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प्रथम अध्ययन - सुधर्मा स्वामी का पर्दापण
सोय-णाणदसण चरित्ते ओराले घोरे घोरव्वए घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढ सरीरे संखित्त विउल तेउल्लेसे...... -
अर्थात् आर्य सुधर्मा स्वामी जातिसंपन्न (जिसका मातृपक्ष निर्मल हो) कुल संपन्न (उत्तम पितृपक्ष), बल संपन्न, रूप संपन्न, विनय वाले, चार ज्ञान सहित, क्षायिक समकित युक्त, चारित्र संपन्न, लाघव संपन्न - द्रव्य से अल्प उपधि वाले और भाव से ऋद्धि, रस और साता रूप तीन गौरव से रहित, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, क्रोध, मान, माया और लोभ को जीतने वाले, इन्द्रिय विजेता, निद्रा के विजेता, परीषहों को जीतने वाले, जीने की आशा तथा मृत्यु के भय से रहित, तप प्रधान-उत्कृष्ट तप करने वाले, गुणप्रधान-उत्कृष्ट संयम गुण वाले, पिण्डशुद्धि आदि करण सत्तरी प्रधान, महाव्रत आदि चरणसत्तरी प्रधान, निग्रह प्रधानअनाचार में प्रवर्तित नहीं होने वाले, निश्चय-तत्त्व का निश्चय करने में उत्तम, आर्जव, मार्दव, लाघव, क्षमा आदि गुणों से युक्त, गुप्ति और मुक्ति-निर्लोभीपन में श्रेष्ठ, विद्या और मंत्र में कुशल, ब्रह्मचर्य की साधना में कुशल, वेद, नय और नियम प्रधान, सत्य, ज्ञान, दर्शन और चारित्र में श्रेष्ठ उदार, घोरव्रत-दूसरों के लिये जिन व्रतों का अनुष्ठान दुष्कर प्रतीत हो ऐसे विशुद्ध महाव्रतों को पालने वाले, घोर तपस्वी-उग्र तपस्या करने वाले, घोर ब्रह्मचर्यवासी-उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य के धारक, उज्झित शरीर-शरीर के सत्कार-श्रृंगार से रहित और संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या के धारक आदि गुणों से युक्त थे।
चउद्दसपुल्वी - चतुर्दशपूर्वी-आर्य सुधर्मा स्वामी चौदह पूर्वो के पूर्ण ज्ञाता थे।
तीर्थ का प्रवर्तन करते समय तीर्थंकर भगवान् जिस अर्थ का गणधरों को पहले पहल उपदेश देते हैं अथवा गणधर सर्वप्रथम जिस अर्थ को सूत्ररूप में गूंथते हैं उसे 'पूर्व' कहते हैं। नंदीसूत्र में चौदह पूर्वो के नाम और अर्थ इस प्रकार दिये हैं - ___ १. उत्पाद पूर्व - इस पूर्व में सभी द्रव्य और सभी पर्यायों के उत्पाद को लेकर प्ररूपणा की गई है। .
२. अग्रायणीय पूर्व - इसमें सभी द्रव्य, सभी पर्याय और सभी जीवों के परिमाण का वर्णन है। २. ३. वीर्यप्रवाद पूर्व - इसमें जीवों और अजीवों की शक्ति का वर्णन है।
४. अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व - संसार में धर्मास्तिकाय आदि जो वस्तुएं विद्यमान हैं तथा आकाश. कुसुम आदि जो अविद्यमान है उन सब का इस पूर्व में वर्णन है।
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