Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्य लोकवार्तिके
जाता है । ऐसी दशामें जीव कर्मोदयके पराधीन नहीं हो सका । अतः प्रन्थकारने हेतुके विशेष्य दल कर्मोदय द्वारा हुई पराधीनतापर अधिक बल डाला है। कल्पातीत देवोंमें हेतुका विशेषण दल और विशेष्यदल दोनों भी नहीं घटते हैं। अधोत्रेयक तीन, मध्यौवेयक तीन और उपरिमौवेयक तीन यों ऊपर ऊपर वर्त रहे नौ मैत्रेयक सम्बन्धी देव तथा चार दिशाओं चार विदिशाओं और एक मध्यमें ठहर रहे, यो नौ अनुदिश विमान सम्बन्धी देव एवं विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि यों पांच अनुत्तर विमानवासी देव तो कल्पातीत हैं। क्योंकि गति कर्मके भेद, प्रभेद, हो रहे कल्पातीत नामक नाम कर्मका उदय होते सन्ते आत्म विपाकी कही गयी गति प्रकृतिकी अधीनता वश ये कल्पातीत देव हैं । भले ही इनमें अधः आदिपनेकी या नौ, नौ, पांच संख्यासहितपनेकी कल्पना है, तो भी प्रकरणमें इष्ट की गयी इन्द्र आदि दश प्रकारकी कल्पनाका विरह होनेसवे सब कल्पातीत है । क्योंकि भवनवासीपन, इन्द्रसामानिकपन आदि झगडोंसे रहित होते हुये वे कल्पातीत देव सबके सब अहमिन्द्र हैं । अहमेव इन्द्रः, अहमेव इन्द्रः, मैं ही इन्द्र हूं, मैं ही इन्द्र हूं, मेरे ऊपर कोई प्रभु नहीं है, यों उनकी आत्मामें सर्वदा प्रतिभास होता रहता है। अहमिन्द्रपनका विधातक वहां कोई प्रसंग भी नहीं है ।
वैमानिका विमानेषु निवासादुपवर्णिताः । द्विधा कल्पोपपन्नाच कल्पातीताश्च ते मताः॥१॥
पूर्ववर्ती अधिकार सूत्रको मिलाकर इस सूत्रका अर्थ यो होजाता है कि उन विमानों में निवास करनेसे वे देव वैमानिक कहे जाते हैं। तथा वे देव कल्पोपन्न और कल्पातीत यों दो प्रकार माने गये है। यह अर्थ सूत्रकारको अभीष्ट है । यद्यपि दश प्रकारकी कल्पना भवनवासी देवोंमें है और कल्पनासे अतीत मनुष्य तिर्यंच नारकी जीव भी हैं । फिर भी रूढिशर्के होनेसे या इन विशेष कर्माकी अधीनतासे अर्थघटना करनेमर कोई अतिव्याप्ति नहीं होती है।
न वैमानिकात्रिधा चतुर्धा वान्यथा वा संभाव्यते द्विविधेष्वेवान्येषामंतर्भावात ।
वैमानिक देव तीन प्रकार या चार प्रकार अथवा अन्य पांच, छह, विकल्प अन्य या पटलोंकी अपेक्षा प्रेसठ ६३ आदि अन्य प्रकारोंके नहीं सम्भावित होरहे हैं। क्योंकि इन दो प्रकारोंमें ही अन्य सम्पूर्ण समुचित प्रकारोंका अन्तर्भाव होजाता है।
वेच फयमवस्थिताः ?
वे कल्पोपन और कल्पातीत विमान या विमानवासी देव किस प्रकार अवस्थित होरहे हैं? . बताओ, ऐसी विनीत शिष्यकी जिज्ञासा होनेपर अनके विशेष अवस्थानोंको समझाते हुये श्री उमास्वामी महाराज अग्रिमसूत्रको कहते हैं।