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विश्वतत्त्वप्रकाशः
. ४८. देवभद्र-ये मलधारी श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्हों ने न्यायावतार की सिद्धर्षिकृत टीका पर २९५३ श्लोकों जितने विस्तार के टिप्पण लिखे हैं। श्रीचन्द्रकृत संग्रहणीरत्न की वृत्ति यह इन की दूसरी रचना है। श्रीचन्द्र की ज्ञात तिथि सं. ११९३ = ११३७ (मुनिसुव्रतंचरित्र का रचनाकाल) है। अतः उन के शिष्य देवभद्र का समय बारहवीं सदी का पूर्वार्ध निश्चित है।
४९. यशोदेव-ये देवभद्र के समकालीन तथा सहकारी लेखक थे। प्रमाणान्तर्भाव अथवा प्रत्यक्षानुमानाविकप्रमाणनिराकरण यह इन दोनों की कृति है। मीमांसक और बौद्धों के प्रमाण संबंधी मतों का इस में परीक्षण है। इस का एक हस्तलिखित सं. ११९४ = ११३८ में लिखा हुआ है । इस का एक अंश अपौरुषेयवेद निराकरण स्वतंत्र रूप से भी मिलता है। :: ५०. चन्द्रसेन- ये प्रद्युम्नसूरि तथा हेमचन्द्र के शिष्य थे। इन का ग्रन्थ उत्पादादिसिद्धि सं. १२०७ = ११५० में पूर्ण हुआ था। प्रत्येक द्रव्य में उत्पाद, व्यय तथा ध्रौव्य ये तीनों प्रक्रियाएं कसे होती हैं इस का चन्द्रसेन ने विस्तार से समर्थन किया है। इस पर उन ने स्वयं टीका भी लिखी है।
[प्रकाशन-ऋषभदेव केसरीमल प्रकाशन संस्था, रतलाम ] . ..., ५१. रामचन्द्र-हेमचन्द्र के शिष्यवर्ग में रामचन्द्र का विशिष्ट स्थान था। राजा कुमारपाल के देहावसान के बाद गुजरात में धार्मिक देष के फलस्वरूप जैनों की बहुत हानि हुई- रामचन्द्र की मृत्यु भी उसी द्वेष के कारण हुई थी। उन का तर्क विषयक ग्रन्थ द्रव्यालंकार १०० श्लोकों जितने विस्तार का है तथा अभी अप्रकाशित है। द्रव्यों के स्वरूप के विषय में इस में चर्चा होगी ऐसा नाम से प्रतीत होता है। रामचन्द्र के अन्य ग्रन्थ ये हैं- सिद्धहेमव्याकरणन्यास, नाटयदर्पण, सत्यहरिश्चन्द्र, निर्भयमीमव्यायोग, राघवाभ्युदय, यदविलास, नल विलास,
१) प्रकाशन की सूचना सिद्धसेन के परिचय में देखिए ।