Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तवाचिन्तामणिः
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सद्भाव नहीं है । कारण कि वे देव स्वल्प पुण्यवाले हैं अथवा वे दो दो इन्द्र स्वयं हीनपुण्य हैं। ( प्रतिज्ञा हेतु ) । अर्थात् - जब अधिकृतोंका पुण्यमन्दशक्तिक हो जाता है तभी अधिकृत प्रजावर्ग के एकसे अधिक दो तीन आदिक नेता प्रभु बन बैठते हैं। अच्छे पुण्यशाली जीव या तो स्वयं प्रभु होते. हैं अथवा एक ही प्रभुके तंत्र होकर रहते हैं । " अनायका विनश्यन्ति नश्यन्ति बहुनायकाः, एकः कृती शकुन्तेषु योन्यं शक्रान् न याचते " इन पद्यॊसे उक्त अर्थ ध्वनित होता है । दूसरी बात यह है कि जिस पदार्थ दो अधिकारी हैं वे स्वयं दोनों स्वल्प पुण्यवान् हैं। छोटा या बडा यथायोग्य कोई कार्य हो उसका अधिकार एक व्यक्तिको प्राप्त होय तभी आधिपत्यका कर्तव्य पूर्णरीत्या निभता है । संशयालु स्वामीको एक देश, एक काल, एक ही कार्यपर समान शक्तिवाले दो अधिकारियोंका नियुक्त करना दो नावोंपर चढने के समान भयावह है । “एको गोत्रे स भवति पुमान् यः कुटुम्बं बिभर्ति एकपतिव्रत " आदि वाक्य एकस्वामित्वको प्रतिपादन करनेमें तत्पर हैं । अतः हीनपुण्यवाले पूर्ववर्ती दो निकायों में दो दो इन्द्र हैं ।
भवनवासिनिकाये असुराणां द्वाविंद्रौ चमरवैरोचनौ, नागकुमाराणां धरणभूतानंदौ, विद्युत्कुमाराणां हरिसिंहहरिकांतौ, सुपर्णकुमाराणां वेणुदेववेणुधारिणौ, अग्निकुमाराणां अग्निशिखाग्निमाणवौ, वातकुमाराणां वैलंबनप्रभंजनौ स्तनितकुमाराणां सुघोषमहाघोषौ, उदधि - कुमाराणां जलकांतजलप्रभौ, द्वीपकुमाराणां पूर्णवशिष्टौ दिक्कुमाराणां अमितगत्यामितवाहनौ । तथा व्यंतरनिकाये किन्नराणां किन्नरकिंपुरुषौ, किंपुरुषाणां सत्पुरुषमहापुरुषौ, महोरगाणामतिकायमहाकायौ, गंधर्वाणां गीतरतिगीतयशसौ, यक्षाणां पूर्णभद्रमाणिभद्री, राक्षसानां भीममहाभीमौ, पिशाचानां कालमहाकालौ, भूतानां प्रतिरूपामतिरूपौ । एवमेतेषामेकैककस्य प्रभोरभावात्ते स्तोकपुण्याः प्रभवो निश्श्रीयंते ।
भवनवासी नामक पहिली निकायमें निवस रहे असुरकुमार जातिके देवोंके चमर और वैरोचन नाम के दो इन्द्र हैं । नागकुमार जातिके देवोंके प्रभु धरण और भूतानन्द दो इन्द्र हैं, विद्युत्कुमार देवों के अधिकारी हरिसिंह और हरिकान्त दो इन्द्र हैं, सुपर्णकुमार जातिके असंख्य देवोंके नेता वेणुदेव और ये दो इन्द्र हैं, अग्निकुमार जातिके असंख्याते भवनवासी देवोंके अधिपति अग्निशिख और अग्निमाणव हैं, वातकुमार भवनवासियों के स्वामी वैलम्ब और प्रभंजन ये दो इन्द्र हैं, स्तनितकुमार देवों के परिवृढ तो सुघोष और महाघोष ये दो इन्द्र हैं, उदधिकुमार देवोंके अधिप जलकान्त और जलप्रभ ये दो इन्द्र हैं, द्वपिकुमारों के नायक पूर्ण और वशिष्ट ये दो इन्द्र हैं तथा असंख्याते दिक्कुमार जातीय भवनवासियोंके ईश अमतिगति और अमितवाहन इन्द्र हैं । तिसी प्रकार व्यन्तर नामकी दूसरी निकाय में किन्नर जातीय देवों के अधिनायक किन्नर और किम्पुरुष इन्द्र हैं, किम्पुरुष जातीय असंख्य व्यन्तर देव ईश्वर सत्पुरुष और महापुरुष दो इन्द्र हैं, महोरग जातीय व्यन्तरोंके पति अतिकाय और महा
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