Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ लोकवार्तिके
बनाता
गोरा है, अबकी बार काले पनके पत्र, शाक, आदिका भक्षण बहिरंग कारण और अन्तरंग कारण कृष्ण वर्ण नामक प्रकृतिका उदय नहीं मिलनेसे गर्भका पुत्र गोरा है, कोई स्थूल बुद्धि पुरुष अनुमान है कि गर्भस्थित पुत्र होनेसे ( हेतु ) इतर तीन, चार, देखे जारहे पुत्रों के समान ( अन्वयहै दृष्टान्त ) । इसी प्रकार यह तीसरा अनुमान किसीने उठाया कि यह छात्र ( पक्ष ) व्युत्पन्न ( साध्य ) इस प्रसिद्ध विद्यालय में प्रकाण्ड विद्वान् द्वारा ग्रन्थाध्ययन करने वाला होनेसे ( हेतु ) परिदृष्ट व्युत्पन्न विद्यार्थियों के समान ( अन्वयदृष्टान्त ) वस्तुतः वह छात्र अव्युत्पन्न था इत्यादिक स्थलों में व्यभिचारके विषय हो उस एक शाखापर उपजे हुये कच्चे आम्र फलोंको या गर्भस्थ पुत्रको अथवा उपद्रवी, अविनीत, छात्रको पक्ष कोटिमें कर देनेसे यों उपालम्भ हो जाता । अर्थात् — व्यभिचार स्थलोंको पक्षकोटि में डाल देनेसे पुनः व्यभिचार दोष नहीं उठाया जाना चाहिये जिस प्रकार कि यहां एकशाखाप्रभवत्व आदि हेतुओं में पक्षकोटि कर लिये गये कच्चे फल आदिकों करके कोई भी विचारशील पण्डित पुनः उन करके व्यभिचार नहीं उठाता है । किन्तु प्रत्यक्षप्रमाणसे पक्षकी बाधा देना दोष ही उपस्थित करता है और ऐसी दशामें हेतुका बडा दृढ दोष कालात्ययापदिष्टपना यानी बाधितपना उठाकर वादी की सम्पूर्ण मनोरथ - भित्तियों को वह प्रतिवादी ढाह देता है । उसी प्रकार प्रकरणप्राप्त वैशेषिकोंके अनुमानमें भी जैनों को व्यभिचार दोष नहीं उठाकर बाधित हेत्वाभास उठाना चाहिये । जिस प्रकार कि पक्षकी प्रत्यक्षप्रमाणसे बाधाको उठाने के लिये समुचितपना है उसी प्रकार अनुमानप्रमाण करके भी पूर्वपक्षी के अनुमान में प्रसन्नतापूर्वक बाधा उठाई जा सकती है। " वह्निरनुष्णः द्रव्यत्वात् जलवत् अग्नि ( पक्ष ) शीतल है ( साध्य ) द्रव्य होनेसे ( हेतु जलके समान ( अन्वयदृष्टान्त ) । इस अनुमानमें जैसे स्पार्शन प्रत्यक्षसे बाधितपना आपादित कर दिया जाता है । उसी प्रकार " अपरिणामी शब्दः कृतकत्वात् इस अनुमानको शब्द परिणामी है अनुमान द्वारा बाधित किया जाता है । प्रकरणमें द्वीप आदिक ( पक्ष ) किसी बुद्धिमान् करके बनाये गये हैं ( साध्य ) विशेष रचनावाले होनेसे या कार्य होनेसे ( हेतु ) इस वैशोषकों के पक्षकी स्थावर आदिकी उत्पत्ति में महेश्वर ( पक्ष ) निमित्त कारण नहीं है ( साध्य ) अन्वयव्यतिरेककी घटना नहीं होनेसे ( हेतु ) इस अनुमान द्वारा बाधा उठाई जा सकती है । तथा प्रत्यक्षप्रमाणसे बाधित हो रहे पक्षनिर्देश के अनन्तर प्रयुक्त किया जा रहा हेतु जिस प्रकार बाधित हेत्वाभास है उसी प्रकार अनुमानप्रमाणसे बाधित हो रही प्रतिज्ञाके निर्णीत निर्देशके पश्चात् प्रयुक्त किया जा रहा हेतु भी कालात्ययापदिष्ट है प्रत्यक्षवाधित और अनुमानबाधित पक्षसे अनुमिति तत्कारणान्यतरविरोधित्व सम्बन्धकरके सहित हो रहे हेतुओं में सभी प्रकारोंसे कोई विशेषता नहीं है । एक बात यह भी है कि हेतुओंकरके वादी के पक्षकी बाधाको उठानेपर पुनः परिवर्तन भी नहीं हो सकेगा । अर्थात्- तू – एक हेतुसे पक्षसिद्धि न सही दूसरे हेतुओंसे कर हो सकती । जब प्रत्यक्षसे अग्निका उष्णपना या अनुमानसे शब्दका
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सत् होनेसे इस
लेंगे यों भी पक्षकी सिद्धि नहीं
परिणामीपना प्रसिद्ध है । तो
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