Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्यचिन्तामणिः
४५१
वैशेषिक ही कहते जा रहे हैं कि तिसी प्रकार यानी उक्त नित्य द्रव्योंके समान नित्य गुण पदार्थ भी पक्ष नहीं किये गये हैं । गुण भी अनित्य ही घटरूप, इक्षुरस, पुष्यगन्ध, अग्निस्पर्श, आदि धर्मी पकडे गये हैं । किन्तु फिर अन्त्य विशेषोंके साथ एकार्थ समवायसम्बन्ध करके वर्त रहे नित्य गुण पदार्थको धर्मी नहीं किया गया है। अर्थात् — जिन दो गुणोंकी एक अर्थ में समवाय सम्बन्धसे वृत्ति होती है सहोदर भाइयों के एकोदरत्व सम्बन्ध समान उन दो गुणोंका परस्परमें सम्बन्ध एकार्थ समवाय माना गया है । नित्य द्रव्योंमें विशेष पदार्थ समवाय सम्बन्धसे रहता है । और वहां ही नित्य द्रव्यके गुण रहते हैं । अतः उन गुणोंमें और विशेष पदार्थमें परस्पर एकार्थ समवाय सम्बन्ध हुआ नित्य द्रव्यमें रहनेवाले नित्य गुणों को बुद्धिमान् हेतुसे जन्य साध्य करनेपर पक्षमें नहीं धरा गया है। यहां इतना विशेष समझ लेना कि नित्य द्रव्योंके कई गुण अनित्य भी हैं । जैसे कि संसारी आत्माके ज्ञान, इच्छा, सुख, दुःख, आदि गुण अनित्य हैं । आकाशका शब्दगुण अनित्य है 1 मनका संयोग गुण अनित्य है । नित्य द्रव्यके इन अनित्य गुणों को तो पक्षकोटि में डाल दिया गया है । जो गुण नित्य होकर नित्य द्रव्योंमें समवायसम्बन्धसे ठहर रहे हैं ऐसे परममहापरिमाण, आकाश, काल, आदिकी न्यारी न्यारी एकत्व संख्यायें, एक एक नित्य द्रव्यमै न्यारे न्यारे वर्त रहे पृथक्त्व गुण, जलकी परमाणुओं में ठहर रहे गुरुत्व और स्नेहगुण तथा जल, तेज, वायुओंकी परमाणुओंमें पाये जा रहे रूप, रस, स्पर्श, आदि स्वरूप गुण तो धर्मी नहीं हैं। हां, घटमें रहनेवाले परिमाण, एकत्व संख्या, पृथक्त्व, गुरुत्व, रूप, रस, आदि अनित्य गुण तो पक्षमें धर लिये गये हैं । अवयवी जलका स्नेह गुण भी अनित्य है । पीलुपाकवादी विद्वान् पृथिवीके परमाणुओंमें अग्निसंयोग द्वारा पाक होनेको स्वीकार करते हैं । अतः पृथिवी के परमाणुओंनें पाये जानेवाले रूप, रस, आदि गुण अनित्य हैं । अतः ये पक्षकोटि में हैं । तथा आद्य स्यन्दनका असमवायी कारण हो रहा द्रवत्वगुण भी परमाणुओंमें वर्त रहा नित्य है । घृत, लाक्षा, मौम, आदि कार्योंको बनानेवाली पृथिवी परमाणु या तैजस सुवर्णको बनानेवालीं तैजस परमाणुओं में अथवा सम्पूर्ण जल परमाणुओं में पाया जानेवाला द्रव्यत्व गुण नित्य है । हां कार्यद्रव्य होरहे लाख रंग, आदिके द्रवत्व गुण अनित्य हैं नित्य द्रवगुण तो पक्षकोटि नहीं है । तथा अमूर्त द्रव्यों का संयोग भी पक्ष नहीं है । क्योंकि आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन इन अजद्रव्यों का संयोग नित्य है । नित्य परमाणुगुणों का संयोग तो अनित्य माना गया है । क्योंकि कारणवश विघट जाता है । अतः अमूर्त द्रव्यों के संयोग को छोडकर अन्य सम्पूर्ण संयोगोंको पक्ष बनालो, इसी प्रकार उन आधारभूत अनित्य द्रव्योंमें वर्त रहा इतरेतराभाव भी नित्य है । कतिपय वैशेषिक पण्डित एक कर्मोद्भव, द्वयकर्मजन्य, विभागजन्य, इन तीनों प्रकारके विभागों को अनित्य ही मानते हैं । किन्तु संसारी आत्मामें चौदह गुण माने गये हैं । तथा "संख्यादिपञ्चकं बुद्धिरिच्छा यत्नोऽपि चेश्वरे । परापरत्वे संख्यादि पञ्च वेगश्च मानसे ॥
1
"
इन कारिकाओं द्वारा नित्य द्रव्यों में भी विभाग माना