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विश्वतत्त्वप्रकाशः
में उल्लेख है । इस का रचनाकाल सं. ११०० = सन १०४३ है। इस के अनुसार माणिक्यनन्दि ग्यारहवी सदी के पूर्वार्ध में धारा नगरी में निवास करते थे तथा प्रभाचन्द्र के साक्षात गुरु थे। इन दो मान्यताओं में कौनसी अधिक उचित है यह प्रश्न अनुसन्धान योग्य है ।
प्रभाचन्द्र का प्रमेयकमलमार्तण्ड, अनन्तवीर्य की प्रमेयरत्नमाला, चारुकान का प्रभेयरत्नालंकार व शान्ति वर्णी को प्रमेयकण्ठिका ये चार टीकाएं परीक्षामुखपर लिखी गई हैं । इन का परिचय आगे यथास्थान दिया है।
[प्रकाशन :- (मल) १ सनातन ग्रन्थमाला का प्रथम गुच्छक १९०५ व १९२५, काशी; २ हिन्दी व बंगला अनुवाद सहित - पं. गजाधर लाल तथा सुरेंद्रकुमार, सनातन ग्रन्थमाला, १९१६, कलकत्ता; ३ इंग्लिश अनुवाद सहित - शरच्चन्द्र घोषाल, सेक्रेड बुक्स ऑफ दि जैनज, लखनऊ १९४०; टीकाओं के प्रकाशनों की सूचना आगे यथास्थान दी है।]
३१. सिद्धर्षि- सिद्धसेन के न्यायावतार की पहली उपलब्ध टीका सिद्धर्षि की है। न्यायावतार के बाद अकलंक ने परोक्ष प्रमाण के स्मृति आदि पांच भेद स्थिर किये थे। उस के स्थान में न्यायावतारप्रणीत अनुमान तथा आगम इन दो भेदों का सिद्धर्षि ने समर्थन किया है। चन्द्र केवलीचरित्र, उपदेशमालाविवरण तथा उपमितिभप्रपंचा कथा ये मिद्धर्षि के अन्य ग्रन्थ हैं । उपमितिभवप्रपंचा कथा की रचना सं. ९६२ = सन ९०६ में हुई थी। अतः दसवीं सदी का पूर्वार्ध यह सिद्धर्षि का समय है । वे दुर्गस्वामी के शिष्य थे। www...ixwwwwrna
१) आप्तपरीक्षा प्रस्तावना पृ. ७ में पं. दरबारीलाल । २) प्रभाचन्द्र क समय पहले ९ वीं सदी का पूर्वार्ध माना जाता था अतः माणिक्य-दि भी उसी समय में माने गये थे। यह मान्यता स्पष्टतः गलत सिद्ध हो चुकी है। ३) प्रभाव चरित में सिद्धर्ष तथा माघ (शिशुपालवध के कता) चचेरे भाई थे ऐसा वर्णन है किन्तु यहस्पष्टतः गलत है । माघ का समय सातवीं सदी का उत्तरार्ध सुनिश्चित है अतः वे सिद्ध से दोसौ वर्ष पहले हुए थे।