Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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कथं पुनः पीतादयो लेश्यास्तदाधेयानां देवानां विज्ञेया इत्यावेद्यते ।
फिर उन कल्प और कल्पातीत अधिकरणों के आधेयभूत होरहे देवों के भला पीत आदि लेश्यायें हैं, यह किस प्रकार प्रमाण द्वारा समझ लेना चाहिये ? ऐसी जिज्ञासा होने पर श्रीविद्यानन्द आचार्य करके अग्रिमवार्तिक में समाधान का निवेदन किया जा रहा है ।
लेश्याः पीतादयस्तेषां सूत्रवाक्यप्रभेदतः ।
प्रत्येतव्याः प्रपंचेन यथागममसंशयं ॥ १ ॥
उन चौथी निकाय के वैमानिक देवों के पीतादि लेश्यायें हैं । इस सिद्धान्त की आगम मार्गका अतिक्रमण नहीं कर उक्त सूत्र के वाक्यों का प्रभेद कर देने से विस्तृतरूप करके संशयरहित प्रतीति कर लेनी चाहिये अर्थात् दो दो, तीन तीन, शेष शेष, यों उक्त सूत्र से कतिपय वाक्यों का उपप्लव कर आम्नाय अनुसार देवों के लेश्या का विधान कर लेना चाहिये ।
द्वयोः सौधर्मेशानयोः सानत्कुमारमाहेंद्रयोश्च पीतलेश्याः द्वयोर्ब्रह्मलांतवकल्पयोः शुक्रशतारकल्पयोश्च पद्मलेश्याः द्वयोरानतप्राणतयोरारणाच्युतयोश्च शुक्ललेश्याः, त्रिष्वधोarry त्रिषु मध्यमग्रैवेयकेषु त्रिषूपरिग्रैवेयकेषु च शुक्ललेश्याः । शेषेष्वनुदिशेषु पंचस्वनुत्तरेषु च शुक्ललेश्या इति सूत्रवाक्यप्रभेदतः प्रत्येतव्याः ।
प्रथम ही "द्विशब्द का पीत पद्म और शुक्ल इन तीन स्थानों के साथ तीन वार कथन कर यों भिन्न भिन्न वाक्यों को बनालो कि "द्वयोः पीतलेश्याः" दो युगलों में यानी सौधर्म और ऐशान तथा सानत्कुमार और माहेन्द्रकल्पों में वस रहे देव पीतलेश्यावाले हैं । फिर "द्वयोः पद्मलेश्याः” दो में अर्थात् दो इन्द्र युगलों द्वारा अधिकृत कल्पों की अपेक्षा दो में यानी ब्रम्हब्रम्होत्तर स्वर्ग वाले ब्रम्हकल्प में और लांतव कापिष्ठ स्वर्ग वाले लांतव कल्प में इसी प्रकार इन्द्र अपेक्षया शुक्र महाशुक्र स्वर्गवाले शुक्र कल्प या शुक्र इन्द्र अधिकृत जीवों और शतार, सहस्रार, स्वर्ग वाले शतार कल्प में इन दो में पद्म लेश्याधारी देव निवास करते हैं । पुनः ' द्वयोः शुक्ललेश्या: " अर्थात् आनत प्राणत तथा आरण और अच्युत इन दो युगलों में देव शुक्ललेश्यावाले हैं । अब त्रि शब्द की केवल शुक्ललेश्या के साथ तीन वार आवृत्ति कर यों न्यारे न्यारे तीन वाक्य बनालो । “ त्रिषु शुक्ललेश्या: " यानी तर ऊपर तीन निचले ग्रैवेयकों में देवों के शुक्ललेश्या है । और "त्रिषु शुक्ललेश्याः ' यानी तर ऊपर बने हुये तीन मध्यम ग्रैवेयकों में इनसे कुछ अच्छे शुक्ललेश्याः वाले देव हैं तथा “ त्रिषु शुक्ललेश्या " अर्थात् तर ऊपर बने हुये तीन उपरिम ग्रैवेयकों में इस शुक्ललेश्या से कुछ अच्छी शुक्ललेश्या को धारनेवाले देव हैं । अथानन्तर शेष शब्द का शुक्ललेश्या के साथ दो बार आवृत्ति कर शेष अनुदिशविमानों में और शेष पांच अनुत्तर विमानों में निवास कर रहे देव शुक्ललेश्या वाले
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