Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 618
________________ ६०६ तत्वार्थलोकवार्तिके नव अनुदिश हैं । यहां दिश शब्दयी अनुपदके साथ पूर्वपदके अर्थको प्रधान रखनेवाली समासवृत्ति कर दी गई है । दिश् शब्दका शरदादि शब्दोंमें पाठ होनेसे " अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः " इस सूत्र करके यहाँ समासान्त टच कर दिया जाता है । अथवा आकारान्त दिशा शब्दका सद्भाव होनेसे "अव्ययीभावश्च और नपोऽयो हस्यः" सूत्रोद्वारा अनुदिश शब्द बनाया जा सकता है। उन अनुदिश विमानोंके सहचरपनेसे इन्द्र भी अनुर्दिश कहे जाते हैं और वे अनुदिश विमान अवेयकों के ऊपर एक पटलमें नौ हैं। यों आर्षशास्त्रोंद्वारा ज्ञात किया जा रहा है। नवसु शब्दका अवेयकोंमें एक वार अन्वय कर पुनः आवृत्त किये गये दूसरे नबसुका अर्थ नौ अनुदिश त्रिमान कर लिया जाता है । " व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिर्न हि सन्देहादलक्षणं"। ननु च सौधर्मेशानयोः केषांचिदप्युपरिभावाभावादव्यापकतोपरिभाक्स्य स्पादित्या. शंकायामिदमाह। यहां किसीकी शंका है कि " उपरि उपरि ” शब्द षष्ठ्यन्त पदकी अपेक्षा रखता है । अतः सनत्कुमार, माहेन्द्र, आदिको सौधर्म, ऐशान के ऊपर ऊपरपना एवं नीचे नीचेके विमानोंसे ऊपर ऊपरपना सर्वार्थसिद्धितक सुलभतया घट जाता है। किन्तु सबसे नीचे के सौधर्म और ऐशानको किन्हींके भी ऊपर ठहरनेका अभाव हो जानेसे ऊपर ऊपर सद्भावकी सर्वत्र वैमानिकोंमें व्यापकता नहीं हो सकी ? इस प्रकार आशंका होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी अग्रिम वार्तिक द्वारा इस. समाधानको कहते हैं। सौधर्मेशानयोर्देवा ज्योतिषामुपरि स्थिताः। नोपर्युपरिभावस्य तेनाव्यापकता भवेत् ॥ १॥ जब कि सौधर्म और ऐशानमें रहनेवाले देव ज्योतिषियों के ऊपर व्यवस्थित हो रहे हैं । तिस कारणसे ऊपरले ऊपरले भागोंमें ठहरनेके परिणामकी अव्यापकता नहीं होवेगी । ज्योतिष्क विमानोंसे अठानवे हजार एक सौ चालीस ९८१४० योजन और बालान ऊपर सौधर्म ऐशान विमान व्यवस्थित है । अर्थात्---ज्योतिष्क विमानोंकी अपेक्षा वैमानिकोंके त्रेसठ पटलोका ऊपर ऊपर वर्तना सर्वत्र व्याप जाता है । यद्यपि ज्योतिष्कोंमें भी समतल चित्रा भूभाग के ऊपर सात सौ नव्वे ७९० योजनसे प्रारम्भ कर ९०० योजनतक एक सौ दस ११० योजनोंमें ज्योतिष्फोंका तारे, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्रमण्डल, बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल, शनि, इस नाम अनुसार ऊपर ऊपर वर्तना पाया जाता है । फिर भी हमें यहां वैमानिकों के ऊपर ऊपर कथन प्रकरणमें ज्योतिष्कोंका धसीटना अभीष्ट नहीं हो रहा है। अव्यापकताका समूल उच्छेद करने के लिये उदारोदर ( बडा पेट ) नीति अनुसार ज्योतिष्कोंका भी ऊपर ऊपर ठहरना बढ़ा कर लिख दिया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702