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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ...........................................................
५. ज्ञानप्रवाद पूर्व - इसमें मतिज्ञान आदि ज्ञान के ५ भेदों का वर्णन है। ६. सत्य प्रवाद पूर्व - इसमें सत्यरूप संयम अथवा सत्यवचन का विस्तृत विवेचन है। . ७. आत्म प्रवाद पूर्व - इसमें अनेक नय तथा मतों की अपेक्षा से आत्मा का वर्णन है।
८. कर्म प्रवाद पूर्व - इसमें आठ कर्मों का प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश आदि भेदों के द्वारा विस्तृत वर्णन किया गया है।
६. प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व - इसमें प्रत्याख्यानों का भेद प्रभेद युक्त वर्णन है।
१०. विद्यानुप्रवाद पूर्व - इस पूर्व में विविध प्रकार की विद्याओं तथा सिद्धियों का वर्णन है।
- ११. अवन्ध्य पूर्व - इस पूर्व में ज्ञान, तप, संयम आदि शुभ फल वाले तथा प्रमाद आदि अशुभ फल वाले अवन्ध्य अर्थात् निष्फल नहीं जाने वाले कार्यों का वर्णन है। .. . १२. प्राणायुष्प्रवाद पूर्व - इसमें दश प्राण और आयु आदि का भेद प्रभेद पूर्वक विस्तृत
वर्णन है। | १३. क्रियाविशाल.पूर्व - इसमें कायिकी, आधिकरणिकी आदि क्रियाओं तथा संयम में उपकारक क्रियाओं का वर्णन है।
१४. लोक बिंदु सार पूर्व - संसार में श्रुतज्ञान में जो शास्त्र बिंदु की तरह सबसे श्रेष्ठ . है वह लोक बिंदु सार पूर्व है। ___ ऐसे आर्य सुधर्मा स्वामी के चंपा नगरी में पधारने पर नगर की श्रद्धालु जनता उनके दर्शनार्थ एवं धर्मोपदेश सुनने के लिये आई और धर्मोपदेश सुन कर, उसे हृदय में धारण कर चली गई।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू णामं अणगारे सत्तुस्सेहे जहा गोयमसामी तहा जाव झाणकोट्ठोवगए विहरइ॥३॥
कठिन शब्दार्थ - सत्तुस्सेहे - सात हाथ प्रमाण शरीर वाले, झाणकोट्ठोवगए - ध्यान रूप कोष्ठ को प्राप्त हुए।
भावार्थ - उस काल में और उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी के शिष्य आर्य जम्बूस्वामी जो सात हाथ प्रमाण शरीर वाले थे। जिस प्रकार गौतम स्वामी का वर्णन है उसी प्रकार के आचार को धारण करने वाले यावत् ध्यान रूप कोष्ठ को प्राप्त हुए आर्य जम्बू नामक अनगार विचर रहे थे। . .
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