्हों ने कई ग्रन्थ लिखे । कातन्त्ररूपमाला तथा शाकटायनव्याकरण टीका इन दो व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त उन्हों ने आठ तर्क विषयक ग्रन्थ मी लिखे । इन के नाम इस प्रकार हैं- प्रस्तुत ग्रन्थ विश्वतत्त्वप्रकाश, प्रमाप्रमेय, सिद्धान्तसार, कथाविचार, न्यायदीपिका, न्यायसूर्यावली, भक्तिमुक्तिविचार तथा सप्तपदार्थोंटीका । इन क परिचय भी पहले दिया है।
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६२. नरचन्द्र – ये देवप्रभ के शिष्य थे । वैशेषिक दर्शन के विद्वान् श्रीधर की प्रसिद्ध रचना न्यायकन्दली पर इन्हों ने २५०० श्लोकों
१ ) आशाधर के विषय में पं. नाथूराम प्रेमी ने 'जैन साहित्य और इतिहास' में विस्तृत निबन्ध लिखा है ( पृ ३४२ - ५८ ) । २) चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ में 'जैन दार्शनिक साहित्य की पृभूमि' यह लेख (पृ. १७७ ) द्रव्य है । मृबिदुरे के एक आचार्य समन्तभद्र सन १४४५ में विद्यमान थे ( पहले प्रस्तुत ग्राथ की हुम्मच प्रति का विवरण दिया है वह देखिए ) । कारंजा के सेनगण के एक भट्टारक समन्तभद्र सत्रहवीं सदी में हुए थे ( भट्टारक सम्प्रदाय पृ. ३३ ) ।