Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तस्वार्थचिन्तामणिः
૨૦૦
अधर्म, या भक्ष्य, अभक्ष्यका, विवेक नहीं है, वर्णाश्रम व्यवस्था नहीं है, धर्मको व्रत समझ कर नहीं पालते हैं, उन जातियोंके मनुष्य भले ही क्षेत्र आर्य क्यों न होंय, म्लेच्छों में ही परिगणित किये जाते हैं ।
कुतः पुनरेवमार्यम्लेच्छव्यवस्थेत्याह ।
महाराज, फिर यह बताओ कि जगत् में मनुष्यों के इस प्रकार आर्यपन या म्लेच्छपन की व्यवस्था भला किस कारण से नियत हो रही है ? यों जिज्ञासा होनेपर आचार्य महाराज समाधान वचनको कहते हैं ।
संप्रदायाव्यवच्छेदादार्यम्लेच्छव्यवस्थितिः । संतानेन विनिश्रेया तद्विद्भिर्व्यवहारिभिः ॥ ९ ॥ स्वयं संवेद्यमाना च गुणदोषनिबंधना । कथंचिदनुमेया च तत्कार्यस्य विनिश्चयात् ॥ १० ॥
1
सन्तानक्रम अनुसार उन आर्य या म्लेच्छ पुरुषों को जाननेवाले व्यवहारी मनुष्यों करके सम्प्र दायका नहीं टूटना होनेसे आर्य और म्लेच्छ मनुष्यों की व्यवस्थाका संतान प्रतिसंतान रूप करके विशेषतया निर्णय कर लेना चाहिये । यों वृद्धपरम्परासे चले आ रहे आप्तवाक्यों द्वारा मनुष्यों में आर्यपन या म्लेच्छपनका नियत बना रहना जान लिया जाता है तथा प्रत्यक्ष द्वारा भी गुण और दोषों को कारण मानकर हुई आर्यव्यवस्था या म्लेच्छव्यवस्थाका स्वयं सम्वेदन किया जा रहा है । जिन पुरुषोंमें धर्म कर्मविचार, असि, मत्री, आदि प्रवृत्तियां, गुरुविनय, पापभीरुता, आदि गुण हैं, आर्य मनुष्यों के यहां अपनी अपनी आत्मामें आर्य मनुष्य अनुभवे जा रहे हैं। धर्म कर्मको स्वीकार नहीं करना, आस्तिकोंकी निन्दा, मद्य मांस आदिका सेवन आदि दोष जिन मनुष्यों में हैं, वे जातियां स्वयं अपनेको म्लेच्छरूपसे सम्वेदन कर रही हैं । तथा उन आर्य मनुष्य और म्लेच्छ मनुष्यों के अव्यभिचारी कार्यों का विशेषतया निश्चय हो जानेसे आर्यम्लेच्छव्यवस्था किसी ढंगसे अनुमान द्वारा भी जानी जा सकती है । यों आगमप्रमाण प्रत्यक्षप्रमाण या अनुमान प्रमाणसे जगत् में आर्य, म्लेच्छव्यवस्था नियत हो रही ज्ञात कर ली जाती है। जब कि आम्रफल, चावल, गेंहू, घोडा, बैल, कबूतर, आदि की निकृष्ट और प्रकृष्ट जातियों का परिचय हो रहा है तो विशेषज्ञों करके आर्य, म्लेच्छ व्यवस्थाका निर्णय भी सुलभ है । यदि दूर देशके मनुष्य या मायाचारी मनुष्य के आर्यत्व अथवा 1 म्लेच्छत्वका किसी व्यक्तिको निर्णय नहीं होय तो यह उस व्यक्तिकी प्रज्ञाका दोष है । आर्यत्व, म्लेच्छत्व, परिणतिओंमें कोई त्रुटि नहीं है । अनुभवगम्य या प्रत्यक्षज्ञानगिम्य अनेक सूक्ष्म विषयोंमें अल्पज्ञोंको अज्ञान या भ्रान्ति हो जाती है ।
48