Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वाचिन्तामणिः
हुयी है । इस कारण ये पूर्वपश्चिम समुद्रकी ओर वह जाती हैं । यों कहनेपर हमारा प्रश्न उठता है कि भूगोलका मध्य फिर कौनसा स्थान माना गया है ? बताओ । यदि तुम उज्जैनको भूगोलका मध्य कहोगे- जैसा कि “ सिद्धान्तशिरोमणि' में भूमध्य रेखाको कहते हुये लिखा है “ पल्लंकोज्जयिनीपुरोपरि कुरुक्षेत्रादिदेशान् स्पृशत् , सूत्र मेरुगतं बुधैर्निगदिता सा मध्यरेखा मुवः " ग्रन्थकार कहते हैं कि यह कहना तो ठीक नहीं पडेगा । क्योंकि उस उज्जैनसे तो गंगा, सिन्धु, आदि नदियोंकी उत्पत्ति कथमपि नहीं देखी जाती है । मालवदेशमें विराज रही उज्जैनसे कोई छोटी नदी भी नहीं उत्पन्न हुयी है । हां, ऊपरले प्रान्तसे आरही एक पतली शिप्रा नदी उज्जैन होकर अवश्य बह रही है । गंगा, और सिन्धुकी उत्पत्ति स्थान तो वहांसे सैकड़ों कोस दूर है । यदि तुम यों कहो कि जिस स्थानसे उन नदियोंकी उत्पत्ति होरही प्रतीत होती है वही स्थान भूगोलका मध्य है । ग्रन्थकार कहते है कि सो यह कहना तो अत्यधिक रूपसे व्याघातदोष युक्त हैं । गंगाके प्रभवस्थानको यदि मध्य माना जायगा तो सिन्धुनदीके आद्यप्रवाही स्थानके भूभागको जोकि उस गंगोत्तरीसे बहुत व्यवधान युक्त होरहा है, मध्यपनका विरोध होजायगा। भावार्थतिब्बतमें पडे हुये कैलाश पर्वत इस नामसे पुकारे जानेवाले स्थानसे क्षुद्रसिन्धु नदी निकलती है।
और हिमालयमें गंगोत्तरी पर्वतसे क्षुद्रगंगा नदी निकलती है। दोनों स्थानोंमें बीसों कोसका अन्तर है। इतने बडे अन्तरको ले रहे दो स्थानोंको पृथिवीका मध्यस्थान कहनवालोंके ऊपर व्याघातदोष आपडता है । हां, अपने अपने छहों ओर. फैले हुये बाह्यदेशकी अपेक्षा यदि इन दोनों प्रभव स्थानोंको मध्य माना जायगा तब तो कोई भी स्थान मध्यरहित नहीं हो सकता है । अपने अपने इधर उधर स्थानकी अपेक्षा सभी स्थल मध्य हो जायंगे । पृथिवीको चपटी या प्रान्तभागवाली माननेवालोंके यहां कुछ अन्तस्थान या आदि स्थान, उपरिम स्थान, नीचे स्थल भले ही अंमध्य स्वरूप मिल जांय, किन्तु पृथिवीको गोल माननेवालोंके यहां तो इस ढंगसे सभी मध्यस्थल बन बैठेंगे । दूसरी बात यह है कि यों माननेपर उजैनको पृथिवीका मध्य कहनेवालोंके यहां अपने स्वीकृत सिद्धान्तका परित्याग हुआ जाता है ।
तदपरित्यागे चोज्जयिन्या उत्तरतो नद्यः सर्वा उदङ्मुख्यस्तस्या दक्षिणतोऽवाङ्मुख्यस्ततः पश्चिमतः प्रत्यङ्मुख्यस्ततः पूर्वतः प्रामुख्यः प्रतीयेरन् , भूम्यवगाहभेदानदीगतिभेद इति चेन्न, भृगोलमध्ये महावगाहमतीतिप्रसंगात् । न हि यावानेव नीचैर्देशेवगाहस्तावानेवो
_भूगोले युज्यते । ततो नदीभिभूगोलानुरूपतामतिक्रम्य वहंतीति भूगोलविदारणमिति सममेव धरातलमवलंबितुं युक्तं समुद्रादिस्थितिविरोधश्च तथा परिहृतः स्यात् ।
__यदि उस सिद्धान्तका परित्याग नहीं करोगे यानी भूगोलवादी उस उज्जैनको मध्यदेश मानते रहनेका आग्रह करेंगे, तब तो उज्जैनसे उत्तर ओरवाली नदियां सब उत्तरकी ओर मुख करके आने