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प्रस्तावना
जितने विस्तार को टीका लिखी है । उन के अन्य ग्रन्थ ये हैं – कथारत्नसागर, प्राकृतदीपिकाप्रबोध, अनर्घराघवटिप्पन, ज्योतिःसार, तथा चतुर्विशििजनस्तुनि । देवप्रभ के समयानुसार नरचन्द्र का समय भी तेरहवीं सदी में निश्चित है।
६३. अभयतिलक-ये जिनेश्वर के शिष्य थे। न्याय. दर्शन के पांच प्रमाणभूत ग्रन्थों-न्यायसूत्र पर वात्स्यायन का भाष्य, उद्योतकर का वार्तिक, वाचस्पति को तात्पर्य टीका, उदयन की तात्पर्यपरिशुद्धि टीका तथा श्री 0ठ का न्यायालंकार- पर इन्हों ने ५३०००' श्लोकों जितने विस्तार की 'पंचप्रस्थन्यायतर्कव्याख्या ' लिखी है। हेमचन्द्र के द्वयाश्रय का वृति यह उन की दूसरी कृीि है। जिनेश्वर के समयानुसार अभयलिक का समय भी तेरहवीं सदी का उत्तरार्ध सुनिश्चित है।
६४. मल्लिषेण-नागेन्द्रगच्छ के आचार्य उदयप्रभसूरि के शिष्य मल्लिषेण ने हेमचन्द्रकृत अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका पर स्याद्वादमंजरी नामक विस्तृत टीका लिखी है। यह टीका शक १२१४ (=सन १२९३) की दीपावली को पूर्ण हुई थी तथा इस में जिनप्रभसरि ने लेखक की सहायता की थी। इस का विस्तार ३००० श्लोकों जितना है। मूल स्तुति का विषय भगवान् महावीर को यथार्थवादी तथा अन्य दार्शनिकों को अयार्थवादी सिद्ध करना है। तदनुमार मल्लिषेण ने भी अन्य दर्शनों के वस्तुस्थितिविरोध को अच्छी तरह स्पष्ट किया है। विशेषतः सर्वथा नित्य या अनिय तत्व का अभाव, ईश्वर का अभाव, जीव के ज्ञानादि गुणों की स्वाभाविकता, वैदिक हिंसा का अनौचित्य, नित्य ब्रह्म व अकर्ता पुरुष का अभाव, शन्यवाद व क्षगिकवाद को अयुक्तता तथा स्याद्वाद एवं सप्तमंगी की आवश्यकता इन विषयों का विस्तार से वर्णन किया है। साथ ही प्राचीन आगम तथा समन्तभद्र व सिद्धसेनादि पूर्वाचायों के वचनों की संगति भी बतलाई है। सरल भाषा के कारण यह ग्रन्थ विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। . [काशन-१ मूल - सं. दामोदरलाल गोस्वामी - चौखम्बा संस्कृत सीरीज १९००, बनारस; २ मूल व हिंदी अनुवाद-जवाहरलाल