Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
सर्पिणीमें हुये ग्यारह रुद्रोंमेंसे सबसे प्रथम भीमावलि नामक रुद्रने श्री अजितनाथ स्वामीको बाल्यावस्था में अनेक उपसर्ग किये पश्चात् बालक अजितनाथकी महती शक्तिको आश्चर्यान्वित देखकर महादेवने अजितनाथको स्तुति की और क्षमा मांगी । अन्तिम महादेव सात्यकिने चौदह सौ विद्यायें सिद्ध करलीं थीं, अनेक राजाओं का पराजय किया था । ये रुद्र महाशय भोगों में दिनरात व्याक्षिप्त रहते थे । विद्याओं करके अनेक कष्टसाध्य अनहोने कार्योंको करके sted थे । इसी प्रकार ब्रह्मा भी एक तापसी हुये हैं, जिन्होंने सैकडों वर्षोंतक तपस्या की और तिलोतमा पर आसक्त होकर तपस्यस्की शक्तिसे चार, पांच, मुख बनाये इत्यादिक कृतियां उक्त पुरुषोंकी प्रसिद्ध हैं, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, पाण्डव पुराणों में रामचन्द्र, कृष्ण, का विस्तृत कथनाक मिलता है । होलिकादाहकी पृथा भी इसी भित्ति पर अवलम्बित होकर प्रसिद्ध है । जैन पुराण और वैष्णव या शिव पुराणोंके कतिपय प्रकरण मिल जाते हैं । किन्तु जहां कार्य कारणभावका भंग होय या असम्भव व्यवस्था होय वह अजैन पुराणों का विषय बाधित होजाता है जैसे कि मनुष्यों के संसर्गसे देवियों के संतानकी उत्पत्ति बनाना, कानसे कर्णकी उत्पत्ति मानना, मनुष्यका धड और हाथीका सिर जुडकर गणेशजीका उत्पाद मानना, ब्रह्मा के मुखसे ब्राह्मणों की उत्पत्ति मानना, गायके सींगपर पृथिवीका धर रहना, जटाओंमें गंगाका झेलना । फिर कितनेही दिनतक गंगा नदीका जटाओंमें ही अन्तर्भूत रहना इत्यादिक विषय निर्बाध नहीं हैं । अलंकार पूर्ण साहित्यमें घटा, बढा कर कह दिया जाता है किन्तु असम्भव के परिहारका वहां भी लक्ष्य रखा जाता है । अतः किन्हीं किन्हीं शक्तिशाली पुरुषों करके कभी कचित् प्रसिद्ध हुये त्रिपुरका दाह या अर्धक असुरका विध्वंस, कोटिशिलाका उठाना आदि सम्भवनीय विषयोंको मान लिया भी जाय । किन्तु एक बुद्धिमान ईश्वर करके जगत्का बनाया जाना थप विश्वसनीय नहीं है । यों तो जिनसेनाचार्य कृत सहस्रनाममें महादेव, विष्णु, ब्रह्मा, सुगत, आदि देवोंके अनेक नामोंका उल्लेख है । अमरकोशमें " शम्भुरीशः पशुपतिः शिवः शूली महेश्वरः " ईश्वर, शंकर, मृत्युञ्जय, वामदेव, हर, ईशान, त्र्यम्बक, त्रिलोचन, त्रिपुरान्तक, अन्धकरिपु आदि अनेक नाम महादेवके कहे हैं। इसी प्रकार ब्रह्मा के परमेष्ठी, आत्मभू, पितामह, स्वयंभू, बेधा, नाभेय आदि नाम हैं । सहस्त्रनाममें “ श्रीमान् स्वयम्भूर्वृषभः शंभवः शमुरात्मभूः । नित्यो मृत्युंजयो मृत्युरमृतात्मामृतोद्भवः । युगादिपुरुषो ब्रह्मा पंचब्रह्ममयः शिवः " दुरितारिहरो हरः " त्रिनेत्रत्रयम्बकस्त्रयक्षः केवलज्ञानवीक्षण " त्रिपुरारिस्त्रिलोचनः” सर्वक्लेशा पहः साधुः सर्वदोषहरो हरः, शंकरः शंवदो दान्तो” “तीर्थकृत् केवल शानः ” " नाभेयो नाभिजो जातः " स्वयज्ज्योतिरजोऽजन्मा, सर्वज्ञः सर्वदर्शनः " " सुगतिः सुश्रुतः सुश्रुक्, सुगतो इतदुर्नयः ” सिद्धो बुद्धः प्रबुद्धात्मा " " समन्तभद्रः शांतारिर्धर्माचार्यो दयानिधिः” सूक्ष्मदशीं जितानंगः " " कुपालुर्धर्मदेशकः " इत्यादिक कतिपय अन्वर्थनामों का निर्देश किया गया है इनमें अनेकोंका अर्थ सहस्रनामकी स्तुतिमें लिखा है कि " अनंतभवसंज्ञानजयादासीरनंत जित् हे भगवन् तुम अनन्तको अर्थात् भव-संसारको जीतने की अपेक्षा "अनन्तजित् " है । छोटे छोटे शारी
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