Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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कर दिया है। अथवा इस वार्षिकको अनुमान वाक्य बना लिया जाय कि उक्त चार सूत्रों द्वारा निवास आदिकी विशेषता करके ज्योतिष्क देवोंका चितवन करना ( पक्ष ) युक्ति पूर्ण है ( साध्य ) । बाधक प्रमाणोंका विशेषतया वर्जन होनेसे ( हेतु ) यों बाधकोंका असम्भव होनेसे उक्त सूत्रोंके अती*न्द्रिय प्रमेयकी अप्रतिहतसिद्धि हो जाती है ।
श्री उमास्वामी महाराज देवोंकी आदिम तीन निकायका वर्णन कर चुके हैं। अब चौथी निकायवाले देवोंकी सामान्यसंज्ञाका प्ररूपण करनेके लिये अधिकार सूत्रको कहते हैं ।
वैमानिकाः ॥ १६ ॥
इससे आगे जिन पुण्यवानू जीवों का वर्णन किया जायगा, वे " वैमानिकनिकायवाळे देव हैं।" अधिकार सूत्र है।
स्वान्मुकृतिनो विशेषेण मानयंतीति विमानानि तेषु भवा वैमानिकाः । परेपि वैमानिकाः स्युरेवमिति चेन, वैमानिकनामकर्मोदये सति वैमानिका इति वचनात् । तेन श्रेणी - प्रकपुष्पप्रकीर्णकभेदात् त्रिविधेषु विमानेषु भवा देवा वैमानिकनामकर्मोदयाद्वैमानिका इत्यधिवा बेदितव्याः ।
विमान शद्वकी निरुक्ति इस प्रकार है कि स्वसम्बन्धी यानी अपने में बैठे हुये पुण्यशाली जीवका " वि " यानी विशेषरूपकरके " मानयंति " यानी मान कराते हैं, इस कारण वे विमान कहे जाते हैं। जन विमानोंमें उपज रहे देव जीव वैमानिक हैं। विमान शुद्धसे भव अर्थमें ठण् प्रत्यय कर लेना चाहिये । यदि यहां कोई पतियों अतिप्रसंग उठावे कि विमानोंनें तो भवनवासी आदि देव भी विचरते हैं। ज्योतिष्क देव तो सदा विमानों में ही बस रहे हैं तथा विमानोंमें विद्याधर मनुष्य या आजकालके उढाके मनुष्य भी विद्यमान हैं। यों इस निरुक्ति द्वारा तो ये दूसरे देव या मनुष्य भी वैमानिक हो जायेंगे। आचार्य कहते है कि यह तो नहीं कहना। क्योंकि गतिनामकर्मकी उत्तरोत्तर प्रकृति हो रहे वैमानिक संज्ञक नामकर्मका उदय होते सन्ते जो जीव विमानोंमें वर्तमान हैं वे वैमानिक हैं । ऐसा विशेषणाक्रान्त वचन कर देनेसे अतिव्याप्तिका वारण कर दिया जाता है। सिद्धान्त या न्यायविषयोंमें केवल शब्दकी निरुकिसे ही निर्दोष लक्षण नहीं बन जाता है। तिस कारण श्रेणी, इन्द्रक, पुष्पप्रकीर्णक, इन भेदोंसे तीन प्रकारके विमानों में विद्यमान हो रहे और वैमानिक नामक नामकर्मका उदय हो जानेसे वे देव वैमानिक हैं । इस प्रकार इस सूत्र द्वारा वे वैमानिक देव अधिकार प्राप्त हो चुके समझ लेने चाहिये। अर्थात् - यहांले आगे उत्तरवर्ती सूत्रों में सर्वत्र वैमानिकका अधिकार ओत पोत रहेगा। अखिलों के अधिपति होरहे इन्द्रके समान ठीक बीचमें भवस्थित होरहे विमान इंदक विमान है तथा आकाशके प्रदेशोंकी श्रेणी समान चारों दिशाओं में ठीक पंक्तिबद्ध होकर विन्यस्त हो रहे विमान श्रेणीविमान हैं।