Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तक
अयोग हो जायगा । ज्ञेयके विना ज्ञान किसको जानेगा । बौद्धजन विकल्प ज्ञानके विषयभूत पदार्थोको असम्भव मान बैठे हैं, उसपर हमारा यह कहना है कि विकल्पज्ञानोंके विषय बन रहे सभी विषय असम्भव रहे ही हैं, यह तो नहीं समझना । क्योंकि वास्तविक सम्भव रहे भी पदार्थको विकल्प ज्ञानोंकी विषयता वन रही है, जैसे कि प्रत्यक्षज्ञानका विषयभूत पदार्थ परमार्थरूपसे सम्भव रहा है, इसपर बौद्ध अनुमान बनाकर आक्षेप करते हैं कि सम्पूर्ण विकल्पज्ञान ( पक्ष ) असम्भव हो रहे विषयोंको जान बैठे हैं ( साध्य ) विकल्पना होनेसे ( हेतु ) मनमें राजापना, इन्द्रपन, आदिकी विकल्पनाओंके समान ( अन्वय दृष्टान्त ) यों करनेपर तो आचार्य महाराज भी कटाक्ष करते हैं कि संपूर्ण प्रत्यक्ष ( पक्ष ) असम्भव हो रहे विषयोंको जान रहे हैं ( साध्य ) प्रत्यक्षपना होनेसे ( हेतु ) सीपमें हुये चांदीके ज्ञान या मृगतृष्णामें हुये जलज्ञान आदि भ्रान्त प्रत्यक्षोंके समान (अन्वयदृष्टान्त) यह व्यवस्था भी क्यों नहीं बन जावेगी ? अर्थात्-एक झूठे विकल्पको लेकर यदि सभी विकल्प ज्ञानको अपरमार्थभूत माना जायगा तब तो कुछ मिथ्या प्रत्यक्षोंको दृष्टान्त बनाकर सभी सच्चे, झूठे, प्रत्यक्षोंको निरालम्ब साध दिया जायगा । एक कनैटाके सदृश सभी प्राणी कनैटा हो जायंगे ? यदि बौद्ध यों कहे कि प्रत्यक्षके समान दीख रहा झूठा प्रत्यक्षाभास तो असम्भव रहे विषयको जान रहा देखा गया है, किन्तु समीचीन प्रत्यक्ष तो असम्भव विषयवाला नहीं है । उसका विषय तो वस्तुभूत स्वलक्षण है, तब तो हम जैन भी कह देंगे कि झूठा विकल्प ज्ञानाभास तो असम्भव रहे विषयका ग्राहक है। हां, समीचीन विकल्पज्ञान नहीं । प्रमाणात्मक विकल्पज्ञानका विषय तो परमार्थभूत सम्भव रहा है । इस प्रकार तुम्हारा प्रत्यक्ष ज्ञानके लिये जो परिहार है वैसा ही हमारा विकल्पज्ञानोंके असम्भव विषयीपनके आरोपका परिहार समान कोटिका है, रेफ मात्र अन्तर नहीं । अतः समीचीन विकल्पज्ञानसे हुआ लक्ष्यलक्षणभाव वास्तविक ठहर जाता है।
कः पुनः सत्यो विकल्पः प्रत्यक्षं किं सत्यमिति समः पर्यनुयोगः । यतः प्रवर्तमानोर्थक्रियायां न विसंवाद्यते तत्सम्यक् प्रत्यक्षमिति चेत्, यतो विकल्पादर्थ परिछद्य प्रवर्तमानोर्थक्रियायां न विसंवाद्यते स सत्यमिति किं नानुमन्यसे ?
बौद्ध विद्वान् आचार्योंके प्रति सकटाक्ष प्रश्न करते हैं कि आप जैनोंने समीचीन विकल्पज्ञानका विषय परमार्थभूत कहा है, अतः यह बतलाओ कि जगत्में वह विकल्पज्ञान फिर सत्य कौनसा है ? यों पूंछनेपर तो हम जैन भी बौद्धोंसे पूछेगे कि तुम्हारे यहां वह कौनसा प्रत्यक्षज्ञान सत्य माना गया है जिसका कि विषय वस्तुभूत होय । इस प्रकार तुम्हारे उठाये हुये चोद्यके समान हमारा भी चोद्य तुम्हारे ऊपर समान रूपसे वैसाका वैसा ही लग बैठता है । उक्त चोद्यका यदि बौद्ध यह उत्तर कहें कि जिस प्रत्यक्षप्रमाणसे अर्थको जानता हुआ पुरुष अर्थक्रियाको करनेमें भूल चूक नहीं करता है, वह प्रत्यक्ष समीचीन बोला जाता है । अर्थात्-जैसे जलको जानकर यदि स्नान, पान, अवगाहनरूप क्रिया ठीक ठीक उतरे तो बह जलका प्रत्यक्ष समीचीन समझा जायगा और