Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिके
सूत्रकारके व्यर्थ सारिखे पडे हुये शब्द न जाने किन किन अनेक अर्थों का ज्ञापन करते हैं। भावार्थ-यह उत्कृष्ट स्थिति इन्द्र प्रतोन्द्र आदि देवोंको है। सौधर्म ऐशान स्वर्गके देवोंकी देवियोंकी स्थिति तो " साहियपल्लं अवरं कप्पदुगित्थोण पणग पडमवरं । एक्कारसे चउक्के कप्पे दो सत्तपरिवड्ढी" इस त्रिलोकसारको गाथा अनुसार प्रथम युगल सम्बन्धी देवियों की जघन्य आयु साधिक पल्य है और सौधर्म देवियोंकी उत्कृष्ट आयु पांच पत्य एवं ऐशानमें सात पल्य है। सोलहवें स्वर्गमे देवियोंकी आयु पचपन पल्य है । "दक्षिण उत्तर देवी सोहम्मीसाग एव जायते । तद्देवीओ पच्छा उपरिम देवा णयन्ति सगठाणं"। दक्षिण उत्तर बारह कल्पोंमें रहनेवाले कल्पवासी देवोंकी देवियां सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में ही उपजती है। पीछे उन देवियोंको नियोग अनुसार ऊपरले देव अपने अपने स्थानका ले ज.ते हैं। .
____ अब श्री उमास्वामी महाराज दूसरे कल्प युगलको स्थितिको विशेषतया समझानेके लिये अग्रिम सूत्रको कहते हैं।
सानत्कुमारमाहेंद्रयोः सप्त ॥ ३०॥
सानत्कुमार और माहेंद्र नामक तीसरे, चौथे, स्वर्गोमें निवास कर रहे देवोंको उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक सात सागर की हैं । घातायुष्क सम्यग्दृष्टिकी अपेक्षा आधा सागर आयु अधिक हो जाती है। यह यवस्था सौधर्म से लेकर सहस्रार पर्यन्त तक समझनी चाहिये । उसके ऊपर घातायुष्क जीव उपज नहीं पाता है।
अधिकारात् सागरोपमाधिकानि चेति संप्रत्ययः । ___ अधिकार चला आरहा होनेसे सागरोपम और अधिक शब्दोंकी अनुवृत्ति हो जाती है। इस कारण सानत्कुमार और माहेन्द्रों में कुछ अधिक सात सागरोपम उत्कृष्ट आयु है। यह समीचीन प्रत्यय हो जाता है । " अर्थवशात् विभक्तेविपरिणामः " इस नीतिके अनुसार यहाँ " सागरोपम " और " अधिक " पदोंको बहुवचनान्त कर लिया जाता है ।
श्री उमास्वामी महाराज ब्रह्मलोक स्वर्गसे आदि लेकर अच्युत पर्यन्त स्वर्गोमें निवास कर रहे देवोंकी उत्कृष्ट स्थितिको समझाने के लिये अग्रिम सूत्रको कहते हैं। त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपंचदशभिरधिकानि तु ॥३१॥
___ ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, स्वर्गोंमें तीनसे अधिक हो रहे सात सागर यानी दस सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । लान्तव और कापिष्ठ स्वर्गों में सात करके अधिक हो रहे सात सागर यानी चोदह सागरकी स्थिति है । शुक्र महाशुक्र में नौ सागरसे अधिक हो रहे सात सागर यानी सोलह सागरकी आयु है । शतार सहस्रार स्वर्गो में ग्यारह सागरसे अधिक होरहे सात सागर अर्थात् अठारह सागरकी स्थिति है। यहांतक अधिक शब्दका अधिकार चला आ रहा है। अत: