Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यचिन्तामणिः
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कामवेदनाका परिक्षय साध दिया जाता है । यहां वर्तमानकालमें भी किन्हीं किन्हीं मनुष्यों के ति • प्रकार के कामके विनाशका तारतम्य देखा जाता है। अर्थात् - वर्तमान में सम्पूर्ण युवा पुरुष कामुक ही होय ऐसा कोई अवधारण नहीं है। कई पुरुष तो जन्मपर्यंत कामसे नहीं सताये देखे गये हैं। हां, स्त्रियों के मासिकधर्म होने के कारण मानसिक कामविकारोंसे रहितपना दुर्लभ है।" इगि पुरिसे बत्तीसं " । तभी तो देवोंकी गणनासे बत्तीस गुनी भी गिनती में असंख्याती देवियां प्रवीचाररहित नहीं कही गयीं हैं। आर्यिका भी उत्कृष्टसंयमको प्राप्त नहीं कर सकती है। किन्तु वीररसप्रेमी, उदासीन, शान्तरसी, पुरुषों में कामवेदना के विनाशकी तरतमता देखी जाती है। इस हेतुद्वारा विवादापन्नजीवों में प्रवीचार से रहितपना साध दिया जाता है । जैसे अनेक पुरुष सदासे ही श्रृंगार रसके प्रेमी होते हैं, तद्वत् अनेक जन कामरससे सर्वा उदासीन रहनेवाले भी देखे जा रहे हैं । जब कि किन्हीं किन्हीं मनुष्यों के यहां वैसी कामवेदनाका अपाय है | अतः वे सभी अहमिन्द्र देव विचारे प्रवीचारसे रहित हो रहे सम्भव जाते हैं ।
विवादापन्नाः सुराः कामवेदनाक्रांताः सशरीरत्वात् प्रसिद्धकामुकवत् इत्ययुक्तं कामवेदनापायस्य शरीरित्वेन विरोधाभावात् । केषांचिदिहैव मनुष्याणां मंदमंदतमकामानां विनिश्चयात् कामवेदनाहानितारतम्ये शरीर हानितारतम्यदर्शनाभावात् प्रक्षीणशेषकल्मषाणामपि शरीरिणां प्रमाणतः साधनात् ।
जगत्वत्त सम्पूर्ण देव देवियों यहांतक कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश देवों को भी मैथुनोपसेवी स्वीकार कर रहा कोई पौराणिक पण्डित आक्षेप करता है कि विवादमें प्रसित हो रहे
रहा है। धर्म या
देव ( पक्ष ) कामजन्य पीडासे आक्रान्त हैं ( साध्य दल ) । शरीरसहित होनेसे ( हेतु ) वेश्यासक्त या परस्त्रीगामी कामुकपुरुष के समान अन्वयदृष्टान्त ) | ग्रन्थकार कहते हैं कि युक्ति व्याघ्रयोंकी झपटोंको नहीं झेल सकनेवाला यह आक्षेप तो अनुचित है। क्योंकि कामवेदना के अपायका शरीराधारीपन के साथ कोई विरोध नहीं है । वर्तमानमें यहां ही किन्हीं किन्हीं मनुष्यों के अतीव मन्द और उससे भी अत्यधिक मन्द हो रही कामप्रवृत्तिका विशेषरूपेण निश्चय हो व्रतों का लक्ष्य नहीं रखते हुये भी अनेक मनुष्य मन्दकामी हैं। एक पंजाब के मल्लने यावत् जन्ममें एक बार मैथुनसेवन किया था, जिसका फलस्वरूप उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो कि युवा अवस्थामें परिणत होनेपर सम्पूर्ण यूरुपनिवासी मल्लोंका विजेता हुआ, जो इस समय विद्यमान है । सुना जाता है। कि एक विशिष्ट जातिका सिंह जन्मभरमें एक ही बार मैथुनसेवा करता है । किन्हीं श्रृंगारी पुरुपोके परिणाम जैसे विटवकी विपुल तृष्णामें डूबे रहते हैं, उसी प्रकार अनेक उदासीन जीवों के परिनाम स्वभाव ही से कामरहित प्रतीत हो रहे हैं । कामवेदना की हानिका तारतम्य होनेपर शरीर की हानिके तारतम्यका दर्शन नहीं हो रहा है। यानी कामवेदना के हीन हीन होते होते जीवोंके शरीरकी भी हानि होती जाय ऐसा नियम नहीं है । बहुभाग स्थलों में तो इसके विपरीत दीन, हीन,