Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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न कश्चिजगबुद्धिमनिमित्तं साधयितुं स्थावरादीन् पक्षीकुरुते । तैः साधनस्य व्यभिचारोद्भावने वा कृते सति पश्चान पक्षीकुर्वीत येन व्यभिचाराविषयस्य पक्षीकरणाद्धेतोरव्यभिचारे न कश्चिद्धतुर्व्यभिचारी स्यात् ।।
कोई कोई कर्तृवादी तो जगत्के बुद्धिमान् निमित्त कारण द्वारा बनाये जानेको साधनेके लिये पहिलेसे ही स्थावर, सूर्य, चन्द्रमा, आदिकोंको पक्षकोटिमें कर लेता है । हां, कोई वैशेषिक पृथिवी, पर्वत, शरीर आदिकोंको पक्ष करता है । ऐसी दशामें किसी प्रतिवादी द्वारा उन स्थावर आदिकों करके कार्यत्व हेतुका व्यभिचार दोष उठाना कर चुकनेपर पीछेसे स्थावर आदिको पक्षकोटिमें कर लेता है । किन्तु ऐसा कोई कर्तृवादी नहीं जो वन्य वनस्पति, खनिज, स्थावर, आदिको पक्ष कोटिमें नहीं करै क्योंकि ईश्वरवादी तो आत्मा, आकाश, परमाणु, आदि नित्य पदार्थोको छोडकर शेष सभी स्थावर, खनिज, बीज, अंकुर, अदृष्ट, सूर्य, पर्वत, आदि अनित्य चराचर जगत्का निर्माण करनेवाला ईश्वरको मानते हैं । अतः वे सब पक्षकोटिमें आ जाते हैं । व्यभिचारके विषय हो रहे स्थलको पक्ष कर देनेसे हेतुका अव्यभिचार माना गया है । यदि व्यभिचारस्थलको पक्षकोटिमें प्रविष्ट करते हुये भी बलात्कारसे व्यभिचार उठाया जायगा | तब तो कोई भी हेतु व्यभिचार दोषरहित नहीं हो सकेगा । अतः यहां व्यभिचार दोष उठाना उचित नहीं है। जिससे कि वस्तुतः व्यभिचार दोषके विषय नहीं किन्तु असदाग्रह करके व्याभिचार दोषके विषय हो रहे स्थलको पक्ष कर देनेसे हेतुका अव्यभिचार माननेपर कोई भी हेतु व्यभिचारी नहीं बन बैठे यानी सभी हेतु व्यभिचारी नहीं बन जाय । एतदर्थ वैशेषिकोंके अनुमानमें पक्षीकृत स्थावर आदिकों करके व्यभिचार दोषको नहीं उठाओ ।
पक्कान्येतान्याम्रफलान्येकशारवाप्रभवत्वादुपयुक्तफलवदित्यादिषु तदेकशारवाप्रभवानामपकानामाम्रफलानां व्यभिचारविषयाणां पक्षीकरणादित्युपालंभः स्यात् । यथा चात्र न पक्षीकृतैः कश्चिद्यभिचारमुद्भावयति किंतु प्रत्यक्षबाधा पक्षस्य हेतोश्च कालात्ययापदिष्टत्वं तथा प्रकृतानुमानेपि । यथा च पक्षस्य प्रत्यक्षबाधोद्भावयितुं युक्ता तथानुमानबाधापि । यथा च प्रत्यक्षबाधितपक्षनिर्देशानंतरम् प्रयुज्यमानो हेतुः कालात्ययापदिष्टस्तथानुमानबाधितपक्षनिर्देशानन्तरमपि सर्वथा विशेषाभावात् पक्षबाधोद्भावने च हेतुभिः परिदानमपि न भवेदिति सोद्भावनीया, तदुपेक्षायां प्रयोजनाभावादिति चापरे प्रचक्षते । अन्ये त्वाहुः।।
आम्रवृक्षकी एक शाखा पर कितने ही कच्चे, पक्के, फल लग रहे हैं किसी लोभी आतुर विक्रेताने बानगीके ढंगसे दो एक मीठे फल भोले क्रेताको चखा दिये शाखाके सम्पूर्ण फलोंका खाना खवाना प्रयोजन भूत नहीं है । अतः विक्रेता अनुमान बनाता है कि ये सन्मुख देखे जारहे सभी आम्रफल ( पक्ष ) पके हुये हैं ( साध्य ) वृक्षकी एक शाखामें उपजना होनेसे ( हेतु ) उपयोगोंमें आचुके चूसे हुये आमके समान ( अन्वय दृष्टान्त ) । अथवा मित्रा नामक काली स्त्रीका गर्भस्थ पुत्र