Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
तत एव नोदयास्तमययोः सूर्यादेर्षिबार्धदर्शनं विरुध्यते । भूमिसंलग्नतया वा सूर्यादिप्रतीतिर्न संभाव्या, दूरादिभूमेस्तथाविधदर्शनजननशक्तिसद्भावात् । न च भूमात्रनिबंधनाः समरात्रादयस्तेषां ज्योतिष्कगतिविशेषनिबंधनात्वादित्यावेदयति ।
तिस ही कारणसे यानी ऊंचे, नीचे, प्रदेशों अनुसार उदय समय और अस्त समयपर सूर्य, चन्द्रमा आदिके बिम्बोंका आधा दर्शन होना विरुद्ध नहीं पडता है । यहां पक्षान्तर अनुसार भूमिमें संलग्न होकरके सूर्य, चंद्र, आदिकी प्रतीति होना सम्भावना योग्य नहीं है । क्योंकि दूर, अतिदूर, आदि भामके तिस प्रकार चाक्षुष प्रत्यक्षको उपजानेकी शक्तिका सद्भाव है। यानी पृथिवीको गोल मानने पाले यह हेतु देते हैं कि चारों ओर दृष्टि पसार देखनेपर सब ओर गोल दीखता है और आकाशमण्डल गोल कटोरेके समान होकर भामिको ढक रहा प्रतीत होता है। दर वर्त रहे सर्य, चन्द्रमा गोल पृथिवीसे स्पर्श कर रहे हैं । अतः पृथिवी गोल है। किन्तु यह युक्ति निर्बल है। द्रव्य इन्द्रिय मानी गयी आंखोंकी आकृति मसूरकी दाल समान गोठ होनेसे चारों ओर गोल घेरेमें वस्तुयें दीख जाती हैं। दूरका पदार्थ यहाँसे नीचा होता हुआ दीख जायगा । यह दृष्टि का भ्रम है । अलीक ज्ञानोंसे परमार्थ सिद्धान्तकी पुष्टि नहीं होसकती है। दूसरी बात यह है कि समरात्रि दिन, बढना, आदि होनेमें हम जैन केवल पृथिवीको ही कारण नहीं मानते हैं । उनके कारण अन्य भी हैं । ज्योतिष्क विमानोंकी गति विशेषको कारण मानकर भी समरात्र आदिक होजाते हैं, इसी बातका श्री विद्यानन्द स्वामी वार्तिकों द्वारा प्रकटीकरण करते हैं।
समरात्रं दिवावृद्धि निर्दोषाच युज्यते । छायाग्रहोपरागादिर्यथा ज्योतिर्गतिस्तथा ॥१५॥ खखंडभेदतः सिद्धा बाह्याभ्यंतरमध्यतः । तथाभियोग्यदेवानां गतिभेदात्स्वभावतः ॥ १६ ॥ दिनके ठीक बराबर रात्रि होना या दिन बढना, रात घटना और दिन घटना, रात बढना अथवा छाया पडना या ग्रहोंका उपराग ( ग्रहण ) होना राशिसंक्रमण आदिक जैसे ज्योतिषियोंकी गतिसे हो रहे युक्तिसिद्ध हैं । अथवा उन ज्योतिषियोंकी गति अनुसार हो जाते हैं । उसी प्रकार बाहरकी गली, अभ्यन्तर वीथी, मध्यम वीथीके, अनुसार आकाशके खण्डोंके भेदसे वह ज्योतिषियोंकी गति न्यारी न्यारी सिद्ध है । क्योंकि उन सूर्य आदि विमानोंको खींचनेवाले तिस प्रकार गतिप्रेमी भाभियोग्यजातिके देवोंकी गतियां भिन्न भिन्न प्रकारकी हैं । यथार्थ घात यह है कि तिस प्रकार अनादि कालसे सूर्य आदिक विमान स्वभावले ही उन उन प्रति दिन के लिये नियत हो रहीं गलियोंमें