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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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अर्चना - कितना प्यारा शब्द है । श्रर्चना का अर्थ है पूजा सेवा भाव और भक्ति । कुल मिलाकर यह कहना होगा कि काश्मीर-प्रचारिका, प्रकाण्ड पंडिता, विद्या, विनय, विवेक की मंगल मूर्ति, मालवज्योति, प्रवचन शिरोमणि, अध्यात्म योगिनी, परम विदुषी, श्रमणीरत्न, श्री उमराव कुंवरजी म. प्रर्चना भी सफल साधिका हैं। खादी के परिधानों में प्रथम बार दर्शक का मन मोह लेती हैं । दर्शक बार-बार दर्शन करने की तमन्ना रखता । गुरुदेव की साध्वी समाज में श्राप श्री का गौरवपूर्ण स्थान है । प्रापके प्रवचन में सभी के हृदयों को आकर्षित करने का एक जादू है । श्रापने कश्मीर तक पैदल यात्रा की एवं धर्म का प्रचार-प्रसार किया । अपने उपदेशों से अनेक व्यक्तियों के जीवन को बदला ।
आपके प्रवचन रोचक एवं सारगर्भित होते हैं । शब्दों में किसी प्रकार का कोई प्राडम्बर नहीं । सुन्दर व रोचक शिक्षाप्रद प्रबोधन मन को छू जाता है । सतीजी म. के जीवन में अनेक विशेषताएँ हैं, जो सभी जानते हैं । आपके संयमी जीवन से सभी परिचित हैं । हम शासनदेव से प्रार्थना करते हैं कि प्रापका कुशल नेतृत्व श्रमण संघ, समाज, देश व राष्ट्र को मिलता रहे । आप अपने प्रवचन - पीयूष धारा से प्रशांत जनमानस को शांति का मार्ग प्रदान करें। मैं सतीजी म. सा का दिल की अनन्त अनंत गहराइयों के साथ भाव भरा अभिनंदन करता हूँ ।
अदम्य उत्साह के धनी : श्री अर्चनाजी गुजरात-केसरी श्री गिरीशमुनिजी
प्रसन्नता की बात कि कश्मीर-प्रचारिका, पंडिता श्री श्री उमरावकुंवरजी "अर्चना " महाराज संयम जीवन की अर्धशताब्दी सफल कर चुकी हैं ।
मेरा सतीजी से व्यक्तिगत परिचय नहीं है किन्तु उनके साहित्य से अवश्य परिचित हूँ ।
मानवजीवन की अनमोल सम्पत्ति संयम साधना है । जो व्यक्ति अध्यात्मजीवन के कई शिखरों को पार कर लेता है उस गुणसम्पदा - विभूषित पुण्यात्मा की गुणस्तवना करना एक कर्तव्य बन जाता है ।
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श्री अर्चनाजी के अध्यात्मयोग सम्पुष्ट जीवन के बहुमानार्थ मैं गुजरातवासी क्या
लिखूं ?
अध्यात्मजगत् की परम साधिका महासतीजी का जीवन सुषमित सुरभित शतदलीय है । उसके पत्र-पत्र पर संयम साधना की ऋजुता का दर्शन होता है जो सहजानुभूतिपरक है । उनकी त्रियोगी साधना स्वरूप संवरता योगानुभूति परक है जो अनुकरणीय है ।
प्रापकी ज्ञान-दर्शन- चारित्र की रमणता दिव्यानुभूतिपरक है जो प्राचरणीय है । प्रवचन शिरमणि मालवज्योति के दीक्षा-स्वर्णजयन्ती के सुअवसर पर श्रान्तर की बधाई के साथ अभिनन्दन करते हैं ।
सतीजी तुम जियो वर्ष हजार । लोकोपकार के दिन हों दश हजार ॥
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अर्चनार्चन / १६
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