Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
अव्यवहित पूर्व म उपात्त हो रहे हैं । " व्यवहिताव्यवहितयो रव्यवहितस्यैव ग्रहणं " इस परिभाषा अनुसार कल्पोंमें ही स्थिति आदिकसे अधिकता और गति आदिकसे हीनता तथा दो तीन शेषोंमें पीत्रपद्मशुक्ललेश्याका विधान होसकेगा। सौधर्मको आदि लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त सम्पूर्ण वैमानिकों में उक्त तील सूत्रोंका अर्थ लागू नहीं हो सकेगा । इस कारण यहां इस सूत्र के कह देने से सब बखेडा मिट जाता है।
के पुनः कल्पातीता इत्याह ।
सूत्रकारने कल्पों का तो कण्ठोक्त निरूपण कर दिया है। किन्तु कल्पातीत देवों की प्रतिपत्ति कराने के लिये सूत्र नहीं रचा है। अत: यह बताओ कि फिर वे कल्पातीत देव कौनसे हैं ? इस प्रकार जिज्ञासा होने पर ग्रन्यकार वात्तिकको कहते हैं ।
कल्पाः प्रागेव ते बोध्या वेयकविमानतः। तदादयस्तु सामथ्यात् कल्पातीताः प्रतीतितः॥१॥
इस सूत्र का अर्थ यह है कि ग्रेवेयक विमानसे पहिले ही वे कल्प रच रहे समझ लेने चाहिये। हां, बिना कहे ही शब्दसामर्थ्य से यह प्रतीत होजाता है कि उन ग्रेवेयकों को आदि लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त स्थान तो कल्पातीत हैं।
ननु च परिशेषाद्मवेयकादीनां कल्पातीतत्वसिद्धौ भवनवास्यादीनां कल्पातीतत्वप्रसंग इति चेन्न, उपर्युपरीत्यनुवर्तनात् ।
__यहां कोई प्रतिवादी आशंका उठाता है कि परिशेषन्यायसे यदि ग्रेवेयक आदिकों के कल्पातीतपन की सिद्धि की जायगी, तब तो भवनवासी आदिकों को भी कल्यातीतपने का प्रसंग आता है । सो यह स्वर्ग या बारह कल्पोंसे शेष बच रहे देव तो अहमिन्द्रों के समान भवनवासो, व्यन्तर, ज्योतिष्क,देव भी हैं । आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि 'उपर्युपरि' इस पदको अनुवृत्ति होरही है । अर्थात् आर ऊपर वैमानिक देवोंके लिये उक्त पांच सूत्रोंका सम्बन्ध किया जाता है । नीचे के भवनवासी आदिकों का ग्रहण नहीं है। इस कारण अहमिन्द्र देव ही कल्पातीत हैं।
सूत्रकार के प्रति किसी का प्रश्न उठ सकता है कि तब तो लौकान्तिक देव वैमानिक देव होरहे सन्ते भला किन कल्पोपन्न या कल्पातीत देवोंमें ग्रहण किये जायेगे ? इस प्रकार प्रश्नके उत्तर में सूत्रकार अग्रिम सूत्र को कहते हैं
ब्रह्मलोकालया लोकांतिकाः ॥२४॥
पांचवे स्वर्ग ब्रम्हलोक में निवास स्थान कर रहे लौकान्तिक देव हैं अर्थात् पांचवे स्वर्ग में निवस रहे लौकान्त्रिक देव कल्पोपहन हैं।