Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
तथा अंतर्द्वीपोंमें उत्पन्न हुये म्लेच्छ हैं और उनसे न्यारे कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुये तिस प्रकार के दूसरे म्लेच्छ मनुष्य हैं । आदिमें कहे गये अंतद्वीपवासी म्लेच्छ तो लवण, कालोदधि, दोनों समुद्रों के भीतरले, बाहरले, उभय तटोंपर बने हुये छियानवें अंतद्वीपोंमें निवास कर रहे बखाने गये हैं ।
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म्लेच्छा द्विविधाः अंतद्वीपजाः कर्मभूमिजाश्च । तत्राद्यास्तावल्लवणोदस्योभयोरष्टचत्वारिंशत् तथा कालोदस्य इति षण्णवतिः ।
म्लेच्छ दो प्रकारके हैं । एक अंतद्वीपों में उत्पन्न हुये और दूसरे कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुये म्लेच्छ हैं । उन दोनों भेदोमें आदिमें कहे गये मनुष्य तो लवणसमुद्र के दोनों तटोंपर अडतालीस द्वीप और तिस ही प्रकार कालोदवि समुद्र के दोनों तटोंपर जलमें उभर रहे अडतालीस द्वीप यों छियानवे द्वीपों में निवास कर रहे हैं । एक एक द्वीपमें लाखों म्लेच्छ निवास करते हैं । भावार्थ - जंबूद्वीप की वेदीसे तिरछा चलकर आठ दिशा, विदिशाओं में लवण समुद्र में भीतर आठ अंतरद्वीप हैं और उनके बीच बीचमें आठ न्यारे द्वीप हैं एवं हिमवान् पर्वतके दोनों ओर, शिखरी पर्वतके दोनों ओर, दो विजयार्थीके दोनों ओर, यों आठ द्वीप अन्य भी हैं। लवण समुद्र के बाहरले पसवाडे में भी इसी प्रकार चौवीस द्वीप बन रहे हैं। दिशाओंमें बने हुये द्वीप तो रत्नवेदिकासे तिरछे पांचसौ योजन समुद्रमें घुसकर सौ योजन विस्तारवाले हैं तथा विदिशा और अंतरालों में बने हुये द्वीप तो जंबूद्वीपकी वेदीसे तिरछा साढे पांच सौ योजन जानेपर पचास योजन विस्तारवाले हैं। पर्वतोंके अंतमें जो द्वीप माने गये हैं वे छह सौ योजन समुद्र में उरलीपार और परलीपारसे घुसकर पच्चीस योजन विस्तारवाले निर्मित हैं । इसी प्रकार कालोदधि समुद्रमें भी अडतालीस द्वीप बने हुये हैं । अंतर इतना ही है कि धातकीखंड के हिमवान् पर्वत और उसके निकटवर्ती विजयार्ध दोनोंकी रेखाओं के अनुसार कालोदधिमें एक अंतरद्वीप है । इस ही रेखा अनुसार परली ओर एक द्वीप है यही दशा शिखरीपर्वत और उसके विजयार्धके संबधमें लगा लेना चाहिये । इन अंतर द्वीपोंमें पूंछवाले, सींगवाले, गूंगे आदि कई विकृत आकृतिओं को धार रहे म्लेच्छ मनुष्य निवास करते हैं । ये द्वीप जलतलसे एक योजन ऊंचे उठे हुये हैं । इन द्वीपोंको कुभोगभूमिमें भी कह दिया जाता
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है ते च केचिद्भोगभूमिसमप्रणिधयः परे कर्मभूमिसमप्रणिधयः श्रूयमाणाः कीदृगायुरुत्सेधवृत्तय इत्याचष्टे ।
तथा वेम्लेच्छ कोई कोई तो द्वीपवर्तिनी भोगभूमियोंकी समान रेखा अनुसार निकटवर्ती होरहे हैं। और कोई दूसरे अंतद्वीपवासी म्लेच्छ जो कि कर्मभूमियोंके निकटसमकोटीपर बने हुये अंतर्द्वीपोंमें निवास कर रहे सुने जा रहे हैं। किसीका प्रश्न है कि भला उनकी आयु या शरीर की ऊंचाई तथा प्रवृत्तियां किस प्रकारकी है ? ऐसी प्रतिपित्सा होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी अग्रिम वार्त्तिक द्वारा समाधान वचनका व्याख्यान करते हैं ।